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Tuesday, July 21, 2020

नूणखा/नूणिया





















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नोणिया
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पर्सलेन
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डकवीड/हागवीड/पर्सले
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पोर्टूलाका ओलेरासिया
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ग्रामीण क्षेत्रों में नोणखा नाम से जाना जाने वाला एक छोटा सा शाक कठोर जमीन पर बारिश के मौसम में देखने को मिलता है। यह एक रसीला पौधा होता है जिसकी ऊंचाई अधिक नहीं होती महज 20 से 40 सेंटीमीटर के बीच होती है। अब तो नोणिया की खेती की जाने लगी है। यह  विभिन्न देशों में पाया जाता है, वास्तव में यही खरपतवार माना जाता है जो किसान के लिए समस्या बन सकता है। परंतु भारत में कुछ खरपतवार बहुत उपयोगी है। भारत में कई खरपतवार जैसे बथुआ/चौलाई/श्रीआई और नौणखा खाद्य रूप में काम में लाये जाते हैं।
यह माना जाता है कि बहुत पहले से अमेरिका के लोगों द्वारा खाया जाता था इसके बीज फैलाए गए थे जो बहुत दूर-दूर तक फैल गए। इसके  चिकने लाल व पीले रंग के फूल आते हैं। इसकी पत्तियां और तने रसीले होते हैं जिनमें खट्टा स्वाद पाया जाता है।
 नोणखापर कुछ ही दिनों में फूल आ जाते हैं। फूल भी कुछ समय के लिए ही सुबह सवेरे खिलते हैं बाद में बंद हो जाते हैं। वास्तव में यह  जड़ी बूटियों में शामिल किया गया पौधा है। इसके फूल कुछ ही घंटों के लिए खिलने के बाद बंद हो जाते हैं। बीज बहुत छोटे कराले रंग के बनते हैं। वास्तव में इसका एक फल लगता है उस फल में अनेको बीज बनते हैं। इसका पत्ता सूखा सहन करने में सक्षम है इसलिए सूखी जमीनों पर, बंजर भूमि पर विशेष रूप से पाया जाता है। विभिन्न देशों में इसका उपयोग किया जाता है।
भारतीय लोग भी ऐसे कभी से परिचित हैं। इसे नोणखा नाम से जानते जिसे कच्चा भी सलाद के रूप में खाते हैं ज्यादातर लोग आज भी जब कहीं मिल जाता है तो इसे तोड़कर खाकर आनंद महसूस करते हैं। वास्तव में बहुत उपयोगी पौधा होता है। शरीर के लिए बहुत लाभप्रद माना जाता है। इसमें कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, विटामिन बी-2,बी-4,बी-6,बी-9, विटामिन सी विटामिन-ई, कैल्शियम, लोहा, मैग्नीशियम, मैंगनीज, फॉस्फोरस, पोटेशियम, जस्ता आदि भारी मात्रा में मिलते हैं। वास्तव में विटामिन-ई बहुत अधिक पाया जाता है जो संतानोत्पत्ति में अहम भूमिका निभाता है।
 वही ग्रामीण क्षेत्रों में विशेष सब्जी के रूप में खाया जाता है। हृदय को बचाने वाले तत्व पाए जाते हैंं। स्वाद खट्टा होने के कारण इसकी पत्ती, फूल, कलियां सभी खाए जाते हैं। ताजा सलाद के रूप में प्रयोग होता है वही कई रूपों में  प्रयोग करते हैं।
  नूणखा में कई अमल पाए जाते हैं ।इसकी पत्तियों का उपयोग टमाटर, प्याज, लहसुन अजवाइन के फूल, जैतून के तेल के साथ प्रयोग करते हैं। सलाद के रूप में खाया जाता है वहीं दही में मिलाकर रायता बनाते हैं वहीं भाजी,सब्जी, खाटा का साग, कढ़ी में डालकर खाया जाता है।
पौधा लाभप्रद होता है क्योंकि यह नमी को लंबे समय तक सूखे रखता है। विटामिन ई का अच्छा स्रोत है। यह औषधि के रूप में काम में लाया जाता है। बुखार दूर करने, एंटीसेप्टिक के रूप में, कीटों को शरीर से नष्ट करने में काम में लेते हैं। यह जीवाणु रोधी, एंटीऑक्सीडेंट का काम करता है।
यह घरों, बागों में सजावट के लिए काम लेते हैं तथा खेतों में अपने आप भी उगता है। दुनिया के अधिकांश क्षेत्रों में यह खरपतवार के रूप में पाए जाता हैं।
   भारत में मैदानों बेकार जमीन, सड़क के किनार,े खेती की गई जमीन, खाली स्थान पर पाया जाता है। युवा पत्ते बहुत स्वादिष्ट होते हैं भिंडी की सब्जी में डालकर भी लोग खाते हैं। यह पौधा  मसालेदार नमकीन स्वाद होने के कारण का कारण कच्चा खाना पसंद करते हैं। पत्तियों को सुखाकर भी लोग बाद में प्रयोग करते हैं। बीजों में फैटी एसिड, ओलिक एसिड, लिनोलेनिक एसिड पाये जाते हैं। इसकी राख को नमक के रूप में भी प्रयोग करते हैं क्योंकि यह बहुत नमकीन होता है।
 विश्व स्वास्थ्य संगठन की सबसे अधिक उपयोग किए जाने वाले औषधीय पौधों की सूची में इसका नाम शामिल किया है यह है मांसपेशियों को आराम देने वाला, घाव को भरने वाला पौधा होता है। ज्वरनाशी होता है। इसके पत्तों में ओमेगा-3 पाया जाता है जो दिल के दौरे को रोकने में महत्वपूर्ण होता है। पौधों में यह एक ऐसा पौधा है जिसमें ओमेगा-3 पाया जाता है। इसलिए जो दिल के मरीज होते हैं उन्हें नियमित रूप से खाना चाहिए। किसके बीज अखरोट जैसे होते हैं। इसका का ताजा रस गला, खांसी के उपचार में किया जाता है, पत्ती से बनी चाय का उपयोग पेट दर्द में किया जाता है। जब कोई जीव डंक मार जाता है तो इसका रस लगाना चाहिए, वही कानों में अगर दर्द है कीट डंक मार दिया है तो भी प्रयोग में लाया जाता है। गर्भवती महिलाओं के पाचन समस्या को दूर करने के लिए भी प्रयोग किया जाता है। ऐसे में ग्रामीण क्षेत्रों का यह बहुत उपयोगी पौधा होता है। बुजुर्ग इसको ढूंढ कर लाते हैं और खा जाते हैं। 

***होशियार सिंह लेखक, कनीना, जिला महेंद्रगढ़, हरियाणा, भारत********
नूनिया या नूणखा
      (पोर्टुलाका ओलिरेसी)
कठोर जमीन कम पानी
            मिलता सहता एक शाक
पिग विड, मास रोज नाम
           जंगल में जमाता ये धाक,
40 प्रकार का उगाया जाए
             सब्जी रूप में खाया जाए
कड़वा, नमकीन स्वाद हो
             सलाद, सूप बनाया जाए,
पत्ता, टहनी, फूल मिलाकर
             ओमेगा-तीन करते हैं प्रदान
विटामिन ए, सी, ई आदि
             देता है यह बेहतर खाद्यान,
रात को पत्ते गैस को पकड़ता
             मेलिक एसिड में बदलता है
शाम के समय इसके पत्ते ही
             अधिक ग्लूकोज उगलते हैं,
लोहा, पोटाशियम, कैल्शियम
          खनिजों की मिलती है भरमार
कीट, सांप, भिर्ड, ततैया काटे
          पत्ते इसके पिसकर ही लगाए,
जलन और दर्द को दूर देता है
            पीलिया, पेचिस को दूर करता
आंतों के रक्त को रोकता तुरंत
            दवाएं बनाने में यह काम आए,
शाक सब्जी बनाए जायकेदार
        किसान खेतों में खड़ा मिलता
धरती पर खूब फैलता रहता है 



            नहीं हवा में यह कभी हिलता।
           *** होशियार सिंह, लेखक, कनीना**

Saturday, July 18, 2020

भूमि आमला
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भूमि अमला/भूंई आंवला
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फाइलेंथस नीरुरी
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गर्मियों में मिलने वाला एक शाक भूमि आंवला नाम से जाना जाता है। यही खरपतवार होता है जो अक्सर विभिन्न फसलों में उगकर फसलों के लिए नुकसानदायक साबित होता है।
यह एक छोटा सा गहरे हरे रंग का पौधा हो है जिसकी टहनीनुमा आकृतियां अक्सर कम मिलती हैं। चूंकि यह धरती के पास मिलता है और इस पर आमले जैसे फल लगते हैं। बथुआ/चौलाई से भी छोटा पौधा होता है इसके पत्ते गहरे हरे रंग के छोटे-छोटे होते हैं जो सिरस/आमला पौधे से मिलते जुलते होते हैं। इसके बहुत छोटे छोटे फल लगते हैं जो आमला से मिलते जुलते होते हैं। चूंकि यह भूमि के पास तथा आंवला जैसे फल लगने के कारण इसे भूमि आंवला/आमला कहते हैं।
 यह पौधा कुछ ही दिनों में हरा भरा हो जाता है और फिर देखते देखते खत्म हो जाता है किंतु यह औषधीय पौधा है। यह बवासीर अनिमिया आदि में बहुत लाभप्रद है।
वास्तव में भूमि आमला खरपतवार है जो देखने में आंवले जैसा लगता है क्योंकि यह जमीन के बहुत पास पाया जाता इसलिए इसको लोग भूमि आमला कहते हैं। सबसे अधिक उपयोग इसका गर्भवती महिलाओं में खून की कमी के समय किया जाता है।
एक वर्षीय पौधा बारिश के समय विशेषकर खरीफ की फसल के साथ उगता है। बंजर भूमि, पार्क, बगीचे आदि में मिलता है। वास्तव में इसकी उत्पत्ति अमेरिका में मानी जाती है। इसे वैज्ञानिक भाषा में फाइलेंथस नीरुरी नाम से जाना जाता है जिसे लोग भूमि आमला नाम से भी जानते हैं। इसका हर भाग जड़, तना, फूल, पत्ती, फल औषधि के रूप में काम लेते हैं। यह एक ऐसा खरपतवार है समस्या बना हुआ है किंतु औषधियों के दृष्टिगत यह बहुत उपयोगी पौधा है। लिवर से जुड़ी हुई बीमारियों/पीलिया में बहुत उपयोगी होता है।
क्योंकि इस पौधे के पत्तों में पोटैशियम अधिक मिलता है इसलिए यह आमला बुखार, मधुमेह, आंखों की बीमारी, खुजली, चर्म रोग, फोड़े फुंसी का इलाज, पेशाब संबंधी समस्याओं में घरेलू इलाज में काम में लाया जाता है। इसकी जड़ों से भी एक महत्वपूर्ण टॉनिक बनाया जाता है। यह हेपेटाइटिस-बी एक जानलेवा बीमारी है बहुत से लोग दिन की मौत के शिकार हो जाते हैं, उसमें यह कारगर औषधि है। इसलिए भी भूमि आंवला को जानने लग गए हैं। अभी तक इसकी कोई खेती नहीं की जाती है केवल जंगलों में अपने आप उगता है।
स्वाद में कड़वा होता है इसलिए लोग इसे सीधे कच्चेरूप में नहीं खा सकते। इसकी कई प्रजातियां पाई जाती है। यह प्रमुख रूप से घाव को सूखाने के लिए आंखों की बीमारी के लिए, पेट के रोगों को दूर करने के लिए, बुखार, मूत्र रोग, दस्त रोकने, मासिक धर्म विकार, स्तनों में सूजन, मधुमेह, कोढ़ तपेदिक, हृदय रोग आदि में लाभप्रद पाया जाता है। इसके इसके पौधे लोग घर पर भी प्रयोग करते हैं परंतु किसी चिकित्सक की सलाह के बगैर इनका उपयोग करना कभी कभार नुकसानदायक भी साबित हो सकता है। पीलिया के इलाज में लोग इसे प्रयोग करते हैं। यदि इसकी जड़ को पेश कर दूध के साथ लेते हैं तो पीलिया में लाभप्रद होता है।
भूमि आंवला मुंह के छालों के अलावा गुर्दे तक की बीमारी में लाभप्रद होता है। यह शरीर के लिए हर प्रकार से लाभप्रद है। लीवर के लिए रामबाण होता है।
*होशियार सिंह यादव, लेखक,कनीना,महेंद्रगढ़,हरियाणा**    
    



भूमि आंवला
          (फाइलंथस निरुरी)
रबी फसल के साथ उगता

हरा भरा एक शाक बेदाम
               भूई आंवला, स्टोन ब्रेकर
              कितने ही हो इसके नाम,
फल पत्ते के नीचे लगते
सीड अंडर स्टोन कहाए
                   पत्ता,फल,फूल,बीज बने
                  कितने रोगों को दूर भगाए,
पत्तों में मिलता पोटाशियम
कीट जहर को कम कर दे
                  दस्त लगे तो जड़ भूनकर दे
                 पत्ते बुखार रोग को हर ले,
यकृत खराब होने से बचाए
खून कमी को कर देता दूर
                फफूंद, जीवाणु मार डालता
               शुगर, बीपी करें चकनाचूर,
लिवर, वृक्क, तिल्ली में पथरी
पत्ते का जूस कर देता है दूर
               मूत्र से कैल्शियम को घटाए
               पेट की बीमारी को करे फुर्र,
भूख बढ़ाता खून को बढ़ाता
यकृतशोथ रोग को ये भगाए
               पत्थरी शरीर में पनपने न दे
              इसके पत्तों से ही पेय बनाए,
कम होता जा रहा यह शाक

वक्त रहते हुए इसे बचा लो
                 किसानों ने नष्ट कर दिया इसे
                 हो सके इसके बाग लगा लो।
          


***होशियार सिंह, लेखक, कनीना***











Wednesday, July 15, 2020

जामुन
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जामुन, राजमन, काला जामुन
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जमाली, ब्लैकबेरी
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जामुन एक ऐसा वृक्ष होता है जिसके फल बैंगनी रंग के पाए जाते हैं। पूरे विश्व में बैंगनी रंग प्रमुख रंगों में से एक माना जाना जाता है। भारत के अतिरिक्त कई देशों में पाया जाता है। वास्तव में जामुन को कई नामों से जाना जाता है कुछ लोग इसे ब्लैकबेरी तो कुछ इसे जमाली, जामुन, काला जामुन, राजमन आदि नामों से पुकारते हैं।
  वास्तव में यह फल देखने में बहुत सुंदर होता है। कच्चा होता है तो हरे रंग का होता है। इसका पकने के बाद जामुनी रंग हो जाता है जिसे बैंगनी रंग कहते हैं। यह फल अम्लीय और कसैला होता है जो बहुत पक जाता है तो मधुर स्वाद का हो जाते हैं। अक्सर इसे लोग स्वाद बढ़ाने के लिए नमक के साथ प्रयोग करते हैं। इसमें सबसे अधिक मात्रा में ग्लूकोज एवं फ्रक्टोज होता है। कुछ खनिजों की मात्रा अधिक होती है। जहां फल के बीज बहु उपयोगी होते हैं वही उसके फल के अतिरिक्त पत्ते,छाल,बीज, जड़, लकड़ी भी काम में लाई जाती है।
इसका वैज्ञानिक नाम सियाजियम क्यूमिनी है।
जामुन का पेड़ वास्तव में वृक्ष नाम से जाना जाता कठोर काष्ठकीय तने का होता है। जहां लोग जामुन के रूप में मिठाई भी बनाकर खाते हैं जिसका रंग भी जामुन के फल जैसा होता है। इंसान ने फल से ही मिठाई का रंग देना सोचा और सफल हुआ। जहां जामुन नामक मिठाई भी बहुत प्रसिद्ध है वहीं जामुन फल बेहद लाभप्रद होता है।
   सदाबहार पेड़ होता है लगातार लंबे अरसे तक फल देता है। इसके पत्ते कुछ चौड़े आम से मिलते हैं। छाल भूरे रंग का होता है। इसके फल अप्रैल माह से लगने शुरू हो जाते हैं और लगातार लंबे समय तक पेड़ पर पकते हैं। प्राय जामुन के पेड़ की आयु 50 से 60 साल मानी जाती है। जामुन के फल जून-जुलाई में पक जाते हैं तथा बहुत लोकप्रिय फल होते हैं।
   जामुन प्रकृति में एक ऐसा फल है जो बहुत से रोगों में कारगर माना जाता है। यहां तक कि कैंसर के रोग कम करने में भी उपयोगी होता है। मधुमेह के उपचार में अक्सर जामुन खाया जाता है वही इसकी गुठली, उच्च रक्तचाप को भी कम करती है या खून में शर्करा की मात्रा को घटाता है। जामुन का फल पेट की समस्याओं के लिए खासकर लाभप्रद है। इससे पेट साफ होता है तथा पेट की ऐंठन दूर होती है। जामुन के छाल का लोग काढ़ा बनाकर भी पीते हैं जिससे पेट की समस्या हल होती है।
   जामुन खून की कमी को दूर करता है। अक्सर लोग खून की कमी एनीमिया की शिकार मिलते हैं। ऐसे में जामुन जहां खाने से शरीर में कैल्शियम, पोटेशियम, लोहा प्राप्त होता है जो रोग रोधक क्षमता बढ़ाने के साथ-साथ लोहे की भी पूर्ति करता हैं। जिन व्यक्तियों ने मसूड़ों में खून आते हैं उनके लिए बहुत लाभप्रद माना जाता है क्योंकि जामुन की गुठली नमक में मिलाकर मसूड़ों पर लगाने से मसूड़ों की समस्या यहां तक कि दुर्गंध आदि दूर हो जाती है।
 यहां तक की जामुन के पत्ते भी चबाये जाये तो मुंह की दुर्गंध दूर हो सकती है। ऐसे में प्रतिदिन सुबह शाम पत्ते चबाने चाहिए। लीवर की समस्या को जामुन का रस दूर कर देता है, ऐसे में किन व्यक्तियों में लीवर की समस्या है उन्हें जामुन का रस जरूर पीना चाहिए। पथरी की समस्या में भी जामुन का पाउडर खिलाया जाता है। गठिया के इलाज में जामुन के पेड़ की छाल का काढ़ा पिलाया जाता है। चेहरे पर यदि फुंसियां है तो जामुन के बीजों को दूध में पीसकर लगाया जाता है। आवाज साफ करने में जामुन का अहम योगदान होता है। जामुन के चूर्ण को शहद में मिलाकर चाटने से आवाज सुरीली हो जाती हैं। बच्चों में दस्त की समस्या हो तो इसकी छाल पीसकर दूध के साथ बच्चों को पिलाई जाती है।
जामुन मधुमेह रोगियों के लिए तो रामबाण होता है। बेशक फल देखने में अटपटा खाने में चटपटा हो लेकिन गुणों की खान है। फल केवल बारिश के समय ही बाजार में पक कर तैयार होकर आते है। जहां नीम की निबोरी, आम और जामुन आदि फल बारिश में ही पकते हैं। जामुन के पेड़ की सबसे बड़ी विशेषता है किसकी लकड़ी जल को शुद्ध करने के काम में लाई जाती है। जहां इसका पेड़ आंधी बारिश में भी नहीं गिरता वही इसके पेड़ पर रोग भी कम लगते हैं। इसलिए अति गुणकारी पौधा बाग बगीचे में जरूर लगाना चाहिए।
जामुन के फल ही नहीं पत्ते आदि सभी उपयोगी है। जामुन की तासीर गर्म होती है। यह सांस, सूजन थकान का नाश करती है, खून की गंदगी को साफ करती है। वास्तव में इसे ब्लैकबेरी कहते हैं जो रक्त के लिए लाभप्रद है। जामुन का शरबत पीने से थकान दूर होती है। मुंह के छाले हो तो पत्तों को पानी में पीसकर प्रयोग किया जाता है। की छाल को जलाकर राख को शहद के साथ देने से उल्टी बंद हो जाती है, बिच्छू आदि काटे तो इसके पत्तों का रस लगाया जाता है। इसका सिरका सौंदर्य वर्धक होता है। इसकी छाल गुठली बहुत उपयोगी होती हैं, विभिन्न रोगों में काम में लाई जाती है। कान के दर्द में भी जामुन का तेल डालते हैं लाभ होता है जामुन खाने से जहां शरीर की पथरी दूर होता है। खाली पेट खाने से जिगर की खराबी दूर होती है। जामुन का रस काला नमक डालकर पीने से पेट दर्द दूर होता है।
अधिक मात्रा में भी जामुन नहीं खानी चाहिए जामुन को खाली पेट भी खाना अच्छा नहीं माना जाता। इसमें रोग प्रतिरोधक क्षमता का गुण पाया जाता है। ताजे फलों का उपयोग खाने के लिए किया जाता है छाल का उपयोग रंगाई और चमड़े को शोधन में भी किया जाता है। बड़े आकार के जामुन राजा जामुन नाम से जाने जाते हैं।
जामुन का पेड़ जहां न केवल छाया देता है अपितु रोगों से भी बचाता है। ऐसे में जामुन बहुत लाभप्रद वृक्ष है।
**होशियार सिंह, लेखक, कनीना, जिला महेंद्रगढ़, हरियाणा- 9416348 400


                      जामुन
               (साइजिजियम कुमिनी)
कई देशों में पाया जाता
सदाबहार पेड़ कहलाए
                         ब्लैकबेरी, राजमन जैसे
                         कई नामों से जाना जाए,
अमलीय, कैसेला स्वाद
नमक संग ये खाई जाए
                       ग्लूकोज व फ्रक्टोज मिले
                      कई रोगों में ये काम आए,
कार्बाेहाइड्रेट,प्रोटीन,लोहा
कैल्शियम अधिक मिलता
                       अप्रैल-मई में फूल खिलता
                        जून व जुलाई फल लगता,
बी-कैरोटीन, फाइबर आदि
रेशों से भरा होता यह फल
                      वीटामिन सी का बेहतर स्रोत
                     मधुमेह का यह अच्छा हल,
पाचन शक्ति मजबूत करता
उम्र बढ़ाता, कैंसर से बचाता
                      लिवर की बीमारी में रामबाण
                      जोड़ दर्द व हृदय घात घटाता,
खून की सफाई करता फल
पत्ती, फल, छाल काम आता
                       रक्तचाप को करता है नियंत्रित
                       कितने ही रोगों में यह हंसाता,
राम ने वनवास में इसे ही खाया
कीमो व रेडियोथैरेपी में उपयोगी
                        श्रीकृष्ण ने इसका किया बखान
                        खाते रहोगे इसे तो रहोगे निरोगी,
हरा, पीला, गुलाबी रंग का फल
गुठली भी इसकी काम में आती
                      किसान के खेतों में खड़ा मिलता
                      इसकी छांव ही जीवों को सुहाती,
बेहतर फल, बेहतर इसकी छांव
घर में उगा जन रोगों से बचाओ
                        फल बारिश में टूटकर जब गिरते
                         खाओ इसको और खूब हंसाओ।।
 


***होशियार सिंह, लेखक, कनीना***

Saturday, July 11, 2020

 बटेर घास
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सिल्वर काक्सकोंब
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बटेर घास
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श्रीआई
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गरखा, कूर्ट
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श्रीआई कई देशों में पाया जाने वाला, बारिश के समय विशेषकर खारी फसल के साथ उगने वाला यह खरपतवार है जिसको श्रीआई नाम से जाना जाता है। यह शाक बहुत उपयोगी है जबकि यह एक खरपतवार है। कभी किसानों के लिए समस्या बना होता था किंतु धीरे-धीरे अब इसका लोप होता जा रहा है। इसे कई नामों से जाना जाता है और इसके अनेकों प्रकार है। इसकी कुछ प्रजातियां घरों में उगाई जाती है जो शोभा बढ़ाती है। बाग बगीचे में भी देखने को मिल सकती है लेकिन जिसको खाने के काम में लेते हैं वह जंगल में खरपतवार के रूप में पाई जाती है। इसी गरखा, कूर्ट
आदि नामों से पाया जाना जाता है।यह एक सीधा शाक है जिसके अनेक शाखाएं पनपती है लिनकी अधिक ऊंचाई का नहीं होती। एक वर्ष तक जीवित रहता है तत्पश्चात ही समाप्त हो जाता है। भारी मात्रा में के फूल आते हैं जो बहुत सुंदर चमकदार सफेद रंग के होते हैं जिनमें बीच-बीच में अनेकों प्रकार के रंगीन भाग पाए जाते हैं। स्पाइक के रूप में इसका फूल गुच्छे के रूप में नजर आता है। जिस खेत में खड़े होते हैं तो दूर से दिखाई देते हैं। इसका तना बहुत कोमल होता है बाद में पक जाता है। इसके फूल काले रंग के हृदय जैसे बीज पाए जाते हैं। यह भारत में ही नहीं अनेक देशों में भी पाया जाता है।
बुजुर्ग आज भी नहीं भुला पाए जिसने एक बार इसकी सब्जी को खा ली, उसके गुण ही गाते रह जाता है। यह वर्तमान में कुछ जगह उगाया जाता है इसके पत्ते बहुत स्वादिष्ट तथा अनेकों शाक अर्थात साग सब्जी बनाने के काम आता है।
श्रीआई नाम से जाने जाने वाला यह पौधा अपने आप फैलता जाता है। किसान दवाओं का छिड़काव करके इसको नष्ट करते चले गए लेकिन फिर भी यह कुछ जगह मौजूद है। इसके पत्ते भोजन बनाने के लिए विशेष कर साग,सूप बनाने के काम आता है। इसके पत्ते गहरे हरे और मन को लुभाने वाले होते हैं इसलिए अनेक प्रकार की भाजी वगैराह बनाने के काम में लाते हैं। इसे पालक की तरह ही प्रयोग करते हैं। इसके बीज से भी औषधीय तेल प्राप्त होता है।
इसके फूल और बीज कड़वाहट युक्त होते हैं जो आंखों के लिए लाभप्रद, परजीवी नाशक होते हैं। इनका उपयोग खूनी दस्त/ल्यूकोरिया, रक्त स्राव, पेचिश के उपचार में किया जाता है। परजीवी को नष्ट करने के लिए भी काम में लाया जाता है इनके बीजों में जीवाणु रोधी पदार्थ पाए जाते हैं जो स्यूडोमोनास नामक जीवाणु की वृद्धि को रोकता है।
इसका उपयोग डायरिया, खून की कमी ,आंखों से कम दिखाई देना, मोतियाबिंद के उपचार, उच्च रक्तचाप के इलाज में किया जाता है लेकिन ग्लूकोमा वाले लोगों को उपयोग नहीं करना चाहिए क्योंकि प्यूपिल को कमजोर कर देता है। भारत में मधुमेह के उपचार में बीज का उपयोग किया जाता है। पत्तियों और फूलों से एक तरल पदार्थ निकाला जाता है जो शरीर को साफ करने के काम आता है। यह सर्पदंश के इलाज में राहत देता है। जड़ों का उपयोग  एक्जिमा के इलाज में किया जाते हैं।
जंगली तौर पर पाई जाने वाली यह श्रीआई मुफ्त की सब्जी होती है। किसी जमाने में किसान भारी मात्रा में इक_ा करके लाते थे। खेत में जहां गुड़ाई निराई के साथ-साथ इनको इक_ा करके भाजी, पराठे, साग, कढ़ी, खाटा का साग तथा रायता कोफ्ता आदि बनाने में काम लेते हैं। यही कारण है कि बुजुर्गों का आज भी श्रीआई का नाम लेते हैं तो बड़े खुश हो जाते हैं। परंतु यह पौधा धीरे-धीरे लुप्त के कगार पर पहुंच गया है जो कि किसानों ने ही इस को नष्ट कर डाला है। यही कारण है कि आप इस पौधे को किसी जगह देखा जा सकता है।
इसे बटेर घास नाम से भी जाना जाता है।
श्रीआई अपने फूलों के कारण पहचानी जाती है। बहुत चमकदार सफेद चांदी जैसा रंग तथा ऊपर बैंगनी लाल रंग भी मिलता है। यह फूलों के कारण ही पौधा प्रसिद्ध है। बीजों द्वारा प्रसारित होता है। यह पौष्टिक सब्जी होता है। पत्ती और युवा शूट को पकाया जाता है। बीज खाद्य तेल निकाला जाता है आमतौर पर दस्त की कमी, उच्च रक्तचाप मोतियाबिंद में किया जाता है। कुछ देशों में से सजावट के रूप में उपयोग में लाया जाता है जो गमलों में उगाया जाता है। वह खाने लायक नहीं होता। यह रेतीली मिट्टी में पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है। सूखे को सहन कर सकता है परंतु नम मिट्टी में अच्छी प्रकार पनपता है। इसका स्वाद पालक जैसा होता है।
किसान इस पौधे से अच्छी प्रकार परिचित है इसलिए किसानों के लिए यह अनमोल उपहार होता था। यह ठीक है कि धीरे-धीरे अब इसका उपयोग इसलिए बंद हो गया क्योंकि उपलब्ध नहीं हो पा रहा है। यह बेहतरीन शाक है जो खून की हर प्रकार की कमी को पूरा कर देता है।


             श्रीआई
           सिल्वर कोकसकोंब



            (सेलोसिया अर्जेंटी)
किसान के खेतों में कभी
उगती है कुछ खरपतवार

                  सब्जियों में काम आती हैं
                   प्रयोग करो व्रत या त्योहार,

बाथू, चौलाई और श्रीआई
किसान ने कभी नहीं बचाई

                     धीरे-धीेरे ये  लुप्त हो  रही हैं
                    तरसेंगे फिर इन्हें लोग लुगाई,

हरे भरे पत्तों से युक्त सब्जी
खरीफ फसल में मिलती है

                     सफेद भुट्टे सा फूल खिलता
                      मदमस्त बाजरे में हिलती हैं,

गजब की सब्जी व साग बने
किसान के घर में खाया जाए

                  जब किसान खेतों से घर लौटे
                   तोड़  श्रीआई  घर को ले लाए,

खून की कमी को करती पूरा
काट पीट इसकी भाजी बनाए

                    रायता दही में जब बन जाता है
                    अंगुली को चाट-चाटकर खाए,

कितने ही खनिज लवण मिलते
कितनी इससे मिलती विटामिन

                      मुफ्त की गुणकारी मिले सब्जी
                     जन की उम्र बढ़ जाए दिनोंदिन,

भूल गए क्यों ग्रामीण सब्जी को
कहां गए वो लोग इसे खाने वाले

                        आजकल की जहरीली सब्जी से
                         रोग बढ़ते जा रहे लाइलाज वाले,

कब जागेगा इंसान धरा वाला
कब तक यूं ही करेगा संहार

                          धरती मां ने जग ऋण उतारा
                          जग का धरा पर ऋण उधार।

***होशियार सिंह, लेखक, कनीना***

श्रीआई
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 सिल्वर कोक्सकोंब
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सेलोसिया अर्जेटी
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श्रीआई एक शाक का नाम है जो सिल्वर कोक्सकोंब नाम से जाना जाता है। वास्तव में इस का वैज्ञानिक नाम सेलोसिया अर्जेटी है। यह किसी समय हरियाणा भारत के हरियाणा राज्य में बहुत अधिक होता था। अब धीरे.धीरे समाप्त होता जा रहा है। किसानों ने अपने पेट की भूख को शांत करने के लिए अधिक से अधिक पैदावार लेनी चाही। परिणाम स्वरूप उसने दवाओं का छिड़काव किया, भारी मात्रा में उर्वरक डालें जिसके चलते श्रीआई पूर्णता लुप्त होने के कगार पर पहुंच गई है। यह खरीफ फसल बतौर बाजरा, ग्वार, कपास आदि में भारी मात्रा में होती थी। इसकी बड़ी खूबी थी, गहरा हरे रंग का होती थी। पत्ते लंबे चौड़े होते थे तना इसका हरा होता था। तथा इस पर सफेद रंग के फूलों का गुच्छा आता था जिसमें काले रंग के गोल बीज निकलते थे। जो बहुत सुंदर लगते थे। लेकिन इस पौधे को देखकर लगता था कि वास्तव में यह बहुत स्वादिष्ट होगा क्योंकि इसका गहरा रंग मन को आकर्षित कर लेता था। खेतों में खरपतवार के रूप में पाया जाने वाला यह शाक पूर्णता समाप्त हो गया है।
श्रीआई सब्जी के काम आती है। जब कभी तीज त्योहार एवं व्रत के समय इसका प्रयोग करते करते थे। विभिन्न प्रकार की सब्जियां इससे बनाई जाती थी यहां तक कि खाटा का साग, भाजी बहुत महत्वपूर्ण होते थे, बहुत स्वादिष्ट बनते थे। इस के पराठे तो मानो बहुत अधिक रोचक लगते थे जिनके में खून की कमी होती थी वह कुछ ही दिनों में दूर हो जाती थी। इसके हरे भरे पत्तों में बहुत अधिक लोहा पाया जाता है। इसकी गजब की साग सब्जी बनती थी। बुजुर्ग आज भी इसको नहीं भुला पाये हैं क्योंकि खेतों की शान होती थी।
किसान बेशक अच्छी पैदावार ले रहे हो लेकिन इस शाक को नहीं भुला पाए हैं। दही में रायता बनाकर खाते थे तो उंगलियों को चाटते ही रह जाते थे। बहुत अधिक खनिज लवणों से भरपूर होती थी। यह उम्र बढ़ाने में सहायक थी। आज इसको खाने वाले तो दूर युवा पीढ़ी पहचानती भी नहीं। अगर लाकर रख दिया भी जाए तो युवा पीढ़ी इसे दूर फेंक देगी। यही कारण है कि लोग विशेषकर खून की कमी से रोग बढ़ते जा रहे हैं। यह एक ऐसा पौधा था जो पेट की विभिन्न बीमारियों को दूर करने के काम में लाया जाता था। पेट की जो भी बीमारी होती थी उन सभी में यह औषधि के रूप में काम में लाया जाता था और लोग इसे बहुत पसंद करते थे। आज बस इस पौधे की यादें रह गई हैं। आज अगर चाहे तो बारिश के बाद इक्का.दुक्का पौधा कहीं मिल सकता है। बुजुर्ग बताते हैं कि उनके जमाने में बहुत अधिक फलता फूलता था किंतु अब यह समाप्ति की ओर जा रहा है। यदि किसी में गुर्दे की अमाशय की या आंतों की समस्या होती थी इस पौधे को याद करते थे। इस पौधे जहां चेहरा लाल पड़ जाता था वहीं कार्यों में रूचि बढ़ जाती थी। इससे इंसान बहुत खुश रहता था। 

***होशियार सिंह, लेखक, कनीना***

Friday, July 10, 2020

अमलतास
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केजिया फिस्टूला
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ग्रामीण क्षेत्रों में विशेष कर बाग बगीचे, स्कूल, पार्क आदि में मध्यम ऊंचाई का पेड़, लंबी-लंबी सूखने पर काले रंग की फलियां, चौड़े पत्ते, फूलों का गुच्छा, छायादार पेड़ अमलतास का पेड़ देखा जा सकता है। गर्मियों में जहां इस पर भारी मात्रा में फूल खिलते हैं जो देखने से ही बनता है। इनका रंग अकसर पीला होता है।
अमलतास ही खूबसूरत पेड़ है। 

    अक्सर मध्यम आकार का होता है, इसकी पत्तियां चौड़ीहोती है तथा पीले रंग के भारी मात्रा में गुच्छों के रूप में फूल खिलते हैं। पुराने समय से ही जहां ऋषि मुनि पेड़ पौधों की जानकारी रखते थे। उनमें अमलतास भी एक है। यह यूं तो विभिन्न देशों में पाया जाता है लेकिन बाग बगीचे आदि में इसे आसानी से देखा जा सकता है।
    अमलतास का लगभग हर भाग औषधि के रूप में काम में लाया जाता है। वास्तव में इसे विभिन्न भाषाओं में अलग-अलग नामों से जाना जाता है। किंतु इसका वैज्ञानिक नाम केजिया फिस्टुला है। भारत देश में इसके भारी मात्रा में पेड़ पाए जाते हैं। यद्यपि यह पेड़ है किंतु अधिक ऊंचे नहीं होते। अप्रैल से जून महीने तक इस पर भारी मात्रा में पीले रंग के गुच्छो के रूप में फूल आते हैं। यह पेड़ बारिश का सूचक होता है। 

      माना जाता है कि जब अमलतास पर फूल आ जाते हैं तो उसके 4 सप्ताह बाद बारिश होती है। इसलिए इसको इसके गुणों के कारण गोल्डन शावर ट्री तथा इंडियन रेन इंडिकेटर ट्री कहते हैं। इस पर जहां फूलों के बाद हरे रंग की लंबी-लंबी फलियां लगती है जो बाद में काले रंग की पड़ जाती है। यदि इसके फलों को तोड़कर देखा जाए तो उसमें एक चिपचिपा काले रंग का रस पाया जाता है। इसकी फलियां अंदर से कई भागों में बंटी होती है।
    वास्तव में पेड़ शाखाओं में देखे तो उनमें भी गोंद निकलता है। आयुर्वेद में यह पेड़ बहुत लाभकारी है क्योंकि सभी भाग औषधियों के रूप में काम में लाया जाता हैं। यह पेड़ कफ एवं वातनाशी के रूप में काम में लाया जाता है। फली में मिलने वाला गुदा भी कफ और पित्त नाशी होता है। 

    यह अमाशय को लाभ देता है ऐसे में शरीर से कमजोर व्यक्तियों तथा गर्भवती महिलाओं को भी दिया जा सकता है। यह अफारा, मुंह में पानी आना तथा अनेक रोगों में लाभप्रद है।
   अमलतास दाद एवं सूजन की समस्या को दूर करता है जिसमें पत्ती का रस और पेस्ट लगाया जाता है। यह शरीर में एंटीऑक्सीडेंट का काम करता है। अमलतास की तने की छाल और फल का काम में लाये जाते हैं। कब्ज दूर करने में भी इसका उपयोग किया जाता है वही सर्दी जुखाम से छुटकारा दिलाता है। इसकी जड़ की धुआं से सर्दी, जुकाम दूर होता है, बुखार में काम में लाया जाता है। इसकी जड़ बुखार में टॉनिक का कार्य करती है। इसकी फली पेट की गैस को दूर करने के लिए काम में लाई जाती है।

      अमलतास की लुगदी नाभि के आस पास लपेटने से आराम मिलता है। यह घाव को जल्दी भर देती है वही इसका प्रयोग डायरिया, खसरा आदि रोग में में नहीं लेना चाहिए यदि ज्यादा मात्रा में लिया जाए तो दस्त भी लगने की संभावना रहती है।
   ऐसे में जहां यह हमारे आसपास मिलता है औषधीय पौधा है जिसके प्राचीन समय से अनेकों उपयोग माने जाते थे। पुराने समय से ही से गले के रोग, बिच्छू आदि के काटने पर, बच्चों के पेट दर्द का उपचार, मुंह के छाले, उल्टी, पेशाब न आना और त्वचा के चकत्ते पडऩे पर, खुजली का बवासीर, सूजन, यकृत, प्लीहा के सूजन में,  विसर्प रोग, शिशु की फुंसियां,  पेट दर्द ,लकवा,  दस्त लाने में, दमा के लिए, उल्टी कराने के लिए, गठिया, चेहरे पर लकवा की समस्या, चेहरे पर दाग, जलने आदि में लाभप्रद है। इसके फूलों का गुलकंद भी तैयार किया जाता है।








**होशियार सिंह यादव,कनीना, जिला महेंद्रगढ़, हरियाणा**