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Friday, January 31, 2020

मूली
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रफानस स्टावुम
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मूली एक जड़ होती है। यह भूमी के अन्दर पैदा होने वाली सब्जी है। वास्तव में यह एक रूपान्तरित प्रधान जड़ है जो जैो भाजन इकट्ठा करके फूल जाती है।। मूली पूरे विश्व में उगायी एवं खायी जाती है। मूली की अनेक प्रजातियां हैं जो आकार, रंग एवं पैदा होने में लगने वाले समय के आधार पर भिन्न-भिन्न होती है। कुछ प्रजातियां तेल उत्पादन के लिये भी उगायी जाती है।
 मूली की सब्जी, मूली की भाजी, मूली का अचार और यहां तक कि सलाद के रूप में हर घर में प्रयोग की जाती है। यूं तो बच्चे, बूढ़े और जवान मूली को देखकर मुंह बनाने लग जाते हैं। वे मूली को नहीं खाना चाहते किंतु मूली एक बहुत फायदेमंद सब्जी है। चाहे एक सामान्य सब्जी लगती हो लेकिन यह गुणों से भरपूर है। यह कई रोगों में मूली बहुत लाभप्रद है।
 मूली का वैज्ञानिक नाम रफानस स्टाइवुम है।  मूली सलाद में बहुत बेहतर पदार्थ है। मूली कई रंगों में पाई जाती है जिनमें काले रंग की मूली, हरे रंग की मूली तथा सफेद रंग की मूली यहां तक कि  शलजम को भी अक्सर वैज्ञानिक भाषा में रफानस ही कहते हैं। बेशक शलजम को अंग्रेजी में टरनिप भी कहते हैं। मूली में कार्बोहाइड्रेट, वसा, प्रोटीन विभिन्न प्रकार के विटामिन, विटामिन सी, कैल्शियम, लोहा, मैग्नीशियम, फास्फोरस पोटैशियम, जिंक आदि पाए जाते हैं। इसमें पर्याप्त मात्रा में पोटैशियम पाया जाता है।
 मूली के पत्ते, जड़, फल, बीज सभी लाभप्रद होते हैं। यह कैंसर से बचाती है क्योंकि फोलिक एसिड और विटामिन पाए जाते हैं जो कैंसर से लडऩे की क्षमता रखते हैं। मधुमेह के मरीजों के लिए यह इस रोग से छुटकारा दिलाती है। मूली खाने से सर्दी जुकाम नहीं होती। अक्सर सर्दी लगने पर मूली न खाने की सलाह दी जाती है किंतु मूली खाते रहने से सर्दी का रोग नहीं लगता।
 मूली खाने से पीलिया रोग दूर हो जाता है, पेशाब की समस्या हो तो मूली जरूर खानी चाहिए। मूली का रस पीने से पेशाब की जलन पेशाब का दर्द आदि दूर हो जाते हैं। दांतों की बीमारी दूर होती हैं वहीं मसूड़े दांत पर मूली मलने से लाभ होता है। मूली कच्ची खायें या इस के पत्तों की सब्जी बनाकर खाएं। हर प्रकार से बवासीर में लाभदायक है। गुर्दे की खराबी से यदि पेशाब का बनना बन्द हो जाए तो मूली का रस पीने से वह फिर बनने लगता है। मूली खाने से मधुमेह में लाभ होता है। एक कच्ची मूली नित्य प्रात: उठते ही खाते रहने से कुछ दिनों में पीलिया रोग ठीक हो जाता है।
खट्टी डकारें आती हो तो एक कप मूली के रस में मिश्री मिलाकर पीने से लाभ होता है। मासिक धर्म की कमी के कारण लड़कियों के यदि मुहांसे निकलते हों तो प्रात: पत्तों सहित एक मूली खानी चाहिए।
अंग्रेजी भाषा में रेडीस नाम से जाना जाता है। वास्तव में मूली एक सब्जी है जो सर्दियों में बहुतायत में उगाई जाती है। मूली के अंदर शलजम भी शामिल की गई है जो मूली की ही एक प्रकार है। मूली के जहां बड़े-बड़े पत्ते होते हैं वहीं इसकी जड़ भोजन इकट्ठा करके फूल जाती है। इसलिए भोजन मूली का भोजन मानव का भोजन बन जाता है। मूली के पत्ते लंबे कटावदार होते हैं। वही मूली के सफेद रंग के फूल आते हैं तथा लंबे-लंबे हरे रंग की फलियां लगती है जिन्हें सिंगरी कहते हैं। ये भी विभिन्न प्रकार की सब्जियां बनाने के काम आती हैं।
आलू के संग सिंगरी की सब्जी बेहद स्वादिष्ट होती है। सिंगरी पक जाने व सूख जाने के बाद में बीज बनते हैं। सूखने के बाद अक्सर पीले रंग के बीज बन जाते हैं।
 मूली को किसान व्यवसाय के लिए भी उगाते हैं वही मूली सेहत के लिए बहुत लाभप्रद है। सर्दियों में मूली के पराठे, मूली का रस, मूली की भाजी, मूली का अचार खूब खाया जाता है।
यहां तक कि मूली का रस पीने के बहुत लाभ होते हैं। थकान मिटाने नींद लाने, मोटापा घटाने में मूली के रस में नींबू और नमक मिलाकर लाभप्रद है। कील मुंहासे दूर करने के लिए भी मूली के टुकड़े काटकर चेहरे पर मलने से उन्हें दूर किया जा सकता है। क्योंकि इसमें विटामिन सी एवं जस्त विटामिन-बी, फास्फोरस आदि पाए जाते हैं। पत्ते तथा जड़ पका कर खाए जाते।
भोजन के रूप में खाई जाती है। कच्चे रूप में भी मूली के पत्ते और मूली के जड़ को चाव से खाते हैं। सलाद के रूप में प्रयोग की जाती है।
 मूली के बीजों से तेल निकाला जाता है। मूली के बीजों में 48 फीसदी तेल पाए जाते हैं। खाद्य तेल के रूप में खाया जाता है। यहां तक कि मिट्टी कटाव को रोकने के काम आती है।
मूली खाने के वक्त लाभ है यहां तक कि पाचन शक्ति को भी मूली बढ़ाती है, पोटापा घटाने के काम आती है। ऐसे में स्वास्थ्य के लिए लाभप्रद होती है। हृदय से संबंधित बीमारियों को दूर करने, पथरी अगर गुर्दे की हो तो उसको भी शरीर से बाहर निकाल देती है। यदि लीवर की समस्या हो तो मूली में ऐसा तत्व पाया जाता है जो लिवर को स्वस्थ रखता है। रक्तचाप, कैल्शियम और पोटैशियम के कारण नियंत्रित रहता है। कब्ज वाले लोगों को मूली जरूर खानी चाहिए क्योंकि इसमें रुक्षांस पाया जाता है तथा पेट संबंधित बीमारियों में भी मूली बहुत लाभप्रद है। वैसे भी मूली में एंटीऑक्सीडेंट एवं विटामिन पाए जाते हैं। शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाती है वही पाचन शक्ति को बहुत लाभप्रद है।
 गठिया के कई प्रकार मूली द्वारा दूर किए जा सकते हैं। यहां तक कि त्वचा को सुंदर बनाने के लिए भी काम में लेते हैं।मूली को सलाद के रूप में सब्जी बनाकर, पत्तों का साग बनाकर खाया जाता है। मूली खाने से जहां लाभ हैं वहां समस्याएं भी देखने को मिली हैं।

 डायरिया, पेट में दर्द जैसी समस्या अधिक मात्रा में मूली खाने से पैदा कर सकती है वरना मूली खाना शरीर के लिए बहुत अधिक लाभप्रद है। मूली खाने के बाद अक्सर गुड़ खाने से  खराब डकार नहीं आती। ग्रामीण क्षेत्रों में तो मूली के संग रोटी खाने का भी रिवाज चला हुआ है। लोहा बहुत अधिक मात्रा में पाए जाते हैं इसलिए इसके पत्ते साग सब्जी आदि के काम आते हैं जो खून की कमी को दूर करते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में किसान इसे उगाकर पशुओं के लिए चारे के रूप में भी प्रयोग करते हैं वहीं बाजार में बेचकर अपनी आय बढ़ा लेते हैं। इंसान के लिए है जितनी लाभप्रद हैं उतनी ही लाभप्रद पशुओं के लिए भी है। इसलिए पशुओं को भी खिलाना लाभ होता है।















**होशियार सिंह, लेखक, कनीना, महेंद्रगढ़ हरियाणा**

Thursday, January 30, 2020

घृत कुमारी
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ग्वारपाठा/घीकवाड़
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घृत कुमारी/एलोवेरा,घिकवाड़ जिसे ग्वारपाठा के नाम से भी जाना जाता है। एक औषधीय पौधे के रूप में विख्यात है। इसकी उत्पत्ति अफ्रीका में मानी जाती  है। इसकी प्रजातियां विभिन्न देशों में पाई जाती हैं। विभिन्न सभ्यताओं में इसे औषधि के रूप में प्रयोग करते आ रहे हैं। इसका उल्लेख आयुर्वेद के प्राचीन ग्रंथों में मिलता है।
घृत कुमारी के अर्क का प्रयोग बड़े स्तर पर सौंदर्य प्रसाधन और वैकल्पिक औषधि उद्योग जैसे त्वचा को युवा रखने वाली क्रीम, सुखदायक के रूप में प्रयोग किया जाता है। 
यह माना जाता है कि मधुमेह के इलाज में काफी उपयोगी हो सकता है। साथ ही यह मानव रक्त में लिपिड का स्तर काफी घटा देता है। इसमें उपस्थित यौगिकों के कारण यह मधुमेह में उपयोगी है। अब तो एड्स के रोगियों के लिए भी कैप्शूल तैयार किए गए हैं। यह रक्त को शुद्ध भी करता है।
ग्वारपाठा के पौधे का तना नहीं होता या फिर  बहुत छोटा होता है। यह गूद्देदार एवं रसीला पौधा होता है। इसका फैलाव नीचे से निकलती शाखाओं द्वारा होता
है। इसकी पत्तियां भाले जैसी, मोटी और मांसल होती हैं जिनका रंग, हरा, हरा-स्लेटी होने के साथ कुछ किस्मों में पत्ती पर सफेद धब्बे एवं धारियां भी होते हैं। पत्ती के किनारों पर की सफेद छोटे दांतों की एक पंक्ति होती है। गर्मी के मौसम में पीले एवं नारंगी रंग के फूल उत्पन्न होते हैं।अब इसे पूरे विश्व में उगाया जाता है। घृत कुमारी एक सजावटी पौधे के रूप में भी उगाया जाता है।
आजकल घृत कुमारी की खेती एक बहुत बड़े स्तर पर एक सजावटी पौधे के रूप में की जा रही है। अलोवेरा को इसके औषधीय गुणों के कारण उगा रहे हैं। यह रेतीले एवं शुष्क क्षेत्रों में भी मिलता है। ग्वारपाठा किसानों में बहुत लोकप्रिय है। घृत कुमारी हिमपात और पाले सहन नहीं कर पाता। परंतु यह कीटों का प्रतिरोध करने में सक्षम होता है। इसे गमले में भी आसानी से उगाया जा सकता है। पौधों के लिये बालुई मिट्टी जिसमें पानी का निकास अच्छा हो, धूप मिले वहां बेहतर ढंग से पैदा होता है। छिद्रयुक्त गमले में बेहतर ढंग से पैदा होते हैं। असर्दियों के दौरान घृत कुमारी सुषुप्त अवस्था में पहुंच जाती है और इस दौरान इसे बहुत कम नमी की आवश्यकता होती है।  सौंदर्य प्रसाधन उद्योग के लिये अलोवेरा जैल की आपूर्ति के लिये घृत कुमारी का बड़े पैमाने पर कृषि उत्पादन ऑस्ट्रेलिया, क्यूबा, डोमिनिक गणराज्य, भारत, जमैका, दक्षिण अफ्रीका एवं अमरीका में भी होती है।
ऐलोवेरा सौन्दर्यवर्धक और उपचारात्मक प्रभावों के संबंध में वैज्ञानिक प्रमाण कम एवं विरोधाभासी हैं। घृत कुमारी का स्वाद बहुत ही कड़वा होता है तथापि इसके जैल का प्रयोग व्यावसायिक रूप में उपलब्ध दही, पेय पदार्थों और कुछ मिठाइयों में एक घटक के रूप में किया जाता है। इसके बीजों से जैव इंधन प्राप्त किया जा सकता है। भेड़ के कृत्रिम गर्भाधान में सीमन को पतला करने के लिये घृत कुमारी का प्रयोग होता है। ताजा भोजन के संरक्षक के रूप में और छोटे खेतों में जल संरक्षण के उपयोग में भी आता है।
एलोवेरा शाकीय पौधा है जिसके पत्ते मोटे फूल जाते हैं जिनमें रस भरा होता है। संजीवनी के नाम से भी संबोधित किया जा सकता है। उसकी करीब 400 प्रजातियां पाई जाती है जिनमें से 5 प्रजातियां स्वास्थ्य के लिए लाभकारी है। इसे पौष्टिक भोजन के रूप में भी प्रयोग किया जाता है क्योंकि इसमें खनिज लवण, विटामिन आदि पाए जाते हैं। इसे प्रतिदिन सुबह प्रयोग किया जाए तो ताकत और स्फूर्ति प्रदान करता है।
 बवासीर आराम मधुमेह के लिए फायदेमंद, गर्भाशय के रोगों में लाभकारी, पेट से संबंधित समस्या में रामबाण, जोड़ों के दर्द में आराम, कई तरह की समस्याओं में जैसे कील मुंहासे, रूखी त्वचा, धूप से झुलसी त्वचा, चेहरे पर दाग, आंखों के काले घेरे, फटी एडिय़ा आदि सभी में लाभप्रद होता है।
 खून की कमी को दूर करता है, जलने काटने पर एंटी बैक्टीरियल तथा एंटी फंगल का गुण होता है। खून में शुगर नियंत्रित रखता है, मच्छरों को दूर भगाता है। एलोवेरा जेल, बाडी लोशन, हेयर जैल, शैंपू, साबुन, फेशियल क्रीम आदि के निर्माण में काम आता है। बालों को स्वच्छ बनाने के लिए  जेल प्रयोग किया जाता है। नारियल के तेल में मिलाकर कोहनी आदि पर लगाने से कालापन दूर हो जाता है। मुल्तानी मिट्टी में मिलाकर कील मुंहासे दूर होते हैं।
यह रक्तशोधक, पाचन क्रिया में लाभकारी होता है। नियमित एलोवेरा जूस पीने से चेहरे और त्वचा में निखार आता है। बालों में लगाने से रूखापन एवं डैंड्रफ दूर हो जाता है। खून की कमी को पूरा करता है वहीं उम्र भर स्वस्थ रखता है।  फेस वाश बनाने  में, हल्दी मिलाकर सिर में लगाने से सिर दर्द दूर, पीलिया दूर करता है वहीं गर्भावस्था में स्ट्रेस दूर करने में लाभप्रद है। वही इससे मसाज करने पर त्वचा खींची दिखाई देती है।
 आंवला और जामुन के साथ एलोवेरा को प्रयोग करने से आंखों की दृष्टि बढ़ती है। सेव करते समय कट हो जाए तो ऐलोवेरा लगाना लाभप्रद है। सूर्य की पराबैंगनी किरणों से बचाता है, एंटी आक्सीडेंट के रूप में काम आता है।
 सबसे बड़ी बात है कि कोई पशु इसको नहीं खाता। इसलिए खेत में लगा देने पर खेत में पशु नहीं घुसेंगे। इसलिए मेड का काम करेगा वही पशुओं को गर्मी में लाने के लिए भी इसका उपयोग किया जाता है। किसानों की आमदनी बढ़ाने में इसका विशेष योगदान है। एक बार उगाने पर तीन-चार सालों तक लगातार काम करता रहता है।

यह लोहा कैल्शियम, मैग्नीशियम, विटामिन फोलिक एसिड से भरा होता ह। इसलिए डायबिटीज, कैंसर बालों एवं त्वचा में लाभप्रद है। शरीर में रोग रोधक क्षमता का विकास करता है। पाचन क्रिया को तेज करता है, मानसिक स्वास्थ्य रखता है, गठिया में लाभप्रद है, कालस्ट्रोल को घटाता है, हृदय को स्वस्थ रखता है। मधुमेह को रोकता है।  स्वास्थ्य के लिए लाभप्रद है। सर्दी जुकाम कब्ज में बहुत लाभकारी है।
 इससे फेस क्रीम बनाई जाती हैं जिससे मुंहासे दूर होते हैं, झुर्रियां घटती हैं, बढ़ती उम्र रुकती है। धूप में जला हुआ व्यक्ति इसका उपयोग कर सकता है।
इतना लाभप्रद होते हुए भी यह कभी-कभी नुकसान कर सकता है। जरूरत से ज्यादा प्रयोग करने से त्वचा जलन, खुजली, कम ब्लड प्रेशर











वाले अधिक प्रयोग करे तो नुकसान वहीं  गर्भवती महिलाओं के लिए नुकसानदायक हो सकता है। पेट खराब की शिकायत कर सकता है।
**होशियार सिंह,लेखक,कनीना,महेंद्रगढ़, हरियाणा**

Wednesday, January 29, 2020

 शतावरी
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सतावर
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शतावरी/औषधियों की रानी
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शतावर एकबीजपत्री हराभरा एक पौधा होता है जिसका वानस्पतिक नाम एस्पैरागस रेसीमोसस है।
इसमें प्रोटीन, थयमिन, राइबोफ्लेविन, नायसिन,  पैंटोथैनिक अम्ल,  विटामिन,  फोलेट, कैल्शियम, लोहतत्व, मैगनीशियम, फास्फोरस,
पोटैशियम, जस्ता,मैंगनीज आदि खनिज पाए जाते हैं।
सतावर अथवा शतावर एक लिलिएसी कुल का  औषधीय गुणों वाला पादप है। इसे शतावर, शतावरी, सतावरी,सरनाई, सतमूल और सतमूली के नाम से भी जाना जाता है। यह भारत के साथ साथ दूसरे देशों में भी उगाई जाती है।। इसका पौधा अनेक शाखाओं से युक्त कांटेदार लता के रूप में मिलता। इसकी जड़ें गुच्छों के रूप में होतीं हैं। सर्दियों में यह पौधा सूख जाता है किंतु इस पर फूल एवं फल लगते हैं। फल बेरी के रूप में पाए जाते हैं। शतावर की लंबी बेल होती है जो हर तरह के जंगलों और मैदानी इलाकों में पाई जाती है। आयुर्वेद में इसे औषधियों की रानी माना जाता है। इसकी जड़ एक कंद के रूप में पाई जाती हैं। इसमें जो महत्वपूर्ण रासायनिक घटक पाए जाते हैं।

 सतावर का इस्तेमाल दर्द कम करने, महिलाओं में स्तनों में दूध की मात्रा बढ़ाने, मूत्र विसर्जन के समय होने वाली जलन को कम करने और कामोत्तेजक के रूप में किया जाता है। इसकी जड़ तंत्रिका प्रणाली और पाचन तंत्र की बीमारियों के इलाज, कैंसर, गले के संक्रमण, ब्रोंकाइटिस और कमजोरी में फायदेमंद होती है। यह पौधा कम भूख लगने व अनिद्रा की बीमारी में भी फायदेमंद है। अतिसक्रिय बच्चों और ऐसे लोगों को जिनका वजन कम है, उन्हें भी शतावर से फायदा होता है। इसे महिलाओं के लिए एक बढिय़ा टॉनिक माना जाता है। इसका इस्तेमाल कामोत्तेजना की कमी और पुरुषों व महिलाओं में बांझपन को दूर करने और रजोनिवृत्ति के लक्षणों के इलाज में भी होता है।
इसका उपयोग सिद्धा तथा होम्योपैथिक दवाइयों में होता है। इसका मूल यूरोप एवं पश्चिमी एशिया माना जाता है। इसकी खेती हजारों वर्ष से भी पहले से की जाती रही है। भारत के ठण्डे प्रदेशों में इसकी खेती की जाती है। इसकी जड़ों में कंद पाए जाते हैं मधुर तथा रसयुक्त होते हैं। यह पादप बहु-वर्षीय होता है। इसकी जो शाखाएं निकलतीं हैं वे बाद में पत्तियों का रूप धारण कर लेतीं हैं।

इसका उपयोग स्त्री रोगों जैसे प्रसव के उपरान्त दूध का न आना, बांझपन, गर्भपात आदि में किया जाता है। यह जोड़ों के दर्द एवं मिर्गी में भी लाभप्रद होता है। इसका उपयोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए भी किया जाता है।  इसका औषधीय महत्व भी है अत: अब इसका व्यावसायिक उत्पादन भी है। इसकी झाड़ी की पत्तियां पतली और सुई के समान होती है। इसका फल मटर के दाने की तरह गोल तथा पकने पर लाल होता है।
शतावर के पौधे को विकसित होने एवं कंद के पूर्ण आकार प्राप्त करने में 30 से 36 माह का समय लगता है। इसको पानी की अधिक आवश्यकता नहीं होती है। चूंकि यह एक कंदयुक्त पौधा है अत: दोमट रेतीली मिट्टी में इसे आसानी से खोदकर बिना क्षति पहुंचाए इसके कंद प्राप्त किए जा सकते हैं। काली मिट्टी में जल धारण क्षमता अधिक होने के कारण कंद खराब होने की संभावना बढ़ जाती है।
भारत के मध्यप्रदेश के कुछ भागों में उपजने वाला यह औषधीय गुणों से भरपूर शतावर प्रचुर मात्रा में मिलता है। वहां के ग्रामीण अंचलों में शतावर को नारबोझ के नाम से भी जाना जाता है।

  शतावरी की जड़ का उपयोग मुख्य रूप से ग्लैक्टागोज के लिए किया जाता है जो स्तन दुग्ध के स्राव को उत्तेजित करता है। इसका उपयोग शरीर से कम होते वजन में सुधारने के लिए के लिए,कामोत्तेजक के रूप में भी जाना जाता है। इसकी जड़ का उपयोग दस्त, क्षय रोग तथा मधुमेह के उपचार में भी किया जाता है। सामान्य तौर पर इसे स्वस्थ रहने तथा रोगों के प्रतिरक्षण के लिए उपयोग में लाया जाता है। इसे कमजोर शरीर प्रणाली में एक बेहतर शक्ति प्रदान करने वाला होता है।
यह फसल विभिन्न कृषि मौसम स्थितियों के तहत उग सकती है। यह सूखे के साथ-साथ न्यूनतम तापमान के प्रति भी वहनीय है।
इसे जड़ चूषक या बीजों द्वारा उगाया जा सकता जाता है। व्यावसायिक खेती के लिए बीज की तुलना में जड़ चूषकों को वरीयता दी जाती है।

शतावरी की रोपाई के करीब एक वर्ष बाद जड़ परिपक्व होने लगती है। जड़ को निकालकर सुखाया जाता है। जिसकी जड़ों में आयुर्वेद में अमृत कहा जाता है। शतावरी पुरुष और महिला में जा काम आती हुई। पशुओं के रोगों के लिए बहुत लाभप्रद है। स्वाद कड़वा है लेकिन कई बीमारियों में को दूर करती हैं। इसे जादुई औषधि नाम से भी पुकारा जाता है। शरीर को रोग मुक्त बनाने में इसका महत्वपूर्ण योगदान है।
यह विटामिनों की खान है। इसमें वे विटामिन पाए जाते हैं जो अन्य फल तथा सब्जियों में नहीं मिलते जिनमें विटामिन बी-1, विटामिन-ई तथा फोलिक एसिड का भी बेहतरीन स्त्रोत है। इसमें एंटीआक्सीडेंट भी पाए जाते यूरिन की परेशानी भी दूर करती है। शतावरी जहां पशुओं के लिए भी महत्वपूर्ण है। पशुओं के चारे में मिलाकर खिलाई जाती है। शतावरी की सब्जी भी बनाकर खाई जाती है। कैंसर में यह बहुत महत्वपूर्ण है। इसमें ग्लूटाथिओन पाया जाता है जो शरीर की गंदगी को बाहर निकालता है। इसमें हड्डियों के कैंसर, ब्रेस्ट कैंसर, लंग कैंसर, कोलन कैंसर रोगों को दूर भगाने की क्षमता होती है। जहां उच्च रक्तचाप की समस्या दूर होती हैं तथा दिल की बीमारी में भी लाभप्रद होती हैं। उनमें हृदय के लिए बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि इसमें पोटैशियम बहुत अधिक पाया जाता है। ऐसे में यह रक्तचाप को नियंत्रित करता है। इसके अतिरिक्त शरीर में सेक्स पावर को बढ़ाता है। फर्टिलिटी से जुड़ी परेशानियों को दूर करता है। गर्भधारण में शतावरी फायदा देती है।

 शतावरी शुगर के इलाज में काम आती है। माइग्रेन के रोग को दूर करती है, नींद न आने की परेशानी, बुखार आदि में बहुत महत्वपूर्ण है। चूर्ण सिरप और कैप्सूल आदि कई रूपों में मिलती है। कुछ हालातों में इसका सेवन डाक्टर की सलाह से ही खाना चाहिए जैसे गर्भवती महिला, उच्च रक्तचाप प्रमुख है। शतावरी शरीर में हार्मोन को बैलेंस करती है अधिक प्रयोग करना नुकसानदायक हो सकता है। प्याज की एलर्जी में वाले लोग शतावरी प्रयोग कर सकते हैं। एलर्जी गुर्दे की पथरी वालों को यह प्रयोग नहीं करनी चाहिए।
आयुर्वेद में सबसे पुरानी औषधि है जिसका प्राचीन ग्रंथों में भी उल्लेख मिलता है। आयुर्वेद में सौ रोगों में लाभकारी मानी गई है। इसमें एंटी आक्सीडेंट होने के तनाव, बढ़ती उम्र में बहुत असरदार जड़ी-बूटी मानी जाती है। इसे आयुर्वेद में जड़ी बूटियों की रानी कहा गया है। इसे ऐस्पैरागस रेसिमोसस नाम से जाना जाता है। इसकी जड़ तथा पत्तियां बहुत उपयोगी है। चमकती हुई त्वचा प्राप्त करने के लिए बहुत लाभप्रद है, मधुमेह, अनिद्रा बुखार, खांसी आदि में भी लाभप्रद है।
पावर टोनिक के रूप में सेक्स पावर को बढ़ा देती है। इसे गर्म दूध के साथ सेवन करना चाहिए वही यौन विकारों में लाभप्रद है। शतावरी में अमीनो एसिड पाए जाते हैं। सतावर के चूर्ण को शक्कर में मिलाते हुए एक कप दूध में पिया जाता है। गर्भावस्था में इसका नियमित सेवन करने से भ्रूण को संक्रमण से बचाता है, वजन को कम करना हो तो महत्वपूर्ण है। हड्डियों के लिए लाभप्रद है क्योंकि इसमें लोहे की मात्रातािा कैल्शियम पाया जाता है। अश्वगंधा, शतावरी और आमलकी एक साथ लेने से बहुत लाभ होता है। शरीर के प्रतिरक्षी तंत्र को मजबूत बनाती है। अवसाद में लाभप्रद है वही नपुंसकता को दूर करती है। अश्वगंधा, शतावरी सफेद मूसली, कौंच आदि के बीज बहुत अधिक लाभप्रद होते हैं। प्रजनन प्रणाली के लिए भी यह महत्वपूर्ण है वहीं रजोनिवृत्ति में बहुत फायदेमंद है क्योंकि शतावर की तासीर ठंडी पाई जाती हैं। कब्ज और सूजन में, स्तनपान में भी यह बहुत लाभप्रद होती है। अत्यधिक सेवन करने से वजन बढ़ जाता है, रक्तचाप बढ़ सकता है। शतावर को दूध के साथ ही लेना लाभप्रद होता है। ऐसे में शतावर के लाभ के साथ नुकसान भी होते हैं।

** होशियार सिंह, लेखक, कनीना, महेंद्रगढ़, हरियाणा**










Tuesday, January 28, 2020

झुंडा
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मूंज या सरकंडा 
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 ग्रामीण क्षेत्रों का उपहार झुंडा जिसे मूंज या सरकंडा नाम से भी जाना जाता है। इसका वानस्पतिक नाम सकरम मुंजा है। यही नहीं कास नामक घास, गन्ना तथा खेतों में जंगली बरूं घास भी इसी कुल से संबंधित है।
मूंज भारत के नदी जल किनारे आदि पर पाया जाता है। यहां तक कि खेतों के चारों ओर भी लोग मूंज पौधे को उगाते हैं। यह घास कुल का पौधा होता है जो प्राय 6 से 7 फुट तक भी बढ़ जाता है। जिस पर सफेद रंग के फूल आते हैं जो सजावट के रूप में काम में लाए जाते हैं।
 ढालदार, रेतीली, हल्की मिट्टी में भी उगाया जा सकता है। प्राय इसकी जड़े ही रोप दी जाती जो पूरा पौधा बन जाता है। एक पौधे से भारी संख्या में दूसरे पौधे तैयार किए जा सकते हैं इसे कायिक वर्धन कहा जाता है। इसके बीज विकसित नहीं होते। जड़ों से नया पौधा दो अढ़ाई महीनों में तैयार हो जाते हैं।
 पहाड़ों और रेतीले स्थानों एवं ढाल वाले क्षेत्र जहां मिट्टी कटाव होता है और पैदावार नहीं हो पाती वहां भी इसे लगाया जाता है। खेत के चारों ओर मेंढ़ के रूप में काम करता है। पशु इसे बड़े चाव से खाते हैं ऐसे में पशु चारे के रूप में लोग इसे प्रयोग कर लेते हैं। यहां तक कि बारिक काटकर इसे पशुचारे के रूप में काम में लेते हैं।
यह एकबीज पत्री पौधा होता है जिसकी रेशेदार जड़े पाई जाती हैं। जिन्हें झकड़ा जड़ कहते हैं। इसके लिए अधिक पानी हानिप्रद होता है इसलिए जिन क्षेत्रों में पानी
अधिक होता है वहां यह नष्ट हो जाता है। इसे जब काट लिया जाता जाता है फिर फुटाव आ जाता है और एक पौधा बन जाता है।       इसके एक पौधे से 60 तक सरकंडे तक पाए जाते हैं। एक बार उगाया गया सरकंडा 30 से 40 वर्ष तक लगातार काम करता है। उसकी कटाई करने से दुबारा पैदा हो जाता है। जहां इसकी किसी जमाने बहुत मांग होती थी आजकल की मांग घटती जा रही है।
 इसके पत्ते पर ब्लेड जैसी तेजधार पाई जाती है जो हाथ पैर को चीर डालती है। इसको सुखाने के बाद इसे इकट्ठा कर सुखाने के बाद पूला बनता है और पूले को मृत्युशैय्या बनाने को काम में लाया जाता है जिस पर गर्मियों में फूल आ जाते हैं। फूल गुच्छे के रूप में सफेद रंग के होते हैं। उस समय की कटाई करना उचित माना जाता है।
मूंज पौधा जहां कई रूपों में काम में लाया जाता है। पशुचारे के रूप में बेहतर पौधा होता है वहीं इसके अंदर अनेकों जीवधारी निवास करते हैं।जब इस पर फूल आ जाते हैं तो लोग इसे अनेकों प्रकार के खिलौने बनाने के लिए काम में लेते हैं। इसकी जड़ और पत्तियां औषधियों में काम आती है वही एक लाभदायक खरपतवार है। इसके अनेकों लाभ है। यह भारत ही नहीं अपितु अनेकों देशों में भी पाया जाता है।

ग्रामीण क्षेत्रों में कभी इसकी छत बनाई जाती है जिसे झोपड़ी नाम से जाना जाता है। आजकल झोपडिय़ां समाप्त हो रही है। होटल, रेस्तरां आदि में झोपड़ी देखने को मिल सकती है। इसकी सरकंडे से तुली निकाली जाती है जो सरखी अर्थात झोपड़ी बनाने के काम आती है वहीं इसके नीचे बैठकर लोग आराम करते थे। अब तो सरखियां भी समाप्त हो गई है।
 जहां पूला मृत्यु के समय काम में लाया जाता है वही इसके द्वारा बनाई हुई झोपड़ी में बारिश के समय
निराला आनंद आता है। ग्रामीण क्षेत्रों में इसकी तूली से रोटी रखने का डेेलिया बनाया जाता है वहीं सरकंडे की कलम बहुत प्रसिद्ध होती थी। सरकंडे से जहां मूंज निकालकर रस्सी बनी जाती है। रस्सी से जहां चारपाई भरने के काम में लेते हैं। जो बीमार व्यक्तियों के स्वास्थ्य के लिए बहुत उपयोगी होती है।
 इसकी चारपाई पर सोने से शरीर के कई रोग दूर हो जाते जिनमें कमर दर्द, हाथ पैर के दर्द, पशुओं के पैर की हड्डी जोडऩे के काम में लाया जाता है। वही छप्पर या झोपड़पट्टी के नीचे सोने से लू का प्रभाव कम हो जाता है। झुंडा जहां मिलता है वहां मृदा अपरदन बहुत कम हो जाता है।

सरकंडा छाज बनाने के काम में लाया जाता है विभिन्न प्रकार के खिलौने बनाने के काम में लेते हैं। तुली का घोड़ा बहुत प्रसिद्ध होता है। इसकी फाइबर रसिया बनाने के काम में लेते हैं। यह जंगली बहू वर्षीय घास कुल का पौधा है। इसकी जड़े भूमि को जकड़े रखती है जो आंधी बारिश आदि से मिट्टी कटाव को रोकती है। इसके रसिया हाथ के पंखे, टोकरी, छाया आदि बनाने के काम में लाते हैं वहीं फसल सुरक्षा के काम में भी लेते हैं।
इससे बना हुआ बिजना हवा करने के काम आता है वहीं छाज अनाज बरसाने के काम आता है। बच्चों के झूले छप्पर आदि सजावटी सामान भी बनाया जाता है। यह उन स्थानों पर बहुत काम आता है जहां रेतीली मृदा हवा और पानी द्वारा आसानी से कट जाती है। यह मृदा कटाव को बहुत अधिक तक रोकता है। बड़े-बड़े खेतों में मेढों पर लगाया जाता है ताकि गर्मी और सर्दी से फसल को बचाया जा सके। सब्जी एवं पौध तैयार करने के काम आता है।
फसल सुरक्षा में प्रयोग किया जाता है ताकि सर्दी और गर्मी से उनको बचाया जा सके। यह छप्पर बनाने के काम में लेते हैं वहीं होटलों में भी उसके छप्पर देखे जा सकते हैं। इसके फूल वाले भाग को जहां झाड़ू बनाने, चटाई बनाने, बनाने छाबड़ी बनाने के काम में लेते हैं। वर्मी कंपोस्टिंग के समय इसकी छाया काम में लाई जाती है। पतवार के रूप में भी लोग इसको काम लेते हैं वही ग्रीसिंग पेपर बनाने के काम में भी लाया जाता है। चारा आदि संग्रहण के लिए गोलाकार कूप भी बनाए जाते हैं जिनमें कई वर्षों तक चारा खराब नहीं होता। पशुओं के लिए बिछावन बनाने के काम में लाते हैं वहीं फसलों को पाले से बचाने के काम में लेते हैं। बकरियों का भेड़ बकरियों का बाड़ा बनाने चारे के रूप में काम में
लेते हैं वही ग्रामीण क्षेत्रों में उपले बनाकर इसके ऊपर सुखाते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों का उपहार है ग्रामीण क्षेत्रों में जहां आय का साधन भी बनता जा रहा है जो लोग बेरोजगार होते हैं थोड़ा बहुत खेत होता है वे उगाकर बेचकर अपनी रोटी रोजी भी कमा सकते हैं। इस पौधे की सबसे बड़ी विशेषता है कि बहुत से पक्षी जीव जंतु इस पर आश्रित होते हैं। बया नामक पक्षी इसी से अपना बहुत सुंदर घोंसला बनाता है। कभी कभार जब जरूरत हो तो आग जलाने के काम में भी लिया जाता है क्योंकि आग तेजी से पकड़ता है। इसके सरकंडे जहां मधुर स्वाद के होते हैं जिसके सरकंडों का रस निकालकर पीलिया रोग में भी काम में लेते हैं वही चोट आदि लगने पर इसकी पत्तियां पीसकर लेप किया जाता है।
** होशियार सिंह यादव, लेखक, कनीना महेंद्रगढ़, हरियाणा**

                   झुंडा
खेत क्यार में खड़े हुए
पानी, मूंज कहलाते हैं
पशुचारे के रूप में जन
इनको ही काट चराते हैं,
                               सक्रम बेंगालेंस कहाए
                             गन्ना कुल में पाया जाए
                             जंगली जीवों का आहार
                           गैंडा इसको चाव से खाए,
भारत देश का यह पौधा
गर्मी में हरा भरा हो जाए
झोपड़ी इसकी ही बनती
छप्पर को जन ललचाए,
                              जब कभी रस्सी बुननी हो
                              सामने मूंज मंजोली आए
                             कूट पीटकर बनती रस्सी
                             लो उससे चारपाई बनाए,
तुली झुंडे से ही बनती है
खिलौने बच्चों को खिलाए
सिरकी इनकी ही बनती है
गरीब सुंदर सा घर बनाए,
                              पान्नी होती अति तीखी है
                              ब्लेड की भांति करे काम
                             छांद बनाकर करते यापन
                             सर्दी गर्मी करती है तमाम,
इंसान स्वर्ग को पधारता है
पुला उठाकर जल्दी लाते
दाह संस्कार जब होता है
अग्नि इससे ही धंधकाते,
                              होटल में जब झोपड़ी दिखे
                            याद आता  खेत  का  झुंडा
                           जंगली जीव इसी में छुपते
                          आग लगा देता कोई गुंडा।
*******होशियार सिंह, लेखक, कनीना******