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Thursday, January 16, 2020

 धतूरा
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शिव शेखरण पौधा
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धतूरा स्ट्रामोनियम

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धतूरा

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धतूरा एक मीटर तक ऊंचा एक पौधा होता है। यह दो रूपों में प्रयोग किया जाता है जिसमें एक काला तो दूसरा सफेद होता है। काले धतूरे का फूल नीली धारियों वाला होता है। हिन्दू लोग धतूरे को शिव शंकर जी पर अर्पित करते हैं। इसे कनक और उन्मत्त नामों से संबोधित किया जाता है। यद्यपि आयुर्वेद में इसे विष वर्ग में रखा गया है किंतु यह रोगों इलाज में काम में लाया जाता है।
यह द्विबीजपत्री पौधा होता है जिसे वैज्ञानिक भाषा में धतूरा स्ट्रामोनियम नाम से जाना जाता है।
धतूरे के पत्तों का धुआं दमा शांत करने, पत्तों का अर्क कान में डालने से आंख का दुखना बंद हो जाता है। धतूरे की जड़ सूंघे तो मृगी रोग,फल को उड़द संग ताप रोग
दूर करने पुरुष तत्व को बढ़ाने,कोमल पत्तों को तेल से चुपड़कर और आग पर सेंक बच्चे की सर्दी दूर करने, फोड़ा ठीक करने, बवासीर और भगन्दर रोग ठीक करने, प्रसूति रोग व गठिया रोग में काम आता है।
  धतूरे में अट्रोपिन पाया जाता है जो परंपरागत दवाओं में काम आता है। धतूरे को धार्मिक पौधा माना जाता है इसलिए इसे शिव भोले पर अर्पित किया जाता है। संत साधु संत इसकी चिलम बनाकर पीते हैं जो बीज द्वारा उगाया जा सकता है। इस पौधे के फल कांटेदार होते हैं। फलों में काले रंग के बीज पाए जाते हैं जिनको उगा कर उनसे पौधे तैयार किया जा सकता है। चीन के लोग धतूरे द्वारा बेहोश करके सर्जरी करते हैं।
 धतूरा गठिया, बुखार, गर्भधारण, स्तनों की सूजन, यौन शक्ति, पागलपन, बाल रोग, सिरदर्द, नेत्र रोग, सूजन, सिर की जुएं, कान के रोग दूर करने के काम आता है वही बिच्छू जहर में भी काम में लाया जाता है।
धतूरे की रस को तिल के तेल में पकाकर गठिया रोग में, धतूरे के बीजों की राख बुखार में, धतूरे के फलों के चूर्ण शहद में मिलाकर गर्भधारण में, स्तनों की सूजन को दूर
करने में पट्टे, यौन शक्ति बढ़ाने के लिए बीज अकर्करा और लोंग में मिला कर दिया जाता है वहीं उन्माद में काले रंग का धतूरा काम में लाया जाता है। बाल रोग में धतूरे की पत्तियां, सिर दर्द में धतूरे के बीज, नेत्र रोग में ताजा पत्तों का रस काम आता है। सिर के रोगों को दूर करने में भी यह काम में लाया जाता है, सिर की जुएं, कान के रोग आदि के इलाज में काम में लाया जाता है।
 यह वास्तव में विदेशी पौधा है जो पूरे भारत में फैला
हुआ है। धतूरे में पत्ते और बीज में कई गुण पाए जाते हैं। धतूरे का अधिक मात्रा में सेवन जहर के समान होता है। शरीर को सुन्न कर देता है, सिर में दर्द पैदा करता है,
पागलपन, बेहोशी आदि पैदा करके व्यक्ति की मौत भी ला सकता है।
धतूरा गर्म प्रकृति का होता है। शरीर में गर्मी गैस को बढ़ाता है, बुखार और कोढ़ को नष्ट करता है। धतूरा की पांच प्रमुख प्रजातियों मिलता है जिनमें सफेद, काला, नीला, पीला और लाल फूल लगते हैं। यह भी माना जाता है कि धतूरे के बगैर शिव शंकर की पूजा अधूरी होती है। यह नाक की बीमारी, बिच्छू के काटने पर, गंजापन आने पर पत्तों का रस लगाकर, हाथ पैरों में अधिक पसीना आने पर बीज की राख, दांत दर्द में बीजों के पानी, कुत्ते के काटने पर इसके पत्तों के रस में मिर्च मिलाकर, अंडकोष की सूजन पत्तों द्वारा, फेफड़ों की सूजन पत्तों द्वारा, खांसी में पत्ते, अफारा, नपुंसकता को दूर करने, पुरुष रोग दूर करने, गर्भपात को रोकने, कमर दर्द, बहरापन, स्तनों का कठोर होना, कील कांटा चुभने पर धतूरे को गुड़ में मिलाकर दिया जाता है, वही टेटनस व पेट में दर्द होने पर, हाथ पैर की अकडऩ, लिंग दोष, सिर का दर्द, नाड़ी का दर्द, हैजा आदि में भी काम में लाया जाता है। इसके पत्ते और बीज विषैले होते हैं। यदि धतूरे का जहर शरीर में चढ़ गया है तो पलाश या ढाक के फूल खिलाना चाहिए। कपास के फूल भी धतूरे के जहर को दूर करने के काम आते हैं।

अंग्रेजी में इसे जिमसनविड नाम से जाना जाता है जो नाइटशेड फैमिली से संबंध रखता है। इसकी उत्पत्ति अमेरिका से मानी जाती है। इसमें अल कोलाइड पाए जाते हैं। यह वार्षिक पौधा होता है इसके तने छोटे होते हैं। यहां तक कि हरी रंग धारियां होते हैं। इस पौधे को हेल्स बेल, मून फ्लोवर, डेविल्स स्टंप्ड, डेविलस विड, स्टिंग वीड, लोकोवीड, फाल्स कैस्टर ऑयल प्लांट,
डेविल्स कुकुंबर ,थ्रोन एप्पल नामों से जाना जाता है। यह कुल मिलाकर बहुत औषधीय पौधा होता है।
**होशियार सिंह लेखक, कनीना, महेंद्रगढ़ हरियाणा**


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