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Saturday, March 28, 2020

टिमोथी घास
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फलीमी प्रेटेंस
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बिल्ली पूंछ घास
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टिमोथी
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तिमोथी घास कई देशों में बारहमासी घास है। इसकी एक दर्जन प्रजातियां पाई जाती हैं।
इसका नाम टिमोथी हैनसन के नाम पर रखा गया है जो अमेरिका के किसान और कृषिविद् थे। यह घास और पशुओं के चारे का एक बड़ा स्रोत बन गया।
टिमोथी घास लंबी घास है जिसकी लंबी पत्तियां पाई जाती हैं। पत्तियां बाल रहित होती हैं जो मुड़ी हुई होने की बजाय लुढ़क जाती हैं और नीचे  से गहरे भूरे रंग की होती हैं। फूल चौड़ा होता है, जिसमें घनी बराबरी के साथ स्पाइकलेट्स होते हैं। इसके पुंकेसर गुलाबी होते हैं।
टिमोथी घास ठंड और सूखे के लिए इसके प्रतिरोध के लिए जानी जाती है और इस प्रकार सूखी एवं रेतीली मिट्टी में बढऩे की क्षमता होती है। काटने के बाद यह धीरे-धीरे बढ़ता है।
 टिमोथी घास को हर्ड ग्रास रखा गया था लेकिन टिमोथी हेंसन ने इसकी खेती को बढ़ावा दिया था।
यह आमतौर पर मवेशियों के चारे के लिए और विशेष रूप से घोड़ों के लिए घास के रूप में उगाया जाता है। इसमें फाइबर अधिक होता है जो कठोर माना जाता है। यह घासघोड़ों के लिए गुणवत्ता पोषण प्रदान करता है। टिमोथी घास घरेलू पालतू खरगोशों, गिनी सूअरों के लिए एक मुख्य भोजन है।
कुछ कैटरपिलर इसे खाते हैं। इसका पराग एक आम एलर्जीन है। यह बुखार वैक्सीन के छोटी मात्रा में प्रयोग होती है जो शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को पुनर्निमित करती है।
पौधे सर्दियों के माध्यम से बने रहते हैं। मृत, पुआल रंग के फूल के तने बने रह सकते हैं, लेकिन केवल थोड़े समय के लिए, और विशिष्ट स्पाइक जैसे पुष्पक्रम द्वारा पहचाने जाते हैं।
फेलियम अल्फिनम एक जंगली टिमोथी है जो  एक लोमड़ी की तरह हो सकता है।
टिमोथी कैनरी घास एक अन्य प्रजाति, पशुधन के लिए विषाक्त है। टिमोथी का उपयोग मुख्य रूप से घास के लिए किया जाता है लेकिन चारागाह और साइलेज के लिए भी। यह स्वादिष्ट और पौष्टिक है।
टिमोथी को आवरण प्रयोजनों, फिल्टर स्ट्रिप्स, जलमार्ग, और अन्य महत्वपूर्ण क्षेत्र अनुप्रयोगों के लिए मिश्रण में फलियां और / या अन्य घास के साथ इस्तेमाल किया जा सकता है।
इसमें रेशेदार जड़ प्रणाली होती है। इसके पत्तों में समानांतर शिरा विन्यास पाया जाता है। पत्तियां लंबाई में लंबी होती हैं और लगभग 1 द्बठ्ठष्द्ध4 इंच चौड़ी होती हैं, जो टिप की ओर धीरे से संकुचित होती हैं। बीज बहुत छोटा है और आम तौर पर चमक में संलग्न रहता है।
 सीमित नमी की स्थिति के तहत, यह एक खराब वसूली करता है और सूखे या लंबे समय तक उच्च तापमान को सहन नहीं करता है। टिमोथी बहुत ही ठंडे तापमान और बर्फ के जमाव के लिए उच्च सहिष्णुता है। इसकी खेती भी की जाती है।
टिमोथी उर्वरकों के लिए अत्यधिक उत्तरदायी है। जुगाली करने वाले, सूअर, मुर्गी, खरगोश, घोड़े, मछली और क्रसटेशियन के लिए सिफारिशों के लिए महत्वपूर्ण होती है। बीज से नया पौधा संभव है।
 घास, सिलेज और चारागाह।के काम आती है।
घास पराग एलर्जी (हे फीवर) के लक्षणों को कम करती है।





**होशियार सिंह, लेखक,कनीना,हरियाणा**

Friday, March 27, 2020

गुड़हल














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जवाकुसुम
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हिबिस्कस रोज़ा साइनेंसिस
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चीनी हिबिस्कस/ चीन गुलाब/हवाई हिबिस्कस
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गुलाब मल्लो/ हिबिस्कस
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शू फ्लोवर/चाइनीज रोज
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चाइनीज रोज मालवेसी परिवार का फूलों वाला पौधा है जिसे वैज्ञानिक भाषा में हिबिस्कस रोज़ा साइनेंसिस नाम से जाना जाता है। यह कपास और भिंडी कुल में एक पौधा है। आम भाषा में इसे गुडहल कहते हैं। यह वृक्ष के रूप में पाया जाता है। इसकी सैकड़ों प्रजातियां पाई जाती हैं वार्षिक या बहुवार्षिक होती हैं। ये झाड़ी से लेकर वृक्ष रूप में मिलता हैं। इसकी प्रजातियां मलेशिया तथा दक्षिण कोरिया का राष्ट्रीय पुष्प है।
 गुड़हल की व्यापक रूप से खेती की जाती है। इसके अनेक रंगों के फूल आते हैं जिनमें लाल, पीला एवं सफेद प्रमुख हैं। यह एक सजावटी पौधे के रूप में व्यापक रूप से उगाया जाता है। घरों तथा गमलों में एवं पार्कों में प्रमुख रूप से मिलता है।
  गुड़हल एक झाड़ीदार, सदाबहार झाड़ी या छोटा पेड़ होता है। इसमें गर्मियों में चमकदार पत्ते और शानदार लाल फूल लगते हैं। फूल दूर तक दिखाई पड़ते हैं। फूल बड़े, विशिष्ट आकार के होते हैं जिसमें पांच पंखुडिय़ां होती हैं। विभिन्न संकर पुष्प तैयार कर लिए गए हैं।
  फूल में हरे रंग के बाहृदल पुंज पाए जाते है। पकई पंखुडिय़ों और कई रंग की होती हैं। फूल के अंडाशय और अन्य मादा भाग नलीकार होते हैं। फूल द्विंिलंगी होते हैं। फूल में केवल एक अंडाशय होता है जो श्रेष्ठ होता है। फूल के नर भाग लंबे तंतुमय होते हैं। गुड़हल में सैकड़ों पुंकेसर होते हैं। फूल पूर्ण बेहतर अंडाशय वाला होता है।
जड़ एक शाखित होती है।
यह द्विबीजपत्री होता है। तना हवाई, हरा और शाखित होता है। पत्ती सरल एवं अंडाकार होती है।
गुड़हल कई पौधों की प्रजातियों में से एक है, जिसमें एक आनुवंशिक विशेषता है जिसमें गुणसूत्रों के दो से अधिक पूर्ण सेट होते हैं। जहां संतान का फेनोटाइप माता-पिता से काफी भिन्न हो सकता है।
गुड़हलके फूल खाए जा सकते हैं और सलाद में उपयोग किए जाते हैं। फूलों का उपयोग बालों की देखभाल में तैयारी के रूप में किया जाता है। इसका उपयोग भारत के कुछ हिस्सों में जूते चमकाने के लिए भी किया जाता है इसलिए इसे शू फ्लोवर नाम से भी जाना जाता है। इसका उपयोग पीएच इंडिकेटर के रूप में भी किया जा सकता है। यह देवी की पूजा के लिए भी प्रयोग किया जाता है। लाल किस्म का उपयोग काली की पूजा के लिए किया जाता है। फूलों को पेय में इस्तेमाल करने के लिए सुखाया जाता है। फूल की चाय बनाकर पीते हैं।
यह चीनी जड़ी-बूटियों में काम आता है। गुड़हल की पंखुडिय़ों से एक काले रंग की जूता-पॉलिश बनाने,काले बालों को डाई करने के लिए किया गया है। त्वचा देखभाल में काम में लेते हैं। फूलों से एक अर्क को पराबैंगनी विकिरण को अवशोषित करके एक एंटी-सोलर एजेंट के रूप में काम में लेने के प्रयास किए जा रहे हैं।
 यह कम तापमान को सहन नहीं करता है। यह गर्मियों में बेहतर ढंग से पनपता है। इसे चमेली, कमल, गुलाब के रूप में जाना जाता था। मलय में उत्सव फूल के रूप में जाना जाता है।
  गुड़हल की कुछ प्रजातियों को उनके सुन्दर फूलों के लिये उगाया जाता है। गुड़हल की चाय भी सेहत के लिए अच्छी मानी जाती है। इसकी प्रजाति कागज बनाने में काम आती है। गुड़हल के फूलों को देवी और गणेश जी की पूजा में अर्पित किया जाता है। गुड़हल के फूल फफूंदनाशी,  त्वचा को मुलायम बनाने के काम में लेते हैं वहीं इसके फूलों का इस्तेमाल बालों की देखभाल के लिये करते हैं। इसके फूलों और पत्तियों को पीस कर इसका लेप सर पर बाल झडऩे और रूसी की समस्या से निपटने के लिये लगाया जाता है। इसका प्रयोग बालों के तेल बनाने में भी किया जाता है।
  गुड़हल डाइटिंग करने वाले व गुर्दे की समस्याओं से पीडि़त व्यक्ति प्रयोग करते हैं। यह मूत्रवर्धक,फूल का अर्क हृदय के लिएकाम में लेते हैं। इस फूल में एंटीआक्सीडेंट्स के गुण, कोलेस्ट्राल के स्तर को नियंत्रित रखने,
 इस फूल की पत्तियों और पत्तियों को जलाने से प्राप्त राख को आइब्रो को काला करने के काम में लेते हैं। यह गर्भनिरोधक के रूप में प्रयोग होता है। इसका उपयोग हर्बल चाय बनाने में करते हैं। फूल में अनेकों खनिज और विटामिन होते हैं।
इन पत्तियों और फूलों से रस मासिक धर्म चक्र को नियमित करने के काम में लेते हैं। जड़ों से बनी दवा का प्रयोग वशीकरण रोगों की रोकथाम में प्रयोग होता हे। फूलों की कलियों का सेवन करने से कई बीमारियां खत्म हो जाती हैं।
यह फूल पाचन में सुधार करता है। फूल को अचार बनाकर खाते हैं। इसके तने से तंतु का उपयोग कपड़े, जाल और कागज के निर्माण में किया जाता है। जड़ों को तेल में कैंसर के घाव ठीक करता है। यह खून की कमी वाले लोगों में रक्त की मात्रा बढ़ाने के लिए काम लेते है।  गुड़हल सिर को ठंडा करता है और बालों के विकास को बढ़ावा देता है। बालों को सफ़ेद होने से रोकता है।  गुड़हल के फूलों का तेल बालों में रूसी से लड़ता है। यह गंजापन रोकता है,त्वचा के संक्रमण से भी लड़ सकता है। इसकी पत्तियां सबसे अच्छा प्राकृतिक शैम्पू है। पत्तियों को पीसकर बालों पर लगाना चाहिए। यह बालों को अच्छी तरह से साफ करेगा।  यह वजन घटाने, मुंह के छाले, हृदय की समस्या, कब्ज और उच्च रक्तचाप के लिए उपयोगी है। इसका फूल नासूर घावों या मुंह के छालों के लिए एक घरेलू उपचार है। फूल खाने से शरीर की संचार प्रणाली मजबूत होती है। उच्च कोलेस्ट्राल और दिल की समस्या कम हो जाती होगाहै। गुड़हल के काढ़े का सेवन करने से सर्दी और बुखार से बचाव होता है। विटामिन सी हिबिस्कस से समृद्ध होने के कारण प्रतिरक्षा प्रणाली को बढ़ावा देता है। यह तनाव को रोकता है।
** होशियार सिंह, लेखक,कनीना,हरियाणा**


Wednesday, March 25, 2020


बकायन
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महानीम, बकायन, बकैन, धरेक, डकानो
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मेलिया अजडार्च
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महानिम्ब
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बीड ट्री, चिनबेरी, चाइना ट्री, फ़ारसी लीलाक, प्राइड ऑफ इंडिया, महानीम, बकेन, , बेटेन, दीवाना, द्रेक और बाक़ीन
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बकायन नीम की जाति का एक पेड़ है। भारत में खूब पाया जाता है। यह नीम की बहन कहलाती है क्योंकि यह नीम से छोटी होती है।
 इसके पत्ते कड़वे नीम के समान तथा आकार में कुछ बड़े होते हैं। बकाइन की लकड़ी इमारती कामों के लिए बहुत उपयोगी होता है। यह छायादार पेड़ होता है। इसके फल भी कड़वे नीम के फल के समान होते हैं।
बकायन एक औषधीय पेड़ है। आयुर्वेद में बकायन का बहुत महत्व है। बकायन से विभिन्न रोगों का उपचार किया  जाता  है । बवासीर, नेत्ररोग, मुंह के छाले, पेट मे दर्द, आंतों के कीड़े, प्रमेह, श्वेतप्रदर, खुजली, पेट के कीड़े आदिआदि में अति महत्व होता है।
इसकी पत्तियाँ नीम की पत्तियों के समान तथा कुछ बड़ी और दुर्गन्धयुक्त होती है। जबकि

गुच्छों में नीम के फूल के आकार वाले कुछ नीलापन लिए होते हैं। झुमकों में नीम के फल के आकार वाले गोल होते हैं।
   यह एक सजावटी पेड़ है जिसमें कई उपयोग हैं। इसके पास महत्वपूर्ण औषधीय गुण हैं। पत्ते लंबे, लीफलेट गहरे हरे रंग के ऊपर और नीचे हल्के हरे रंग के होते हैं। फूल छोटे और सुगंधित होते हैं, जिनमें पांच पीली बैंगनी पंखुडिय़ां होती हैं जो गुच्छों में बढ़ती हैं। इसमें पांच पंखुडिय़ां पाई जाती हैं।
पौधे की छाल पतलीबाहरी सतह का काला और खुरदरा होता है। आंतरिक छाल बेहद कड़वी होती है। सर्दियों में पत्तियां गिर जाती हैं और पेड़ चेरी जैसे फलों के गुच्छे दिखाई देते हैं जो पहले हरे रंग के होते हैं और बाद में पीले रंग के हो जाते हैं।ये पक्षियों के लिए आकर्षण का केंद्र होते हैं।
पेड़ की छाल का उपयोग अस्थमा, मलेरिया, मतली,बवासीर, चूहे के जहर को हटाने वाला, त्वचा रोग, उल्टी एवं मूत्र संबंधित विकारों को दूर करने के काम आता है।
  इसकी पत्ती में कृमिनाशक गुण पाया जाता है। बीज तेल कीटनाशक और एंटीसेप्टिक होता है। यह दर्द को दूर करने के लिए, परजीवी कीड़े को निष्कासित करने के काम आता है। पत्तियों के रस में ने फीताकृमि और हुकवर्म को नष्ट करने का गुण पाया जाता है। यह अस्थमा के रोकथाम, तेल जीवाणुरोधी, एंटीफर्टिलिटीका गुण पाया जाता है।
 बकायन गठन को रोकने, शरीर के संक्रमण को रोकने, मांसपेशियों की ऐंठन से राहत देने,वायरस के खिलाफ प्रभावी।को नष्ट करने के काम आता है। यह दर्द से राहत देता है और गहरी नींद लाने,फल मनुष्यों के लिए जहरीले होते हैं अगर बड़ी मात्रा में खाया जाए तो नुकसान पहुंचा सकते हैं। यह मुंह के छाले, त्वचा की समस्याओं, सूजन, के इलाज के लिए किया जाता है। जड़ और छाल को एक कृमिनाशन के रूप में, बुखार और पेचिश के लिए उपयोग किया जाता है। मूत्र, त्वचा रोग, मतली, उत्सर्जन, अस्थमा, चक्कर आने में सूखे तने की छाल का उपयोग किया जाता है।
  बकायन के तने की अंदर का भाग दमा के हमलों को राहत देता है। इसकी पत्तियों का रस रूसी भगाने,एक्जिमा, दाद, त्वचा पर खुजली, जलन के काम आता है वहीं बाकायन की पत्तियों को उबालकर प्रभावित जोड़ों पर लगाने से दर्द से राहत मिलती है। इसकी पत्ती का काढ़ा हार्निया के इलाज में, छाल का पेस्ट जोड़ों के दर्द में,
गुर्दे की समस्या काम आता है वहीं फूलों का पेस्ट जूं ढेरा को नष्ट कर देता है। कुष्ठ एवं अल्सर में छाल काम में
लाई जाती है।बकायन के पत्तों का रस अनियमित मासिक, भारी मासिक धर्म के लिए जबकि छाल
मुंह के छाले, मसूड़ों की समस्या, सांसों की दुर्गंध, पत्तियों का पानी माउथ वॉश के रूप में,मसूड़े की सूजन कम करने में मददगार है।
जानवरों में आंतरिक परजीवी को हटाने के लिए फल एवं पत्तियों का उपयोग किया जाता है।
   इसके फलों के मोतियों को मठों में भिक्षुओं द्वारा मालाओं में बनाया जाता है। संक्रामक रोगों को कम करने के लिए उन्हें एक हार के रूप में पहना जाता है। पत्तियां चारे के लिए अत्यधिक पौष्टिक होती हैं।
    इसकी लकड़ी का उपयोग कृषि औजार, फर्नीचर, प्लाईवुड, बक्से, डंडे, उपकरण के हैंडल बनाने के लिए किया जाता है। इसके फल अगर
8 तक लिए जाए तो विषाक्त साबित होते हैं। यह गर्भावस्था और स्तनपान में,यह पीरियड्स की शुरुआत को बढ़ावा देने,मुंह में जलन, खून की उल्टी, मूत्र की असामान्य रूप से कम मात्रा में उत्पादन आदि हो सकता है। यह शुक्राणुओं की संख्या कम करके पुरुष प्रजनन क्षमता को कम करता है।













यह बकायन आयुर्वेद, सिद्ध और यूनानी चिकित्सा पद्धति में चिकित्सीय उद्देश्य के लिए किया जाता है।
**होशियार सिंह, लेखक,कनीना,हरियाणा** 














भांग
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कैनबिस
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 कैनाबिस सैटाइवा /  कैनाबिस इण्डिका
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मारिजुआना/गांजा
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भांग का पौधा नाम लेते ही दिलों दिमाग में एक तस्वीर उभरकर आती है जिसे नशे के रूप में प्रयोग करते हैं। भांग का पौधा कभी देखने को नहीं मिलता था किंतु अब ग्रामीण क्षेत्रों में जमकर उग रहा है। यह एक खरपतवार का रूप ले रहा है जो आने वाले समय में एक समस्या बनकर उभर सकता है। 

 अब तो भारत के हरियाणा प्रांत के महेंद्रगढ़ जैसे रेतीले क्षेत्र में नहर के किनारे, पुराने खेतों में तथा जहां भी कहीं सड़क किनारे जगह मिलती बस भंग खड़ी मिलती हे। वास्तव में यह जंगली भांग है। इसका भी लोग दुरुपयोग कर रहे हैं और इसे नशे के रूप में प्रयोग कर रहे हैं। यह अति दुखद पहलु है। 
    भांग/गांजा/कैनाबिस भांग के पौधे से तैयार किये जाते हैं जिसे एक औषधि के रूप में उपयोग किया जाता है। इसे मारिजुआनानाम से भी पुकारा जाता है। भांग अक्सर अपने मानसिक और शारीरिक प्रभाव के लिए लिया उपयोग करते हैं। इसके प्रयोग करने से कई समस्याएं देखने को मिल सकती हें जिनमें प्रमुख रूप से याददास्त में कमी होना, मुंह का सूखना, लाल आंखें आदि प्रमुख हैं। इसे धुआं के रूप में प्रयोग करते हैं वहीं इसे खाते भी हैं। चिलम, हुक्का,बीड़ी, सिगरेट, सिगार आदि में डालकर धुआं के रूप में प्रयोग करते हैं। कई घंटों तक नशे की हालात बनी रह सकती है।
   यह दवा के रूप में प्रयोग किया जाता है। जब आराम करना हो या फिर दुर्घटना में पीड़ा हो रही हो तो उसे दिया जाता है ताकि उसे आराम मिल सके।
भांग दुनिया के सबसे ज़्यादा उपयोग किया गया अवैध ड्रग है। यह कीमोथेरेपी के वक्त मतली और उल्टी कम करने के लिए प्रयोग किया जाता है। यह एचआईवी या एड्स के रोगियों दिया जाता है।
कुछ लोग भांग को शिवभोले से जोड़कर देखते हैं। नित्य नए गाने एवं संगीत शिवभोले पर बनाए जाते हैं जिनमें अक्सर भांग का जिक्रा किया जाता है। भारत के लोग वैसे तो श्रद्धा भक्ति से भरे रहते हें किंतु अपने ही देवी देवताओं पर लांछल लगा देते हैं। कहीं भी यह वर्णन नहीं मिलता कि शिवभोले भांग पीते थे। अगर थोड़ी देर के लिए वे भांग पीते थे तो उनसे बुरा कोई नहीं हो सकता। इसका अर्थ होगा कि हम बुराई का साथ दे रहे हैं। परंतु पूरे विश्व में सबसे अधिक पूजा जाने वाला देव शिव कभी नशा नहीं करता था। हां वे ध्यान एवं तप करते थे जो लबी अवधि के होते थे।  इसकी आड़ में शिवभोले का बहाना कर न जाने कितने लोग कांवड़ लाते वक्त या साधु संत कहलाने वाले लोग भांग पीते हैं। कुछ जगह तो भांग को घोटकर पिलाया जाता है। दुर्भाग्य है कि युवा वर्ग भी इसके नशे का आदि हो गया है।
इससे भांग चाय भी बनाते हैं। मादा भांग के पौधे के फूल, आसपास की पत्तियों एवं तने को सुखाकर बनाया गया पदार्थ गांजा कहलाता है
गांजा एक ड्रग है जो गांजे के पौधे से कई विधियों से बनाया जाता है। मादा भांग के पौधे के फूल, आसपास की पत्तियों एवं तनों को सुखाकर बनने वाला गांजा सबसे सामान्य है जिसके सेवन करने पर व्यक्ती की उत्तेजना बढ़ जाती है। ये पदर्थ कैंसर का कारण बन जाते हैं। गांजा पीने वाले लोगों के चेहरे पर काले दाग पड़ जाते है। जहां आत्मविश्वास बढाने के लिए गांजा का सेवन करते है। दुनिया का सबसे बेहतरीन गांजा हिमाचल में में पाया जाता है।
  गांजा बहुत हरा तीखी गंध वाला शाक होता है। इसकी पत्तियां कई भागों में बटी होती है। नर पुष्प मंजरियाँ लंबी, नीचे लटकी हुई और रानी मंजरियां छोटी होती हैं। फल गोलाकार होते हैं। पौधे से गाजा, चरस और भाग काम आते हैं। तरल तथा फल, बीज का तेल और रेशानुमा पदार्थ उपयोगी होते हैं।
नारी पौधों से जो रालदार पदार्थ निकलता है उसी को इकट्ठा किया जाता है। इसे ही चरस कहते हैं।  वायु के संपर्क में रखने से इसका नशा कम होती जाती है। चरस के खेतों से नर पौधों को छांट कर निकाल दिया जाता है। चरस गांजे के पेड़ से निकला हुआ गोंदनुमा पदार्थ होता है। इसे लोग तंबाकू की तरह पीते हैं। गांजा एवं चरस नशे में एक जैसे होते हैं। 
गांजे के पेड़ जितना दूर दूर होंगे चरस अधिक प्राप्त होगा।  चरस में गांजे और भांग की अपेक्षा बहुत अधिक हानिकारक होता है। 
कैनाबिस के जंगली अथवा कृषिजात, नर अथवा नारी, सभी प्रकार के पौधों की पत्तियों से भाँग प्राय तैयार की जाती है। जंगली पौधों से, हल्के दर्जे की भांग तैयार की जाती है।
गांजा और चरस का तंबाकू के साथ धूम्रपान के रूप में और भांग घोटकर पीते हैं। ये पदार्थ निद्राकर, कामोत्तेजक, वेदनानाशक होते हैं जिनका उपयोग पाचनविकृति, अतिसार, प्रवाहिका, काली खांसी, अनिद्रा और आक्षेप में इनका उपयोग होता है। बाजीकर, शुक्रस्तंभ में भांग का उपयोग होता है। इसके निरंतर सेवन से क्षुधानाश, अनिद्रा, कमजोर और कामावसाद भी हो जाता है।
 
भांग, चरस या गांजे  की लत शरीर के लिए नुकसानदायक होती है। यदि गांजे की सही खुराक ली जाये तो वह सेहत के लिए लाभकारी हो सकता है। यह कई तरह की बीमारियों से बचाता है।
शुगर से ग्रस्त ज्यादातर लोगों के हाथ या पैरों को नुकसान होता हैं और इससे बदन के कुछ हिस्से में जलन का अनुभव होता है।यह उनके दर्द के कम करता है। गांजा स्ट्रोक की स्थिति में ब्रेन को नुकसान से बचाता है।
 गांजे से थकान, नाक बहना, मांसपेशियों में दर्द, भूख न लगना और डिप्रेशन जैसे बुरे प्रभाव हैं।
गांजा का उपयोग आंखों के रोग मोतियाबिंद को रोकने और इसके इलाज के लिए किया जाता है।
गांजा कैंसर से लडऩे में सक्षम होता है। अमेरिका में हुए एक शोध के अनुसार गांजा में पाया जाने वाला कैनाबिनॉएड्स तत्व कैंसर की कोशिकाओं को नष्ट कर देता है।

मारियुआना यानी गांजा एक पेड़ की सूखी पत्तियों का चूर्ण है जो मिट्टी की चिलम या कागज के रोल में भर कर सिगरेट की तरह पिया जाता है. ये एक हर्बल नशा है।
सामान्य भाषा में जिसे भांग का पौधा कहते हैं उसकी पत्तियों को पीस कर भांग बनती है। इसे दूध या ठंडाई के साथ लिया जाता है।

गांजा अलग तरह का नशा है. इसे धुंए के तौर पर लिया जाता है जिसके चलते ये फेफड़ों को नुकसान पहुंचाता है। गांजा भारत के कई हिस्सों में जंगली खरपतवार की तरह उगा मिलता है। बिने चुने पशु भी इसके पौधे को खा जाते हैं। यह पौधा वातावरण में भी प्रदूषण करता है वहीं समाज में भी समस्या है। यह पशु उपचार में  भी काम आता है।


                     भांग
               (कैनाबिस इंडिका)
भांग नाम का अजीब पौधा
यहां वहां खड़ा  देखा  जाए
विभिन्न दवाओं का आधार
हशीश बनाने के काम आए,
                       लेमार्क वैज्ञानिक बताया इसे
                        भारत में भी यह उगाया जाए
                       धर्म-आस्था से जोड़ते हैं जन
                      कष्ट दूर करके उसको हंसाए,
वैदिक काल से ही साधु जन
रोजाना प्रयोग करते आ रहे हैं
होली के दिन भांग का नशा
टोली बनाकर जन खा रहे हैं,
                        पत्ते एवं फूल ही काम आते हैं
                        तंतु, तेल बनाने के काम आए
                         इसके भागों से ही दवा बनती
                         एड्स रोग भगाने के काम आए,
कैनाबिनोइड पदार्थ निकालाते
दीये, लेकर, पेंट बनाए जाते हैं
धूम्रपान व चाय बनाकर पीते
दवाएं और औषधियां बनाते हैं,
                            होली पर्व पर खाते सभी भांग
                            शिव भोले से जोड़ते हैं भांग
                             हेम्प आयल इससे ही बनता
                             नशेड़ी इसको लेते इसे टांग ,
कितने ही रोगों में काम आए



कितने जनों की जान बचाए
खेतों में खड़ा मिलता भयंकर
खाने पर रोए तो कभी हंसाए।
                          ***होशियार सिंह, लेखक, कनीना***


 
**होशियार सिंह, लेखक,कनीना,हरियाणा**








Tuesday, March 24, 2020











चुकंदर
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बीटा वल्गैरिस
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बीटरूट
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चुकंदर एक मूसला जड़ वाला पौधा है। इसे वैज्ञानिक भाषा में बीटा वुल्गैरिस नाम से जाना जाता है।बहुत लंबे समय से इंसान इसका उपयोग करता आ रहा है। इसकी मूसला जड़ अक्सर हलकी-मीठी होती है और उसका रंग लाल, जामुनी, पीला या श्वेत होता है। यह दवाओं में काम आती है वहीं चीनी बनाने के लिए भी काम में लेते हैं।
चुकंदर को कच्चा, उबालकर या भूनकर खाया जाता है। इसे अकेले या अन्य सब्जी के साथ खाया जाता है और इसका अचार भी डाला जाता है। चुकंदर के पत्तों को भी खाया जाता है, इनका प्रयोग आहार में कच्चा, उबालकर या भाप-देकर होता है। चुकंदर लोहा, विटामिन और खनिज लवण का बहुत ही अच्छा श्रोत है।
चुकंदर चुकंदर के पौधे का टेपरोट हिस्सा है, जिसे आमतौर पर इसे बीट नाम से भी जाना जाता है। यह खेती की किस्मों में से एक है जो अपने उपयोग के लिए उगाई जाती है। इसे कई रूपों में, जिनमें अधिकतर लाल रंग की जड़ से प्राप्त सब्जी रूप में प्रयोग किया जाता है। इसके अलावा अन्य उत्पादों में इसके पत्तों को शाक रूप में प्रयोग करते हैं व इसे शर्करा-स्रोत रूप में भी प्रयोग किया जाता है। पशु-आहार के लिये भी कहीं-कहीं प्रयोग किया जाता है।

चुकंदर में अच्छी मात्रा में लौह, विटामिन और खनिज होते हैं जो रक्तवर्धन और शोधन के काम में सहायक होते हैं। इसमें पाए जाने वाले एंटीआक्सीडेंट तत्व शरीर को रोगों से लडऩे की क्षमता प्रदान करते हैं। यह प्राकृतिक शर्करा का स्रोत होता है। इसमें सोडियम, पोटेशियम, फास्फोरस, क्लोरीन, आयोडीन और अन्य महत्वपूर्ण विटामिन पाए जाते हैं।
  चुकंदर में गुर्दे और पित्ताशय को साफ करने के प्राकृतिक गुण हैं। इसमें उपस्थित पोटैशियम शरीर को प्रतिदिन पोषण प्रदान करने वहीं क्लोरीन गुर्दों के शोधन में मदद करता है। यह पाचन संबंधी समस्याओं जैसे वमन, दस्त, चक्कर आदि में लाभदायक होता है। चुकंदर का रस पीने से रक्ताल्पता दूर हो जाती है क्योंकि इसमें लौह भी प्रचुर मात्र में पाया जाता है।
 चुकंदर का रस उच्च रक्तचाप और हृदय संबंधी समस्याओं को दूर रखता है। यह आंत व पेट को साफ करने के काम आती है। चुकंदर कैंसर में भी लाभदायक होता है। चुकंदर और उसके पत्ते फोलेट का अच्छा स्रोत होते हैं, जो उच्च रक्तचाप को दूर करते हैं। चुकंदर का रस आपके रक्तचाप को कम करने में मदद कर सकता है। व्यायाम सहनशक्ति में सुधार करता है। दिल के फेल होन वाले लोगों में मांसपेशियों की शक्ति में सुधार हो सकता है।
वजन बनाए रखने में मदद करता है। पोटेशियम का अच्छा स्रोत।   
जिन महिलाओं को एनीमिया होती है उनमें  खून की कमी को पूरा करने में,डायबिटीज के रोगियों के लिए, चुकंदर के पत्तों में भरपूर मात्रा में कैल्शियम पाया जाता है। ये शरीर का विकास और हड्डियों का विकास में फायदेमंद है। चुकंदर का इस्तेमाल यौन स्वास्थ्य के लिए, चुकन्दर का जूस पीने से व्यक्ति का स्टैमिना 16 प्रतिशत तक बढ़ जाता है। शरीर में ऑक्सीजन बढऩे से दिमाग भी ठीक प्रकार से अपना काम कर पाता है।
 शरीर में हीमोग्लोबिन की मात्रा बढ़ानी हो या सौंदर्य बरकरार रखनी हो, चुकंदर हर तरीके से फायदा पहुंचाता है। इसका सेवन अक्सर सलाद और जूस के रूप में किया जाता है। भोजन के साथ सलाद के तौर पर सेवन करने के अलावा चुकंदर का प्रयोग औषधि और भोजन में रंग के रूप में भी किया जाता है। चुकंदर खाने के फायदों में मधुमेह पर नियंत्रण,  हृदय को स्वस्थ रखने, स्ट्रोक, हृदय रोग, आंखों की समस्या, किडनी खराब होना आदि हाई ब्लड प्रेशर में काम आती है।। सही स्वास्थ्य के लिए धमनियों में रक्त का प्रवाह सामान्य रहना बहुत जरूरी है। यह अनिमिया को दूर करने, पाचन क्रिया का मजबूत रखने,शरीर में ऊर्जा देने ,हड्डियों को सुरक्षित रखने,कोलेस्ट्रॉलको घटाने, यह बाइल एसिड, स्टेरॉयड हार्मोन और विटामिन-डी के संकलन के लिए जिम्मेदार होता है। यह गर्भावस्था के दौरान विभिन्न तत्वों की पूर्ति करता है।
  चुकंदर वजन घटाने, लिवर को स्वस्थ रखने,मोतियाबिंद से बचाने,एंटीऑक्सीडेंट का बेहतरीन स्रोत है, जो त्वचा के लिए एक प्रभावशाली एंटी-एजिंग एजेंट के रूप में काम करता है।
चुकंदर में एंटीऑक्सीडेंट, विटामिन-ए, विटामिन-सी, कैल्शियम, आयरन और पोटैशियम की मात्रा अधिक होती है। यह बालों के स्वास्थ्य के लिए भी आप इसका इस्तेमाल करते हैं। यह बाल झडऩे और स्कैल्प में खुजली से निजात दिलाने का काम करता है। इसे कच्चा, पनीर के साथ भुना हुआ, जूस, सलाद के रूप में, किडनी स्टोन को दूर करने में काम में लेते हैं। यह पशुओं के लिए भी उतना ही लाभकारी है। पाु इसे बड़े चाव से खाते हैं। यह चारा बनाने में कारगर है वहीं हृदय घात एवं बीपी घटाने में महत्वपूर्ण है।
**होशियार सिंह, लेखक,कनीना,हरियाणा**