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Thursday, January 16, 2020

फारसी अंगूर/रसभरी
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मकोय को ब्लैक नाइट शेड या नाइट्सशेड नाम से भी जाना जाता है। विषय का कमातची और भट्टकोया, फारसी अंगूर तथा रसभरी आदि नामों से भी जाना जाता है। यह बहु उपयोगी पौधा होती है।
प्राय विभिन्न फसलों के साथ खड़ा देखा जा सकता है जिसके पत्ते बड़े होते तथा फल काले रंग के होते हैं। कच्ची अवस्था में यह फल हरे रंग के पाए जाते हैं। इस पर सफेद रंग के फूल आते हैं तथा फलों में काले रंग के बीज पाए जाते हैं। फल रस से भरे होते हैं इसलिए इस फल को रसभरी नाम से जाना जाता है। इसके बीज बैंगन से मिलते जुलते होते हैं। वैसे भी बैंगन कुल का ही यह पौधा होता है। इसका वानस्पतिक नाम सोलेनम निगरूम होता है।
यह पौधा बहुवर्षीय पौधा होता है तथा द्विबीजपत्री पौधा होने के कारण इसमें मूसला जड़  पाई जाती है। यह पौधा अनेक औषधियों में काम आता है।
जब यह कई वर्षों तक जीवित रहता है उस समय झाड़ी का रूप धारण कर लेता है। इसे उच्च ताप एवं अधिक आर्द्रता में उगाना बहुत कठिन है। पौधा धीरे-धीरे उगता एवं बढ़ता है।
इस पौधे की प्रमुख दो प्रजातियां पाई जाती है बाकी प्रजातियां बहुत कम मात्रा में देखने को मिलती है।  यह एक छोटा-सा पौधा है जो भारतवर्ष के छाया-युक्त स्थानों में हर समय पाया जाता हैं। मकोय में पूरे वर्ष फूल और फल देखे जा सकते हैं। मकोय में शाखायुक्त एक छोटा पौधा होता है जिसकी शाखाओं पर उभरी हुई रेखाएं होती हैं। इसके पत्ते हरे, अंडाकर या आयताकार होता है। फूल छोटे, सफेद रंग के गुच्छों के रूप में नीचे झुके होते हैं। मकोय का फल छोटे, चिकने गोलाकार होते हैं जो कच्ची अवस्था में हरे रंग के और पकने पर नीले या बैंगनी रंग के, कभी-कभी पीले या लाल होते हैं। बीज छोटे, चिकने, पीले रंग के, बैंगन के बीजों जैसे होते है जिनका आकार बहुत छोटे होते हैं। पकने पर फल मीठे लगते हैं।
 यह पौधा जहरीला होता है। इसके कच्चे फल खाने से बच्चों की मौत हो सकती है। उसके पके हुए फल खाने से पेट में दर्द, उल्टी और दस्त लग सकते हैं। इसके अतिरिक्त मकोय खाने से बुखार, पसीना, उल्टी, डायरिया, सोने की बीमारी आदि भी देखने को मिलते हैं। यदि इस पौधे की अधिक मात्रा में खा लिया जाए तो श्वसन क्रिया फेल हो जाती और इंसान की मौत हो सकती है।
बेशक यह पौधा जहरीला होता है किंतु अनेकों दवाओं में भी काम में लाया जाता है। माना जाता है कि चीन में 15 शताब्दी में अकाल पड़ा उस समय इसके फल खाने के काम में लिए थे।
यह पौधा एक खरपतवार के रूप में तेजी से फैलता जा रहा है। इस पौधे कुछ द्वीपों में उगाया जाता है। मकोय में 6 प्रतिशत प्रोटीन, वसा कार्बोहाइड्रेट, कैल्शियम ,फास्फोरस, लोहा राइबोफ्लेविन विटामिन, निकोटीनिक, विटामिन-सी, विटामिन-बी, कैरोटीन आदि पाए जाते हैं। पके हुए फलों में जहां ग्लूकोज और फ्रक्टोज तथा विटामिन-सी पाया जाता है वहीं इसके बीजों से गहरे रंग का तेल भी निकाला जाता है। मकोय का पौधा विभिन्न दवाओं में काम में लाया जाता है जिसके तना, पत्ते, फूल, फल सभी उपयोगी होते हैं। सफेद दाग में पतियों का लेप लगाया जाता है, वही खूनी बवासीर में भी पत्तों का लेप बवासीर के फोड़ों पर लगाया जाता है। बुखार से परेशान मरीज को इसका काढ़ा बनाकर पिलाया जाता है, चेचक रोग में इसका रस पिलाया जाता है, वही नींद न आने पर इसके जड़ों का काढ़ा गुड़ में मिलाकर पिलाया जाता है। नेत्र रोग होने पर इसके पत्तों की धुआं लगाई जाती है, कान में दर्द होने पर पत्तों का गर्म रस डाला जाता है, मुंह के छाले पड़ जाने पर इसके पत्ते चबाए जाते हैं तथा  दांत का दर्द हो तो पत्तों के रस में तेल मिलाकर दांतों पर मला जाता है। हृदय रोग होने पर मकोय के पत्ते एवं फल  का रस प्रयोग किया जाता है वहीं उल्टी आने पर बीज का रस पिलाया जाता है। मकोय के पत्ते और कोमल शाखाओं का साग बनाया जाता है जबकि पके हुए फल कुछ स्थितियों में खाने के काम आते हैं।
 गुर्दे की सूजन हो तो इसका रस पिलाया जाता है तब जब त्वचा पर लाल धब्बे बन जाए तुम कोई के रस की थोड़ी मात्रा को लेप किया जाता है, चूहे के विष में मकोय लाभप्रद है किंतु मकोय के बारे में जब तक जानकारी न हो इसका प्रयोग नहीं करना चाहिए।

यदि पाचन शक्ति कमजोर है तो उस समय भी इसका चूर्ण प्रयोग किया जाता है। यकृत वृद्धि में मकोय लाभकारी है वही पलीहा बढ़ जाने पर भी यह काम आता है। पीलिया रोग में पत्तों का काढ़ा, सूजन रोग में फलों का को गर्म करके लेप लगाते हैं।  मकोय पित्त कफ,वातनाशी पदार्थ है। यह यकृत को उत्तेजना देने वाला विरेचन पदार्थ है। ज्वर, विष आदि रोगों में कारगर









है वही सूजन ,बवासीर, अतिसार के अलावा चर्म रोग में भी लाभप्रद है। शरीर के कृमियों को नष्ट करता है वही हृदयरोग,मिर्गी, एलर्जी में भी बहुत लाभकारी है।
** होशियार सिंह, लेखक, कनीना , महेंद्रगढ़,हरियाणा***

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