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Tuesday, January 14, 2020

  गरीबों के सेब
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सर्दी के मौसम में यूं तो ग्रामीण क्षेत्रों में अनेकों प्रकार के सूखे मेवे डालकर लजीज लड्डू बनाएं जाते हैं और सेहत पर विशेष ध्यान दिया जाता है किंतु इस मौसम की अमृतमय सौगात प्रकृति में बिखरी पड़ी मिलती हैं। इस मौसम में ढेर सारी सस्ती सब्जियां एवं फल मिलते हैं जो न केवल सेहत को बनाए रखते हैं अपितु लंबे समय तक जीने में मदद करते हैं। इनमें से कुछ फल एवं सब्जियां प्रकृति में मुफ्त में उपलब्ध होती हैं जबकि कुछ उगाई जाती हैं। बेर जैसे रसीले फल गरीबों के सेव कहलाते हैं। बेर नामक वो फल हैं जिसका स्वाद तो भगवान् श्रीराम ने भी लिया था और वह भी भीलनी जैसी औरत के झूठन के साथ। बेरों का ग्रामीण क्षेत्रों में जमकर उपभोग किया जाता है यहां तक कि अधिक मात्रा में उत्पन्न बेरों को सूखा लिया जाता हैं और वर्ष भर खाया जाता है। गरीब जन जो महंगे दामों पर सेव नहीं खरीद सकते हैं वे अपने बेर खाकर विटामिन सी की आपूर्ति कर लेते हैं। बेरों के दो रूप होते हैं जिनमें से देशी नाम से जाना जाने वाला बेर अधिक मीठा एवं पौष्टिक होता है जबकि हरे रंग का लंबा बेर कम पौष्टिïक एवं कम खनिज लवण प्रदान करने वाला होता है। बेर का व्यवसाय भी होने लगा है। सर्दी के मौसम में बेर को जमकर खाया जा सकता है जो लाभकारी साबित होता है। ग्रामीण क्षेत्रों में तो ये बेर खूब उपलब्ध हैं। किसान के खेतों में दोनों ही प्रकार के बेर उगाए जाते हैं जो किसान के लिए अतिरिक्त आय का स्रोत बन सकते हैं। शहरी किसान तो इन बेरों को बेचकर आय कमा रहे हैं किंतु ग्रामीण किसान आज भी बाजार तक उन्हें बेचने से कतराते हैं। यूं तो पूरे देश में ही बेरी का पौधा उगाया जाता है और उसके मधुर फलों का स्वाद लिया जाता है किंतु रेतीले क्षेत्रों में बेर अधिक पैदा हो रहा है।
  बेरी जिसे जीव विज्ञान की परिभाषा में जिजिफस मार्सियाना नाम से जाना जाता है। इसे गरीबों का सेब, चाइनिज एपल, इंडियन प्लूम आदि नामों से भी जाना जाता है। अक्सर ये पौधे या तो स्वयं उग जाते हैं जिन्हें जंगली बेरी कहा जाता है या फिर उगाया जाता है और बाग तैयार किए जाते हैं। बहुत जल्दी ही पौधा फल देने लग जाता है जो गुठलीदार, रसीले, चमकदार, गोल, लंबे, लाल, पीले, छोटे एवं बड़े आकर के रूप में मिलते हें। ये सूखे हुए मेवे के रूप में काम आते हैं तो पकने पर स्वादिष्ट फल के रूप में गरीब जन अधिक खाते हैं।
  आज देश में बागवानी सिरे चढऩे से इस फल की खेती दक्षिण हरियाणा के किसान सिट्रस जाति के पौधे के रूप
उगाने में अपार सफलता हासिल कर चुके हैं वहीं बेरी एक अहं पौधा उभरकर आया है।
   दक्षिणी हरियाणा की भूमि रेतीली होने के साथ-साथ लवणीय गुण होने के कारण दो या तीन फसलें तो अच्छी प्रकार पैदावार देती हैं फिर वो पैदावार देना ही बंद कर देती हें। इस भूमि पर बेर की कृषि बहुत अच्छी हो रही है और किसानों का रुझान बेर की खेती करने की ओर बढऩे लगा है।
   बागवानी विभाग बेरी के पौधे उगाने की किसानों को सलाह देता आ रहा है। वैसे भी भूमि बेर की काश्त के लिए लिए बेहतर होने के कारण बेरी उगाकर उनसे लाभ उठाने पर बल दे रहा है। किसान खेत में फसल भी ले सकते हैं और बेरी से बेर के फल भी ले सकते हैं। एक ओर जहां बेर की मांग बढ़ती ही जा रही है वहीं बच्चे एवं बूढ़े भी बेर को चाव से खाते हैं। दक्षिण हरियाणा के किसान दो प्रकार की बेरी उगा रहे हैं। एक बेरी तो देसी नाम से जानी जाती है जिसके बेर अधिक लाल होने के साथ-साथ गोल होते हैं। जिनका स्वाद अधिक मधुर होता है और देखने में भी मन भावन होते हैं। देसी बेरी भी दो किस्मों की होती है। एक तो आकार में छोटी होने के कारण अक्सर 'झाड़ में शामिल की गई है वहीं दूसरी बड़े आकार की होती है। दोनों पर ही गोल एवं मधुर फल लगते हें जो रुचिकर होते हैं। ये दोनों ही बेरी दक्षिण हरियाणा के खेतों में भारी मात्रा में अपने आप ही पैदा हो जाती हैं। यद्यपि किसानों को फसल के साथ बेरी न होने की कृषि वैज्ञानिक सलाह देते हें फिर भी किसान खेत में इन बेरी के पौधों से बेर व फसल साथ प्राप्त करते हैं।

  इस क्षेत्र में एक ओर बेरी बहुत लोकप्रिय होती जा रही है जिसे ' बागों की बेरी नाम से जाना जाता है। यह बेरी कम कांटों वाली तथा धरती की ओर झुकने वाली होती हैं। इस बेरी के फल हरे व पीले रंग के होते हैं और आकार लंबा एवं वजन अधिक होने के कारण किसान इसे अधिक पसंद करते हैं। ये बेर बाजार में भी अधिक लोकप्रिय होते हैं। यूं तो कहा जाता है कि जो गरीब लोग सेब जैसे महंगे फल का उपभोग नहीं कर पाते हैं उनके लिए बेर ही सेब का काम करते हैं। जी-भरकर गरीब लोग इन बेरों का लुत्फ उठाते हैं। यही कारण है कि बेर को गरीबों का सेब नाम से भी जाना जाता है।
   एक वक्त था जब केवल किसान अपने खेतों में पुराने तरीके से केवल फसल पैदावार ही लेता था और किसान की हालात माली होती थी किंतु अब तो किसान भी कृषि के आधुनिक उपकरणों व कृषि भी वैज्ञानिक ढंग से करने लगा है। आज का किसान अपनी आय और व्यय का पूरा हिसाब रखने लगा है। यही कारण है कि बागवानी की ओर भी उसका रुझान बढ़ता ही जा रहा है।
  बागवानी विभाग के वैज्ञानिक कहते हें कि दक्षिण हरियाणा में भूमि बेरी पौधे के लिए अति अनुकूल है। ऐसे में किसान बेरी की कृषि करने में लगे हैं। हालात यह है कि एक नकदी फसल के रूप में बेर को किसान बाजार में बेचने के लिए जाते हें और आय प्राप्त करने लगे हैं। बेर की मांग जहां ताजा फलों के रूप में होती है वहीं इन्हें सूखाकर भी प्रयोग किया जाता है। बेर की सबसे बड़ी
विशेषता है कि यह कई-कई दिनों तक खराब नहीं होता है वहीं इसे आवश्यकता पडऩे पर सूखाकर रखा जाता है। सूखाकर भी किसान इसे 'छुआरा के रूप में बेचता है। सूखे बेर मेवे का काम भी करते हैं।
   खट्टे मीठे एवं विभिन्न रंगों के गुणों से भरपूर और गरीबों के सेब बेर की कद्र बढऩे लगी है। एक ओर गरीब जन सेब के रूप में इसका उपभोग करते हैं वहीं इसके सूखे रूप को मेवे के रूप में प्रयोग करते हें। बाजार में ही नहीं अपितु गलियों में भी इनकी मांग बढ़ी है। कृषि वैज्ञानिक कहते हैं कि बेर के पौधे तैयार होने और फल देने में तीन-चार वर्ष लगा देते हें और इस दौरान वे अपने खेत में बेरी के पौधों के बीच फसलें उगाकर आम के आम गुठली के दाम प्राप्त कर सकते हैं।
    दक्षिण हरियाणा के किसानों के लिए बेरी एक वरदान बनकर आ गयी है। अब किसान चाहे तो बेरी के बाग लगाकर बेरों को बाजार में उतार सकते हैं। कुछ किसानों ने बेरी को ही अपने खेत में लगाकर उससे लाभ उठाना शुरू कर दिया है। आने वाले समय में किसानों का और भी रुझान बढऩे व बेरी की बागवानी करने की आशा जागृत हुई है। 

उपयोग- बेर किसानों के लिए अतिरिक्त आय का स्रोत बनता जा रहा है। ये बेर नामक फल किसान परिवार अपनी सेहत बनाने के लिए तो उपभोग कर ही रहा है वहीं बाजार में बेचकर आय कमा रहा है। सबसे बड़ी विशेषता है कि ये फल बिना किसी अधिक मेहनत के खेतों में पैदा होते हैं। रबी फसल के साथ-साथ भी स्वयं पैदा हो जाते हैं। बड़े पेड़ों के भी लगते हैं तो झाडिय़ों के भी लगते हैं। झाड़ी के लगने के कारण इन्हें झाड़ीवाले बेर नाम से भी जाना जाता है जो छोटे एवं गहरे लाल रंग के होते हैं। ये हरियाणा में कम होते जा रहे हैं। ये स्वाद में अति मधुर होते हैं। बड़े बेर जिन्हें बागों वाले बेर कहते हैं कम मीठे होते हैं। सर्दी के मौसम में इन बेरों को चाव से बच्चे हो या बूढ़े चाव से खाते हैं। इन बेरों को जहां स्वाद के लिए खाया जाता है वहीं इनका अचार भी बनाया जाता है। इन फलों में विटामिन ए, सी, थयमिन, राइबोफ्लेविन, नियासीन, बीटा कैरोटिन पाया जाता है वहीं फास्फोरस, कैल्शियम, सिट्रिक एसिड, एसकार्बिक एसिड आदि मिलता है। जो गरीब महंगे सेबों का सेवन नहीं कर पाते हैं उनके लिए सेब लाभकारी हैं। ये सभी विटामिन शरीर के लिए अत: महत्वपूर्ण होते हें वहीं खनिज लवण भी अति लाभकारी होते हैं जो विभिन्न रोगों से बचाते हैं।
दवाएं एवं औषधियां-बेर फल ही नहीं अपितु बेर नामक पौधे के पत्ते, जड़, टहनी, फूल एवं बीज विभिन्न दवाएं एवं औषधियां बनाने के काम आते हैं। इनका उपयोग विभिन्न रोगों के उपचार में भी काम में लिया जाता है। वनस्पतिशास्त्री एचएस यादव का कहना है कि बेरी के फल कटे हुए शरीर के भागों पर लगाकर तथा फोड़े फुंसी के काम में आते हैं। बीज जी मचलाने, वमन, कीड़े आदि के इलाज में काम आते हैं वहीं डायरिया के काम में भी लाया जाता है। बेरी का छाल विभिन्न त्वचा के रोगों के इलाज में काम आता है वहीं दस्त एवं बुखार में भी काम आता हे। इस पौधे के फूल जहां परागण क्रिया को तेज करने में अहं भूमिका निभाते हैं वहीं पीलिया रोग के इलाज में भी काम में लाए जाते हैं। बीज का रस कई दवाओं में काम में लाया जाता है। इस पौधे के पत्ते पशुओं के काम आते हैं। बकरी जैसे जानवर इसके पत्तों को चाव से खाती हैं। पत्तों को किसान सूखाकर सूखा चारा बनाने के काम में लेते हैं वहीं हरे पत्ते भी हरा चारा बनाने के काम आता है जिसमें खनिज लवण एवं फाइबर अधिक मिलता है। बेरी का पौधा खेत की सुरक्षा के लिए काम आता है वहीं झोपड़ी बनाने के काम में लाया जाता है। सचमुच बेरी हरियाणा का सेब बनकर उभर रहा है। पूरे देश में ही बेर को चाव से खाया जाता है।
 कच्चे फल दिसंबर माह में बेरी के पौधे पर लगते हैं जो हरे रंग के होते हैं जिनमें मिठास अल्प होता है किंतु पक जाने के बाद ये पीले, लाल तथा विभिन्न रंगों के बन जाते हैं। बेर दांतों एवं मसूढ़ों की बेहतर एक्सरसाइज होती है। बेर प्रतिदिन खूब धीरे धीरे खाया जाए तो मसूढे स्वस्थ होंगे वहीं दांत भी मजबूत बन जाएंगे।















   ये गोल तथा लंबे, छोटे तथा बड़े आकार में मिलते हैं। छोटे फल झाड़ीवाले/झड़ बेर कहते हैं जो कभी कभी बहुत छोटे आकार के होते। ये झाड़ी पर लगते हैं किंतु ये मधुर बहुत होते हैं। गोल तथा मध्यम आकार के बेर अक्सर ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में खाए जाते हैं। ये भी कई रंगों के तथा मधुरता अलग अलग पाई जाती है। बागों वाले बेर विशेष प्रकार के, बड़े आकार के होते हैं जिनका रंग अक्सर हरा ही रहता है किंतु इनमें मिठास कम होता है।
 बेर गरीबों के सेब नाम से जाने जाते हैं। दक्षिण हरियाणा, राजस्थान जैसे क्षेत्रों में जहां पानी की कमी है होती है सूखा एरिया होता है वहां पर पर्याप्त मात्रा में मिलते हैं। जहां बेरी के बड़े-बड़े कांटे पाए जाते हैं वहीं यह बेर दूर से मन को लुभाते हैं। जब पककर पीले या लाल हो जाते हैं तो बड़े चाव से इन्हें खाते हैं।
कुछ गरीब जन बेरों को बाजारों में बेचते हैं तथा इन्हीं से अपनी रोटी रोजी कमाते हैं किंतु जब ये बेर सूखकर पेड़ से गिर जाते हैं तो इनको छुहारा नाम से जाना जाता है।
गर्मियों के समय में बेरी के पौधे शुष्क अवस्था में नजर आते हैं। इस वक्त पत्तियां झड़ जाती है किंतु शीत ऋतु में फलों से लद जाते हैं। जनवरी से मार्च महीने तक भारी मात्रा में फल लगते हैं। जहां यह बेरी के फल
अधिक ठंड को नहीं सहन कर सकते। अक्सर ये बलुआ मिट्टी में जिसमें जीवांश खाद पाया जाता हैं अधिक उगते हैं। देसी खाद इनके लिए ज्यादा बेहतर होता है।
 बेर की 300 से अधिक किस्में तैयार की जा चुकी है तथा कम वर्षा वाले क्षेत्रों में पर्याप्त मात्रा में मिलता हैं। बेर की अक्सर झाड़ी होती है वही बेर के बड़े पेड़ भी बन जाते हैं। बेर के भारी मात्रा में फूल लगते हैं जो पीले या सफेद रंग के होते हैं।
बेर पकने पर खाए जाते हैं वही अचार और जैम जैसे पदार्थों में भी डाले जाते हैं। इनमें पर्याप्त मात्रा में विटामिन-सी पाई जाती है।
 भारत में पके हुए फल बिना भूने व तले वाले ही खाए जाते हैं। इनके फलों को जहां सुखाकर कैंडी बनाकर,अचार, जूस आदि बनाकर भी प्रयोग में लाया जाता है। बेरी के पत्ते जहां पशुओं के चारे की विशेषकर बकरी और भेड़ के चारे के लिए काम में लाए जाते हैं। इनके फूलों पर मधुमक्खियों बहुत अधिक मात्रा में पाई जाती जो अपना शहद इकट्ठा करती है।
 बेरी की लकड़ी कठोर तथा अंदर से लाल रंग की होती है जो बहु उपयोगी होती है। जलाने के भी यह काम में लाई जाती है। इनके फल फोड़ा फुंसी या फिर शरीर में लगे कट घाव पर भी काम में लाए जाते हैं। यहां तक कि
बुखार के समय भी ये लाभप्रद होत हैं। बदहजमी के समय नमक, काली मिर्च आदि मिलाकर खिलाया जाता है।
इसकी जड़ों से जहां घाव भरने के लिए छिड़का जाता है।
इनकी जड़ों के छिलके से निकाला गया जूस अर्थराइटिस के काम आता है। यहां तक कि इसके छिलके का सांद्र जूस जहरीला होता है के फूलों से जहां मधुमक्खियां शहद बनाती हैं। सूखे से बचाने के लिए इस पौधे का उपयोग किया जाता है।
बेर एक मौसमी फल है जिसमें उर्जा बहुत कम पाई जाती है तथा विटामिन और खनिज लवण पाए जाते हैं। इसमें पोषक तत्व, एंटीऑक्सीडेंट भी पाया जाता है। रसीले बेर जहां कैंसर की कोशिकाओं को रोकने में मददगार साबित होते हैं वही वही वजन कम करने के लिए बेर अच्छा खाद्य पदार्थ है। बेर में पर्याप्त
विटामिन सी और पोटैशियम तत्व पाया जाता है जो प्रतिरक्षा तंत्र को बढ़ावा देता है। कब्ज की समस्या को
बेर से दूर किया जा सकता है। इसमें कैल्शियम फास्फोरस मिलता जो हड्डियों और दांतों के लिए बहुत कारगर होता है। बेर में जहां कैंसर से लडऩे की क्षमता पाई जाती है।
बेरी के फल जहां मधुमेह रोग में भी को रोकने में भी कारगर होते हैं वही तनाव को रोकते हैं। उच्च रक्तचाप में, कैंसर में भी लाभप्रद है वही दमा बुखार, जलन, तनाव, उच्च रक्तचाप आदि में भी बहुत कारगर बताए गए हैं।
बेरी के फल घाव को भरने, सूखी त्वचा का उपचार,  बुढ़ापे आदि को रोकने के काम में लाया जाता है वही लिवर को स्वस्थ रखते हैं। भूख को बढ़ाते हैं। इसके
अतिरिक्त कई लाभकारी प्रभाव शरीर में देखे जा सकते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में बच्चे इसे बेहद चाव से खाते हैं।
**होशियार सिंह, लेखक,कनीना,महेंद्रगढ, हरियाणा**

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