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Wednesday, October 14, 2020

तुलसी
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ईशान कोण में लगाते,
तुलसी गुणों की खान,
रोग दोष दूर कर देता,
गुणों का खजाना मान।

ओसिमम सेंकटम हो,
इसका वैज्ञानिक नाम,
विष्णु देव का द्योतक,
बनाता है बिगड़े काम।

आधा दर्जन प्रजातियां,
राम,श्याम प्रसिद्ध नाम,
पुराणों में वर्णन मिलता,
दुख दर्द मिटाना  काम।

गहरे हरे, काले पत्ते हो,
नीले लगते इसपर फूल,
घर आंगन में न लगाना,
इंसान की है बड़ी भूल।

तुलसी माला 108 गुरिये,
गुरिया माला कहलाती है,
पहने अगर इंसान इसको,
मन शांति, मिल जाती है।

भारतीय संस्कृति में शाक
पूजनीय पौधा माना जाए,
बड़े बड़े रोग दूर कर देता,
पल में इंसान को हंसाए।

सर्दी खांसी दूर करता यह,
आन्तरिक शक्ति बढ़ाता है,
जुकाम,बुखार सिर दर्द रोग,
तुलसी झटपट ही हटाता है।

मुंह की दुर्गंध दूर करता है,
मसूड़ों को बना देता  ठीक,
सांस, फेफड़ों की समस्या,
झटपट होती, इससे ठीक।

मुंह के छाले,सर्दी हो ठीक,
दिव्य औषधि कहलाती है,
कील मुहासे दूर कर देती,
चेहरा साफ, कर देती है।

पारे से भरपूर होती तुलसी,
दांतों से ना चबाना चाहिए,
एंटी आक्सीडेंट कहलाती,
एंटी बायोटिक रूप खाइये।

फ्लू, डेंगू, मलेरिया,प्लेग,
कैंसर को कर देती है दूर,
लगातार प्रयोग करते रहो,
चेहरे का बढ़ा देती है नूर।

घावों को यह ठीक करती,
कान दर्द में झटपट आराम,
जलंधर पत्नी से कथा जुड़ी,
गुणों से भरी तुलसी है नाम।।
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*होशियार सिंह यादव
मोहल्ला-मोदीका, वार्ड नंबर 01
कनीना-123027 जिला महेंद्रगढ़ हरियाणा
 व्हाट्सअप एवं फोन -09416348400
































तुलसी
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आसीमम सैंक्टम
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वैष्णवी/ विष्णु वल्लभ/ हरिप्रिया
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विष्णु तुलसी/ श्री-तुलसी/राम तुलसी/श्याम तुलसी
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होली बेसिल
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वृन्दा/ सुरसा, सुलभा, गौरी
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तुलसी एक द्विबीजपत्री औषधीय पौधा है जो प्राय घरों में गमलों में भी उगाया जाता है। झाड़ीनुमा करीब 3 फुट ऊंचा होता है। इसकी पत्तियां गहरी हरी/बैंगनी आभा वाली हल्के रोए से ढकी होती हैं। पत्तियां लम्बी, सुगंधित और अंडाकार होती हैं। पुष्प अति कोमल लंबा और कई रंगों वाला होता है। जड़ मूसला तथा कम गहरी पाई जाती हैं। बीज चपटे पीले/काले अंडाकार होते हैं। नए पौधे मुख्य रूप से वर्षा ऋतु में उगते है और ठंड के मौसम में फूलते हैं।
 तुलसी से मिलता जुलता पौधा वन तुलसी औषधीय पौधा होता है। तुलसी पुदीना, मुराया, नकद बावरी का पौधा इससे मिलता जुलता होता है। तुलसी का पौधा सामान्य रूप से दो-तीन वर्षों तक हरा बना रहता है। इसके बाद इसकी वृद्धावस्था आ जाती है। पत्ते कम और छोटे हो जाते हैं। अक्सर सर्दियों में यह पौधा नष्ट हो जाता है। इसे बचाने की जरूरत होती है।
 तुलसी एक पवित्र पौधा है। हिंदू इसे भगवान विष्णु की लक्ष्मी के अवतार के रूप में मानते है। हिंदुओं के घर के पास या उनके आस-पास तुलसी के पौधे उगते हैं। इसे गमलों में या घरों के बीच आंगन में लगाया जाता है। तेल के लिए इसकी खेती की जाती है।
  एक कहानी अनुसार शंखचूड़ जिन्होंने ब्रह्मा को अपनी तपस्या से प्रसन्न कर विष्णु-कवच प्राप्त किया और आशीर्वाद पाया कि जब तक उनकी पत्नी की शुद्धता बनी रहे और विष्णु-कवच उनके शरीर पर हो तो उन्हें कोई मार नहीं सकता। शंखचूड़ और तुलसी जल्द ही विवाहित थे। शंखचूड़ गर्व से भर गया और विश्व के प्राणियों को आतंकित किया। ब्रह्मांड को बचाने के लिए, शिव ने शंखचूड़ को युद्ध के लिए चुनौती दी जबकि विष्णु तुलसी के पास शुद्धता तोडऩे के लिए गए। विष्णु ने शंखचूड़ का रूप धारण किया और तुलसी को सहवास के लिए मजबूर किया। उसकी शुद्धता टूट जाने के साथ शंखचूड़ मारा गया।  विष्णु अपने वास्तविक रूप में प्रकट हुए और उन्होंने तुलसी से अपने पार्थिव शरीर को त्यागने और लक्ष्मी के रूप में अपने आकाशीय निवास पर लौटने का आग्रह किया। यह भी माना जाता है कि विष्णु ने वृंदा को तुलसी के पौधे में बदल दिया।
यह भी माना जाता है कि विष्णु की आंसू से तुलसी का गठन हुआ। तुलसी के पौधे को सभी पौधों में सबसे पवित्र माना जाता है। तुलसी के पौधे को स्वर्ग और पृथ्वी के बीच एक दहलीज माना जाता है। सभी देवता तुलसी में निवास करते हैं। तुलसी के पौधे वाले घर को कभी-कभी तीर्थस्थान माना जाता है।
ऐसा माना जाता है कि जो व्यक्ति प्रतिदिन तुलसी को जल चढ़ाता है और मोक्ष और विष्णु की दिव्य कृपा पाता है। मंगलवार और शुक्रवार को तुलसी पूजा के लिए विशेष रूप से पवित्र माना जाता है।
तुलसी विवाह के रूप में जाना जाने वाला एक समारोह हिंदुओं द्वारा प्रबोधिनी एकादशी को किया जाता है।  शालिग्राम/कृष्ण/ राम की छवि के रूप में विष्णु को तुलसी के पौधे की औपचारिक शादी है। दूल्हा और दुल्हन दोनों को औपचारिक रूप से पूजा जाता है और फिर पारंपरिक हिंदू शादी की रस्मों के अनुसार शादी की जाती है। तुलसी की लकड़ी से बना जप माला का सेट काम में लाया जाता है।

तुलसी की खेती धार्मिक और पारंपरिक चिकित्सा उद्देश्यों और इसके आवश्यक तेल के लिए की जाती है। तुलसी को गले में धारण भी करते हैं। सूखे पत्तों को कीटों को पीछे हटाने के लिए भंडारित अनाज के साथ मिलाया जाता है।
   तुलसी की दर्जनों प्रजातियां पाई जाती हैं किंतु इनमें आसीमम सैंक्टम को पवित्र तुलसी माना गया जाता है। इसकी भी दो प्रधान प्रजातियां हैं- श्री तुलसी जिसकी पत्तियां हरी होती हैं तथा कृष्णा तुलसी जिसकी पत्तियां नीले रंग की होती है। इसका कुछ बैंगनी रंग होता है। श्री तुलसी के पत्ते तथा शाखाएं श्वेत रंग की होते हैं जबकि कृष्ण तुलसी के पत्ते गहरे काले रंग की होती हैं।  काली तुलसी को ही बेहतर माना गया है। वेदों में भी तुलसी के गुणों एवं उसकी उपयोगिता का वर्णन मिलता है। इसके अतिरिक्त अंग्रेजी, होमियोपैथी और यूनानी दवाओं में भी तुलसी का प्रयोग होता रहा है।
  भारतीय संस्कृति में तुलसी को पूजनीय माना जाता है। धार्मिक महत्व के अतिरिक्त तुलसी औषधीय गुणों से भी भरपूर है। तुलसी कई बीमारियों में काम आती है। इसका उपयोग सर्दी-जुकाम, खांसी, दंत रोग और श्वास सम्बंधी रोग के लिए बहुत ही फायदेमंद माना जाता है।
तुलसी में गजब की रोगनाशक शक्ति है। विशेषकर सर्दी, खांसी व बुखार में यह अचूक दवा का काम करती है। तुलसी हिचकी, खांसी,जहर का प्रभाव व पसली का दर्द मिटाने वाली है। यह दूषित वायु खत्म होती है। यह दुर्गंध भी दूर करती है।
 तुलसी दिल के लिए लाभकारी, त्वचा रोगों में फायदेमंद, पाचन शक्ति बढ़ाने वाली और मूत्र से संबंधित बीमारियों को मिटाने वाली है। यह कफ और वात ठीक करती है। यह हिचकी, उल्टी, कृमि,  हर तरह के दर्द, कोढ़ और आंखों की बीमारी में लाभकारी है। तुलसी को प्रसाद में रखकर ग्रहण करने की भी परंपरा है। तुलसी खाने से कोई नुकसान नहीं होता अपितु शरीर में जाकर विभिन्न दोष दूर कर देती है।रामा तुलसी को गौरी तथा श्यामा तुलसी का उपयोग दवाओं में अधिक होता है।
     तुलसी का उपयोग पूजा में किया जाता है। यह त्वचा और बालों में सुधार करती है। रक्त शर्करा के स्तर को भी कम करती है और इसका चू्र्ण मुंह के छालों के लिए प्रयोग किया जाता है।
इसकी पत्तियों के रस को बुखार, ब्रोकाइटिस, खांसी, पाचन संबंधी शिकायतों में देने से राहत मिलती है। कान के दर्द में भी तुलसी के तेल का उपयोग किया जाता है। मलेरिया और डेंगू बुखार को रोकने के लिए महत्वपूर्ण है। लोशन, शैम्पू, साबुन और इत्र एवं तुलसी तेल का उपयोग किया जाता है।
तुलसी त्वचा के मलहम और मुंहासे के उपचार,मधुमेह, मोटापा और तंत्रिका विकार के इलाज में, पेट में ऐंठन, गुर्दे की स्थिति और रक्त परिसंचरण को बढ़ावा देने में, बीज मूत्र की समस्याओं के इलाज में इस्तेमाल किये जाते है।
    तुलसी के तेल में कई रासायनिक पदार्थ पाए जाते हैं। तुलसी के पत्तों में विटामिन सी एवं कैरीटीन होता है। तुलसी बीजों में हरे पीले रंग का तेल पाया जाता है।
मृत्यु के समय व्यक्ति के गले में कफ जमा हो जाने के कारण श्वसन क्रिया एवम बोलने में रुकावट आ जाती है। तुलसी के पत्तों के रस में कफ फाडऩे का विशेष गुण होता है इसलिए शैया पर लेटे व्यक्ति को यदि तुलसी के पत्तों का एक चम्मच रस पिला दिया जाये तो व्यक्ति के मुख से आवाज निकल सकती है।

यौन-रोगों की दवाइयां बनाने में तुलसी खास तौर पर इस्तेमाल की जाती है। पुरुषों में शारीरिक कमजोरी होने पर तुलसी के बीज का इस्तेमाल काफी फायदेमंद होता है। इसके अलावा यौन-दुर्बलता और नपुंसकता में भी इसके बीज लाभकारी होते है।
अनियमित मासिक धर्म की समस्या में तुलसी के बीज लाभकारी होते हैं। सर्दी या फिर हल्का बुखार है तो मिश्री, काली मिर्च और तुलसी के पत्ते को पानी में अच्छी तरह से पकाकर उसका काढ़ा पीने से फायदा होता है। तुलसी के पत्तों दस्त रोकने में भी सहायक होते हैं।
सांस की दुर्गंध दूर करने के लिए तुलसी के पत्ते काफी फायदेमंद होते हैं और नेचुरल होने की वजह से इसका कोई बुरा प्रभाव भी नहीं होता है। चोट लग गई हो तो तुलसी के पत्ते को फिटकरी के साथ मिलाकर लगाने से घाव जल्दी ठीक हो जाता है। तुलसी में एंटी-बैक्टीरियल तत्व होते हैं जो घाव को पकने नहीं देता है।
  त्वचा संबंधी रोगों में तुलसी खासकर फायदेमंद है। इसके इस्तेमाल से कील-मुहांसे खत्म हो जाते हैं और चेहरा साफ होता है। तुलसी के बीज को कैंसर के इलाज में भी कारगर हैं।मच्छरों के काटने से होने वाली बीमारी, जैसे मलेरिया में तुलसी एक कारगर औषधि है। तुलसी और काली मिर्च का काढ़ा बनाकर पीने से मलेरिया जल्दी ठीक हो जाता है। जुकाम के कारण आने वाले बुखार में भी तुलसी के पत्तों के रस का सेवन करना चाहिए। इससे बुखार में आराम मिलता है। साधारण खांसी में तुलसी के पत्तों से बहुत जल्दी लाभ होता है। तुलसी व अदरक का रस बराबर मात्रा में मिलाकर लेने से खांसी में बहुत जल्दी आराम मिलता है।
 
शिवलिंगी के बीजों को तुलसी और गुड़ के साथ पीसकर नि:संतान महिला को खिलाया जाता है वहीं गुर्दें की पथरी में तुलसी की पत्तियों को उबालकर बनाया गया काढ़ा शहद के साथ पिलाया जाता है। तुलसी फ्लू रोग ,थकान मिटाने, माइग्रेन की समस्या में,ु लसी के रस को त्वचा के रोगों में, संक्रमण में आराम मिलता है।
दिल की बीमारी में यह अमृत है। यह खून में कोलेस्ट्रॉल को नियंत्रित करती है। दिल की बीमारी से ग्रस्त लोगों को तुलसी के रस का सेवन नियमित करना चाहिए

**होशियार सिंह, लेखक,कनीना,हरियाणा**

 

Sunday, August 9, 2020

   कचरी 
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       (कुकुमिस पुबिसेंस)
किसानों के खेतों में खुद
                    उगकर फैलती ही जाए
कई रंगों में फल मिले
                    कचरी फल वो कहलाए,
ताजा कचरी तरबूजे जैसी
                    खीरा की प्रकार कहलाए 
हरी और पीली रंग में हो
                       खट्टी मिट्ठी कचरी कहलाए,
पूरे विश्व में मिले यह फल
                     पकी और सूखी काम आए
राजस्थान का बेहतर फल
                     जन-जन में पहचान बनाए,
ग्रामीण किसान खेतों से तोड़
                   अपने घर में लेकर आते हैं
विभिन्न प्रकार से प्रयोग करे
                  चटनी एवं सब्जी खूब बनाएं,
जब पककर गिरे इसे सुखाते
                     पाउडर पीसकर फिर बनाते
कितने रोगों में रामबाण पदार्थ
                       फोड़ फुंसी हो तो इसे लगाते,
उत्तेजक टानिक कचरी होती
                     विभिन्न नामों से जग में जाने
राजस्थान में कई पकवान बने
                     कचरी की चटनी को जग माने,
कचरी सूखा पाउडर बना ले
                      वो कचरी का पाउडर कहलाए
जब भी घर में सब्जी बनाए तो
                    कचरी पाउडर स्वाद को बढ़ाए,
पेट रोगों में औषधि कहलाती
                   खाने का जग में स्वाद बढ़ाती
सूखे को भी सहन कर लेती है
                    कचरी की नहीं खेती की जाती,
आमचूर का विकल्प बेहतर है
                    पकने पर सलाद के काम आए
प्रोटीन व खनिजों से भरी हुई है
                    बच्चे और बूढ़ों के मन को भाए,
टमाटर की जगह काम में लेते
                    गरीब जनों की बेहतर है सब्जी
होटलों में अब यह जा पहुंची
                    तोड़ डालती है पेट की कब्जी,
प्रकृति का अनमोल उपहार यह
                     मारवाड़ी व्यंजनों में होती मशहूर
शरीर में ठंडक देने वाली होती
                      शरीर की गर्मी को कर देती दूर,
बड़े काम की जंगली कचरी है
                    पक जाए तो ले आओ इसे घर
खूब मजे से पकाकर खाते रहो
                    नहीं अब किसी रोग का है डर।।
         

***होशियार सिंह, लेखक, कनीना***
कचरी
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कचरी खीरा कुल का बहुत महत्वपूर्ण जंगलों में मिलने वाला फल है। प्राय बेल पर लगता है। इसे वैज्ञानिक भाषा में कुकुमिस पुबिसेंस नाम से जाना जाता है।
  राजस्थान में बहुत अधिक मात्रा में जंगलों में पैदा होती है। अपने आप भी पैदा होने के कारण यह जंगली बेल वाला पौधा है। स्वाद में कड़वे फल होते हैं। फलों पर धारियां पाई जाती है। बेल पर कई शाखाएं पाई जाती हैं जो 20 फुट लंबी हो सकती है। एक बेल पर कई कचरी के फल लगते हैं। कच्चे फल हरे रंग के होते हैं जो पकने के बाद पीले रंग के हो जाते हैं। कभी-कभी कचरी लाल रंग की भी पाई जाती है। फल की विशेषता है कि है बेल से अपने आप ही पककर अलग हो  हो जाती है। एक कचरी में सैकड़ों बीज पाए जाते हैं। जब फल पक जाता है तो स्वाद खट्टा मीठा हो जाता है। ग्रामीण क्षेत्रों में कई रूपों में प्रयोग किया जाता है। इसलिए ग्रामीण क्षेत्रों का प्रमुख गर्मियों का आहार, सब्जी कचरी है।
कचरी, ककड़ी, खीरा,खरबूजा आदि कुल से संबंधित रखती है। इस पौधे की बेल गर्मियों के मौसम में बारिश के समय बहुत अधिक मात्रा में उत्पन्न होती है और दूरदराज तक फैल जाती है। इस पर प्राय पीले फूल आते हैं और फूल के बाद फल लगते हैं। कचरी की सबसे बड़ी विशेषता है कि यह पक जाने के बाद खुशबू देने लग जाती है। एक विशेष प्रकार की महक कचरी से आती है। प्राय कचरी बेलनाकार होती है। कचरी का पौधा स्वाद में बहुत कड़वा होता है।
  हरे रंग की कचरी भी कड़वी होती है। इन्हें पशु बड़े चाव से खाते हैं। कचरी पथरी में बहुत फायदेमंद चीज है। कचरी जहां स्वाद में कड़वीी होती है बाद में कुछ मीठी भी बन जाती है। इसमें पर्याप्त मात्रा में विटामिन-सी पाया जाता है जो अनेक पौष्टिक तत्व की खान है।
 गर्म तासीर वाले लोगों को यह नहीं खानी चाहिए। कचरी विटामिन-सी के कारण जुकाम सर्दी से बचाती है। ग्रामीण क्षेत्र के लोग लाल मिर्च की चटनी बनाकर इसे बड़े चाव से खाते हैं ताकि उन्हें सर्दी से राहत मिल जाए। कचरी ग्वार की फली के साथ मिलाकर सब्जी के रूप में बाजरा या मक्की की रोटी के साथ चाव से खाते हैं जो पेट के रोगों को दूर करती है।

कचरी शरीर में पथरी को भी तोड़कर बाहर निकाल देती है। ऐसे में कची बहुत काम की चीज है। जब बेल से अलग होती है तो इसका पकने का एहसास होता है। कचरी खरीफ फसल के साथ अपने आप पैदा होती है। आयुर्वेद में इसक बहुत लाभ बताए हैं। आयुर्वेद में से मृर्गाक्षी कहा जाता है। यह जुकाम, पित्त, कफ एवं मधुमेह आदि रोगों में लाभप्रद मानी जाती है। बिगड़े हुए जुकाम को भी दूर कर देती है। जिन लोगों में गैस की समस्या हो तो उन्हें भी लाभ पहुंचाती है। बवासीर में कचरी की धूनी देना लाभप्रद होता है। यह वायु विकारों को शरीर से दूर कर देती है। यहां तक की कचरी को सुखाकर भी सब्जी के रूप में प्रयोग किया जाता है। यह रुचि को बढ़ाती है, पेट के कीड़ों को नष्ट कर देती है। कचरी के लगातार सेवन करने से जहां पेट के रोगों से छुटकारा मिलता है वही लकवा जैसी समस्या भी दूर हो जाती है। कचरी के बीजों को पीसकर सरसों के तेल का मिलाकर लकवा वाले स्थानों पर लेप किया जाता है जिससे लकवा समाप्त हो जाता है।
कचरी सिरदर्द, दस्त, बुखार आदि को दूर कर देती है। यह दिल और दिमाग को भी ताकत देने वाला फल है। प्राय ग्रामीण क्षेत्रों में सब्जी के रूप में बहुत प्रयोग करते हैं। चटनी भी प्रसिद्ध होती है। कचरी को विभिन्न सब्जियों में डालते हैं यहां तक कि खाटा का साग, कढ़ी आदि में भी कचरी का उपयोग किया जाता है। इसे कच्चा भी खाया जाता है वहीं सीधे सब्जी बनाकर खाया जाता है। कजरी को सुखाकर भी लंबे समय तक प्रयोग किया जाता है। कचहरी एक खरपतवार है जो खरीफ की फसल में अपने आप उग जाती है और फसलों को नुकसान पहुंचाती है। कचरी के पत्ते चौड़े और  कड़वे होते हैं। इसे विभिन्न क्षेत्रों में कई नामों से जाना जाता है। काचरी, गुराड़ी आदि भी इसी के नाम है। कचरी एक जंगली बेल है जिसे सब्जी के रूप में अधिक प्रयोग करते हैं। यह बिगड़े हुए जुकाम, पित्त, कफ  आदि में बेहतरीन दवा मानी गई है।
भागदौड़ की जिंदगी में इंसान कुछ तेज मसाले एवं फास्ट फूड खाने का शौकीन बनता जा रहा है। जंक फूड का परिणाम है कि इंसान के पेट की कई बीमारियां। उदर की बीमारियां कई रोगों को कारण बन सकती है। पेट को साफ रखने व सादा खाना खाने में  हरियाणा में प्रकृति में बहुतायत में मिलने वाला फल एवं सब्जी कचरी। कड़वी बेल पर मधुर एवं विटामिन सी से भरपूर फल लगते हैं।
 हरियाणा में कहने को तो बारिश कम होती है तथा नहरों में पानी कम आता है किंतु प्रकृति में अनमोल पदार्थ पैदा होते हैं। यहां खरपतवार के नाम पर अनेकों ऐसे पौधे उगते हें जो कोई काम नहीं आते हैं जिनपर भारी मात्रा में धन खर्च करके दवाएं छिड़कनी पड़ती हंै या फिर उन्हें हाथों से उखाड़कर फेंकना पड़ता है। इतनी मेहनत करने के बावजूद भी उनकी कृषि पैदावार पर्याप्त नहीं हो पाती है। किसानों के यहां रबी मौसम में जहां बथुआ नामक खरपतवार लाभकारी होती है वहीं खरीफ मौसम में कचरी व चौलाई जैसी खरपतवार पर्याप्त होती हे जो किसानों के लिए उपहार बनकर आई है। रेतीली मिट्टïी होने के कारण यहां सबसे अधिक कचरी पैदा होती है जिससे किसान ही नहीं अपितु गरीब तबके के लोग अपनी रोटी रोजी कमा लेते हैं। यह एक ऐसा उपहार है जिसे फल के रूप में भी खाया जाता है वहीं सब्जी के रूप में भी पकाया जाता है। दुकानों पर आम मिलता है।

  कचरी एक बेलदार पौधा होता है जिसे किसान कभी नहीं उगाता अपितु खेतों में अपने आप उग जाता है और भारी मात्रा में फल लगते हें। ये फल जब तक कच्चे होते हैं तब तक कड़वे होते हें और जब पककर पीले रंग के हो जाते हैं तो खट्टïे मीठे बन जाते हैं। एक समय ऐसा आता है कि फल बेल से अलग होकर गिर जाते हैं और बाद में गल सड़कर मिट्टïी में ही मिलकर अगले मौसम में स्वयं पैदा हो जाते हैं। जब बाजरा एवं ग्वार काटाई की जाती है तो कचरी को उठाकर किसान अपने घरों में लाते हें जिसे सूखाकर या फिर बगैर सूखाए ही काम में लेते हैं। बाजार में कचरी की भारी मांग है और यह पांच से दस रुपये किलो के हिसाब से बिकती हैं। यही कारण है कि कुछ गरीब तबके के लोग खेतों एवं नहरों आदि के किनारे से कचरी तोड़कर लाते हैं और ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्रों में जमकर बेचते हैं।
     ग्रामीण खानपान में कचरी नामक फल एवं सब्जी का अहं योगदान रहा है। ग्रामीण किसानों के लिए प्रकृति का अनमोल उपहार कचरी आजकल भारी मात्रा में उत्पन्न हो रही है। यूं तो किसानों के लिए कचरी एक खरपतवार है किंतु टमाटर का विकल्प कचरी ही है।  किसानों के खेतों में स्वयं पैदा होने वाली कचरी की तरफ किसानों का रुझान बढ़ रहा है। किसान अब इसे बाजार में बेचने लगे हैं और खरीदने वालों की संख्या भी कम नहीं है। अंग्रेजी दवाओं से परेशान मरीज भी देशी फल एवं सब्जियों का सहारा लेने लगे हैं जिनमें कचरी भी एक है। बिना खाद व पीड़कनाशी के ये फल लगने के कारण टमाटर व निम्बू का विकल्प बनता जा रहा है।
 खरीफ फसल के साथ किसानों के खेतों में स्वयं उत्पन्न होने वाली कचरी किसान के लिए ही नहीं
अपितु गरीब तबके के लोगों के लिए भी आय का जरिया बनती जा रही है। विटामिन, कार्बोहाइड्रेट एवं खनिज लवणों से परिपूर्ण कचरी को शहरी लोगों का खास फल व सब्जी कहा जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगा। बाजार में सब्जी की दुकानों पर भी भी कचरी को देखा जा सकता है।
   यह किसानों के खेतों में बगैर उगाए ही भारी संख्या में कचरी पैदा हो जाती है जिसे लेने के लिए दूर दराज से लोग आते हैं विशेषकर वे लोग 
जो बाजार की कीटनाशी व उर्वरकों से परिपूर्ण सब्जियों को खाकर तंग आ चुके हैं। इस फल को वे चाव से कच्चा तो खाते ही साथ में सब्जी के रूप में भी जायका बढ़ाते हैं। ग्रामीण महिलाओं का कहना है कि टमाटर व निम्बू की जगह पकी हुई सब्जियों में कचरी का सेवन बेहद स्वादिष्टï बन जाता है। ग्रामीण लोग तो चटनी बनाने में जहां माहिर होते हैं वहीं वे कचरी की चटनी बनाकर मेहमानों को भी परोसते हैं। ग्रामीण महिला लाली, धापा व कमला ने बताया कि वे कचरी को कई प्रकार की सब्जियों में डालते हैं और सब्जियों का जायका बढ़ाती हैं। जब अधिक मात्रा में कचरी पैदा होती है तो उनका उपयोग सूखाकर किया जाता है। इन फलों को काटकर धूप में सूखा लिया जाता है तथा समयानुसार उन्हें विभिन्न सब्जियों के बनाने में उपयोग किया जाता है।
  दैनिक रेहड़ी लगाने वाले  कचरी बेचकर वे अपनी रोटी रोजी कमा लेते हैं। प्रतिदिन दस किलो तक कचरी बेचकर साठ से सत्तर रुपये कमा लेते हैं जो उनके परिवार के भरण पोषण के लिए पर्याप्त है। एक वक्त था कि लोग कचरी खरीदने से डरते थे किंतु अब तो आम जन भी कचरी खरीदने लगा है। ऐसे में गरीबों का गुजारा चलता है। वनस्पतिशास्त्र में स्नातकोत्तर
एचएस यादव ने बताया कि कचरी शरीर में अमलों की पूर्ति करती है। इस फल में विटामिन सी, कार्बोहाइड्रेट व खनिज लवण पाए जाते हैं जो शरीर के लिए लाभप्रद होते हैं। इस वक्त कचरी का उत्पादन शुरू हो गया है जो वर्ष के अंतिम माह तक चलता रहता है। जब किसान खेत से बाजरे की फसल की कटाई करने लगते हैं तो उनके सामने कचरी भारी मात्रा में आती हें जिन्हें ग्रामीण इकट्ठी करके घरों में लेन-देन में प्रयोग करते हैं। कचरी की गुणवत्ता को देखते हुए अब तो होटलों में भी कचरी को प्रयोग होने लगा है।
             क्या-क्या बनाते हैं कचरी से ग्रामीण-
ग्रामीण लोगों से कचरी के पकवानों के विषय में बातचीत करने पर महिलाओं ने बताया कि कचरी से जायकेदार चटनी बनाई जाती है और हर सब्जी में डालकर टमाटर व निंबू की कमी को दूर किया जाता है। कढ़ी व देशी सब्जियों के निर्माण, सूखाकर पाउडर बनाकर सब्जियों का स्वाद बदलने, पकने पर फल के रूप में खाने व कुछ पेट के रोगों के इलाज में दवाइयां बनाने के लिए कचरी का उपयोग किया जाता है। उनका कहना है कि ग्रामीण लोग जो महंगी सब्जियां नहीं खरीद पाते उनके लिए कचरी उत्तम सब्जी का काम करती है। कचरी की चटनी बनाकर छाछ के साथ अति स्वादिष्टï लगती है।
किन-किन रूपों में खाया जात है--
कचरी को कच्चे रूप में फल की भांति खाया जाता है। बच्चे हो या बूढ़े इसे चाव से खाते हैं। अत: दोनों ही रूपों में इसका सेवन लाभकारी माना जाता है। इसे कई सब्जियों में डालकर प्रयोग किया जाता है। किसानों के लिए यह खरपतवार के रूप में उगता है और दीपावली के पर्व तक मधुर फल देता रहता है। किसान इसे कभी उपजाता नहीं है। कई रंगों एवं रूपों में यह पाई जाती है।
    
















  *होशियार सिंह,लेखक,कनीना,हरियाणा**

Sunday, August 2, 2020


गिलोय या गुड़ुची 
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              (टीनोस्पोरा कार्डीफोलिया)
जंगल, खेत, पहाड़ी पर
पान के पत्तों जैसी बेल
                         बहुवर्षीय पौधा होता है
                        रोगों में दिखाता है खेल,
नीम/आम अमृता अच्छी
आयुर्वेद में कहाए अमृत
                      बेरी इस पर लगते कभी
                       बुखार रोग में यह अमृत,
शरीर के तीनों ताप हरती
रक्तशोधक, हृदयरोगनाशी
                     लीवर का टोनिक कहाए
                    जूस पीओ जब हो खांसी,
पीलिया रोग में है कारगर
जन-जन की भूख बढ़ाए
                     खून कमी को दूर कर देती
                     खून के जहर को भी घटाए,
त्वचा जलन का दूर करती
कान, पेट दर्द को दूर करती
                      आंखों के लिए यह कारगर
                      खाज और खुजली दूर करती,
मोटापा रोग को दूर करती है
शरीर की वात को कम करे
                      कफ शरीर में जब बनता हो
                      गिलोय काढ़ा पीओ नहीं डरे,
जब पीत शरीर में बढ़ता हो
अमृता उसमें रामबाण होती
                       स्वाइन फलू जब फैलता हो
                      गिलोय उसमें कारगर होती,
प्राचीन समय से प्रयोग करते
पूरे भारत में यह पाई जाती
                      तने का भाग काटकर रोपते
                      हवाई जड़े इसके उग आती,
आयुर्वेद का अमृत होती है
प्रयोग करे जरूर इसका रस



                    बीमार व्यक्ति प्रयोग करे तो
                    खुल जाती उसकी नस-नस।
                 ***होशियार सिंह, लेखक, कनीना**

गिलोय
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टीनोस्पोरा कॉर्डीफोलिया
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गिलोय को संस्कृत में अमृता नाम दिया गया है। यह माना जाता है कि देवताओं और दानवों के बीच समुद्र मंथन के दौरान जब अमृत निकला और इस अमृत की बूंदें जहां-जहां छलककर गिरी वहां-वहां गिलोय की उत्पत्ति हुई। गिलोय ग्रामीण क्षेत्रों में भारी मात्र में पेड़ों पर चढ़ी हुई मिलती है। इसे पानी की ज्यादा जरूरत नहीं। यह लाव या मोटे रस्से जैसी पनप जाती है। अगर जड़ को तोड़ दे तो भी यह लंबे समय तक जीवित रह सकती है।
इसका वैज्ञानिक नाम टीनोस्पोरा कॉर्डीफोलिया है। इसके पत्ते पान के पत्ते जैसे दिखाई देते हैं, बड़े होते हैं। और जिस पौधे पर यह चढ़ जाती है, उसे मरने नहीं देती। इसके बहुत सारे लाभ आयुर्वेद में बताए गए हैं, जो न केवल आपको सेहतमंद रखते हैं, बल्कि आपकी सुंदरता को भी निखारते हैं।
  गिलोय एक ऐसी बेल है, जो व्यक्ति की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ा कर उसे बीमारियों से दूर रखती है। इसमें भरपूर मात्रा में एंटीऑक्सीडेंट्स होते हैं, जो शरीर में से विषैले पदार्थों को बाहर निकालने का काम करते हैं। यह खून को साफ करती है, बैक्टीरिया से लड़ती है। लिवर और किडनी की अच्छी देखभाल भी गिलोय के बहुत सारे कामों में से एक है। ये दोनों ही अंग खून को साफ करने का काम करते हैं।
  अगर किसी को बार-बार बुखार आता है तो उसे गिलोय का सेवन करना चाहिए। गिलोय हर तरह के बुखार से लडऩे में मदद करती है। इसलिए डेंगू के मरीजों को भी गिलोय के सेवन की सलाह दी जाती है। डेंगू के अलावा मलेरिया, स्वाइन फ्लू में आने वाले बुखार से भी गिलोय छुटकारा दिलाती है।
   गिलोय एक हाइपोग्लाइसेमिक एजेंट है यानी यह खून में शर्करा की मात्रा को कम करती है। इसलिए इसके सेवन से खून में शर्करा की मात्रा कम हो जाती है, जिसका फायदा टाइप टू डायबिटीज के मरीजों को होता है।
  यह बेल पाचन तंत्र के सारे कामों को भली-भांति संचालित करती है और भोजन के पचने की प्रक्रिया में मदद कती है। इससे व्यक्ति कब्ज और पेट की दूसरी गड़बडिय़ों से बचा रहता है।
गलाकाट प्रतिस्पर्धा के इस दौर में तनाव या स्ट्रेस एक बड़ी समस्या बन चुका है। गिलोय एडप्टोजन की तरह काम करती है और मानसिक तनाव और चिंता (एंजायटी) के स्तर को कम करती है। इसकी मदद से न केवल याददाश्त बेहतर होती है बल्कि मस्तिष्क की कार्यप्रणाली भी दुरुस्त रहती है और एकाग्रता बढ़ती है।
  गिलोय को पलकों के ऊपर लगाने पर आंखों की रोशनी बढ़ती है। इसके लिए आपको गिलोय पाउडर को पानी में गर्म करना होगा। जब पानी अच्छी तरह से ठंडा हो जाए तो इसे पलकों के ऊपर लगाएं।
  मौसम के परिवर्तन पर खासकर सर्दियों में अस्थमा को मरीजों को काफी परेशानी होती है। ऐसे में अस्थमा के मरीजों को नियमित रूप से गिलोय की मोटी डंडी चबानी चाहिए या उसका जूस पीना चाहिए। इससे उन्हें काफी आराम मिलेगा।
भारतीय महिलाएं अक्सर एनीमिया यानी खून की कमी से पीडि़त रहती हैं। इससे उन्हें हर वक्त थकान और कमजोरी महसूस होती है। गिलोय के सेवन से शरीर में लाल रक्त कणिकाओं की संख्या बढ़ जाती है और एनीमिया से छुटकारा मिलता है।
गठिया यानी आर्थराइटिस में न केवल जोड़ों में दर्द होता है, बल्कि चलने-फिरने में भी परेशानी होती है। गिलोय में एंटी आर्थराइटिक गुण होते हैं, जिसकी वजह से यह जोड़ों के दर्द सहित इसके कई लक्षणों में फायदा पहुंचाती है।
गिलोय शरीर के उपापचय (मेटाबॉलिजम) को ठीक करती है, सूजन कम करती है और पाचन शक्ति बढ़ाती है। ऐसा होने से पेट के आस-पास चर्बी जमा नहीं हो पाती और आपका वजन कम होता है।
कान का जिद्दी मैल बाहर नहीं आ रहा है तो थोड़ी सी गिलोय को पानी में पीस कर उबाल लें। ठंडा करके छान के कुछ बूंदें कान में डालें। एक-दो दिन में सारा मैल अपने आप बाहर जाएगा।
आप बगैर किसी दवा के यौनेच्छा बढ़ाना चाहते हैं तो गिलोय का सेवन कर सकते हैं। गिलोय में यौनेच्छा बढ़ाने वाले गुण पाए जाते हैं, जिससे यौन संबंध बेहतर होते हैं।

गिलोय में एंटी एजिंग गुण होते हैं, जिसकी मदद से चेहरे से काले धब्बे, मुंहासे, बारीक लकीरें और झुर्रियां दूर की जा सकती हैं। इसके सेवन से आप ऐसी निखरी और दमकती त्वचा पा सकते हैं, जिसकी कामना हर किसी को होती है। अगर आप इसे त्वचा पर लगाते हैं तो घाव बहुत जल्दी भरते हैं। त्वचा पर लगाने के लिए गिलोय की पत्तियों को पीस कर पेस्ट बनाएं। अब एक बरतन में थोड़ा सा नीम या अरंडी का तेल उबालें। गर्म तेल में पत्तियों का पेस्ट मिलाएं। ठंडा करके घाव पर लगाएं। इस पेस्ट को लगाने से त्वचा में कसावट भी आती है।
गिलोय न केवल सेहत के लिए बहुत फायदेमंद है, बल्कि यह त्वचा और बालों पर भी चमत्कारी रूप से असर करती है।
अगर आप बालों में ड्रेंडफ, बाल झडऩे या सिर की त्वचा की अन्य समस्याओं से जूझ रहे हैं तो गिलोय के सेवन से आपकी ये समस्याएं भी दूर हो जाएंगी।
गिलोय की डंडियों को छील लें और इसमें पानी मिलाकर मिक्सी में अच्छी तरह पीस लें। छान कर सुबह-सुबह खाली पेट पीएं। अलग-अलग ब्रांड का गिलोय जूस भी बाजार में उपलब्ध है।
चार इंच लंबी गिलोय की डंडी को छोटा-छोटा काट लें। इन्हें कूट कर एक कप पानी में उबाल लें। पानी आधा होने पर इसे छान कर पीएं। अधिक फायदे के लिए आप इसमें लौंग, अदरक, तुलसी भी डाल सकते हैं।
यूं तो गिलोय पाउडर बाजार में उपलब्ध है। आप इसे घर पर भी बना सकते हैं। इसके लिए गिलोय की डंडियों को धूप में अच्छी तरह से सुखा लें। सूख जाने पर मिक्सी में पीस कर पाउडर बनाकर रख लें।
बाजार में गिलोय की गोलियां यानी टेबलेट्स भी आती हैं। अगर आपके घर पर या आस-पास ताजा गिलोय उपलब्ध नहीं है तो आप इनका सेवन करें।
साथ में अलग-अलग बीमारियों में आएगी काम। अरंडी यानी कैस्टर के तेल के साथ गिलोय मिलाकर लगाने से गाउट(जोड़ों का गठिया) की समस्या में आराम मिलता है।इसे अदरक के साथ मिला कर लेने से रूमेटाइड आर्थराइटिस की समस्या से लड़ा जा सकता है।चीनी के साथ इसे लेने से त्वचा और लिवर संबंधी बीमारियां दूर होती हैं।आर्थराइटिस से आराम के लिए इसे घी के साथ इस्तेमाल करें। कब्ज होने पर गिलोय में गुड़ मिलाकर खाएं।

Tuesday, July 21, 2020

नूणखा/नूणिया





















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नोणिया
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पर्सलेन
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डकवीड/हागवीड/पर्सले
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पोर्टूलाका ओलेरासिया
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ग्रामीण क्षेत्रों में नोणखा नाम से जाना जाने वाला एक छोटा सा शाक कठोर जमीन पर बारिश के मौसम में देखने को मिलता है। यह एक रसीला पौधा होता है जिसकी ऊंचाई अधिक नहीं होती महज 20 से 40 सेंटीमीटर के बीच होती है। अब तो नोणिया की खेती की जाने लगी है। यह  विभिन्न देशों में पाया जाता है, वास्तव में यही खरपतवार माना जाता है जो किसान के लिए समस्या बन सकता है। परंतु भारत में कुछ खरपतवार बहुत उपयोगी है। भारत में कई खरपतवार जैसे बथुआ/चौलाई/श्रीआई और नौणखा खाद्य रूप में काम में लाये जाते हैं।
यह माना जाता है कि बहुत पहले से अमेरिका के लोगों द्वारा खाया जाता था इसके बीज फैलाए गए थे जो बहुत दूर-दूर तक फैल गए। इसके  चिकने लाल व पीले रंग के फूल आते हैं। इसकी पत्तियां और तने रसीले होते हैं जिनमें खट्टा स्वाद पाया जाता है।
 नोणखापर कुछ ही दिनों में फूल आ जाते हैं। फूल भी कुछ समय के लिए ही सुबह सवेरे खिलते हैं बाद में बंद हो जाते हैं। वास्तव में यह  जड़ी बूटियों में शामिल किया गया पौधा है। इसके फूल कुछ ही घंटों के लिए खिलने के बाद बंद हो जाते हैं। बीज बहुत छोटे कराले रंग के बनते हैं। वास्तव में इसका एक फल लगता है उस फल में अनेको बीज बनते हैं। इसका पत्ता सूखा सहन करने में सक्षम है इसलिए सूखी जमीनों पर, बंजर भूमि पर विशेष रूप से पाया जाता है। विभिन्न देशों में इसका उपयोग किया जाता है।
भारतीय लोग भी ऐसे कभी से परिचित हैं। इसे नोणखा नाम से जानते जिसे कच्चा भी सलाद के रूप में खाते हैं ज्यादातर लोग आज भी जब कहीं मिल जाता है तो इसे तोड़कर खाकर आनंद महसूस करते हैं। वास्तव में बहुत उपयोगी पौधा होता है। शरीर के लिए बहुत लाभप्रद माना जाता है। इसमें कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, विटामिन बी-2,बी-4,बी-6,बी-9, विटामिन सी विटामिन-ई, कैल्शियम, लोहा, मैग्नीशियम, मैंगनीज, फॉस्फोरस, पोटेशियम, जस्ता आदि भारी मात्रा में मिलते हैं। वास्तव में विटामिन-ई बहुत अधिक पाया जाता है जो संतानोत्पत्ति में अहम भूमिका निभाता है।
 वही ग्रामीण क्षेत्रों में विशेष सब्जी के रूप में खाया जाता है। हृदय को बचाने वाले तत्व पाए जाते हैंं। स्वाद खट्टा होने के कारण इसकी पत्ती, फूल, कलियां सभी खाए जाते हैं। ताजा सलाद के रूप में प्रयोग होता है वही कई रूपों में  प्रयोग करते हैं।
  नूणखा में कई अमल पाए जाते हैं ।इसकी पत्तियों का उपयोग टमाटर, प्याज, लहसुन अजवाइन के फूल, जैतून के तेल के साथ प्रयोग करते हैं। सलाद के रूप में खाया जाता है वहीं दही में मिलाकर रायता बनाते हैं वहीं भाजी,सब्जी, खाटा का साग, कढ़ी में डालकर खाया जाता है।
पौधा लाभप्रद होता है क्योंकि यह नमी को लंबे समय तक सूखे रखता है। विटामिन ई का अच्छा स्रोत है। यह औषधि के रूप में काम में लाया जाता है। बुखार दूर करने, एंटीसेप्टिक के रूप में, कीटों को शरीर से नष्ट करने में काम में लेते हैं। यह जीवाणु रोधी, एंटीऑक्सीडेंट का काम करता है।
यह घरों, बागों में सजावट के लिए काम लेते हैं तथा खेतों में अपने आप भी उगता है। दुनिया के अधिकांश क्षेत्रों में यह खरपतवार के रूप में पाए जाता हैं।
   भारत में मैदानों बेकार जमीन, सड़क के किनार,े खेती की गई जमीन, खाली स्थान पर पाया जाता है। युवा पत्ते बहुत स्वादिष्ट होते हैं भिंडी की सब्जी में डालकर भी लोग खाते हैं। यह पौधा  मसालेदार नमकीन स्वाद होने के कारण का कारण कच्चा खाना पसंद करते हैं। पत्तियों को सुखाकर भी लोग बाद में प्रयोग करते हैं। बीजों में फैटी एसिड, ओलिक एसिड, लिनोलेनिक एसिड पाये जाते हैं। इसकी राख को नमक के रूप में भी प्रयोग करते हैं क्योंकि यह बहुत नमकीन होता है।
 विश्व स्वास्थ्य संगठन की सबसे अधिक उपयोग किए जाने वाले औषधीय पौधों की सूची में इसका नाम शामिल किया है यह है मांसपेशियों को आराम देने वाला, घाव को भरने वाला पौधा होता है। ज्वरनाशी होता है। इसके पत्तों में ओमेगा-3 पाया जाता है जो दिल के दौरे को रोकने में महत्वपूर्ण होता है। पौधों में यह एक ऐसा पौधा है जिसमें ओमेगा-3 पाया जाता है। इसलिए जो दिल के मरीज होते हैं उन्हें नियमित रूप से खाना चाहिए। किसके बीज अखरोट जैसे होते हैं। इसका का ताजा रस गला, खांसी के उपचार में किया जाता है, पत्ती से बनी चाय का उपयोग पेट दर्द में किया जाता है। जब कोई जीव डंक मार जाता है तो इसका रस लगाना चाहिए, वही कानों में अगर दर्द है कीट डंक मार दिया है तो भी प्रयोग में लाया जाता है। गर्भवती महिलाओं के पाचन समस्या को दूर करने के लिए भी प्रयोग किया जाता है। ऐसे में ग्रामीण क्षेत्रों का यह बहुत उपयोगी पौधा होता है। बुजुर्ग इसको ढूंढ कर लाते हैं और खा जाते हैं। 

***होशियार सिंह लेखक, कनीना, जिला महेंद्रगढ़, हरियाणा, भारत********
नूनिया या नूणखा
      (पोर्टुलाका ओलिरेसी)
कठोर जमीन कम पानी
            मिलता सहता एक शाक
पिग विड, मास रोज नाम
           जंगल में जमाता ये धाक,
40 प्रकार का उगाया जाए
             सब्जी रूप में खाया जाए
कड़वा, नमकीन स्वाद हो
             सलाद, सूप बनाया जाए,
पत्ता, टहनी, फूल मिलाकर
             ओमेगा-तीन करते हैं प्रदान
विटामिन ए, सी, ई आदि
             देता है यह बेहतर खाद्यान,
रात को पत्ते गैस को पकड़ता
             मेलिक एसिड में बदलता है
शाम के समय इसके पत्ते ही
             अधिक ग्लूकोज उगलते हैं,
लोहा, पोटाशियम, कैल्शियम
          खनिजों की मिलती है भरमार
कीट, सांप, भिर्ड, ततैया काटे
          पत्ते इसके पिसकर ही लगाए,
जलन और दर्द को दूर देता है
            पीलिया, पेचिस को दूर करता
आंतों के रक्त को रोकता तुरंत
            दवाएं बनाने में यह काम आए,
शाक सब्जी बनाए जायकेदार
        किसान खेतों में खड़ा मिलता
धरती पर खूब फैलता रहता है 



            नहीं हवा में यह कभी हिलता।
           *** होशियार सिंह, लेखक, कनीना**