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Saturday, February 29, 2020

पूरे विश्व में प्रसिद्ध है खाटू श्याम मेला, खाटू का
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भारत के हरियाणा की सीमा से लगते राजस्थान में रिंगस से करीब 15 किमी दूर खाटूश्याम धाम पौराणिक इतिहास को समेटे हुए है। यूं तो इस धाम पर वर्ष भर भारी भीड़ चलती है किंतु दो बार तो कई लाख भक्त पहुंचते हैं। फाल्गुन शुक्ल एकादशी को जो मेला लगता है उसमें अपार जनसैलाब उमड़ता है। यहां कई दिनों पूर्व ही भक्तजन आकर ध्वज चढ़ाने लग जाते
है। राजस्थान, उत्तर प्रदेश और हरियाणा के अलावा पंजाब के बेशुमार भक्तजन पदयात्रा करके इस धाम पर पहुंचते हैं। प्रथम मार्च को यह मेला लगने जा रहा है। पदयात्रियों का जाना शुरू हो गया है। प्रथम मार्च तक भक्तजन पदयात्रा पर चलते रहेंगे।
रास्ता -
भारत में हरियाणा के जिला महेंद्रगढ़ के प्राचीन कस्बा कनीना से हजारों की संख्या में झंडा लेकर श्री खाटू श्याम की ओर रवाना होते हैं। विभिन्न जिलों और राज्यों के भक्तजन निजामपुर सडुक मार्ग को काटने वाले रेलवे ट्रैक के साथ-साथ चलकर जाते हैं रास्ते में अनेक पड़ाव एवं ठहराव होते हैं। यह रास्ता निम्र स्टेशनों एवं पड़ावों से होकर गुजरता है-

 कनीना से रास्ता यूं होकर गुजरता है। कनीना-मोहनपुर-सुंदराह-झीगावन-बेवल-अटा ली-सिहमा-खासपुर-नारनौल- निजामपुर-डाबला- जीलो-मावंडा-नीम का थाना-भागेगा-कांवट-कछेरा-श्रीमाधोपुर-रिंगस- खाटूश्याम।
ठहराव-
यूं तो देश ही तीज त्योहारों का देश है यहां समय समय पर प्रसिद्ध मेले लगते हैं लेकिन राजस्थान में खाटूश्याम धाम पर मेला अति दर्शनीय है। राजस्थान के भरने वाले प्रसिद्ध मेले के श्रद्धालुओं के लिए गांव-गांव में ठहरने के लिए शिविर लगाये जाते हैं। श्याम बाबा को पहुंचने वाले श्रद्धालुओं व भक्तों को यहां ठहराकर प्रबन्धक विभोर हो जाते हैं। वहीं भक्तों की अच्छी सेवा की जाती है। किसी भी भक्त को रास्ते में कोई परेशानी नहीं आती है। वैसे भी भारी संख्या में भक्त विशेषकर महिलाएं अधिक जाती हैं। रास्ते में नहाने, खाने एवं दवाओं को शिविरों में भी बेहतर प्रबंध होता है।
तैयारी

खाटूश्याम जाने  के लिए एक डंडे पर सवा मीटर का कपड़ा जो खाटू ध्वज के नाम से जाना जाता है को पूजा अर्चना करने के बाद धारण किया जाता है और रास्ते में किसी कपड़े आदि या साफ जगह पर ही रखा जाता है। सुबह सवेरे खाटू की पूजा करके ही ध्वज को लेकर आगे बढऩा चाहिए। सफाई के साथ-साथ मन एवं वचन से पूरे रास्ते शुद्धता का ख्याल रखना चाहिए। जहां कांवर के कठोर नियम होते हैं वहीं खाटूश्याम के नियम लचीले होते हैं। साबुन, तेल, ब्रश आदि की जा सकती है। क्योंकि अधिकांश रास्ता ट्रैक के साथ-साथ होकर गुजरता है। ऐसे में भक्तों को ट्रेन का ध्यान रखना जरूरी है। ट्रैक पर भूलकर भी न चले। कानों में संगीत की लीड लगाकर जानलेवा साबित हो रहा है ऐसे में भक्तों को विशेष ध्यान देना चाहिए और संगीत की लीड लगाकर नहीं चलना चाहिए।
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प्रसिद्ध है जैतपुर का श्याम मंदिर


जो भक्त भारत में राजस्थान में करीब 200 किमी दूर खाटू श्याम धाम पर नहीं जा सकते हैं उनके लिए जैतपुर का धाम विख्यात है। भारत के हरियाणा के जिला महेंद्रगढ़ से सटे हुडिय़ा-जैतपुर यहां से 25 किमी दूर राजस्थान में स्थित है जहां पदयात्री निशान लेकर जा रहे हैं। प्रति वर्ष यहां पर कई हजार निशान अर्पित किए जाते हैं और खाटू श्याम भक्त पैदल चलकर जाते हैं। कनीना, अटेली, नारनौल तथा महेंद्रगढ़ के अलावा आस पास के भक्त जो एक ही दिन में अपना निशान खाटू को अर्पित करना चाहते हैं और अधिक दूर चलने में असमर्थ हैं उनके लिए यह खाटू श्याम मंदिर जाना जाता है।
   जैतपुर में फाल्गुन एकादशी को खाटू श्याम मेला लगता है जिसमें अपार भीड़ जुटेगी। जैतपुर में श्याम बाबा के शृंगार के लिए शृंगार समिति बनाई हुई है जो प्रतिदिन दिल्ली से आए फूलों से श्याम बाबा का शृंगार करती है। कलकत्ता तथा अलवर के शृंगारकर्ता प्रतिदिन ताजा फूलों से बाबा का शृंगार करते हैं। करीब 300 वर्ष पुराने इस श्याम मंदिर का वर्तमान में जीर्णोंद्धार करवाया गया है जिसमें राधा मंदिर, निशान रखने का स्थान, परिक्रमा का स्थान,  एवं बड़े हालों का निर्माण कराया गया है। श्याम बाबा की आरती तथा भंडारा चलता है।
    भक्त अपने घर से खाटू श्याम का निशान लेकर पदयात्रा करता हुआ कनीना से भोजावास तथा राताकलां से जैतपुर पहुंचता है। अपने निशान को बाबा पर अर्पित करके संतुष्ट हो जाता है। भक्तों ने बताया कि इस धाम तक आसानी से पहुंचा जा सकता है। फाल्गुन एकादशी को यहां विशाल मेला लगता है जिसमें भक्त यहां आकर मन्नत मांगते हैं। माना जाता है कि उनकी मन्नतें पूर्ण हो जाती हैं।
      महेंद्रगढ़ के कनीना से  25 किमी के इस सफर में वे मोहनपुर, भोजावास, रातां से होकर प्रतापुर एवं जैतपुर पहुंचते हैं। इस पदयात्रा में उनके साथ जल एवं खाने पीने का सामान वाहन में साथ साथ चलता है। डीजे पर थिरकते पैर एवं रंग गुलाल में भीगे भक्त खुशी खुशी जैतपुर के लिए रवाना हो रहे हैं। भारी संख्या में भक्त आपने साथ अमर ज्योति लेकर जा रहे हैं। यह ज्योति भी जैतपुर धाम पर अर्पित की जाती है।
भक्तों का कहना-
खाटू श्याम में लगने वाले फाल्गुन एकादशी के मेले के दृष्टिगत कनीना से समाजसेवियों के समूह रवाना हो रहे है। प्रतिदिन हजारों भक्तजन जा रहे हैं। यूं तो खाटू श्याम मेले के दृष्टिगत ध्वज लेकर पदयात्रा पर एक के बाद एक समूह रवाना होते है तथा उनके लिए जगह जगह शिविर स्थापित किए जाते हैं।
  इस संबंध नेमी सिंह का कहना है कि वे विगत छह वर्षों से खाटू श्याम जाकर ध्वज अर्पित करते हुए आया है। उनकी कोई मनोकामना नहीं है। अपितु उनके दिल में श्रद्धा एवं भक्ति भरी है जिसके चलते व्यस्त समय में से समय निकालकर खाटू जाता हूं। उन्होंने कहा खाटू के प्रति भक्ति के चलते यह दूरी कष्टदायी नहीं लगती है।
  रोहित कुमार पांच वर्षों से खाटू श्याम का भक्त हैं। श्याम को मन में संजोकर लंबी दूरी को पार कर जाते हैं। उनके अनुसार उन्हें थकान तो होती है परंतु रास्ते में लोगों की भक्तों के प्रति भक्ति प्रसन्न रखती है और सफर आसानी से पूरा हो जाता है।
कांवर की अपेक्षा ध्वज में कम नियमों का पालन करना होता है वहीं दूरी भी कम है।
   हेमंत कुमार गाहड़ा निवासी का कहना है कि वे छह वर्षों से खाटू श्याम जा रहे हैं और उन्हें मन को प्रसन्नता एवं भक्ति भाव इसी यात्रा से प्राप्त होता है। जब कभी खाटू मेला पास आता है तो वे मेले में जाने की तैयारी में जुट जाते हैं। पदयात्रा विशेषकर रेलवे ट्रैक के साथ साथ चल पाना थोड़ा कठिन है किंतु मन में भक्तिभाव रखते हुए यह सफर सामान्य महसूस होने लग जाता है। श्याम बाबा के दर्शन करके सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं।
   विनोद कुमार का कहना है कि वे विगत दो वर्षों से श्याम बाबा के यहां जा रहे हैं। उनकी सभी इच्छाएं श्याम बाबा के जाने पर खत्म हो जाती हैं। उन्हें खाटू जाना बेहद प्रसन्नतापूर्ण लगता है। उनका कहना है कि अपार भक्तों को मीलों का सफर तय करता देख उनका सफर आसानी से पूर्ण हो जाता है।
खाटू श्याम में जहां भक्तों के लिए हर प्रकार की खाने पीने, रहने तथा स्नान आदि की सुविधा उपलब्ध कराई गई है वहीं फास्ट फूड की ओर सभी कैंप चल रहे हैं। रिंगस से खाटू धाम तक करीब 17 किमी में जहां भक्तों की सबसे अधिक संख्या देखने को मिल रही है वहीं पेट के बल जाकर खाटू श्याम के दर्शन करने वाले भी भारी संख्या में हैं। छोटे बच्चे एवं महिलाओं की संख्या भी अधिक है जिनके हाथों में खाटू का निशान है।

   खाटू श्याम में सभी भक्तों की जुबान पर बस श्याम का नाम है। डीजे पर, नृत्य करते हुए सभी खाटू धाम की ओर बढ़ते ही जा रहे हैं। खाटू श्याम के दर्शन करके वे अपने को धन्य समझ रहे हैं। खाटू में नजारा देखकर ऐसा लगता है कि भक्तों में अपार आस्था है।
 विभिन्न गांवों एवं शहरों से दल के रूप में भक्त खाटू की ओर चले जा रहे हैं जहां से रेलवे ट्रैक के साथ साथ भारी भीड़ भक्तों की चली जाती है। हाथों में डंडे पर खाटू का निशान लेकर मुख से जयकारे लगाते हुए बस आगे की ओर बढ़ते हैं। मुख्य धाम खाटू मंदिर को सजाया जाता है तथा भक्तों को आने जाने के लिए पुलिस प्रबंध किए जाते है। रिंगस से खाटू तक 17 किमी मार्ग पर भारी संख्या में भक्त बिना चप्पल जूतों के साथ तो कुछ पेट के बल चले जाते हैं। 17 किमी दूरी में डाली गई कार्पेट भक्तों के चलने के लिए आरामदायक बनी हुई है वहीं भक्त विभिन्न प्रकार के बड़े छोटे निशान लेकर दौड़े चले जाते हैं। महिलाओं की संख्या बहुत अधिक होती है। 

यूं तो देश ही तीज त्योहारों का देश है यहां समय समय पर प्रसिद्ध मेले लगते हैं लेकिन राजस्थान में खाटूश्याम धाम पर मेला अति दर्शनीय है। राजस्थान के भरने वाले प्रसिद्ध मेले के श्रद्धालुओं के लिए गांव-गांव में ठहरने के लिए शिविर लगाये जाते हैं। श्याम बाबा को पहुंचने वाले श्रद्धालुओं व भक्तों को यहां ठहराकर प्रबन्धक विभोर हो जाते हैं। वहीं भक्तों की अच्छी सेवा की जाती है।
    राजस्थान में रिंगस से 17 किलोमीटर दूर लगभग 400 धर्मशालाओं एवं श्याम मन्दिर से सुशोभित पवित्र धाम ''खाटू श्याम जीÓÓ है। देश के ही नहीं अपितु विश्व भर में प्रसिद्ध फाल्गुन एकादशी का मेला लगता है जिसमें लगभग 10 लाख व्यक्ति श्रद्धा के साथ आते हैं और पवित्र कुण्ड में स्नान करते हैं।
    देशी घी के चूरमे का भोजन तथा भजन कीर्तन के लिए प्रसिद्ध इस मेले में जयपुर से नन्दू तथा जयशंकर चौधरी, लखबीर सिंह लक्खा, टाटा नगर से आकर श्याम गुणगान करते हैं। ठाकुर बाहुल्य ग्राम में लगने वाले इस मेले में 36 बिरादरियों के लोग एवं श्रद्धालु दर्शनार्थ आते हैैं। श्रद्धालु एवं भक्तगण अपने स्थान से सवा मीटर कपड़ा बांस पर टांगकर पैदल चलकर आते हैं। माना जाता है कि भक्तगणों की मन्नतें पूरी हो जाती हैं।
    खाटू श्याम जी मन्दिर में श्याम बाबा के शीश की पूजा अनेक प्रसिद्ध राजनेता करने आते हैं। श्याम बगीची में पैदा हुए फूलों व फलों को श्याम बाबा पर चढ़ाया जाता है। हर माह की एकादशी को यहां छोटे छोटे मेले लगते हैं किन्तु दशहरे पर शुक्ल एकादशी को श्याम बाबा का जन्म दिन श्रद्धापूर्वक मनाया जाता है जिसमें लाखों व्यक्ति भाग लेते हैं।
    श्याम बाबा का वास्तविक नाम बबरीक था तथा महाभारत में भीम का पौत्र घाटोत्कच का पुत्र था। बबरीक को श्याम बाबा के नाम से पूजे जाने के पीछे एक किंवदंती प्रचलित है।
    जब कौरवों और पांडवों का युद्ध चल रहा था तो बबरीक मात्र तीन बाण लेकर युद्ध में आया। जब श्रीकृष्ण की नजरें उन पर पड़ी तो उनका परिचय तथा युद्ध में आने का कारण पूछा। बबरीक ने अपना नाम घटोत्कच पुत्र 'बबरीकÓ बताया और कहा मैं युद्ध के लिए आया हूं। जब श्रीकृष्ण ने हॅसकर कहा कि तुम तीन बाणों से क्या युद्ध करोगे तो बबरीक ने कहा- 'मैं तीन बाणों से तीन लोक बेंध सकता हूंÓ। कृष्ण ने उनकी परीक्षा हेतु सामने खड़े विशाल पीपल के सभी पत्ते एक ही बाण से छेदने के लिए कहा।
    बबरीक ने एक बाण धनुष पर चढ़ाया और, पीपल के सभी पत्ते छेद डाले। जब श्रीकृष्ण को उनकी बहादूरी पर विश्वास हो गया तो पूछा कि आप किस सेना का साथ देंगे? बबरीक ने कहा- जो सेना हारती नजर आयेगी, उसका साथ दंूगा। श्रीकृष्ण सोच में पड़ गये गए और सोचा कि अब युद्ध जीतना असंभव हो गया है। श्रीकृष्ण ने तब एक चाल चली और शीश दान में मांगा। बबरीक ने हाथ जोड़कर एक विनती की कि उन्हें पूरा युद्ध दिखाया जाये।
    तत्पश्चात शीश को ऊंचे पर्वत पर रख युद्ध का हाल देखने दिया। जब पांडव युद्ध जीत गए तो पांडवों में घमण्ड़ को गया और आपस में कहने लगे कि युद्ध मेरे कारण जीता गया। तब श्रीकृष्ण ने उनके आपसी झगड़े का निपटारा शीश से करवाने का फैसला किया। शीश ने युद्ध में जीत का कारण श्रीकृष्ण का सुदर्शन चक्र तथा द्रौपदी का कालरूप बताया।
    बबरीक के सच्चे न्याय को सुन श्रीकृष्ण ने उन्हें कलयुग में श्याम बाबा नाम से पूजे जाने का वरदान दिया। इसके बाद शीश नदी में बहा दिया जो चलकर खाटू पवित्र धाम में रुका। तभी से खाटू श्याम स्थल पर श्याम मन्दिर बनाकर पूजा आरम्भ की। मन्दिर में रखा शीश स्वयं उत्पन्न हुआ माना जाता है।
 























**होशियार सिंह, लेखक,कनीना,हरियाणा,भारत**


Friday, February 28, 2020

पालक
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स्पाइनेशिया ओलेरेसिया
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पालक अमरन्थेसी कुल का शाक है जो बहु उपयोगी सब्जी है। इसकी जिसकी पत्तियाँ एवं तने शाक के रूप में खाये जाते हैं। पालक में खनिज लवण तथा विटामिन, आक्जेलिक अम्ल पाया जाता है। इसका मूल ईरान है। पुराने समय से पालक की जानकारी चीन में थी।
    भारत में पालक का बड़े पैमाने पर प्रयोग किया जाता है। पालक जिसे स्पिनच के नाम से जाना जाता है। यह सेवाय, सेमी सेवाय,साफ पत्तोंवाला पालक प्रमुख हैं। कुछ पालक के पत्ते सिकुड़े हुए और गाढ़े हरे रंग के तो एक घर में भी उगाया जा सकता है। इस पालक को पौष्टिक गुणों से भरपूर माना जाता है। एक ऐसा पालक भी है जिसकी पत्तियां चौड़ी होती हैं।
पालक शीतऋतु की फसल है तथा पाले को सहन कर सकता है। गर्मी में नष्ट हो जाता है। गर्मी में डंठल बन जाता है और बीज पैदा हो जाते हैं। यह हर प्रकार की मिट्टी में पैदा हो सकता है। अम्लता को यह अधिक सहन कर सकता है।
पालक के बीज की बुआई नवंबर तक चलती है। पहली कटाई एक माह बाद तथा बाद की कटाइयां प्रत्येक तीन सप्ताह बाद की जाती है। छिड़काव विधि से बुआई भी की जाती है। पालक की देशी पालक, बनारसी,कटवी पालक अधिक प्रयोग किया जाता है।
  भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में खूब उगाया जाता है। दिन बड़े होने पर डंठल पर फूल आते हैं और फूलों में हवा के द्वारा परागण होता है। पास पास बोई हुई दो प्रजातिया कभी शुद्ध पैदा नहीं होती। बीज को पकने में अधिक समय लगता है। जब बीज पक जाता है तब पौधों को काटकर तथा सुखाकर अन्न की तरह मंढाई कर लेते हैं।
 सर्दियों के मौसम में सबसे स्वास्थ्यवर्धक सब्जी मानी जाती है। पालक में जो गुण पाये जाते है वे अन्य सब्जियों में नहीं पाए जाते। पालक में लोह तत्व अधिक रहता है। इसलिए पालक खाने से खून के लाल कणों की संख्या बढ़ती है। पालक निश्चित तौर पर एक बेहतरीन सब्जी है जिसका सेवन शरीर के लिए बेहद फायदेमंद है। पालक में कई प्रकार के पोषक तत्व मौजूद हैं जो कई प्रकार से सेहत के लिए फायदेमंद होता है। इसके अलावा इसका प्रयोग औषधीय रूप में भी किया जाता है।

 पालक का सेवन वजन घटाने में मदद कर सकता है। इसमें कैलोरी की कम मात्रा का सेवन करें। पालक एक कम कैलोरी वाला खाद्य पदार्थ है। पालक कैंसर के लिए भी लाभकारी है। इसमें बीटा कैरोटीन और विटामिन-सी पाए जाते हैं जो कैंसर कोशिकाओं से सुरक्षा प्रदान कर सकते है। आंखों की समस्या से बचे रहने के लिए भी आपको पालक के फायदे लाभ पहुंचा सकते हैं।  विटामिन-ए और विटामिन-सी पाए जाते हैं जो मुख्य रूप से आंखों के रोगों से बचाते हैं।
   पालक में हड्डियों को स्वस्थ रखने के लिए कैल्शियम की मात्रा पाई जाती हैवहीं कैल्शियम की मात्रा पाई जाती और कैल्शियम तंत्रिका तंत्र के कार्य को सामान्य रूप से चलने में मदद कर सकता है।  विटामिन-के, ल्यूटिन, फोलेट और बीटा कैरोटीन जैसे पोषक तत्वों से भरपूर होता है। ऐसे में यह याददाश्त शक्ति को मजबूत करने का काम कर सकता है। पालक हार्ट अटैक के खतरे से बचाता हैं। 
  पालक खाने के फायदे रक्तचाप से होने वाले जोखिम को कम कर सकता है। पालक में नाइट्रेट की मात्रा पाई जाती है। पालक में पेप्सिन पाया जाता है जो उच्च रक्तचाप को सुधारने में मदद कर सकता है। खून की कमी का सबसे ज्यादा खतरा गर्भावस्था के दौरान देखने को मिलता है। पालक में आयरन पाया जाता है जो एनिमिया से बचाता है।
पालक शरीर की जलन रोकता है, सूजन को कम कम करता है वहीं रोग प्रतिरोधक क्षमता
को बढ़ाता है। विटामिन-ई रोग-प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने का काम कर सकता है जो पालक में मिलती है। पालक पाचन तंत्र को मजबूत बनाता है। इसमें आहारी रेशे पाए जाते हैं जो मुख्य रूप से पाचन तंत्र को स्वस्थ रखता है। पालक कैल्सीफिकेशन रोकता है, आयरन की पूर्ति करता है,दिन-भर काम करने के बाद अगर आपको थकावट महसूस होती है उसे पालक दूर करता है।   मांसपेशियों को आराम देता है वहीं
गर्भावस्था में मां को एक स्वस्थ आहार की आवश्यकता होती है। मां को फोलेट पोषक तत्व की आवश्यकता होती है जो पालक से मिल सकते हैं।

पालक शरीर की मांसपेशियों को मजबूत बनाने के लिए भी फायदेमंद साबित होता है। आंखों के नीचे मौजूद काले घेरे दूर करता है। पालक के रस को रुई की मदद से प्रभावित जगह पर लगाने से लाभ मिलता है। पालक,शहद,नींबू का रस बढ़ती उम्र को रोक सकता है। पालक व शहद के प्रयोग से चेहरे की त्वचा सुधर सकती है वहीं कील मुहासों में लाभकारी है। सूर्य से बचाता है।
   पालक बालों के विकास एवं वृद्धि के लिए, बालों के झडऩे, में भी उपयोगी है। 
  पालक में प्रोटीन,लिपिड, कार्बोहाइड्रेट, कैल्शियम,, चीनी, रेशे,लोहा, फास्फोरस, सोडियम,, जस्त, मैग्रेशियम
विटामिन-सी, एस्कॉर्बिक एसिड, थायमिन,
राइबोफ्लेविन, नियासीन,फोलेट, विटामिन-बी,ए,
ई,,डी,के, अमल आदि पाए जाते हैं। पालक को सब्जी, दाल में, जूस के रूप में,परांठे,पनीर, सब्जी के रूप में, रायता, पकौड़ा,सलाद के रूप में सेवन किया जा सकता है।
 पालक उच्च रक्तचाप को घटाता है। इसमें उपयोगी विटामिन जैसे विटामिन ए, विटामिन सी, विटामिन ई और विटामिन के साथ-साथ महत्वपूर्ण खनिजों के साथ भरी हुई है।पालक पशुचारे के रूप में भी काम आता है। हरा उत्तम चारा है वहीं कमजोर पशुओं के लिए भी लाभकारी है। यह होटलों में भी जमकर प्रयोग होता है।
  पालक खाने के फायदे हैं वहीं नुकसान भी हैं। पालक का अधिक सेवन हृदय रोग का कारण बन सकता है,पेट फूलने, सूजन और पेट में ऐंठन की समस्या हो सकती है। पालक में बीटा-कैरोटीन से धूम्रपान करने वाले लोगों में कैंसर होने का खतरा बढ़ सकता है। पालक में पोटैशियम की भरपूर मात्रा पाई जाती है जो उल्टी, डायरिया का कारण बन सकती है। धूम्रपान करने वाले, गर्भवती महिलाओं को अधिक पालक का सेवन करने से बचना चाहिए। पालक के पत्ते का सेवन शरीर को विषाक्त कर सकता है। यह गठिया बढ़ा सकता है।
पालक का सेवन करने से दांतों में किरकिराहट बढ़ जाती है। अत्यधिक सेवन एलर्जी भी पैदा कर सकते है।

**होशियार सिंह, लेखक,कनीना,हरियाणा**













Thursday, February 27, 2020

पील
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जाल
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पील/राजस्थान का अंगूर
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पीलू// राजस्थान का मेवा
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साल्वाडोरा ओलेओइड्स
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जाल एक सदाबहार पेड़ है जिसमें बहुत सारी लटकती हुई शाखाएं होती हैं। यह बहुत ऊंचा हो सकता है। अक्सर यह झुरमुट के रूप में गहरी छाया वाला पौधा है। यह द्विबीजपत्री पौधा है जो बहुत धीरे धीरे बढ़ता है। इसमें मूसला जड़े पाई जाती हैं। यह भारत सहित कई देशों में पाया जाता है। मूल स्थान भारत ही है। जंगलों में भारी संख्या में खड़े देखे जा सकते हैं।
रेगिस्तान की तो प्रमुख सौगातों में से एक जाल भी है। यह जाल अति विषम परिस्थितियों को भी सहन कर सकता है। जून जुलाई की भीषण गर्मी में यह पौधे विभिन्न रंगों के फल देने लग जाता है। इसके पीले, सफेद, लाल फल बरबस लोगों को आकर्षित कर लेता है। जाल के पेड़ बेतरतीबी से फैलाव लिए होता है। इस कारण स्थानीय बोलचाल में इस जाल कहा जाता है। जाल पर जीव जंतु आराम से घूमते रहते हैं। तेज गर्मी के साथ जाल के पेड़ पर हरियाली छा जाती है और फल लगना शुरू हो जाते है। चने के आकार के रसदार फल को पील कहलाते है।
इसे पील या पीलू कहते हैं। ये फल अति मधुर स्वाद के होते हैं जिनको लोग चाव से खाते हैं। बुजुर्ग बताते हैं कि कभी जंगल से पील तोड़कर लाने के लिए विशेष दल जाता था और एक बर्तन में पील तोड़कर लाते और चाव से फांके मार मारकर खोते थे। अब न तो पेड़ों पर पील होती हैं और न पील खाने वाले वो लोग बचे हैं।
यदि पील को एक एक करके खाते हैं तो जीभ छिल जाती है। ऐसे में कम से कम दस पील एक साथ फांके मारकर खाई जाती हैं ताकि जीभ को कोई नुकसान न पहुंचे और बेहतर स्वाद भी आए। मीठे चखने वाला फल, जो उत्तरी भारत में खाया जाता है।  पील एक एक करके खाने से मुंह से झुनझुनी और अल्सर पैदा करता है।
पेड़ को दवा और सामग्री के स्रोत के रूप में स्थानीय उपयोग के लिए जंगलों से काटा जाता है। यह छाया के लिए, मिट्टी कटाव तथा पत्तों से खाद बनाने के लिए उगाया जाता है। यह दो प्रकार का होता है। खारी जाल तथा मीठी जाल। एक वक्त था जब जाल के पेड़ के नीचे पशु एवं जंगली जीव आराम करते थे। जंगल में चरवाह अपने पशुओं को जाल के पेड़ के नीचे गर्मी एवं दोपहरी में बैठाकर आराम करता था और शाम को अपने घर पशुओं सहित लौटता था।

  जाल नामक पौधा ऊंचाई पर भी मिलता है वहीं सर्दी को अधिक सहन नहीं कर पाता है।
ये धूप अधिक सहन कर सकते हैं। खारा मिट्टी के अत्यधिक सहिष्णु होता है। पेड़ के पत्ते, टहनी, तना आपस में इतना सघन बनाते हैं कि धूप भी इस पेड़ के अंदर प्रवेश नहीं कर सकती है। फल
मीठे स्वाद का होता है जिसमें ग्लूकोज, फ्रक्टोज और सुक्रोज होता है। यहां तक कि कैल्शियम का का अच्छास्रोत है। फल खाएं जाते हैं जिनके रंगों के अनुसार अलग अलग स्वाद होता है। उबली हुई जड़ की छाल का दवाआ के रूप में काम आती है वहीं बीज का तेल दर्द के उपचार में शीर्ष पर लागू किया जाता है और मरहम बनाने के काम आता है।
पत्तियों का उपयोग खांसी से राहत देने के लिए किया जाता है।
पत्तियों को गर्म किया जाता है और फिर एक कपड़े में बांध दिया जाता है और गठिया से प्रभावित क्षेत्रों पर लगाया जाता है। राहत मिलती है। फल का उपयोग बढ़ी हुए तिल्ली, गठिया, ट्यूमर, गुर्दे और पित्ताशय की पथरी, और बुखार के उपचार में किया जाता है। पेड़ एग्रोफोरेस्टरी के काम आता है। सड़क के किनारे, मिट्टी कटाव को रोकने के लिए, पत्ते उर्वरक के काम आते हैं वहीं ईंट पकाने के काम आते हैं।
पीलू के बीजों में हरी-पीली वसा होती है जिसमें बड़ी मात्रा में अमल होते हैं जो साबुन और मोमबत्तियां बनाने के लिए उपयोग किया जाता है।
बीज के तेल मच्छर मारने के काम आता है।  इसकी जड़ दातुन के रूप में दांतों को साफ करने के लिए टूथब्रश के रूप में उपयोग की जाती है।

हल्के लाल या पीले रंग की लकड़ी कमकठोर होती है। इसका उपयोग भवन निर्माण के उद्देश्यों, कृषि उपकरणों, फारसी पहियों और नावों के लिए किया जाता है। लकड़ी ईंधन के रूप में काम आती है।
यह लंबी लंबी शाखाओं वाला पेड़ है। यह शुष्क इलाकों में बहुत आम पौधा है, लेकिन दुर्लभ हो जाता है जहां वर्षा की स्थिति बेहतर होती है। यह महान मिट्टी की लवणता का सामना कर सकता है। यह अप्रैल के दौरान नए पत्ते पैदा करता है। पत्ते मोटे हरे रंगे के होते हैं। पौधे एक घनी छाया प्रदान करता है। यह अक्सर ऊंट और बकरी आदि के चारे के लिए प्रयोग किया जाता है।
  जाल के छोटे हरे सफेद फूल आते हैं। पक्षी, जीव एवं कीट इसके फल को खाते हैं। पक्षियों द्वारा बीज फैलाया जाता है।  जाल की राख ऊंटों में के रोगों के इलाज के लिए काम आता है। महाभारत में अर्जुन ने अज्ञातवास के समय अपने अस्त्र शस्त्र जिस पेड़ में छुपाए वह कैर, जांटी या जाल ही माना जाता है। जाल की जड़ों का एक काढ़े का उपयोग गोनोरिया में प्रयोग किया जाता जाता है। बुखार के इलाज में भी यह काम आती है। इससे कई प्रकार के टूथपेस्ट बनाए जाते हैं।  अफ्रीका में जाल की पत्ती को एक सब्जी के रूप में खाया जाता है और सास बनाने में उपयोग किया जाता है। इसकी कच्ची टहनियां और पत्तियों को सलाद के रूप में खाया जाता है। पत्तियां स्वाद में कड़वी, सडऩ रोकने वाली, आंतों केो कड़वी, लिवर के के लिए टोनिक, मूत्रवर्धक, कृमिनाशक, ओजोन में उपयोगी और नाक से जुड़ी अन्य परेशानियों, बवासीर, खुजली, सूजन को कम करने और दांतों को मजबूत करने वाली होती हैं। पत्तियां गठिया इलाज में काम आती हैं।पत्तियों के रस का उपयोग स्कर्वी में भी किया जाता है। फल मूत्रवर्धक और पेट के लाभकारी होता है। जहरीले कीटों के काटने पर फलों को प्रयोग करते हैं।
   बीज में कड़वा और तेज स्वाद होता है। उनका उपयोग शुद्धिकारक के रूप में किया जाता है, मूत्रवर्धक और टॉनिक के बीज का तेल गठिया में त्वचा पर लगाया जाता है। जाल का काढ़ा  चूहों में कोलेस्ट्राल को काफी कम कर देता है।
 जाल का महिला प्रजनन प्रणाली और प्रजनन क्षमता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। यह जीवाणुरोधी होती हैं।
पील रेगिस्तान का मेवा नाम से जाना जाता है। यह पौष्टिक होता है इसे खाने से लू नहीं लगती। औषधीय गुण के कारण महिलाएं पीलू को लोग एकत्र कर सुखा कर भी खाते हैं।

राजस्थान में ऐसी मान्यता है कि जिस वर्ष कैर और पील की जोरदार बहार आती है उस वर्ष बारिश एवं फसल बेहतर होते हैं। पील खाने में बहुत ही स्वादिष्ट होते हैं। इन्हें राजस्थान का अंगूर भी कहते हैं। इसकी छाया में जंगली मोर, गीदड़,हिरन, नीलगाय आदि आराम से रहते हैं।


















**होशियार सिंह, लेखक,कनीना,हरियाणा**