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Friday, November 29, 2019

आंवला
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फिलांथस एंब्लिका  
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आंवला अमृतमय फल देने वाला एक पेड़ है जिसे फिलांथस एंब्लिका कहते हैं। इसे भारतीय गुजबेरी नाम से भी जाना जाता है। अमृतफल अमलकी आदि नामों से भी से पुकारते हैं। इसका वैज्ञानिक नाम एमबीए ऑफिसिनालिस है। आयुर्वेद में इसे सर्वोत्कृष्ट औषधि माना गया है। आमला स्मरण शक्ति बढ़ाने, कांति, तेज, बल दायक औषधि है।  
   जहां इसके पत्ते भी मुंह के छाले आदि के रोग दूर करने के काम आते हैं वही सूखे फलों से आंखें धोई जाती है। सूखे फल खूनी अतिसार, बवासीर आदि रोगों में काम आता है। यह खांसी, श्वास रोग में काम आता है। बड़े पैमाने पर इसकी खेती की जाती है। आंवला सांस रोगों में उपयोगी रक्त,पितनाशी, छाती के रोग, हृदय रोग, मूत्र विकारों में काम आता है शरीर के लिए विशेष लाभकारी है। दांतों की खराबी दूर करने, रक्त विकार, चर्म रोग, पाचन शक्ति में खराबी को दूर करने, नेत्र ज्योति बढ़ाने, सिर दर्द होने, चक्कर नकसीर, रक्ताल्पता, बेवक्त बुढ़ापा आना, यकृत की कमजोरी, हृदय और फेफड़े संबंधी विकार, सांस रोग पेट के रोग तथा कई अन्य औषधियों में काम आता है। आंवला सचमुच एक वरदान फल है। आंवले का नियमित सेवन करना कई रोगों से बचाता है।
** होशियार सिंह पत्रकार लेखक कनीना हरियाणा**


Wednesday, November 27, 2019

 मिर्च 

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कैप्सिकम एनम 

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लाल मिर्च, हरी मिर्च, मोरची, लंका, लाल मारचा, मीरापकाया

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मिर्च को कैप्सिकम एनम नाम से जाना जाता है। एनम का अर्थ होता है वार्षिक अर्थात मिर्च का पौधा प्राय एक साल तक जीवित रहता है किंतु सर्दी से बच जाए तो यह कई वर्षों तक जीवित रह सकती है। मिर्च हरी,काली,लाल, पीली कई रंगों के कारण होता  है। वास्तव में कैरोटीन पदार्थ के रंग बदल लेने से मिर्च का रंग लाल,पीला,हरा आदि मिलता है। मिर्च प्राय शिमला, लंबी मिर्च, ठिगनी, मोटी मिर्च आदि कई प्रकार की होती हैं। शिमला मिर्च खाने से वजन घटता है वही गठिया, कैंसर रोग समाप्त हो जाता है। यह आयरन की कमी को दूर करने, डायबिटीज कंट्रोल करने के काम आती है।
मिर्च का जन्म स्थान दक्षिणी अमेरिका है जहां से यह सभी सभी जगह फैली। मिर्च में विटामिन बी, बी-6, प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट आदि मिलते हैं। इसमें स्वास्थ्यवर्धक पदार्थ भी पाए जाते



हैं। शिमला मिर्च खाने से जार रक्तचाप नियंत्रित रहता है वहीं एंटीबैक्टीरियल गुण भी पाया जाता है। मिर्च कैंसर से लडऩे की क्षमता रखती है वहीं रोगों से बचाती है। मिर्च खाने से फेफड़े का कैंसर खतरा घट जाता है, हमारे मूड को सुधार देती है हरी मिर्च बीमारियों से लडऩे की क्षमता रखती है वहीं पाचन तंत्र को मजबूत कर और आंखों की रोशनी अच्छी बनाती है, अर्थराइटिस के मरीजों के लिए भी लाभप्रद है। ऐसे में हरी मिर्च जरूर खानी चाहिए।

     मिर्च बिना जीवन अधूरा सा लगता है। एक जमाना था जब मिर्च कम प्रयोग करते थे फिर मिर्च की मात्रा खाने में बढ़ती ही चली गई। अब तो मिर्च को सीधे ही खाने की लालसा बढ़ती ही जा रही है। मिर्च का मूल स्थान मैक्सिको है। माना जाता है कि नाविक कोलंबस यूरोपीय धरती पर कदम रखा तो मिर्च यूरोप चली गई।
यूं तो मिर्च चूहों का जहर बनाने, चोर डकैत आंखों में मिर्च डालने में तथा कई अन्य रूपें में करते हैं वहीं मिर्च से कितने ही खाद्य पदार्थ तैयार किए जाते हैं। भूत झोलकिया मिर्च को पूरी दुनिया में सबसे तीखी और तेज मिर्च के रूप में वर्ष 2007 में गिनीज बुक ऑफ रिकाडर्स में भी दर्ज किया गया है। यह मिर्च अन्य मिर्च के मुकाबले 400 गुना ज्यादा तीखी होता है जो असम, नागालैंड और मणिपुर में पैदा की जाती है। 

  यह मिर्च देश के सुरक्षा बल उपद्रवियों के खिलाफ भी इस्तेमाल करते हैं। इस मिर्च के इस्तेमाल से आंसू गैस के गोले बनाए जाते हैं। इससे आंखों में तेज जलन होती है और दम घुटने लगता है किंतु शारीरिक नुकसान नहीं होता है।
   मिर्च में विटामिन-ए, बी-6, सी, लोहा, तांबा, पोटैशियम, प्रोटीन और कार्बोहाइड्रेट आदि प्रचुर मात्रा में मिलते है। इसमें स्वास्थ्यवर्धक पदार्थ भी पाए जाते हैं। रक्तचाप को नियंत्रित करने,मधुमेह होने की स्थिति में रक्तचाप का स्तर नियंत्रित रखने के काम आती है। एंटी बैक्टीरियल गुण पाया जाता है वहीं यह त्वचा के लिए जलनविरोधी गुण पाया जाता है। विटामिन-सी के कारण रोगों के लडऩे की क्षमता,  बंद नाक का खुल जाती हैवहींकैंसर से लडऩे और शरीर को सुरक्षित रखने, एंटी ऑक्सीडेंटस के कारण फेफड़ों के कैंसर का खतरा भी कम होता है

 धूम्रपान का सेवन करने वालों को हरी मिर्च को अपने भोजन में ज्यादा खानी चाहिए।हरी मिर्च में कैलोरी बिल्कुल भी नहीं होती। विटामिन-ई के कारण त्वचा के लिए, हरी मिर्च खाने से





प्रोस्टेट की समस्या का अंत होता है,दिल के लिए लाभकारी होती है। मिर्च भोजन का पाचन जल्दी करती है। चोट, घाव में दांतों और आंखों के लिए भी फायदेमंद होता है। शरीर के अंगों में होने वाले दर्द को भी कम करती है। मिर्च में अमीनो एसिड, एस्कार्बिक एसिड, फोलिक एसिड, सिट्रिक एसिड, मैलिक एसिड, मैलोनिक एसिड भी पाए जाते हैं।  

**होशियार सिंह, लेखक,कनीना,महेंद्रगढ़, हरियाणा**

Tuesday, November 26, 2019

गोखरू 

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गोक्षुर

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गोखरू 

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गोक्षुर

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 पेडालियम मुरेक्स 

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गोखरू एक शाक के रूप में असिंचित भूमि पर पर्याप्त मात्रा में मिलता है। यह दो रूपों में पाया जाता है बड़ा गोखरू तथा छोटा गोखरू। छोटा गोखरू गांवो में भाखरी, भाखड़ी नामों से जाना जाता है। यह पशुओं विशेषक ऊंट को खिलाने के काम आता है किंतु जब पक जाता है तो फल पर कांटे आ जाते है।
 वहीं बड़ा गोखरू अति उपयोगी माना जाता है किंतु छोटा गोखरू भी किसी प्रकार से बड़े गोखरू से कम नहीं है। गोखरू का वैज्ञानिक रूट्रायबलर ट्रिब्यूलस टेरेस्ट्रिस नाम से जाना जाता है। गोक्षुर नाम से भी जाना जाता है। यह धरा पर फैलता है तथा पीले रंग के फूल आते हैं।  इसके फल कांटे युक्त होते हैं। यदि इसके फलों को देखा जाए तो चने से कुछ बड़े होते हैं। गोखरू का स्वभाव शीतल, मधुर, वात नाशक माना जाता है। कहीं-कहीं तो इसको गरीब लोग भी पीसकर आटे के रूप में खाते हैं।
 यह बहुत उपयोगी पदार्थ है। यह वीर्य वर्धक तथा विभिन्न प्रकार के रोगों में लाभकारी है। नपुंसकता को दूर करता है। प्रमेह विकार, गुर्दे के विकार, असमारी, सुजाक, मूत्र विकार संबंधी बीमारियों में भी काम आता है। आयुर्वेद में दशमूल नामक औषधियों में यह भी एक प्रमुख रूप से डाला जाता है। गोखरू अर्थात गुडख़ुल जंगलों में पाई जाने वाली वनस्पति है। यह शारीरिक कमजोरी, इनफर्टिलिटी, एग्जिमा, यौन समस्याएं ठीक करने, सीने में दर्द कम करने आदि के अतिरिक्त कई शारीरिक बीमारियों में काम आता है। प्राय यह जीवाणु रोधी, एंटीऑक्सीडेंट एंटी इन्फ्लेमेटरी पदार्थ होता है।
  यह कब्ज, उच्च रक्तचाप, उच्च कॉल स्ट्रोल बांझपन, पाचन मुद्दे, एनीमिया, कैंसर, खांसी आदि में भी इसका उपयोग होता है जिसके प्राय ग्रामीण क्षेत्रों में लड्डू बनाए जाते दिन गोखरू के लड्डू कहते हैं। जो अति पौष्टिक माने जाते हैं। जिन युवा वर्ग में शारीरिक कमजोरी होती है उन्हें भी ये प्राय खिलाए जाते हैं।




               गोखरू
           (पेडालियम मुरेक्स)
कई देशों में पाया जाए
                        गहरे रंग का एक शाक
दवाओं में बहु उपयोगी
                       आयुर्वेद में जमाता धाक,
पत्ते पकाकर सब्जी बने
                      अच्छी सब्जी का है स्रोत
गुर्दे की पत्थरी दूर करता
                       कमजोरी में जलाता जोत,
वियाग्रा का काम करता है
                      पेट की अल्सर करता दूर
भूख को बढ़ाता है झटपट
                       खांसी को कर देता है चूर,
मूत्र के रोगों को हटा देता
                      त्वचा के विकार करता दूर
दमा, डायरिया, ल्युकोरिया
                      हृदय रोग कर दे चकनाचूर,
शरीर दर्द में होता उपयोगी
                      खून को करता है यह साफ
माहवारी को बढ़ाता है यह
                     कोढ़ शरीर का कर दे साफ,
शरीर दर्द में बड़ा उपयोगी
                      पत्ते भी बहु उपयोगी होते
शरीर की गर्मी को दूर करे
                    गर्मी से जब जन खूब रोते,
बवासीर को दूर भगाता है
                  पत्तों में है पोटाशियम,जस्त
फल में बेरियम पाया जाता
                 खाए जन तो हो जाए मस्त,
जंगलों में खड़ा मिलता यह
                भाखड़ी से गुण मिलते खूब
पत्ते पानी में लार छोड़ते हैं
                बनाकर पी लो इसका सूप।
         


**होशियार सिंह, लेखक, कनीना, हरियाणा, भारत**

 
** होशियार सिंह लेखक, कनीना, महेंद्रगढ़ हरियाणा***

Monday, November 25, 2019

 प्याज
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एलियम सेपा

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प्याज  ऐसी सब्जी है जिसका कंद प्रयोग किया जाता है। साल में दो बार उगाई जाती है। प्याज बहुत पुराने समय से उगाई जा रही है। पूरे संसार के करीब 150 देश इसको प्रयोग करते हैं। इसे वैज्ञानिक भाषा में एलियम सेपा नाम से जाना जाता है। 1998 में भारत में सरकार गिराने में भी इसका अहम रोल था। प्याज के अंदर पत्ते भोजन इकट्ठा करते और फूल जाते हैं इसलिए प्याज का जो भाग खाया जाता है वे पत्ते होते हैं। प्याज एक शल्ककंद हैं। इसका स्वाद तीखा होता है। 

  प्याज में उसको कच्चा, सब्जी में तथा विभिन्न रूपों में प्रयोग किया जाता है। प्याज कंद में विटामिन-सी, कैल्शियम, लोहा पाया जाता है। यह बलवर्धक, कामोत्तेजक, तेज, तीखा स्वाद, स्वादवर्धक के अतिरिक्त महिलाओं में रक्तवर्धक, भूख बढ़ाने वाला, कंद होता है। यह पित्त रोग ,शरीर दर्द, बवासीर, फोड़ा फुंसी में, मलेरिया जैसे अनेक रोगों के इलाज में काम आता है। अनिद्रा निवारक, चक्कर आने में भी उपयोगी, कीड़ा काटने के बाद जलन शांत करने में जैसे मधुमक्खी, भीड़ ततैया काटने पर जलन को शांत करने में प्याज का रस काम आता है। प्याज के पत्ते प्रयोग में लाए जाते हैं। प्याज अनेकों रोगों के इलाज में काम आती है। प्याज लाल, सफेद, पीली तथा कई अन्य रंगों में मिलती है।  

प्याज,खाज और ब्याज की जिसको लत पड़ गई है वह इनके बगैर नहीं रह सकता। प्याज कुछ लोग इसलिए नहीं प्रयोग करते कि यह बदबू प्रदान करती है। लेकिन सलाद का राजा भी प्याज ही है।प्याज का हर भाग काम आता है।

**होशियार सिंह, लेखक,कनीना,महेंद्रगढ़, हरियाणा**

Sunday, November 24, 2019

कचरी 

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कुकुमिस प्यूबिसेंस

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कचरी एक जंगली बेल होती है जिसके पत्ते कड़वे होते हैं वहीं पीले फूल लगते हैं। प्रारंभ में फल का स्वाद कड़वा होता हैं किंतु बाद में मधुर हो जाता है। इसे इंद्रायण, मृगाक्षी, काचरी आदि नामों से लोग पुकारते हैं। इसका वैज्ञानिक नाम कुकुमिस प्यूबिसेंस हैं। यह बिगड़े हुए जुकाम, पित्त,कफ, कब्ज,  प्रमेह आदि रोगों में लाभकारी है। पेट के रोगों के लिए इसका नाम सर्वोपरि है। लोगों कई प्रकार की पेट की बीमारियां पाई जाती है जिनको ठीक करने के लिए कचरी का प्रयोग किया जाता है। वास्तव में यह खरीफ फसल के साथ अर्थात ग्वार, बाजरा, कपास में भारी मात्रा मिलती है।
पकने पर फल में भीनी भीनी खुशबू आती है। आयुर्वेद में इसका वर्णन मिलता है। उसे सब्जी में, कच्चा, और सुखाकर प्रयोग किया जाता है। कभी इसकी खेती नहीं की जाती थी लेकिन अब इसकी खेती भी करने लग गए हैं। ग्रामीण क्षेत्र में पथरी को कचरी की जड़ से दूर करने के बारे में लोग परिचित थे। कचरी धारीदार, सफेद,पीली, लाल आदि कई प्रकार की पाई जाती है। भूख बढ़ाने में, काम उद्दीपन, बवासीर, लकवा आदि में भी यह काम आती है। दिल एवं दिमाग को ताकत देती है।

जिन व्यक्तियों पेशाब खुलकर नहीं आता, गैस से संबंधित बीमारी में काम आती है। कई प्रकार की बीमारियों के इलाज में कचरी का प्रयोग होता है।
कतरी को कुछ लोग खाते नहीं तथा इसकी खुशबू से दूर भागते हैं। ग्रामीण क्षेत्र में कचरी को जमकर उपयोग किया जाता है।

***होशियार सिंह लेखक, कनीना, महेंद्रगढ़, हरियाणा**

Saturday, November 23, 2019

Bathua

Kanina 18 Feet Bathua
बथुआ        
बथुआ एक शाक है जिसमें विटामिन ए की अत्यधिक मात्रा पाई जाती है। बथुआ एक रबी फसल के साथ उगने वाला शाक है जिसे   चिनोपोडियम एल्बम नाम से जाना जाता है। यह देखने में एक छोटा हरा पौधा दिखता है किंतु अति लाभकारी और बीमारियों को दूर करता है। इसे चील भी का कहते हैं। बथुआ साग एवं सब्जी दोनों रूपों में प्रयोग किया जाता है। इसकी पत्तियों में सुगंधित तेल, पोटाश तथा उपयोगी पदार्थ पाए जाते जो वात, पित्त और कफ रोगों को शांत करते हैं। पेट के कीड़ों का नाश करता है। आंखों की रोशनी बढ़ाता है। पाचन शक्ति लाभकारी है। भोजन में रूचि बढ़ाने वाला, कब्ज मिटाने वाला यह हरे रंग का होता है किंतु लाल रंग का भी मिलता है। पेशाब की तकलीफ है अथवा कम आता है तो है यह लाभकारी है। गुर्दे संबंधित बीमारियों में लाभकारी है। पीलिया नामक रोग खत्म कर देता है। बुखार के बाद कमजोरी में इसका साग खाना लाभप्रद माना जाता है। ग्रामीण क्षेत्रों में खेतों में पर्याप्त मात्रा में इस समय उपलब्ध है। इसे अब तो सब्जी की दुकानों पर भी देखा जा सकता है।
यह एक खरपतवार है। कनीना जिला महेंद्रगढ़, हरियाणा में लेखिका आशा यादव के घर में विगत चार वर्षों से हर वर्ष 18 से 20 फुट का बथुआ मिलता है जो लोगों को चकित कर देता है।
***होशियार सिंह, लेखक,कनीना,हरियाणा**