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Wednesday, October 14, 2020

तुलसी
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ईशान कोण में लगाते,
तुलसी गुणों की खान,
रोग दोष दूर कर देता,
गुणों का खजाना मान।

ओसिमम सेंकटम हो,
इसका वैज्ञानिक नाम,
विष्णु देव का द्योतक,
बनाता है बिगड़े काम।

आधा दर्जन प्रजातियां,
राम,श्याम प्रसिद्ध नाम,
पुराणों में वर्णन मिलता,
दुख दर्द मिटाना  काम।

गहरे हरे, काले पत्ते हो,
नीले लगते इसपर फूल,
घर आंगन में न लगाना,
इंसान की है बड़ी भूल।

तुलसी माला 108 गुरिये,
गुरिया माला कहलाती है,
पहने अगर इंसान इसको,
मन शांति, मिल जाती है।

भारतीय संस्कृति में शाक
पूजनीय पौधा माना जाए,
बड़े बड़े रोग दूर कर देता,
पल में इंसान को हंसाए।

सर्दी खांसी दूर करता यह,
आन्तरिक शक्ति बढ़ाता है,
जुकाम,बुखार सिर दर्द रोग,
तुलसी झटपट ही हटाता है।

मुंह की दुर्गंध दूर करता है,
मसूड़ों को बना देता  ठीक,
सांस, फेफड़ों की समस्या,
झटपट होती, इससे ठीक।

मुंह के छाले,सर्दी हो ठीक,
दिव्य औषधि कहलाती है,
कील मुहासे दूर कर देती,
चेहरा साफ, कर देती है।

पारे से भरपूर होती तुलसी,
दांतों से ना चबाना चाहिए,
एंटी आक्सीडेंट कहलाती,
एंटी बायोटिक रूप खाइये।

फ्लू, डेंगू, मलेरिया,प्लेग,
कैंसर को कर देती है दूर,
लगातार प्रयोग करते रहो,
चेहरे का बढ़ा देती है नूर।

घावों को यह ठीक करती,
कान दर्द में झटपट आराम,
जलंधर पत्नी से कथा जुड़ी,
गुणों से भरी तुलसी है नाम।।
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*होशियार सिंह यादव
मोहल्ला-मोदीका, वार्ड नंबर 01
कनीना-123027 जिला महेंद्रगढ़ हरियाणा
 व्हाट्सअप एवं फोन -09416348400
































तुलसी
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आसीमम सैंक्टम
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वैष्णवी/ विष्णु वल्लभ/ हरिप्रिया
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विष्णु तुलसी/ श्री-तुलसी/राम तुलसी/श्याम तुलसी
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होली बेसिल
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वृन्दा/ सुरसा, सुलभा, गौरी
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तुलसी एक द्विबीजपत्री औषधीय पौधा है जो प्राय घरों में गमलों में भी उगाया जाता है। झाड़ीनुमा करीब 3 फुट ऊंचा होता है। इसकी पत्तियां गहरी हरी/बैंगनी आभा वाली हल्के रोए से ढकी होती हैं। पत्तियां लम्बी, सुगंधित और अंडाकार होती हैं। पुष्प अति कोमल लंबा और कई रंगों वाला होता है। जड़ मूसला तथा कम गहरी पाई जाती हैं। बीज चपटे पीले/काले अंडाकार होते हैं। नए पौधे मुख्य रूप से वर्षा ऋतु में उगते है और ठंड के मौसम में फूलते हैं।
 तुलसी से मिलता जुलता पौधा वन तुलसी औषधीय पौधा होता है। तुलसी पुदीना, मुराया, नकद बावरी का पौधा इससे मिलता जुलता होता है। तुलसी का पौधा सामान्य रूप से दो-तीन वर्षों तक हरा बना रहता है। इसके बाद इसकी वृद्धावस्था आ जाती है। पत्ते कम और छोटे हो जाते हैं। अक्सर सर्दियों में यह पौधा नष्ट हो जाता है। इसे बचाने की जरूरत होती है।
 तुलसी एक पवित्र पौधा है। हिंदू इसे भगवान विष्णु की लक्ष्मी के अवतार के रूप में मानते है। हिंदुओं के घर के पास या उनके आस-पास तुलसी के पौधे उगते हैं। इसे गमलों में या घरों के बीच आंगन में लगाया जाता है। तेल के लिए इसकी खेती की जाती है।
  एक कहानी अनुसार शंखचूड़ जिन्होंने ब्रह्मा को अपनी तपस्या से प्रसन्न कर विष्णु-कवच प्राप्त किया और आशीर्वाद पाया कि जब तक उनकी पत्नी की शुद्धता बनी रहे और विष्णु-कवच उनके शरीर पर हो तो उन्हें कोई मार नहीं सकता। शंखचूड़ और तुलसी जल्द ही विवाहित थे। शंखचूड़ गर्व से भर गया और विश्व के प्राणियों को आतंकित किया। ब्रह्मांड को बचाने के लिए, शिव ने शंखचूड़ को युद्ध के लिए चुनौती दी जबकि विष्णु तुलसी के पास शुद्धता तोडऩे के लिए गए। विष्णु ने शंखचूड़ का रूप धारण किया और तुलसी को सहवास के लिए मजबूर किया। उसकी शुद्धता टूट जाने के साथ शंखचूड़ मारा गया।  विष्णु अपने वास्तविक रूप में प्रकट हुए और उन्होंने तुलसी से अपने पार्थिव शरीर को त्यागने और लक्ष्मी के रूप में अपने आकाशीय निवास पर लौटने का आग्रह किया। यह भी माना जाता है कि विष्णु ने वृंदा को तुलसी के पौधे में बदल दिया।
यह भी माना जाता है कि विष्णु की आंसू से तुलसी का गठन हुआ। तुलसी के पौधे को सभी पौधों में सबसे पवित्र माना जाता है। तुलसी के पौधे को स्वर्ग और पृथ्वी के बीच एक दहलीज माना जाता है। सभी देवता तुलसी में निवास करते हैं। तुलसी के पौधे वाले घर को कभी-कभी तीर्थस्थान माना जाता है।
ऐसा माना जाता है कि जो व्यक्ति प्रतिदिन तुलसी को जल चढ़ाता है और मोक्ष और विष्णु की दिव्य कृपा पाता है। मंगलवार और शुक्रवार को तुलसी पूजा के लिए विशेष रूप से पवित्र माना जाता है।
तुलसी विवाह के रूप में जाना जाने वाला एक समारोह हिंदुओं द्वारा प्रबोधिनी एकादशी को किया जाता है।  शालिग्राम/कृष्ण/ राम की छवि के रूप में विष्णु को तुलसी के पौधे की औपचारिक शादी है। दूल्हा और दुल्हन दोनों को औपचारिक रूप से पूजा जाता है और फिर पारंपरिक हिंदू शादी की रस्मों के अनुसार शादी की जाती है। तुलसी की लकड़ी से बना जप माला का सेट काम में लाया जाता है।

तुलसी की खेती धार्मिक और पारंपरिक चिकित्सा उद्देश्यों और इसके आवश्यक तेल के लिए की जाती है। तुलसी को गले में धारण भी करते हैं। सूखे पत्तों को कीटों को पीछे हटाने के लिए भंडारित अनाज के साथ मिलाया जाता है।
   तुलसी की दर्जनों प्रजातियां पाई जाती हैं किंतु इनमें आसीमम सैंक्टम को पवित्र तुलसी माना गया जाता है। इसकी भी दो प्रधान प्रजातियां हैं- श्री तुलसी जिसकी पत्तियां हरी होती हैं तथा कृष्णा तुलसी जिसकी पत्तियां नीले रंग की होती है। इसका कुछ बैंगनी रंग होता है। श्री तुलसी के पत्ते तथा शाखाएं श्वेत रंग की होते हैं जबकि कृष्ण तुलसी के पत्ते गहरे काले रंग की होती हैं।  काली तुलसी को ही बेहतर माना गया है। वेदों में भी तुलसी के गुणों एवं उसकी उपयोगिता का वर्णन मिलता है। इसके अतिरिक्त अंग्रेजी, होमियोपैथी और यूनानी दवाओं में भी तुलसी का प्रयोग होता रहा है।
  भारतीय संस्कृति में तुलसी को पूजनीय माना जाता है। धार्मिक महत्व के अतिरिक्त तुलसी औषधीय गुणों से भी भरपूर है। तुलसी कई बीमारियों में काम आती है। इसका उपयोग सर्दी-जुकाम, खांसी, दंत रोग और श्वास सम्बंधी रोग के लिए बहुत ही फायदेमंद माना जाता है।
तुलसी में गजब की रोगनाशक शक्ति है। विशेषकर सर्दी, खांसी व बुखार में यह अचूक दवा का काम करती है। तुलसी हिचकी, खांसी,जहर का प्रभाव व पसली का दर्द मिटाने वाली है। यह दूषित वायु खत्म होती है। यह दुर्गंध भी दूर करती है।
 तुलसी दिल के लिए लाभकारी, त्वचा रोगों में फायदेमंद, पाचन शक्ति बढ़ाने वाली और मूत्र से संबंधित बीमारियों को मिटाने वाली है। यह कफ और वात ठीक करती है। यह हिचकी, उल्टी, कृमि,  हर तरह के दर्द, कोढ़ और आंखों की बीमारी में लाभकारी है। तुलसी को प्रसाद में रखकर ग्रहण करने की भी परंपरा है। तुलसी खाने से कोई नुकसान नहीं होता अपितु शरीर में जाकर विभिन्न दोष दूर कर देती है।रामा तुलसी को गौरी तथा श्यामा तुलसी का उपयोग दवाओं में अधिक होता है।
     तुलसी का उपयोग पूजा में किया जाता है। यह त्वचा और बालों में सुधार करती है। रक्त शर्करा के स्तर को भी कम करती है और इसका चू्र्ण मुंह के छालों के लिए प्रयोग किया जाता है।
इसकी पत्तियों के रस को बुखार, ब्रोकाइटिस, खांसी, पाचन संबंधी शिकायतों में देने से राहत मिलती है। कान के दर्द में भी तुलसी के तेल का उपयोग किया जाता है। मलेरिया और डेंगू बुखार को रोकने के लिए महत्वपूर्ण है। लोशन, शैम्पू, साबुन और इत्र एवं तुलसी तेल का उपयोग किया जाता है।
तुलसी त्वचा के मलहम और मुंहासे के उपचार,मधुमेह, मोटापा और तंत्रिका विकार के इलाज में, पेट में ऐंठन, गुर्दे की स्थिति और रक्त परिसंचरण को बढ़ावा देने में, बीज मूत्र की समस्याओं के इलाज में इस्तेमाल किये जाते है।
    तुलसी के तेल में कई रासायनिक पदार्थ पाए जाते हैं। तुलसी के पत्तों में विटामिन सी एवं कैरीटीन होता है। तुलसी बीजों में हरे पीले रंग का तेल पाया जाता है।
मृत्यु के समय व्यक्ति के गले में कफ जमा हो जाने के कारण श्वसन क्रिया एवम बोलने में रुकावट आ जाती है। तुलसी के पत्तों के रस में कफ फाडऩे का विशेष गुण होता है इसलिए शैया पर लेटे व्यक्ति को यदि तुलसी के पत्तों का एक चम्मच रस पिला दिया जाये तो व्यक्ति के मुख से आवाज निकल सकती है।

यौन-रोगों की दवाइयां बनाने में तुलसी खास तौर पर इस्तेमाल की जाती है। पुरुषों में शारीरिक कमजोरी होने पर तुलसी के बीज का इस्तेमाल काफी फायदेमंद होता है। इसके अलावा यौन-दुर्बलता और नपुंसकता में भी इसके बीज लाभकारी होते है।
अनियमित मासिक धर्म की समस्या में तुलसी के बीज लाभकारी होते हैं। सर्दी या फिर हल्का बुखार है तो मिश्री, काली मिर्च और तुलसी के पत्ते को पानी में अच्छी तरह से पकाकर उसका काढ़ा पीने से फायदा होता है। तुलसी के पत्तों दस्त रोकने में भी सहायक होते हैं।
सांस की दुर्गंध दूर करने के लिए तुलसी के पत्ते काफी फायदेमंद होते हैं और नेचुरल होने की वजह से इसका कोई बुरा प्रभाव भी नहीं होता है। चोट लग गई हो तो तुलसी के पत्ते को फिटकरी के साथ मिलाकर लगाने से घाव जल्दी ठीक हो जाता है। तुलसी में एंटी-बैक्टीरियल तत्व होते हैं जो घाव को पकने नहीं देता है।
  त्वचा संबंधी रोगों में तुलसी खासकर फायदेमंद है। इसके इस्तेमाल से कील-मुहांसे खत्म हो जाते हैं और चेहरा साफ होता है। तुलसी के बीज को कैंसर के इलाज में भी कारगर हैं।मच्छरों के काटने से होने वाली बीमारी, जैसे मलेरिया में तुलसी एक कारगर औषधि है। तुलसी और काली मिर्च का काढ़ा बनाकर पीने से मलेरिया जल्दी ठीक हो जाता है। जुकाम के कारण आने वाले बुखार में भी तुलसी के पत्तों के रस का सेवन करना चाहिए। इससे बुखार में आराम मिलता है। साधारण खांसी में तुलसी के पत्तों से बहुत जल्दी लाभ होता है। तुलसी व अदरक का रस बराबर मात्रा में मिलाकर लेने से खांसी में बहुत जल्दी आराम मिलता है।
 
शिवलिंगी के बीजों को तुलसी और गुड़ के साथ पीसकर नि:संतान महिला को खिलाया जाता है वहीं गुर्दें की पथरी में तुलसी की पत्तियों को उबालकर बनाया गया काढ़ा शहद के साथ पिलाया जाता है। तुलसी फ्लू रोग ,थकान मिटाने, माइग्रेन की समस्या में,ु लसी के रस को त्वचा के रोगों में, संक्रमण में आराम मिलता है।
दिल की बीमारी में यह अमृत है। यह खून में कोलेस्ट्रॉल को नियंत्रित करती है। दिल की बीमारी से ग्रस्त लोगों को तुलसी के रस का सेवन नियमित करना चाहिए

**होशियार सिंह, लेखक,कनीना,हरियाणा**