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Tuesday, January 28, 2020

झुंडा
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मूंज या सरकंडा 
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 ग्रामीण क्षेत्रों का उपहार झुंडा जिसे मूंज या सरकंडा नाम से भी जाना जाता है। इसका वानस्पतिक नाम सकरम मुंजा है। यही नहीं कास नामक घास, गन्ना तथा खेतों में जंगली बरूं घास भी इसी कुल से संबंधित है।
मूंज भारत के नदी जल किनारे आदि पर पाया जाता है। यहां तक कि खेतों के चारों ओर भी लोग मूंज पौधे को उगाते हैं। यह घास कुल का पौधा होता है जो प्राय 6 से 7 फुट तक भी बढ़ जाता है। जिस पर सफेद रंग के फूल आते हैं जो सजावट के रूप में काम में लाए जाते हैं।
 ढालदार, रेतीली, हल्की मिट्टी में भी उगाया जा सकता है। प्राय इसकी जड़े ही रोप दी जाती जो पूरा पौधा बन जाता है। एक पौधे से भारी संख्या में दूसरे पौधे तैयार किए जा सकते हैं इसे कायिक वर्धन कहा जाता है। इसके बीज विकसित नहीं होते। जड़ों से नया पौधा दो अढ़ाई महीनों में तैयार हो जाते हैं।
 पहाड़ों और रेतीले स्थानों एवं ढाल वाले क्षेत्र जहां मिट्टी कटाव होता है और पैदावार नहीं हो पाती वहां भी इसे लगाया जाता है। खेत के चारों ओर मेंढ़ के रूप में काम करता है। पशु इसे बड़े चाव से खाते हैं ऐसे में पशु चारे के रूप में लोग इसे प्रयोग कर लेते हैं। यहां तक कि बारिक काटकर इसे पशुचारे के रूप में काम में लेते हैं।
यह एकबीज पत्री पौधा होता है जिसकी रेशेदार जड़े पाई जाती हैं। जिन्हें झकड़ा जड़ कहते हैं। इसके लिए अधिक पानी हानिप्रद होता है इसलिए जिन क्षेत्रों में पानी
अधिक होता है वहां यह नष्ट हो जाता है। इसे जब काट लिया जाता जाता है फिर फुटाव आ जाता है और एक पौधा बन जाता है।       इसके एक पौधे से 60 तक सरकंडे तक पाए जाते हैं। एक बार उगाया गया सरकंडा 30 से 40 वर्ष तक लगातार काम करता है। उसकी कटाई करने से दुबारा पैदा हो जाता है। जहां इसकी किसी जमाने बहुत मांग होती थी आजकल की मांग घटती जा रही है।
 इसके पत्ते पर ब्लेड जैसी तेजधार पाई जाती है जो हाथ पैर को चीर डालती है। इसको सुखाने के बाद इसे इकट्ठा कर सुखाने के बाद पूला बनता है और पूले को मृत्युशैय्या बनाने को काम में लाया जाता है जिस पर गर्मियों में फूल आ जाते हैं। फूल गुच्छे के रूप में सफेद रंग के होते हैं। उस समय की कटाई करना उचित माना जाता है।
मूंज पौधा जहां कई रूपों में काम में लाया जाता है। पशुचारे के रूप में बेहतर पौधा होता है वहीं इसके अंदर अनेकों जीवधारी निवास करते हैं।जब इस पर फूल आ जाते हैं तो लोग इसे अनेकों प्रकार के खिलौने बनाने के लिए काम में लेते हैं। इसकी जड़ और पत्तियां औषधियों में काम आती है वही एक लाभदायक खरपतवार है। इसके अनेकों लाभ है। यह भारत ही नहीं अपितु अनेकों देशों में भी पाया जाता है।

ग्रामीण क्षेत्रों में कभी इसकी छत बनाई जाती है जिसे झोपड़ी नाम से जाना जाता है। आजकल झोपडिय़ां समाप्त हो रही है। होटल, रेस्तरां आदि में झोपड़ी देखने को मिल सकती है। इसकी सरकंडे से तुली निकाली जाती है जो सरखी अर्थात झोपड़ी बनाने के काम आती है वहीं इसके नीचे बैठकर लोग आराम करते थे। अब तो सरखियां भी समाप्त हो गई है।
 जहां पूला मृत्यु के समय काम में लाया जाता है वही इसके द्वारा बनाई हुई झोपड़ी में बारिश के समय
निराला आनंद आता है। ग्रामीण क्षेत्रों में इसकी तूली से रोटी रखने का डेेलिया बनाया जाता है वहीं सरकंडे की कलम बहुत प्रसिद्ध होती थी। सरकंडे से जहां मूंज निकालकर रस्सी बनी जाती है। रस्सी से जहां चारपाई भरने के काम में लेते हैं। जो बीमार व्यक्तियों के स्वास्थ्य के लिए बहुत उपयोगी होती है।
 इसकी चारपाई पर सोने से शरीर के कई रोग दूर हो जाते जिनमें कमर दर्द, हाथ पैर के दर्द, पशुओं के पैर की हड्डी जोडऩे के काम में लाया जाता है। वही छप्पर या झोपड़पट्टी के नीचे सोने से लू का प्रभाव कम हो जाता है। झुंडा जहां मिलता है वहां मृदा अपरदन बहुत कम हो जाता है।

सरकंडा छाज बनाने के काम में लाया जाता है विभिन्न प्रकार के खिलौने बनाने के काम में लेते हैं। तुली का घोड़ा बहुत प्रसिद्ध होता है। इसकी फाइबर रसिया बनाने के काम में लेते हैं। यह जंगली बहू वर्षीय घास कुल का पौधा है। इसकी जड़े भूमि को जकड़े रखती है जो आंधी बारिश आदि से मिट्टी कटाव को रोकती है। इसके रसिया हाथ के पंखे, टोकरी, छाया आदि बनाने के काम में लाते हैं वहीं फसल सुरक्षा के काम में भी लेते हैं।
इससे बना हुआ बिजना हवा करने के काम आता है वहीं छाज अनाज बरसाने के काम आता है। बच्चों के झूले छप्पर आदि सजावटी सामान भी बनाया जाता है। यह उन स्थानों पर बहुत काम आता है जहां रेतीली मृदा हवा और पानी द्वारा आसानी से कट जाती है। यह मृदा कटाव को बहुत अधिक तक रोकता है। बड़े-बड़े खेतों में मेढों पर लगाया जाता है ताकि गर्मी और सर्दी से फसल को बचाया जा सके। सब्जी एवं पौध तैयार करने के काम आता है।
फसल सुरक्षा में प्रयोग किया जाता है ताकि सर्दी और गर्मी से उनको बचाया जा सके। यह छप्पर बनाने के काम में लेते हैं वहीं होटलों में भी उसके छप्पर देखे जा सकते हैं। इसके फूल वाले भाग को जहां झाड़ू बनाने, चटाई बनाने, बनाने छाबड़ी बनाने के काम में लेते हैं। वर्मी कंपोस्टिंग के समय इसकी छाया काम में लाई जाती है। पतवार के रूप में भी लोग इसको काम लेते हैं वही ग्रीसिंग पेपर बनाने के काम में भी लाया जाता है। चारा आदि संग्रहण के लिए गोलाकार कूप भी बनाए जाते हैं जिनमें कई वर्षों तक चारा खराब नहीं होता। पशुओं के लिए बिछावन बनाने के काम में लाते हैं वहीं फसलों को पाले से बचाने के काम में लेते हैं। बकरियों का भेड़ बकरियों का बाड़ा बनाने चारे के रूप में काम में
लेते हैं वही ग्रामीण क्षेत्रों में उपले बनाकर इसके ऊपर सुखाते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों का उपहार है ग्रामीण क्षेत्रों में जहां आय का साधन भी बनता जा रहा है जो लोग बेरोजगार होते हैं थोड़ा बहुत खेत होता है वे उगाकर बेचकर अपनी रोटी रोजी भी कमा सकते हैं। इस पौधे की सबसे बड़ी विशेषता है कि बहुत से पक्षी जीव जंतु इस पर आश्रित होते हैं। बया नामक पक्षी इसी से अपना बहुत सुंदर घोंसला बनाता है। कभी कभार जब जरूरत हो तो आग जलाने के काम में भी लिया जाता है क्योंकि आग तेजी से पकड़ता है। इसके सरकंडे जहां मधुर स्वाद के होते हैं जिसके सरकंडों का रस निकालकर पीलिया रोग में भी काम में लेते हैं वही चोट आदि लगने पर इसकी पत्तियां पीसकर लेप किया जाता है।
** होशियार सिंह यादव, लेखक, कनीना महेंद्रगढ़, हरियाणा**

                   झुंडा
खेत क्यार में खड़े हुए
पानी, मूंज कहलाते हैं
पशुचारे के रूप में जन
इनको ही काट चराते हैं,
                               सक्रम बेंगालेंस कहाए
                             गन्ना कुल में पाया जाए
                             जंगली जीवों का आहार
                           गैंडा इसको चाव से खाए,
भारत देश का यह पौधा
गर्मी में हरा भरा हो जाए
झोपड़ी इसकी ही बनती
छप्पर को जन ललचाए,
                              जब कभी रस्सी बुननी हो
                              सामने मूंज मंजोली आए
                             कूट पीटकर बनती रस्सी
                             लो उससे चारपाई बनाए,
तुली झुंडे से ही बनती है
खिलौने बच्चों को खिलाए
सिरकी इनकी ही बनती है
गरीब सुंदर सा घर बनाए,
                              पान्नी होती अति तीखी है
                              ब्लेड की भांति करे काम
                             छांद बनाकर करते यापन
                             सर्दी गर्मी करती है तमाम,
इंसान स्वर्ग को पधारता है
पुला उठाकर जल्दी लाते
दाह संस्कार जब होता है
अग्नि इससे ही धंधकाते,
                              होटल में जब झोपड़ी दिखे
                            याद आता  खेत  का  झुंडा
                           जंगली जीव इसी में छुपते
                          आग लगा देता कोई गुंडा।
*******होशियार सिंह, लेखक, कनीना******











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