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Wednesday, January 29, 2020

 शतावरी
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सतावर
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शतावरी/औषधियों की रानी
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शतावर एकबीजपत्री हराभरा एक पौधा होता है जिसका वानस्पतिक नाम एस्पैरागस रेसीमोसस है।
इसमें प्रोटीन, थयमिन, राइबोफ्लेविन, नायसिन,  पैंटोथैनिक अम्ल,  विटामिन,  फोलेट, कैल्शियम, लोहतत्व, मैगनीशियम, फास्फोरस,
पोटैशियम, जस्ता,मैंगनीज आदि खनिज पाए जाते हैं।
सतावर अथवा शतावर एक लिलिएसी कुल का  औषधीय गुणों वाला पादप है। इसे शतावर, शतावरी, सतावरी,सरनाई, सतमूल और सतमूली के नाम से भी जाना जाता है। यह भारत के साथ साथ दूसरे देशों में भी उगाई जाती है।। इसका पौधा अनेक शाखाओं से युक्त कांटेदार लता के रूप में मिलता। इसकी जड़ें गुच्छों के रूप में होतीं हैं। सर्दियों में यह पौधा सूख जाता है किंतु इस पर फूल एवं फल लगते हैं। फल बेरी के रूप में पाए जाते हैं। शतावर की लंबी बेल होती है जो हर तरह के जंगलों और मैदानी इलाकों में पाई जाती है। आयुर्वेद में इसे औषधियों की रानी माना जाता है। इसकी जड़ एक कंद के रूप में पाई जाती हैं। इसमें जो महत्वपूर्ण रासायनिक घटक पाए जाते हैं।

 सतावर का इस्तेमाल दर्द कम करने, महिलाओं में स्तनों में दूध की मात्रा बढ़ाने, मूत्र विसर्जन के समय होने वाली जलन को कम करने और कामोत्तेजक के रूप में किया जाता है। इसकी जड़ तंत्रिका प्रणाली और पाचन तंत्र की बीमारियों के इलाज, कैंसर, गले के संक्रमण, ब्रोंकाइटिस और कमजोरी में फायदेमंद होती है। यह पौधा कम भूख लगने व अनिद्रा की बीमारी में भी फायदेमंद है। अतिसक्रिय बच्चों और ऐसे लोगों को जिनका वजन कम है, उन्हें भी शतावर से फायदा होता है। इसे महिलाओं के लिए एक बढिय़ा टॉनिक माना जाता है। इसका इस्तेमाल कामोत्तेजना की कमी और पुरुषों व महिलाओं में बांझपन को दूर करने और रजोनिवृत्ति के लक्षणों के इलाज में भी होता है।
इसका उपयोग सिद्धा तथा होम्योपैथिक दवाइयों में होता है। इसका मूल यूरोप एवं पश्चिमी एशिया माना जाता है। इसकी खेती हजारों वर्ष से भी पहले से की जाती रही है। भारत के ठण्डे प्रदेशों में इसकी खेती की जाती है। इसकी जड़ों में कंद पाए जाते हैं मधुर तथा रसयुक्त होते हैं। यह पादप बहु-वर्षीय होता है। इसकी जो शाखाएं निकलतीं हैं वे बाद में पत्तियों का रूप धारण कर लेतीं हैं।

इसका उपयोग स्त्री रोगों जैसे प्रसव के उपरान्त दूध का न आना, बांझपन, गर्भपात आदि में किया जाता है। यह जोड़ों के दर्द एवं मिर्गी में भी लाभप्रद होता है। इसका उपयोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए भी किया जाता है।  इसका औषधीय महत्व भी है अत: अब इसका व्यावसायिक उत्पादन भी है। इसकी झाड़ी की पत्तियां पतली और सुई के समान होती है। इसका फल मटर के दाने की तरह गोल तथा पकने पर लाल होता है।
शतावर के पौधे को विकसित होने एवं कंद के पूर्ण आकार प्राप्त करने में 30 से 36 माह का समय लगता है। इसको पानी की अधिक आवश्यकता नहीं होती है। चूंकि यह एक कंदयुक्त पौधा है अत: दोमट रेतीली मिट्टी में इसे आसानी से खोदकर बिना क्षति पहुंचाए इसके कंद प्राप्त किए जा सकते हैं। काली मिट्टी में जल धारण क्षमता अधिक होने के कारण कंद खराब होने की संभावना बढ़ जाती है।
भारत के मध्यप्रदेश के कुछ भागों में उपजने वाला यह औषधीय गुणों से भरपूर शतावर प्रचुर मात्रा में मिलता है। वहां के ग्रामीण अंचलों में शतावर को नारबोझ के नाम से भी जाना जाता है।

  शतावरी की जड़ का उपयोग मुख्य रूप से ग्लैक्टागोज के लिए किया जाता है जो स्तन दुग्ध के स्राव को उत्तेजित करता है। इसका उपयोग शरीर से कम होते वजन में सुधारने के लिए के लिए,कामोत्तेजक के रूप में भी जाना जाता है। इसकी जड़ का उपयोग दस्त, क्षय रोग तथा मधुमेह के उपचार में भी किया जाता है। सामान्य तौर पर इसे स्वस्थ रहने तथा रोगों के प्रतिरक्षण के लिए उपयोग में लाया जाता है। इसे कमजोर शरीर प्रणाली में एक बेहतर शक्ति प्रदान करने वाला होता है।
यह फसल विभिन्न कृषि मौसम स्थितियों के तहत उग सकती है। यह सूखे के साथ-साथ न्यूनतम तापमान के प्रति भी वहनीय है।
इसे जड़ चूषक या बीजों द्वारा उगाया जा सकता जाता है। व्यावसायिक खेती के लिए बीज की तुलना में जड़ चूषकों को वरीयता दी जाती है।

शतावरी की रोपाई के करीब एक वर्ष बाद जड़ परिपक्व होने लगती है। जड़ को निकालकर सुखाया जाता है। जिसकी जड़ों में आयुर्वेद में अमृत कहा जाता है। शतावरी पुरुष और महिला में जा काम आती हुई। पशुओं के रोगों के लिए बहुत लाभप्रद है। स्वाद कड़वा है लेकिन कई बीमारियों में को दूर करती हैं। इसे जादुई औषधि नाम से भी पुकारा जाता है। शरीर को रोग मुक्त बनाने में इसका महत्वपूर्ण योगदान है।
यह विटामिनों की खान है। इसमें वे विटामिन पाए जाते हैं जो अन्य फल तथा सब्जियों में नहीं मिलते जिनमें विटामिन बी-1, विटामिन-ई तथा फोलिक एसिड का भी बेहतरीन स्त्रोत है। इसमें एंटीआक्सीडेंट भी पाए जाते यूरिन की परेशानी भी दूर करती है। शतावरी जहां पशुओं के लिए भी महत्वपूर्ण है। पशुओं के चारे में मिलाकर खिलाई जाती है। शतावरी की सब्जी भी बनाकर खाई जाती है। कैंसर में यह बहुत महत्वपूर्ण है। इसमें ग्लूटाथिओन पाया जाता है जो शरीर की गंदगी को बाहर निकालता है। इसमें हड्डियों के कैंसर, ब्रेस्ट कैंसर, लंग कैंसर, कोलन कैंसर रोगों को दूर भगाने की क्षमता होती है। जहां उच्च रक्तचाप की समस्या दूर होती हैं तथा दिल की बीमारी में भी लाभप्रद होती हैं। उनमें हृदय के लिए बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि इसमें पोटैशियम बहुत अधिक पाया जाता है। ऐसे में यह रक्तचाप को नियंत्रित करता है। इसके अतिरिक्त शरीर में सेक्स पावर को बढ़ाता है। फर्टिलिटी से जुड़ी परेशानियों को दूर करता है। गर्भधारण में शतावरी फायदा देती है।

 शतावरी शुगर के इलाज में काम आती है। माइग्रेन के रोग को दूर करती है, नींद न आने की परेशानी, बुखार आदि में बहुत महत्वपूर्ण है। चूर्ण सिरप और कैप्सूल आदि कई रूपों में मिलती है। कुछ हालातों में इसका सेवन डाक्टर की सलाह से ही खाना चाहिए जैसे गर्भवती महिला, उच्च रक्तचाप प्रमुख है। शतावरी शरीर में हार्मोन को बैलेंस करती है अधिक प्रयोग करना नुकसानदायक हो सकता है। प्याज की एलर्जी में वाले लोग शतावरी प्रयोग कर सकते हैं। एलर्जी गुर्दे की पथरी वालों को यह प्रयोग नहीं करनी चाहिए।
आयुर्वेद में सबसे पुरानी औषधि है जिसका प्राचीन ग्रंथों में भी उल्लेख मिलता है। आयुर्वेद में सौ रोगों में लाभकारी मानी गई है। इसमें एंटी आक्सीडेंट होने के तनाव, बढ़ती उम्र में बहुत असरदार जड़ी-बूटी मानी जाती है। इसे आयुर्वेद में जड़ी बूटियों की रानी कहा गया है। इसे ऐस्पैरागस रेसिमोसस नाम से जाना जाता है। इसकी जड़ तथा पत्तियां बहुत उपयोगी है। चमकती हुई त्वचा प्राप्त करने के लिए बहुत लाभप्रद है, मधुमेह, अनिद्रा बुखार, खांसी आदि में भी लाभप्रद है।
पावर टोनिक के रूप में सेक्स पावर को बढ़ा देती है। इसे गर्म दूध के साथ सेवन करना चाहिए वही यौन विकारों में लाभप्रद है। शतावरी में अमीनो एसिड पाए जाते हैं। सतावर के चूर्ण को शक्कर में मिलाते हुए एक कप दूध में पिया जाता है। गर्भावस्था में इसका नियमित सेवन करने से भ्रूण को संक्रमण से बचाता है, वजन को कम करना हो तो महत्वपूर्ण है। हड्डियों के लिए लाभप्रद है क्योंकि इसमें लोहे की मात्रातािा कैल्शियम पाया जाता है। अश्वगंधा, शतावरी और आमलकी एक साथ लेने से बहुत लाभ होता है। शरीर के प्रतिरक्षी तंत्र को मजबूत बनाती है। अवसाद में लाभप्रद है वही नपुंसकता को दूर करती है। अश्वगंधा, शतावरी सफेद मूसली, कौंच आदि के बीज बहुत अधिक लाभप्रद होते हैं। प्रजनन प्रणाली के लिए भी यह महत्वपूर्ण है वहीं रजोनिवृत्ति में बहुत फायदेमंद है क्योंकि शतावर की तासीर ठंडी पाई जाती हैं। कब्ज और सूजन में, स्तनपान में भी यह बहुत लाभप्रद होती है। अत्यधिक सेवन करने से वजन बढ़ जाता है, रक्तचाप बढ़ सकता है। शतावर को दूध के साथ ही लेना लाभप्रद होता है। ऐसे में शतावर के लाभ के साथ नुकसान भी होते हैं।

** होशियार सिंह, लेखक, कनीना, महेंद्रगढ़, हरियाणा**










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