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Saturday, January 4, 2020



चना  

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चिकपी
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चिकपी चने का नाम है । चने का वानस्पतिक नाम साइसर एरांटियम है। यह दलहन जाति का एक प्रमुख सदस्य है। अंगे्रजी में इसे ग्राम नाम से जाना जाता है। सबसे पहले चने की खेती किए जाने प्रमाण भी मिलते हैं। चना विभिन्न रूपों में प्रयोग किया जाता है। जब से इसे उगाया जाता और जब सूख न जाए तब तक प्रयोग में लाया जाता है। चने को कोई भाग बेकार नहीं जाता है। सुख दुख में भी चने का उपयोग किया जाता है।
चना कम पानी की एक फसल है जिसको बहुत कम पानी में भी उगाया जा सकता है। यहां तक कि
रेगिस्तान में हल्की बारिश होने के बाद चने उगाए जाते हैं। यह रेगिस्तान और सुखी मिट्टी में बालू मिट्टी में भी अच्छी प्रकार पैदा किया जा सकता है।
चने की यूं तो अनेकों किस्में है किंतु काले चने सबसे प्रसिद्ध है। तत्पश्चात काबुली चने थोड़े बड़े आकार में होते हैं बादामी रंग होता है। काबुली चना सब्जी के रूप में अधिक प्रयोग किया जाता हैं। उत्तरी भारत में बहुत अधिक मात्रा में उगाया जाता था किंतु अब धीरे-धीरे जिसका उगाना काम हो गया है।

  चने की रोटी, बेशन, मेसी रोटी, मोदक, कढ़ी, राबड़ी में डालने, विभिन्न लजीज पकवान बनाने के काम आते हैं वहीं पशुओं के लिए उत्तम चारे का काम करते हैं। कभी पशु का सांद्र चारा तथा दूध बढ़ाने के लिए पशुओं को दिया जाता था। आज भी चने का चारा उत्तम चारा होता है जिसे ऊंट बड़ चाव से खाता है। चने उगाने से खेत में खाद की आपूर्ति हो जाती है। चूंकि चने की जड़ में सूक्ष्मजीव निवास करते हैं जो हवा की नाइट्रोजन को यौगिकों में बदल देते हैं जिससे खाद की पूर्ति होती है।
    भारत चना उत्पादन में एक नंबर पर है। चने की दाल में दो पत्रक होते हैं इसलिए द्विबीजपत्री पौधा कहलाता है। चने की दाल का भोजन के रूप में विशेष उपयोग किया जाता है। अत्यधिक गुणकारी दाल होती है। जब दाल को पीसा जाता है तो बेसन कहा जाता है। बेसन भारत में कई प्रकार से मिठाइयां बनाने बेसन से बेसन चक्की, बेसन के चीले, आलू बड़े आदि बनाकर खाए जाते हैं।चने के होला, चने के भुगड़े, गुड़ चना का प्रसाद, भुने हुए चने के रूप में सभी स्पों में चना खाया जाता है।
चना शाक रूप में पाया जाता है। इस पौधे की जड़ों में सूक्ष्म जीव निवास करते हैं जो वायुमंडल की नाइट्रोजन को उर्वरक में बदल देते हैं। यही कारण है कि चने उगाने के बाद खेत में उर्वरक की पूर्ति हो जाती है।
किसानों के लिए चने उगाना वरदान माना जाता है। चने की हरी टहनियों को तोड़कर खाया जाता है जिसे शाक नाम से जाना जाता है। वास्तव में हरे टहनियों को तोड़कर कढ़ी, खाटा का साग आदि बनाने के लिए प्रयोग किया जाता है। यह दोनों सब्जियां उत्तर भारत में प्रसिद्ध हैं।
 जब चना बड़ा हो जाता है तो जनवरी-फरवरी में फूल लगते हैं। मटर प्रजाति के इस पौधे पर फूलों के बाद पोड बनती है जिसमें 2 से चार दाने चने के मिलते हैं। यह चने के हरे दाने होते हैं। जो विभिन्न प्रकार की सब्जियां बनाने के काम आता है। यहां तक की तल भूनकर नमक मिर्च आदि मिलाकर भी लोग चाव से खाते हैं। जब बड़े हो जाते हैं तो इनकी पोड से होला बनाया जाता है। ये भी लोग चाव से खाते हैं। जब चना सूख जाता है तो इसका भूसा पशु चारे के रूप में काम में लाया जाता है। भूसे में अनेक पौष्टिक तत्व पाए जाते हैं।
चने में कार्बोहाइड्रेट, चीनी, रुक्षांस, वसा, प्रोटीन विटामिन, विटामिन बी-1, बी-2, बी-5,6,9 विटामिन-सी, कैल्शियम, लोहा, मैग्नीज, पोटाशियम, सोडियम, जिंक आदि पाए जाते हैं।
चने को लोग बड़े चाव से खाते हैं। जिन्हें सेहत बनानी है वह इन्हें अंकुरित रूप में चबा चबा कर खाते हैं। इससे मेसी रोटी बनाई जाती हैं। इसके पत्ते भोजन के रूप में काम में लाए जाते हैं।
वैसे तो चने की अनेक प्रजातियां पाई जाती है जिनमें अलग अलग मात्रा में पोषक तत्व पाए जाते हैं।
 चने वजन को घटाने, हृदय को स्वस्थ रखने, कोलस्ट्रोल को नियंत्रित रखने, मधुमेह को नियंत्रण रखने, पाचन क्रिया को ठीक रखने के काम में लाया जाता है। यदि किसी में  खून की कमी है तो उसे चने खाने चाहिए । यह ऊर्जा प्रदान करता है, त्वचा के लिए लाभकारी है तथा बालों के लिए भी उत्तम है।
 भीगे हुए चने पाचन शक्ति को बढ़ाते हैं। पाचन तंत्र मजबूत होता है। कैंसर में भी सहायक है। चने महिलाओं के स्वास्थ्य के लिए बहुत लाभकारी है। स्तन कैंसर, रजोनिवृत्ति में बेहतर होता है। चने में मेटियोनीन योगिक पाया जाता है जो कोशिकाओं की उचित विकास में मदद करता है। चनों का उपयोग कील मुंहासे रोकने के लिए, सौंदर्य बढ़ाने के लिए भी किया जाता है। चने को खाने से कुछ मामूली असुविधा उत्पन्न हो सकती है जैसे आंतों में गैस उत्पन्न होना लेकिन इसकी हानियां नहीं के बराबर हैं। चना भूनकर गुड़ के साथ बड़े चाव से खाए जाते हैं। चने से बनी बेसन से विभिन्न प्रकार के पकवान मिठाइयां बनाने के काम आता हैं। पकोड़े बनाने के लिए भी चने का उपयोग किया जाता है।
चने में बहुत ही गुण है तथा अनेकों सब्जियां बनाने के काम में लाया जाता है कहा जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगा। चना भारत ही नहीं अपितु दुनिया में उगाया जाता है। चना रक्त शर्करा को नियंत्रित करता है वही आंखों के लिए भी लाभकारी है क्योंकि इसमें बीटा कैरोटीन पाया जाता है। हड्डियां स्वस्थ रहती है वही स्त्रियों में हार्मोन संतुलित रहते हैं। यदि दर्द व सूजन की शिकायत है तो उसमें भी चने लाभकारी होते हैं। चने प्रोटीन का एक अच्छा स्रोत है जो झुर्रिया और बुढ़ापा अगर आ रहा है उतने ही उसको रोकने में सक्षम है।
 चने आंतों की असली साफ रखते हैं क्योंकि इनमें फाइबर पाए जाते हैं।
चने खाने से लाभ ही लाभ है यहां तक कि खाली पेट भी इसको खाया जाता है। चना शरीर को चुस्त-दुरुस्त रखता है। किशोर ,जवानों तब शारीरिक मेहनत करने वालों के लिए नाश्ते के रूप में भी प्रयोग किया जाता है।
 पीलिया रोग, दाद, मानसिक उन्माद आदि में भी
इसका उपयोग किया जाता है। शरीर में जलन बाल रोग, सफेद दाग, सिरदर्द, जुखाम, बवासीर नपुंसकता आदि में भी बहुत लाभप्रद है। यदि उल्टी आ रही हो तो उसमें सहायक साबित होता हैं। गुर्दे की पथरी को दूर करना हो या मधुमेह से लडऩा हो यह लाभकारी है। खाज, खुजली, त्वचा के रोग, निम्न रक्तचाप आदी में फायदेमंद जाना लाभप्रद है।

** होशियार सिंह लेखक, कनीना, हरियाणा**















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