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Thursday, January 30, 2020

घृत कुमारी
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ग्वारपाठा/घीकवाड़
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घृत कुमारी/एलोवेरा,घिकवाड़ जिसे ग्वारपाठा के नाम से भी जाना जाता है। एक औषधीय पौधे के रूप में विख्यात है। इसकी उत्पत्ति अफ्रीका में मानी जाती  है। इसकी प्रजातियां विभिन्न देशों में पाई जाती हैं। विभिन्न सभ्यताओं में इसे औषधि के रूप में प्रयोग करते आ रहे हैं। इसका उल्लेख आयुर्वेद के प्राचीन ग्रंथों में मिलता है।
घृत कुमारी के अर्क का प्रयोग बड़े स्तर पर सौंदर्य प्रसाधन और वैकल्पिक औषधि उद्योग जैसे त्वचा को युवा रखने वाली क्रीम, सुखदायक के रूप में प्रयोग किया जाता है। 
यह माना जाता है कि मधुमेह के इलाज में काफी उपयोगी हो सकता है। साथ ही यह मानव रक्त में लिपिड का स्तर काफी घटा देता है। इसमें उपस्थित यौगिकों के कारण यह मधुमेह में उपयोगी है। अब तो एड्स के रोगियों के लिए भी कैप्शूल तैयार किए गए हैं। यह रक्त को शुद्ध भी करता है।
ग्वारपाठा के पौधे का तना नहीं होता या फिर  बहुत छोटा होता है। यह गूद्देदार एवं रसीला पौधा होता है। इसका फैलाव नीचे से निकलती शाखाओं द्वारा होता
है। इसकी पत्तियां भाले जैसी, मोटी और मांसल होती हैं जिनका रंग, हरा, हरा-स्लेटी होने के साथ कुछ किस्मों में पत्ती पर सफेद धब्बे एवं धारियां भी होते हैं। पत्ती के किनारों पर की सफेद छोटे दांतों की एक पंक्ति होती है। गर्मी के मौसम में पीले एवं नारंगी रंग के फूल उत्पन्न होते हैं।अब इसे पूरे विश्व में उगाया जाता है। घृत कुमारी एक सजावटी पौधे के रूप में भी उगाया जाता है।
आजकल घृत कुमारी की खेती एक बहुत बड़े स्तर पर एक सजावटी पौधे के रूप में की जा रही है। अलोवेरा को इसके औषधीय गुणों के कारण उगा रहे हैं। यह रेतीले एवं शुष्क क्षेत्रों में भी मिलता है। ग्वारपाठा किसानों में बहुत लोकप्रिय है। घृत कुमारी हिमपात और पाले सहन नहीं कर पाता। परंतु यह कीटों का प्रतिरोध करने में सक्षम होता है। इसे गमले में भी आसानी से उगाया जा सकता है। पौधों के लिये बालुई मिट्टी जिसमें पानी का निकास अच्छा हो, धूप मिले वहां बेहतर ढंग से पैदा होता है। छिद्रयुक्त गमले में बेहतर ढंग से पैदा होते हैं। असर्दियों के दौरान घृत कुमारी सुषुप्त अवस्था में पहुंच जाती है और इस दौरान इसे बहुत कम नमी की आवश्यकता होती है।  सौंदर्य प्रसाधन उद्योग के लिये अलोवेरा जैल की आपूर्ति के लिये घृत कुमारी का बड़े पैमाने पर कृषि उत्पादन ऑस्ट्रेलिया, क्यूबा, डोमिनिक गणराज्य, भारत, जमैका, दक्षिण अफ्रीका एवं अमरीका में भी होती है।
ऐलोवेरा सौन्दर्यवर्धक और उपचारात्मक प्रभावों के संबंध में वैज्ञानिक प्रमाण कम एवं विरोधाभासी हैं। घृत कुमारी का स्वाद बहुत ही कड़वा होता है तथापि इसके जैल का प्रयोग व्यावसायिक रूप में उपलब्ध दही, पेय पदार्थों और कुछ मिठाइयों में एक घटक के रूप में किया जाता है। इसके बीजों से जैव इंधन प्राप्त किया जा सकता है। भेड़ के कृत्रिम गर्भाधान में सीमन को पतला करने के लिये घृत कुमारी का प्रयोग होता है। ताजा भोजन के संरक्षक के रूप में और छोटे खेतों में जल संरक्षण के उपयोग में भी आता है।
एलोवेरा शाकीय पौधा है जिसके पत्ते मोटे फूल जाते हैं जिनमें रस भरा होता है। संजीवनी के नाम से भी संबोधित किया जा सकता है। उसकी करीब 400 प्रजातियां पाई जाती है जिनमें से 5 प्रजातियां स्वास्थ्य के लिए लाभकारी है। इसे पौष्टिक भोजन के रूप में भी प्रयोग किया जाता है क्योंकि इसमें खनिज लवण, विटामिन आदि पाए जाते हैं। इसे प्रतिदिन सुबह प्रयोग किया जाए तो ताकत और स्फूर्ति प्रदान करता है।
 बवासीर आराम मधुमेह के लिए फायदेमंद, गर्भाशय के रोगों में लाभकारी, पेट से संबंधित समस्या में रामबाण, जोड़ों के दर्द में आराम, कई तरह की समस्याओं में जैसे कील मुंहासे, रूखी त्वचा, धूप से झुलसी त्वचा, चेहरे पर दाग, आंखों के काले घेरे, फटी एडिय़ा आदि सभी में लाभप्रद होता है।
 खून की कमी को दूर करता है, जलने काटने पर एंटी बैक्टीरियल तथा एंटी फंगल का गुण होता है। खून में शुगर नियंत्रित रखता है, मच्छरों को दूर भगाता है। एलोवेरा जेल, बाडी लोशन, हेयर जैल, शैंपू, साबुन, फेशियल क्रीम आदि के निर्माण में काम आता है। बालों को स्वच्छ बनाने के लिए  जेल प्रयोग किया जाता है। नारियल के तेल में मिलाकर कोहनी आदि पर लगाने से कालापन दूर हो जाता है। मुल्तानी मिट्टी में मिलाकर कील मुंहासे दूर होते हैं।
यह रक्तशोधक, पाचन क्रिया में लाभकारी होता है। नियमित एलोवेरा जूस पीने से चेहरे और त्वचा में निखार आता है। बालों में लगाने से रूखापन एवं डैंड्रफ दूर हो जाता है। खून की कमी को पूरा करता है वहीं उम्र भर स्वस्थ रखता है।  फेस वाश बनाने  में, हल्दी मिलाकर सिर में लगाने से सिर दर्द दूर, पीलिया दूर करता है वहीं गर्भावस्था में स्ट्रेस दूर करने में लाभप्रद है। वही इससे मसाज करने पर त्वचा खींची दिखाई देती है।
 आंवला और जामुन के साथ एलोवेरा को प्रयोग करने से आंखों की दृष्टि बढ़ती है। सेव करते समय कट हो जाए तो ऐलोवेरा लगाना लाभप्रद है। सूर्य की पराबैंगनी किरणों से बचाता है, एंटी आक्सीडेंट के रूप में काम आता है।
 सबसे बड़ी बात है कि कोई पशु इसको नहीं खाता। इसलिए खेत में लगा देने पर खेत में पशु नहीं घुसेंगे। इसलिए मेड का काम करेगा वही पशुओं को गर्मी में लाने के लिए भी इसका उपयोग किया जाता है। किसानों की आमदनी बढ़ाने में इसका विशेष योगदान है। एक बार उगाने पर तीन-चार सालों तक लगातार काम करता रहता है।

यह लोहा कैल्शियम, मैग्नीशियम, विटामिन फोलिक एसिड से भरा होता ह। इसलिए डायबिटीज, कैंसर बालों एवं त्वचा में लाभप्रद है। शरीर में रोग रोधक क्षमता का विकास करता है। पाचन क्रिया को तेज करता है, मानसिक स्वास्थ्य रखता है, गठिया में लाभप्रद है, कालस्ट्रोल को घटाता है, हृदय को स्वस्थ रखता है। मधुमेह को रोकता है।  स्वास्थ्य के लिए लाभप्रद है। सर्दी जुकाम कब्ज में बहुत लाभकारी है।
 इससे फेस क्रीम बनाई जाती हैं जिससे मुंहासे दूर होते हैं, झुर्रियां घटती हैं, बढ़ती उम्र रुकती है। धूप में जला हुआ व्यक्ति इसका उपयोग कर सकता है।
इतना लाभप्रद होते हुए भी यह कभी-कभी नुकसान कर सकता है। जरूरत से ज्यादा प्रयोग करने से त्वचा जलन, खुजली, कम ब्लड प्रेशर











वाले अधिक प्रयोग करे तो नुकसान वहीं  गर्भवती महिलाओं के लिए नुकसानदायक हो सकता है। पेट खराब की शिकायत कर सकता है।
**होशियार सिंह,लेखक,कनीना,महेंद्रगढ़, हरियाणा**

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