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Wednesday, January 8, 2020

चौलाई
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अमरेंथस विर्डिज
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राजगिरी/रामदाना 

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 चौलाई एक बेहतर साग होता है। वास्तव









 में यह चौलाई एक शाक के रूप में मिलती है। इसे अंग्रेजी में अमारंथूस कहते हैं। यह पूरे संसार में पाई जाती है। इसकी अब तक करीब 60 प्रजातियों की पहचान की जा चुकी है।
 जहां छोटे पत्तों की, कांटो वाली, बड़े पत्तों की, बैंगनी फूलों वाली, लाल फूल वाली कई रंगों में मिलती है। गर्मी और बरसात के मौसम में चौलाई हरी सब्जी के रूप में काम में लाई जाती है। आमतौर पर साग और पत्तेदार सब्जियां बनाने के काम में लाया जाता है।
इस पौधे को गर्मी तथा वर्षा दोनों ऋतुओं में उगाया जा सकता है। चौलाई का सेवन जहां भाजी के रूप में किया जाता है जो विटामिन-सी से लबालब होती है। इनमें अनेकों औषधीय गुण पाए जाते हैं।
 आयुर्वेद के अनुसार शरीर के कई रोगों में लाभकारी है। लाल चौलाई में जहां सोना धातु के कण पाए जाते है जो अन्य साग सब्जी हो नहीं पाया जाता। चौलाई के सभी भाग अर्थात जड़, तना, फूल, पत्ते, फल काम में लाए जाते हैं।
 उनकी पत्तियों में जहां प्रोटीन विटामिन-ए, सी तथा खनिज लवण पाए जाते हैं।
 लाल चौलाई खून की कमी को दूर करती है। पेट के रोगों बहुत लाभप्रद है। इसमें रेशे पाए जाते हैं आंतों से चिपके हुए मला को बाहर निकालने में मदद करते हैं तथा कब्ज को दूर कर देते हैं।
 इसके उपयोग से पाचन संस्थान को शक्ति मिलती है। जब छोटे बच्चों में कब्ज हो जाती है तो चौलाई के पत्तों का रस दिया जाता है। जन्म के बाद दूध पिलाने वाली माताओं के लिए बहुत उपयोगी है। इसकी जड़ पीसकर मांड एवं शहद में मिलाकर पीने से श्वेत प्रदर रोग ठीक होते हैं। इसलिए महिलाओं के लिए यह रामबाण औषधी है। यह भी माना जाता है कि जिन महिलाओं में बार बार गर्भपात होता है उनको इसका उपयोग करना चाहिए।
 अनेकों प्रकार के विष जैसे चूहे, बिच्छू आदि का चौलाई द्वारा दूर किया जा सकता है। चौलाई का नित्य सेवन करने से अनेक विकार दूर होते हैं। जहां छोटी पत्ते की चौड़ाई, बड़ी पत्ते की चौलाई, लाल चौलाई, मोरपंखी अनेकों प्रकार प्रजातियां मिलती हैं। यहां तक कि जंगलों में मिलने वाली कांटेदार चौलाई बहुत भारी मात्रा में फैलती है।

हर प्रकार की चौलाई कुछ काम आती है। ग्रामीण क्षेत्रों में जंगली चौलाई जिसे अमारंथूस विरिडिज नाम से जाना जाता है जिसके पत्ते पकाकर खाए जाते हैं जो पाचन तंत्र की कमियों को दूर करते हैं। अमारंथूस स्पाइनोसस एक चौलाई का प्रकार है जिसे कंटीली चौलाई कहते हैं। जो लीवर, मूत्र तंत्र में विकारों को दूर करने के काम आती है वही घाव को भरने, जले हुए की जलन दूर करने के काम आती है।
जोड़ों में दर्द सूजन आता है उन पर भी इसका लेप किया जाता है। खांसी, दमा दूर करने के लिए इसकी कलियां काम में लाई जाती है। इस पौधे के जड़ों पर छाल को
पीसकर मलेरिया रोग में काम में लाया जाता है। यहां तक कि इसके पत्ते सरसों के तेल में गर्म करके घाव एवं चोट के दर्द आदि को दूर करने के लिए काम में लाया जाता है।
चौलाई की खेती भी की जाती है और किसान भी इसको उगा कर बाजार में बेचकर मुनाफा कमाते हैं।
 चुौलाई को कच्चे रूप में नहीं खाना चाहिए क्योंकि इसमें आक्जलेट और नाइट्रेट पाए जाते हैं जिन्हें उबालकर ही दूर किया जा सकता है। चौलाई में विटामिन और खनिज पर्याप्त मात्रा में पाए जाते हैं। चौलाई जहां आंखों की रोशनी बढ़ाती हैं वही चौलाई हड्डियों को मजबूत करने, बालों के लिए लाभप्रद, वजन
कम करने, मधुमेह और प्रोटीन का अच्छा स्रोत है। सूजन में भी चौलाई काम आती है। कोलेस्ट्रोल कम करती है, रक्ताल्पता की बीमारी को तुरंत दूर करती है। यही नहीं चौलाई के अनेकों लाभ है लेकिन शरीर में कुछ नुकसान भी करती है खासकर छोटे बच्चे चौलाई में पाए जाने वाले प्रोटीन को सहन नहीं कर सकते इसलिए पेट दर्द का कारण बनते हैं। इसी प्रकार कैल्शियम अवशोषण को भी बढ़ाता है यह पशु रोगों में भी उतनी ही कारगर है जितनी इंसानों में। पशुओं के रोग विशेषकर कब्ज, शारीरिक विकारों में लाभप्रद है।
ग्रामीण क्षेत्रों में इससे खाटा का साग,कढ़ी तथा विभिन्न सब्जियों में प्रयोग में लाया जाता है। ग्रामीण क्षेत्रों में बहुत प्रसिद्ध साग बनता है। यहां तक कि इनको भाजी बनाने के काम में भी लेते हैं। श्वास संबंधी समस्या, पाचन तंत्र संबंधी समस्या भी यह लाभप्रद है। जन को इसका उपयोग जरूर करना चाहिए।
 





***होशियार सिंह, लेखक, कनीना, महेंद्रगढ़ हरियाणा***

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