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Sunday, January 5, 2020


 अश्वगंधा 
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अश्वगंधा पौधा विथानिया सोम्निफेरा नाम से जाना जाता है जिसे कई अन्य नामों से भी जाना जाता है जिनमें इंडियन जिनसेंग, पाइजन गूजबेरी, विंटर चेरी आदि प्रमुख हैं। यह एक शाक के रूप में पाया जाता है। इसके अनेक प्रजातियां पाई जाती है किंतु भारत में महज दो प्रजातियां मिलती हैं। यह एक औषधीय शाक है जिसका आयुर्वेद में बहुत अधिक उपयोग है। आम भाषा में अवगंधा कहते हैं। इसके फूल छोटे हरे एवं घंटी जैसे होते हैं।
  अश्वगंधा दो शब्दों से मिलकर बना है अश्व अर्थात घोड़ा तथा गंधा का अर्थ है महक।  इसकी जड़ों में घोड़े जैसी बदबू आती है इसलिए इसे अश्वगंधा कहते हैं। लेटिन भाषा में विथानिया का अर्थ नींद होता है। भारत के अतिरिक्त कई देशों में से खेती के रूप में उगाया जाता है। इस पौधे में अनेकों रासायनिक पदार्थ पाए जाते हैं। भारत के मध्य प्रदेश, पंजाब, राजस्थान, गुजरात आदि राज्यों में इसकी खेती की जाती है।
 अश्वगंधा को शरीर के लिए बहुत लाभप्रद माना जाता है। अश्वगंधा की जड़ों से अनेक प्रकार की दवाइयां बनाई जाती है लेकिन अभी तक ऐसा कोई प्रमाण
उपलब्ध नहीं है जो इसे बहुत लभकारी या बहुत अधिक हानिकारक सिद्ध करता हो। अश्वगंधा मस्तिष्क के लिए बहुत बेहतर माना जाता है क्योंकि इससे दिमाग तेज हो जाता है। यह तनाव कम करने के लिए प्रयोग में लाया जाता है। इसमें एंटीआक्सीडेंट के गुण पाए जाते हैं। बुढ़ापा रोकता है। शरीर की बीमारियों को कम कर देता है। उसके प्रमुख लाभों में- यह खून में कोलस्ट्रोल को कम कर देता है। इसलिए इसे उच्च रक्तचाप को कम करने के लिए काम में लेते हैं। यदि कोई अनिद्रा से परेशान है तो वो इसका उपयोग कर सकता है।  इससे गहरी नींद आती है। अनिद्रा के शिकार होने पर इसका प्रयोग कर सकते हैं।
 तनाव की बीमारी से परेशान है वह व्यक्ति इसके प्रयोग से तनाव से बच सकता है क्योंकि इस पौधे में निद्रा लाने वाला पदार्थ पाया जाता है। यौन क्षमता में भी अश्वगंधा बहुत लाभप्रद हैं। कुछ व्यक्ति संतान सुख से वंचित रह जाते हैं उनके पीछे उनके उनके शुक्राणुओं की संख्या कम होना माना जाता है। यह पुरुषों में यौन
क्षमता को बेहतर बनाना है तो इस अश्वगंधा का उपयोग किया जा सकता है जिससे पुरुष तत्व की गुणवत्ता में सुधार आता है। वैसे भी जब तनाव नहीं होता तो प्रजनन क्षमता बढ़ जाती है। कैंसर में यह रोग कारगर है। अभी तक जो शोध हुए हैं उससे स्पष्ट है कि कैंसर रोग को रोकने में यह कारगर है। जब कैंसर रोग में कीमोथेरेपी की जाती है तो उसके बुरे प्रभाव को भी इससे में खत्म किया जा सकता है।
 यदि शुगर की बीमारी है तो शुगर की बीमारी को भी इसके जरिए रोका जा सकता है। अभी तक कई प्रयोग जीव जंतुओं पर किए जा चुके हैं जिससे लगता है कि बहुत बेहतर पदार्थ है जो शुगर की बीमारी दूर करता है और रोग प्रतिरोधक क्षमता को शरीर में बढ़ा देता है। इसे स्पष्ट है कि यह इम्यून शक्ति को बढ़ा देता है। यदि गले में थायराइड ग्रंथि काम नहीं करती तो हार्मोन असंतुलित हो जाता है। शरीर का वजन कम या अधिक हो जाता है। ऐसे में अश्वगंधा थायराइड ग्रंथि, आंखों की बीमारियां जिनमें मोतियाबिंद प्रमुख इस अश्वगंध से दूर किया जा सकता है। जोड़ों के दर्द, याददाश्त को सुधारना मांसपेशियों को मजबूत बनाने में भी इसका योगदान है। यदि शरीर में संक्रमण क्षमता बढ़ जाती है तो उस समय भी इसका उपयोग किया जाता है।
   वजन घटाना हो या बुढ़ापे को रोकना है या घाव भरने के लिए, त्वचा पर सूजन आने पर, यदि शरीर में कोर्टिसोल नामक हार्मोन उत्पन्न नहीं होता हो तो






, बालों में डैंड्रफ हो की समस्या, सफेद बाल पउ़ते हैं तो इसका उपयोग किया जाता है। बाजार में यह कई रूपों में मिल जाता है चाहे चूर्ण हो या गोलियां हो या पाक हो। इस अश्वगंधा में प्रोटीन, वसा, कार्बोहाइड्रेट, लोहा, कैल्शियम, कैरोटीन, विटामिन-सी आदि अनेक तत्व पाए जाते हैं। कुल मिलाकर अश्वगंधा से न केवल पशुओं का इलाज किया जाता है अपितु मानव का इलाज भी किया जाता है। जो पशु शक्तिहीन हो जाते हैं उन्हें यह शाक दी जाती है। असगंध के कारण पशु बीमारी से खड़े हो जाते हैं और उनमें ताकत आ जाती है। अश्वगंधा बैल, भैंस, गाय आदि को भी खुराक के रूप में दी जाती है। यह भैंस, बकरी आदि में भी लाभकारी होता है। जहां उनकी दूध की क्षमता बढ़ती है वही या उन्हें शारीरिक शक्ति भी प्रदान करता है।
अश्वगंधा आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति महत्वपूर्ण पौधा है। इसे नकदी फसल के रूप में उगाया जाता है। ताजा पति और जड़ों में घोड़े जैसी और घोड़े के मूत्र जैसी गंध आती है। भारत में इसकी दो प्रजातियां पाई जाती है। यह द्विबीजपत्री पौधा है जो सोलेनेसी कुल का सदस्य है। बैंगन जिस कुल में आते हैं उसी कुल में यह पौधा शामिल किया गया है। अश्वगंधा की जड़े शक्तिवर्धक, शुक्राणुवर्धक और पौष्टिक होती है। जोड़ों के दर्द, खांसी अस्थमा दूर किया जाता है। महिला की बीमारियों जैसे श्वेत प्रदर, अधिक रक्त स्राव, गर्भपात आदि में भी उपयोग किया जाता है।    तंत्रिका तंत्र संबंधी कमजोरी को दूर किया जाता है। आयुर्वेदिक दवाओं के निर्माण में इसका महत्व है। गठिया, जोड़ों के दर्द, नपुंसकता को दूर करने के काम आता है। इसकी जड़ों को त्वचा संबंधी बीमारियों को दूर की जा सकती है।
बाजार में अवगंधा, अश्वगंधारिष्ट, अश्वगंधा घृत, चूर्ण अवलेह आदि रूपों में पाया जाता है। अश्वगंधा का बलकारी, रसायन वाजीकरण, नाड़ी बलकार,धातुवर्धक नाम से जाना जाता है ।सभी जड़ी बूटियों में से अश्वगंधा सबसे अधिक प्रसिद्ध जड़ी बूटी है। पुराने समय से अश्वगंधा का उपयोग पशुओं के इलाज में होता रहा है। अश्वगंधा की दवा चूर्ण, कैप्सूल सभी बाजार में उपलब्ध होते हैं। 

**होशियार सिंह, लेखक, कनीना,  महेंद्रगढ़, हरियाणा**

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