Powered By Blogger

Friday, June 17, 2022

                            उच्च रक्तचाप
*************
**************
**************

पांच फल जो आसानी से मिलते हैं खाने चाहिए
**************************
उच्च रक्तचाप के हैं कई खतरें
*************************
************************
उच्च रक्तचाप से बचने के लिए खाए फल
**************

**************************** *****
प्राय: आधुनिक भागदौड़ की जिंदगी में इंसान अनेक रोगों से पीडि़त होता चला जा रहा है जिनमें सबसे बड़ी समस्या उच्च रक्तचाप यानी हाई ब्लड प्रेशर की है। न जाने कितने रोगों का कारण उच्च रक्तचाप बनता है।
- हार्ट फेल
-हृदय की असामान्य धड़कन
- ब्रेन हेमरेज
-गुर्दे खराब होना
- धमनियों में कोलस्ट्रोल बढऩा
-दृष्टि पर प्रभाव
-अपंगता/हवा लगना
-गैंगरिन का भी इसी से कुछ जुड़ाव है।
जैसे कितने ही कारण दिखाई देते हैं। जब उच्च रक्तचाप हो जाता है तो हृदय को प्रतिदिन की बजाय अधिक काम करना पड़ता है। एक स्वस्थ व्यक्ति का रक्तचाप 80/120 होना चाहिए किंतु इससे ऊपर होना
नुकसानदायक है। अक्सर यह कह कर टाल दिया जाता है की रक्तचाप में उम्र भी जोड़ दी जाए लेकिन हकीकत यह नहीं है। विज्ञान यह कहता है कि रक्तचाप चाहेउम्र कितनी भी हो अधिक प्रभाव नहीं डालता, उम्र जोडऩे का कोई तात्पर्य नहीं बनता। उच्च रक्तचाप एक बड़ी समस्या बनती जा रही है।

 अक्सर ग्रामीण क्षेत्रों में शहरी क्षेत्रों में हर जगह समस्या देखने को मिलती है।  कई बार अपंग बनकर रह जाता है और  पूरी जीवन अपंगता में जीवन यापन करता है। ऐसे समय इंसान कई बार सोचता है कि जिंदगी से बेहतर है मर जाना लेकिन विज्ञान की भाषा में उच्च रक्तचाप के पीछे अनेकों कारण हो सकते हैं। अक्सर लोग शराब अधिक पीते हैं, तला भुना खाना एक आम बात बन गई है। वैसे भी इंसान तनाव में जीता है और दूसरों को देख देखकर जल भुन जाता है, ऐसा नहीं होना चाहिए। चिकनाई युक्त भोजन नुकसानदायक है ऐसे में रक्त धमनियों की हालात वही होती है जो नाली में किसी प्रकार का अवरोध आ जाता है। नसों में भी अवरोध बन जाता है जिससे रक्त अपनी गति से नहीं बह सकता और इसे उच्च रक्तचाप नाम दिया गया है क्योंकि रक्त का दाब बढ़ जाता है। इ
ऐसे समय में गर्मी गर्मियों में अनेक फल मिलते हैं इनको खाने से इंसानउच्च रक्तचाप पर कुछ हद तक काबू पा सकता है। उच्च रक्तचाप को कम करने के लिए लोग अक्सर जीवन भर गोलियां लेते हैं परंतु यदि समय से गौर किया जाए तो रक्तचाप को बढऩे से रोका जा सकता है।
ग्रामीण क्षेत्रों में गर्मियों के दिन बहुत से फल आते हैं इनको खाने से रक्तचाप को घटाया जा सकता है। इनमें
सबसे महत्वपूर्ण है कि है केला।
केला----
केला हर समय उपलब्ध होता है। दुनिया में सबसे अधिक खाया जाने वाला फल भी केला ही है। केला गर्मी सर्दी हर मौसम में उपलब्ध होता है क्योंकि उच्च रक्तचाप को नियंत्रित करने में पोटेशियम तत्व महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है और केले में पोटैशियम के अलावा ओमेगा-3, फैटी एसिड अधिक मात्रा में पाए जाते हैं। केला सुबह-शाम आ सकता हो खाया जा सकता है यद्यपि कुछ डॉक्टर केले को खाली पेट में खाने की सलाह नहीं देते हैं परंतु केला खाना कुछ लोगों को छोड़कर अधिकांश के लिए लाभप्रद होता है ।वैसे भी केला ग्रामीण क्षेत्रों में विवाह शादियों, उत्सव तथा बंधुता भावना को लेकर भी लेनदेन किया जाता है। हर जगह आसानी से उपलब्ध हो जाता है। मीठा केला पका हुआ केला खाना अधिक लाभप्रद होता है।
आम----
 गर्मियों के दिनों में सबसे मशहूर फल आम खाया जाता है जो उच्च रक्तचाप को रोकता है।  वैसे तो कहावत है जो आम नहीं खाते वो गधे होते हैं लेकिन कवि का यह कथन कहां तक सत्य है यह कहना उचित नहीं। वैसे भी आम रसीला फल होता है आम की 500 से अधिक किसमें पाई जाती हैं। आम में फाइबर पाया जाता है यही नहीं बीटा ककैरोटिन भी मिलता है जो उच्च रक्तचाप को रोकता है।  गर्मियों में मीठे रसीले फलों का स्वाद लेना चाहिए उच्च रक्तचाप को रोकने में मदद करते हैं। वैसे भी आम फलों का राजा है इसीलिए कहते आम का मधुर स्वाद हर किसी को पसंद आ जाता है।
 तरबूज-

तरबूज गर्मियों का बेहतर तोहफा है। ग्रामीण क्षेत्रों में उगाया जाता है और हर जगह लगभग उपलब्ध हो जाता है। गर्मियों के दिनों में जगह-जगह तरबूज को ढेर लगाकर बेचा जाता है। उच्च रक्तचाप वालों के लिए बेहतर फल है जिस में पानी की मात्रा अधिक पाई जाती है। इस तरबूज में पोटेशियम, विटामिन, लाइकोपीन, अमीनो एसिड आदि पाए जाते हैं जो उच्च रक्तचाप को रोकने में पोटाशियम आम में मिलता है। इसके अलावा कुछ महंगे फल भी विटामिनों के स्रोत होते हैं जो न भी उपलब्ध हो तो आम, केला और तरबूज से भी उच्च रक्तचाप को रोका जा सकता है।
स्ट्रॉबेरी---
 स्ट्रॉबेरी एंटीऑक्सीडेंट, विटामिन-सी ओमेगा-3 फैटी एसिड से भरपूर होता है इसमें भी पोटैशियम पाया जाता है जो उच्च रक्तचाप को रोकता है लेकिन स्ट्रॉबेरी ग्रामीण और गरीब व्यक्ति के लिए पहुंच से बाहर होते हैं। इसी प्रकार कीवी उच्च रक्तचाप को रोकने के लिए फायदेमंद फल है जिसमें पोटैशियम एवं मैग्निशियम तत्व पाए जाते हैं।  

कीवी-

कीवी का सेवन करने से दिल के दौरे ,अन्य खतरे कम हो जाता है। यहां तक कि डॉक्टर सलाह देते हैं कि उच्च रक्तचाप के रोगियों को रोजाना कीवी का जूस पीना चाहिए किंतु यह फल गरीबों की पहुंच से कुछ महंगे होते हैं। परंतु तरबूज आम और केला आम व्यक्ति आसानी से खा सकता है। जिससे इन लोगों से भयंकर रो






ग से छुटकारा मिल सकता है। ऐसे में जब भी प्यास लगी हो तो तरबूज का फल खाया जा सकता है। यदि भूख लगी हो केले का फल खाया जा सकता है। मधुर रस लेने का मन हो तो आम का फल खाया जा सकता है। खट्टी चीजें खाने का मन करे तो कीवी और स्ट्रॉबेरी महंगे दामों पर लाकर खाए जा सकते हैं।

Saturday, June 11, 2022

                                 तुरही
**********
**********
**********

आरेंज ट्रंपेट वाइन
**************
 येलो रेड वाइन
*************
 कॉउ ईच वाइन
**************
हमिंगबर्ड वाइन
************
आमतौर पर किसी बाग बगीचे झाड़ बोझे के आसपास अमेरिकन पौधा ऑरेंज ट्रंपेट आसानी से देखने को मिल सकता है जिसके फूलों को आप देख कर ही पता लगता है कि यह बैंड बाजे वाला पौधा है। जिस प्रकार पुराने समय में बैंड बाजा बजाते थे ठीक उस जैसा आकार फूलों का होता है इसलिए सिर्फ ट्रंपेट वाइन नाम से जाना जाता है। ये फूल देने वाले पौधे होते हैं जो भारत देश की उत्पत्ति नहीं है। यह यह बेल से लेकर पेड़ तक बन जाते हैं। इसके पत्ते गहरे हरे होते हैं एक दूसरे के लीफलेट पर विपरीत दिशाओं में लगे होते हैं। इसके इस पौधे के फूल बहुत आकर्षक होते हैं इसलिए दुनिया का सबसे छोटा पक्षी हमिंग बर्ड भी इन फूलों पर देखने को मिल सकता है।
 इसके फूलों से बड़ी-बड़ी पोड बनती है जिनमें बीज पाए जाते हैं क्योंकि  कुछ व्यक्तियों में यह पौधे संपर्क में आकर खुजली पैदा कर सकते हैं इसलिए इनको आउ इच वाइन नाम से भी जाना जाता है। बाग बगीचे की शोभा यहां तक की किसी बाग बगीचे के चारों ओर देखने को मिल सकते हैं। प्राय यह फूलों से लदे होते हैं और बेल के रूप में पाए जाते हैं।
इस पौधे की पत्तियां बड़ी होती है। फूल अनेकों रंगो के पाये जाते हैं जिनमें लाल, पीला, संतरी आदि के मिलते हैं। इस बेल की ओर चिडिय़ा और जीव जंतु आसानी से आकर्षित होते हैं। इसे  अधिक सूर्य का प्रकाश नहीं चाहिए इसलिए आसानी से उगाई जा सकती है और इसे अधिक पानी की भी जरूरत नहीं होती है। इसकी अनेक प्रजातियां पाई जाती है। त्वचा पर जलन पैदा करती है। वास्तव में तुरही का पौधा कोई विशेष लाभ नहीं देता सुंदरता के रूप में तो जाना जाता है किंतु आयुर्वेदिक औषधियों के रूप में इसे बहुत कम प्रयोग किया जाता है।










घरों में यह पौधा सजावट के लिए उगाया जाता है। अप्रैल महीने में इस पर फूल आने आरंभ हो जाते हैं सर्दी आने पर फूल आने बंद हो जाते हैं। सर्दियों में पत्ते झड़ जाते हैं। इसकी और कीट बहुत आकर्षित होते हैं।



Wednesday, June 8, 2022

                              नेपियर घास
*******************
*******************
*****************
सेंचरस पर्पूरियस
****************************
****************************
 पेनिसेटम पर्पूरियस
********************
 हाथी घास/युगांडा घास
***********************
*************************

 हाथी घास/युगांडा घास कहने को तो नेपियर एक घास है किंतु यह घास कुल का पौधा नहीं होता। इसे वैज्ञानिक भाषा में सेंचरस पर्पूरियस/ पेनिसेटम पर्पूरियस नाम से जाना जाता है। यह पोएसी कुल का पौधा होता है जो भारत की उत्पत्ति नहीं है अपितु अफ्रीका की पैदावार है। इसके पैदा करने में पानी एवं खाद आदि की बहुत मक जरूरत होती है। इसके तनों की मदद से इसे आसानी से उगाया जा सकती है जो बहुत कम और बहुत अधिक ताप को सहन कर सकती है। अफ्रीका में अपने आप उग जाती है।
 नेपियर घास वर्तमान में किसानों के लिए योगदान नहीं अपितु वैज्ञानिकों के लिए भी अनेक शोध का कारण बनी हुई है। घास इसलिए कहते हैं कि पशुओं के हरे चारे के रूप में काम में लाई जाती है किंतु यह बाजरे से बिल्कुल मिलती-जुलती तथा इसके तने को देखें तो गन्ने और बाजरे जैसा ही होता है। कभी-कभी झुंडे एवं बांस जैसा भी पौधा बन जाता है किंतु यह बार-बार काटी जा सकती है। एक बार में ही एक पौधे से 50 से 60 किलो हरा चारा प्राप्त हो सकता है। इसलिए किसानों के लिए अधिक लाभप्रद है। सबसे बड़ी विशेषता इस पौधे पर बीजी बनते हैं बिल्कुल बाजरे जैसे भुट्टे भी लगते हैं किंतु इसकी पैदावार बढ़ानी हो तो इसके पके हुए तने को काटकर गन्ने की भांति भूमि में दबा दिया जाता है और यह घास उत्पन्न हो जाती है। हरा भरा पौधा दूर से लुभा लेता है। यह पौधा बहुत भारी हो जाता है जिसको देखकर ही लगता है कि यह हाथी घास है।
वैज्ञानिकों के लिए यह शोध का विषय बना हुआ है क्योंकि एक बार लगा देने के बाद कई सालों चलती रहती है। बार-बार काटी जाती है तथा एक बार में एक पौधे से 50 से 60 किलो चारा आसानी से प्राप्त हो जाता है और घास को देखकर ही पता लग जाता है कि यह नेपियर घास है। जो भूमि की उर्वरा शक्ति को बहने से रोकती है। हवा के दबाव को कम करती है, कागज उद्योग में काम आती है तथा बायोगैस, बायो तेल एवं चारकोल आदि के निर्माण में भी काम में लाते हैं।
 कभी-कभी इस घास को देखकर ऐसा लगता है जैसे बांस का पौधा है। बांस के पौधे की भांति बहुत तेज गति से बढ़ती है। यह एक बीजपत्री पौधा है जिसके बीज में केवल एक दल पाया जाता है परंतु बीजों की बजाय इसके तने से ही दूसरा पौधा तैयार किया जा सकता है।
प्रतिवर्ष पशुओं के लिए सूखा चारा, हरा चारा तथा सांद्र चारे की जरूरत होती है जो इसी पौधे से प्राप्त किया जाता है। साल में कई बार उगाई जा सकती है ,पर एक बार उगाए जाने पर कई सालों तक चलती है। इसलिए भी किसानों के लिए घास वरदान बन गई है। गन्ने की भांति इस में अनेक पोरियां होती है जो अंदर से मीठी होती है इसलिए पशु इसको चाव से खा लेते हैं।




 नेपियर घास को बीजों से भी पैदा किया जा सकता है। नेपियर के ताने को काटकर ही तैयार की जाती है क्योंकि किसान पशु पालता है पशुओं के लिए सूखा, हरा चारा तथा सांद्र चारे की जरूरत होती है जिसमें से दो चारों की पूर्ति नेपियर घास कर सकती है। धीरे-धीरे लोगों का किसानों का रुझान इस घास की ओर बढ़ गया है। उद्योगों की दृष्टि से पशु का दूध बढ़ाती है क्योंकि यह पौष्टिक चारा होता है।
 नेपियर घास चारे के रूप में अधिक उगाई जाती है इसलिए डेयरी उद्योगों में बहुत प्रसिद्ध है। अफ्रीका में डेयरी उद्योगों के लिए यह घास अधिक उगाई जाती है। गाय एवं भैंस आदि इसे आसानी से खाते हैं दूसरे पशु देश को खा लेते हैं। युगांडा में उगाई जाने वाली घास बाल रहित होती है अधिक पैदावार देती है। सबसे बड़ी विशेषता है कि कम पानी और कम तत्वों से उगाई जा सकती है।
 किसान विशेषकर पशु पाल कर दूध प्राप्त करते हैं। दूध प्राप्त करने के लिए विभिन्न प्रकार के चारे पैदा करते हैं या बाजार से खरीद कर लाते हैं ताकि दूध पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हो सके। परंतु किसानों की नजरें लगातार नेपियर घास की ओर बढ़ी है ताकि सुधार से अधिक लाभ कमाया जा सके। इस पर खर्चा बहुत कम आता है तथा लाभ अधिक देती है। किसान इस घास को देखकर अधिक खुश है।






Friday, June 3, 2022

                               पटेरा घास
******************************
**********************************
 टाइफा एलिफेंटीना
****************
*****************

पटेर घास
**********
************
 कभी नदियों के किनारे, जोहड़, घनी आबादी के गंदे नालों में पटेर या पटेरा घास बहुत अधिक मात्रा में मिलती थी जिसे एलीफेंट घास आदि अनेक नामों से जाना जाता है। प्राचीन समय से ही लोग पटर घास के विषय में परिचित थे। इसे उखाड़ कर अनेक कामों में लेते थे। इसकी बहुत अधिक ऊंचाई पाई थी और बिल्कुल बाजरे एवं झुंडा से मिलती-जुलती होती है। पटेर घास पानी को साफ करने में अहं भूमिका निभाती है।
 पटर घास पर बाजरे जैसा भुट्टा लगता है। ग्रामीण क्षेत्रों में पटेरा नाम से भी जानते हैं। पानी को शुद्ध करने के लिए काम में लाई जाती है कारण है कि विभिन्न शहरी क्षेत्रों में जोहड़ो या गंदे पानी को साफ करने के लिए पटे घास उगाई जाती है। एक और जहां मशीनें से जल को साफ करने में करोड़ों रुपए खर्च आता है वही इसका इसको उगाने में ना के बराबर खर्च आता है। वही यह गहरी होने के कारण पर्याप्त मात्रा में आक्सीजन छोड़ती है। सबसे बड़ी खूबी है कि पटेर घास गंदे पानी की गाद कम कर देती है। और गाद धीरे-धीरे खत्म हो जाती। इस कारण पानी में आक्सीजन संचार अधिक तेजी होता है। यही नहीं यह विषैले तत्वों को भी जड़ों के नीचे इक_ा कर देती है। यह दीमक रोधी होती है। सूख जाती है तो इसकी की कटाई कर ली जाती है। प्लाई बोर्ड की तरह बोर्ड बनाने के लिए इसका उपयोग किया जाता है। बुजुर्ग बताते हैं कि जब यह घा मिल जाती
थी रोटी रखने की चंगेरी, विभिन्न प्रकार के बच्चों के खिलौने, छाबड़ी तथा रस्सी बनाने के काम में लेते थे। अब यह घा खत्म होने के कगार पर है। पटेर घास को अब कहीं देखते हैं तो बुजुर्ग बड़े प्रसन्न हो जाते हैं।
 अब तो दूषित जल को साफ करने के लिए विभिन्न कदम उठाए जाते जिनमें पटेर घास उगाना पसंद किया जाता है। जब पटर घास पक जाती है इस पर एक बहुत सुंदर भुट्टा जिसमें बहुत बारीक बारीक दाने जैसी रचनाएं नजर आती है। अनेक रोगों में भी काम में लेते हैं। क्योंकि इसका स्वाद कड़वा होता है इसलिए पेशाब संबंधित रोग ,घाव को भरने, दाद वगैरह को दूर करने एवं कुष्ठ रोग आदि के लिए प्रयोग करते हैं। परंतु पटेर घास औषधियों के बजाय विभिन्न प्रकार के साज बाज के सामान बनाने के काम में लेते हैं। पुराने समय में बीज भरने के लिए, बीज डालने के लिये, चटाई इसी से बनाते थे। यहां तक कि पटेर घास से ही झोपड़पट्टी भी बनाई जाती थी। झाडू बनाने के काम में लेते हैं। पशुचो के रूप में भी प्रयोग किया जाता है। आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में जोहड़ों में पर्याप्त मात्रा में खड़ी हुई देखी जा सकती है। लोग इसको जानते नहीं इसलिए पानी के पौधे समझ बैठते हैं। वरना यह पटेर घास होती है।
 पटेल कहां 6 से 12 फुट ऊंचाई तक बढ़ती है फूल एक लिंगी होते हैं तथा बीजों से बारीक बारीक बाल जैसी रचनाएं जुड़ी होती है। यदि इसे अधिक मात्रा में ले लिया जाए तो बदहजमी पैदा कर सकती हो। किसी ग्रामीण क्षेत्रों में भोजन के रूप में तथा दवाओं के रूप में प्रयोग करते हैं। तारीफा जगदीश अप्लाई जॉब पकाकर खाया जाता है इसके तने में स्टार्च बहुत अधिक मात्रा मिलता है। वही इसमें रेशे भी मिलते हैं। इसके तने भी कुछ लोग  खाने के काम में लेते हैं। इसके बीजों से तेल निकाला जाता है। यह दवाओं में भी काम आता है। इसके पत्ते, तने आदि पेपर बनाने के काम में भी लाए जाते हैं। यहां तक कि रिस्सयां बनाई जाती है।
 पुराने समय का पटेर का उपयोग लोग नहीं भूले हैं। कुछ लोग पटेर को चारे के रूप में भी प्रयोग करतेे हैं। परंतु सबसे अधिक उपयोग में झाड़ू बनाने तथा झोपड़पट्टी बनाने के काम में लेते थे। अब न तो झोपड़पट्टी बची हैं और न झाडू के








रूप में अधिक उपयोग किया जाता है।