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Thursday, March 24, 2022

 
                                     बोतल ब्रश
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कैलिस्टेमोन सिट्रिना
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बोतल ब्रश नाम से अभिप्राय है कि जिस प्रकार इंसान बोतल को साफ करने के लिए ब्रश प्रयोग करता है, यह ब्रश इंसान ने बोतल ब्रश नामक पौधे से शिक्षा लेकर बनाई थी। जिसका वैज्ञानिक नाम कैलिस्टेमोन सिट्रिना है। वास्तव में यह पौधा आस्ट्रेलिया में एक समस्या बना हुआ है। इस पौधे का मूल भी आस्ट्रेलिया ही है।
 विभिन्न स्थानों पर अद्भुत छटा के कारण इसे उगाया जाता है। यद्यपि इसके ब्रश को देखकर ऐसा लगता है कि सच में प्रकृति भी बोतल को साफ करने के लिए ब्रश बनाती है लेकिन प्रकृति की बोतल कोई और नहीं अपितु वातावरण की अशुद्धियां हैं जिनको साफ यह पौधा करता है्। वास्तव में कैलिस्टेमोन दो शब्दों से मिलकर बना है जिसका अर्थ है बहुत सुंदर नर अर्थात इसके नर भाग जिन्हें पुंकेसर कहते हैं। इस ब्रश के ये फूल होते हैं जिनमें नर दूर से दिखाई देते हैं तथा रंगीन होते हें। अति सुंदर दूर से लुभावने गहरी लाल नारंगी रंग के गीतों को आकर्षित करने वाले और गर्मियों में भारी मात्रा में फूलों अर्थात ब्रश लगते हैं। इसके फूल ब्रश का रूप लिये होने के कारण ही बोतल ब्रश कहते हैं। यह पौधा गर्मी को सहन करने की क्षमता रखने वाला होता है। यहां स्पष्ट  है कि एक इंसान प्रकृति से बहुत कुछ सीख पाया है और सीखता रहेगा। जहां तक जीव-जंतु पेड़-पौधे सभी से इंसान कुछ न कुछ सीखता रहता है। जैसे  बोतल की ब्रश बनाने के लिए बोतल ब्रश से इंसान ने शिक्षा ली। यह बहुत ऊंचा पेड़ तक हो सकता है। यह पौधा जब बड़ा हो जाता है तो इसके फूल बोतल ब्रश जैसे लगते हैं बाद में बीजों में बदल जाते हैं और इसके बीजों से इस पौधे को तैयार किया जा सकता है। यहां तक कि इसकी टहनी एवं तने आदि को काटकर भी नया पौधा तैयार किया जा सकता है। अक्सर इसके फूल लाल रंग के कुछ पीले, हरे, संतरी एवं सफेद आदि अनेक रंगों के पाए जाते हैं। इसके बीज कैप्सूल के रूप में मिलते हैं। पोधा जहां गमलों में, क्यारियों में ,बाग बगीचे में कहीं पर भी उगाया जा सकता है जो बाग बगीचे की शोभा बढ़ा देता है। गर्मियों में इसके फूल जब आते हैं तो दूर से दिखाई देता है। यह पौधा सजावटी पौधों में से एक है।
यह अक्सर 60 फीट तक ऊंचा हो सकता है। कैलिस्टेमोन सीट्रिना अनेक दवाओं में काम आती है।
पौधा औषधीय तथा विभिन्न रासायनिक पदार्थों के निर्माण में काम आता है। वैसे भी देखा जाए तो भारत में करीब 6000 पौधे विभिन्न दवाई औषधियां आदि बनाने के काम आते हैं। वास्तव में बोतल ब्रश कभी आस्ट्रेलिया से शुरुआत हुई थी वहां का मूल है अब पूरे विश्व में फैल गया है। यह सुगंधित लकड़ी वाला पेड़ है इसका उपयोग दस्त, पेचिश, गठिया के इलाज में किया जाता है। यह फेफड़ों में अशुद्धियों को दूर करने, कीटनाशक के रूप में उपयोग किया जाता है।
वास्तव में बोतल ब्रश बहुत शानदार तथा मन को लुभाने वाला पौधा है। घरों से लेकर के कार्यालयों तथा विभिन्न स्थानों पर, बाग बगीचों में उगाया जाता है।










             -डा होशियार सिंह यादव

Tuesday, March 22, 2022

    सत्यानाशी

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दिल्ली में मारे थे 60 लोग

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भड़भाड़

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कटेली

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आर्जिमोन मेक्सिकाना

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सत्यानाशी का नाम लेने के बाद स्पष्ट हो जाता है कि यह पौधा विनाश का कारक बन सकता है। सत्यानाशी को ग्रामीण लोग कटेली, भड़भाड़ तथा झलझाई आदि नामों से जानते हें। यह पौधा अति डरावना होता है जिसे आर्जिमोन मक्सिकाना नाम से जाना जाता है।
आर्जीमोन जिसने 1998 में दिल्ली में  ड्रॉप्सी नामक रोग फैलाया था जिसमें 60 लोग मारे गये थे तथा 3000 बीमार पड़ गये थे जिन्हें दवा आदि देकर लंबे समय के बाद ही राहत मिली थी। सत्यानाशी नाम से जाना जाने वाला यह एक विषैला पौधा होता हे। ग्रामीण क्षेत्रों में घ्मोई/कटेली/स्वर्णक्षीरी आदि नामों से जाना जाता है। यह भारत का पौधा नहीं अपितु मेक्सिको, अमेरिका का मूल है। मेक्सिको में सबसे पहले मिलने के कािरण इसे आज भी मैक्सिकाना नाम से जानते हैं। किंतु धीरे-धीरे यह सभी देशों में  विभिन्न स्थानों पर फैल गया है।
 वास्तव में यही पौधा है इसने दिल्ली में 1998 में ड्रॉप्सी रोग फैलाया था जिसमें 60 लोगों की मौत हो गई थी और तीन हजार के करीब बीमार रहे थे। सत्यानाशी नाम से अभिप्राय है जो हर प्रकार से घातक साबित हो सकता है। इसको देख कर ही इंसान को डर लगता है किंतु इसके फूल बहुत सुंदर लगते हैं। सोने जैसे पीले रंग के किंतु इसमें सोने जैसा ही दूध निकलता है। इसलिए इसको स्वर्णक्षीरी भी कहते हैं। सत्यानाशी के पत्ते लंबे तथा कांटों से भरमार होती है वही फूलों के साथ भी कांटे होते हैं किंतु इसके फल कांटेदार होने के साथ-साथ चौकोर जैसे होते हैं जिसमें अनेकों काले रंग के बीच पाए जाते हैं। इसके बीजों को यदि जलते हुए कोयले पर डाल दिया जाए तो एक विशेष प्रकार की आवाज करते हुए जलते हैं। यह आवाज भड़भड़ करती है इसलिए इसको भड़भाड़ भी कहते हैं। इसके भी जहरीले होने के कारण तथा सरसोंसे मिलते जुलते होने के कारण 1998 में सरसों तथा विभिन्न प्रकार के तैलिये बीजों में मिला दिए इसके कारण रोग फैल गया। ड्रॉप्सी के कारण लोग मारे गये थे। इस तेल को प्रयोग करने से पेट की झिल्ली में पानी भरने लग जाता है एपिडेमिक ड्रॉप्सी नाम से जाना जाता है। यह व्यक्तियों के लिए जानलेवा साबित हुआ। बाद में पता चला कि किसी ने गलती से सरसों एवं सूरजमुखी आदि बीजों में सत्यानाशी के बीज मिला दिये थे।  तत्पश्चात पूर्ण जांच करके ही तेल की बिक्री  शुरू हुई थी। यद्यपि यह डरावना पौधा है परंतु औषधीय है। यह पौधा त्वचा पर घाव आदि को भरने के लिए काम में लाया जाता है। पौधे के दूध में विषाणुनाशी गुण होता है इसकी विशेषता है कि पुराने से पुराना घाव भी ठीक हो जाता है। कुष्ठ रोग भी दूर करने की क्षमता पाई जाती है।  दाद, खाज खुजली आदि विभिन्न प्रकार के रोगों में काम में लाया जाता है वही बांझपन को दूर करने के लिए भी इस  पौधे में गुण पाया जाता है।
 वास्तव में इस पौधे में ऐसा कौन सा पदार्थ है जो  विषैला बनाता है? इस पौधे के बीजों में करीब 35 प्रतिशत पीले रंग का अखाद्य तेल पाया जाता है जिसमें एल्कलाइड पाए जाते हैं। अनेकों विषैले योगिक को होते हैं। ये यौगिक जानलेवा साबित होते हैं। इसे गुर्दे के रोग दूर करने के लिए दवाएं बनाई जाती है,
पीलिया रोग दूर करने के लिए भी काम में लाया जाता है। ऐसे में यह वही पौधा है जो देखने में बहुत डरावना है किंतु शरीर के लिए घातक भी है। गांव में लोग कंटेली भी कहते हैं चूंकि पूरे शरीर पर कांटे पाए जाते हैं। इसके फूल पोस्त जैसे सुंदर होते हें किंतु इस पौधे को खाने वाला कोई भी जीव नहीं मिलता। शरीर पर कांटे होने के कारण तथा विषैला होने का कारण कोई जीव नहीं खाता। यह पौधा हर स्थान पर मिलता है तथा इतने अधिक संख्या में मिलते कि दूर तक पीले फूल नजर आते हैं। पुरानी इमारतों के आसपास, रोड, तालाब, गंदगी आदि स्थानों पर भी ये पौधे खड़े मिल सकते हैं। इस पौधे की सबसे बड़ी विशेषता है कि पीले रंग का दूध निकलता है जो सोने जैसा नजर आता है। यह पौधा एक खरपतवार है तथा 5 फुट तक बढ़ जाता है। वास्तव में यह पोस्त के फूल जैसा इसका फूल होता है जिसकी प्रजाति मेक्सिको में पोपी की प्रजाति से मिलती जुलती होती है। इसलिए इसे मैक्सिकन पोपी नाम भी दिया जाता है। दिल्ली में जो मिलावट की गई थी उस तेल में महज 1 फीसदी थी। आर्जिमोन का तेल जो सूरजमुखी, सरसों तथा अन्य तेलों में गलती से मिल गया था जिसने भारी समस्या खड़ी कर दी थी। आज तक भी उस दिन को















लोग नहीं भूले हैं। आर्जीमोन सत्यानाशी हर जगह हर गांव में धीरे-धीरे फैलता जा रहा है। उसके बीच और सरसों के बीजों में अंतर होता है। सरसों के बीज बाहर से खुरदरे नहीं होते जबकि इसके बीच गहरे काले रंग के तथा खुरदरे होते हैं।

 


घर में घुसकर मारपीट करने व जान से मारने की धमकी देने के मामले में दो के खिलाफ मामला दर्ज
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कनीना। पुलिस ने गांव मालड़ा में घर में घुसकर मारपीट करने व जान से मारने की धमकी देने के मामले में दो लोगों के खिलाफ विभिन्न धाराओं के तहत मामला दर्ज किया है। पीडि़ता लक्ष्मी देवी ने पुलिस को दी शिकायत में बताया कि वह गांव मालड़ा सराय की रहने वाली है। 14 मार्च को उसका पति जमीन के केस के मामले में महेंद्रगढ़ कोर्ट में गया था। उसने घर आकर बताया कि खुशीराम ने कोर्ट में उसपर केश वापस लेने के लिए दबाव बनाया व अपशब्द भी कहे। लक्ष्मी ने बताया कि शाम करीब 8:30 बजे उसका पति व लड़का तेजपाल खाना खा रहे थे। उसकी समय घर के पास एक बाइक की आवाज आई। जिसे सुनकर उसका लड़का बाहर देखने के लिए गया व उसने अन्दर आकर बताया कि हनुमान व उसका छोटा भाई आया है। जब उसका पति उनके पास गया तो उन्होंने उस पर लोहे की रोड से हमला कर दिया व उसे मारते हुए घर के अन्दर घूस गए। इस दौरान जब वह अपने पति को बचाने के लिए गई तो उन्होंने उस पर भी हमला कर दिया। पुलिस ने लक्ष्मी की शिकायत पर मामला दर्ज कर कार्रवाई शुरू कर दी है।
पुलिस की वेबसाइट नहीं कर रही है काम -शिकायतकर्ता परेशान
संवाद सहयोगी, कनीना। हरियाणा पुलिस की वेबसाइट काम न करने से शिकायतकर्ता बेहद परेशान है। करीब 1 सप्ताह से काम नहीं कर रही जिसके चलते हैं ऑनलाइन एफआईआर डाउनलोड नहीं की जा सकती और ना ही एफआईआर दर्ज की जानकारी मिल रही है। ऐसे में एफआईआर दर्ज करवाने वाले बेहद परेशान हैं। उन्होंने सरकार से मांग की है कि इस साइट को ठीक किया जाए।





विश्व जल दिवस पर...
 वॉटर वॉटर एवरीव्हेयर बट नॉट ए ड्रॉप टू ड्रिंक
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 कनीना। प्रख्यात अंग्रेजी कवि विलियम वर्ड्सवर्थ ने लिखा है कि वाटर-वाटर एवरीव्हेयर बट नॉट ए ड्रॉप टो ड्रिंक अर्थात जल ही जल हर जगह किंतु पीने योग्य एक बूंद भी नहीं, ये पंक्तियां समुद्र के जल को देख लिखी हैं जो  यथार्थ हैं। कहने को तो पृथ्वी का तीन चौथाई भाग अर्थात 71 फीसदी भाग पर जल भरा हुआ है किंतु पीने योग्य जल 1 प्रतिशत से भी बहुत कम है और इस जल का दोहन लंबे समय से जारी है।
यदि जल की बचत नहींकी गई तो आने वाले समय में जल पेट्रोल पंप की भांति मिलने की संभावना बढ़ गई है। वर्तमान में भी जहां जल की बोतल 20 रुपये से कम नहीं मिलती। कहने को तो इस देश में विभिन्न नदियां बहती हैं किंतु लोगों को पीने के लिए 1 लीटर जल के भी 20 रुपये देने पड़ रहे हैं। जल दिनोंदिन या तो दूषित किया जा रहा है या अत्यधिक मात्रा में भूमि से दोहन किया जा रहा है जिसके चलते आने वाले समय में पानी की समस्या बन जाएगी।
 कनीना के डा होशियार सिंह यादव बताते हैं कि यदि घरों में देखा जाए तो प्रत्येक व्यक्ति 50 लीटर से अधिक पानी प्रतिदिन खर्च कर रहा है और गंदा पानी नालियों से बेहद मात्रा में बहता रहता है जिससे सिद्ध होता है पानी कैो व्यर्थ बहाया जा रहा है।
उन्होंने बताया  कि जल का दोहन इसी रफ्तार से जारी रहा ,जल को इसी रफ्तार से खर्च करते रहे और जल को इसी गति से दूषित करते रहे तो आने वाले समय में गंभीर परिणाम निकलेंगे। जल का कोई अन्य विकल्प पर भी नहीं है। हर सजीव को जल जरूरी है। भोजन के बगैर कुछ दिन और इंसान जीवित रह सकते हैं लेकिन जल के बगैर ज्यादा दिन जीवित नहीं रह सकता। ऐसे में जल को बचाना हम सभी का कर्तव्य बनता है।
 किसान को देखा जाए तो बारिश के समय भी फव्वारे चलते रहते हैं यहां तक कि अपने खेत के पास से गुजरने वाले रास्ते में फव्वारे ज्यादा पानी बहाते हैं तथा सड़कों को फव्वारे गीला करते रहते हैं। यही नहीं घरों में पानी पीते समय जहां गिलास को बार-बार धोया जाता है, पानी कम पिया जाता हैं और उसको एक गिलास पानी पीने के लिए कम से कम तीन गिलास पानी खराब कर दिया जाता है। गिलास पानी से भरा हुआ पूर्ण रूप से नहीं पिया जाता झूठा छोड़ दिया जाता जिसे फेंक दिया जाता हे। महेंद्रगढ़ जिले पर चर्चा की जाए तो क्षेत्र डार्क जोन घोषित हो चुका है और भविष्य में और भी पानी कम होने की उम्मीद है ऐसे में जल को बचाना जरूरी है।
डा साहब बताते हैं कि जल को बचाने के लिए छोटी-छोटी बातों पर ध्यान देना होगा। जहां जल को बार बार प्रयोग किया जा सकता है। अक्सर घरों में आरओ लगाए जाने लगे हैं जो बहुत अधिक पानी को भी फेंक देते हैं। यदि आरओ से वेस्ट जल को इकट्ठा किया जाए तो फसल उगाई जा सकती है वहीं फर्श साफ कर सकते हैं। दाढ़ी बनाने वाले बहुत अधिक पानी नल से बहा देते हैं तब दाढ़ी बनाते हैं नल चलता रहता है। घर की सफाई करनी हो तो पानी खराब किया जाता है। शहर और गांवों में जहां पानी की सप्लाई सरकारी तौर पर होती है उस घर में जरूरत अनुसार पानी भरने के बाद बाकी पानी को या तो नालियों में बहाया जाता है या अपने वाहन धोए जाते हैं वाहन धोने के बाद फिर पशुओं को नहलाया जाता है। इस प्रकार पानी को दूषित और खराब किया जा रहा है। नलों पर टोंटियां नहीं होती जिससे जल बर्बाद होता हे। अंकियां पानी से भरने के बाद मोटर समय पर बंद नहीं की जाती हैं।
जल अद्भुत द्रव के नाम से जाना जाता है जो जीवन का अमृत है किंतु इंसान ने अपने हाथ जल को जहर बनाकर रख दिया है। कुछ जगह का पानी खारी एवं स्वास्थ्य के अनुकूल नहीं है, पीने योग्य नहीं है, कपड़े धोने योग्य नहीं है, वहां दांतों में विभिन्न प्रकार के रोग , दांत पीले पडऩे एवं फ्लोराइड अधिक होने के कारण दांत खराब होते जा रहे हैं। यदि फ्लोराइड अधिक होता है तो दांतों में पीलापन और क्रैकिंग की समस्या बन जाती है। जल को बचाने का फर्ज हम सभी का है किंतु दुर्भाग्य से जल को बचाने की बजाय उसे ज्यादा बर्बाद किया जाता है। यदि नलों में देखा जाए तो बहुत अधिक नल बगैर टोंटियों के चल रहे इनका पानी वेस्ट में बह रहा है। गर्मियों में पानी की बेहद समस्या बन जाती है क्योंकि पहले कम मात्रा में उपलब्ध हो पाता है जबकि मांग अधिक बढ़ जाती है। यह जल जीव जंतु और पेड़ पौधों को जीवन प्रदान करता है। उसको अपने हाथों से खराब करना एक आदत बन गई है। यदि गांव और शहरों में देखा जाए तो जोहड़ों का पानी भी भारी मात्रा में भरा हुआ है जो सिद्ध करता है कि लोग पानी को अनावश्यक रूप से बहाते हैं। कनीना में ही करीब एक नहीं 7 जोहड़ गंदे पानी के बारे खड़े रहते हैं, जंगलों के अलग है।  यदि जल को री साइकिल किया जाए सीवर ट्रीटमेंट प्लांट लगाकर प्रयोग किए जाए, तो प्लांट से निकलने वाले गंदे जल को फिर से काम में लाकर पानी की बचत संभव है।
जल को बचाने के लिए किसी इंसान की नहीं अपितु समस्त लोगों की आवश्यकता है। यदि सामूहिक रूप से प्रयास करें तो जल को बचाया जा सकता है। एक और जहां को का जल स्तर गिरता जा रहा है नदियां सूख रही है पीने के लिए पानी घट रहा है वही लोग जितना पानी मिलता है उसे बर्बाद करने में कसर नहीं छोड़ रहे हैं। इसमें कोई एक व्यक्ति ही नहीं यह सभी लोग ही बर्बादी पर तुले हुए हैं। पीने योग्य बचाना है जो पहले ही एक फीसदी से कम धरती पर उपलब्ध है और उसको भी लोग कूड़ा कचरा, मल मूत्र आदि डालकर गंदा कर रहे हैं। बड़े-बड़े शहरों में यदि नदियों को देखा जाए तो उनके किनारों पर बहुत अधिक गंदगी के ढेर लगे होते। नदी के जल को दूषित करते हैं। जल के स्रोत के आसपास जितनी गंदगी पाई जाती वह अन्यत्र कहीं देखने को मिलती। इसका स्पष्ट अर्थ है 1 फीसदी जल पीने योग्य है उसको बर्बाद करने पर तुले हुए हैं। लोग बहती हुई नदियों एवं नहरों में मरे हुए जीव जंतु कूड़ा कचरा मल मूत्र सरेआम बहा देते हैं। परंतु जब तक सोच नहीं बदलेगी तब तक यह जल्द ही दूषित होता चला जाएगा और आने वाले समय में लोग जल को तरसते रह जाएंगे। जल केपेट्रोल पंप की तरह जल पंप लग जाएंगे जहां पैसे से जल मिला करेगा और भविष्य में जल और भी  कम हो जाएगा ऐसे में जागृत होने की आवश्यकता है।

सीवर लाइन हो रही है ठप्प
-बदबू ही बदबू फैली
संवाद सहयोगी, कनीना। कनीना के हवेली वाला भवन समक्ष से गुजरने वाली शिविर लाइन ठप हो जाने के कारण जहां उपभोक्ता परेशान हैं। वही गंदा पानी और दिन होदियों में से निकल रहा है और दूर-दराज तक बदबू फैल रही है। इस संबंध में योगेश कुमार और कुमार कृष्ण कुमार दिनेश कुमार, महेश कुमार आदि ने बताया कि उन्होंने कई बार मौखिक रूप से संबंध में शिकायत की है किंतु जनस्वास्थ्य विभाग कर्मचारी मशीनों से सफाई न करके बास की फट्टियों से लाइन को खोलने की कोशिश कर वापस चले जाते हैं।
 बस एक ही बात उपभोक्ताओं का कहकर जाते कि जल्द ही मशीन से लाइन को साफ किया जाएगा लेकिन लंबे समय से मशीन नहीं बुलाई जा रही है जिसके चलते उपभोक्ता बेहद परेशान हैं और सरकार से मांग की है कि इस बदबू फैलने वाली बदबू से उन्हें बचाया जाए और हवेली वाला भवन समक्ष से गुजरने वाली लाइन को दुरुस्त करवा सड़कों पर फैलने वाले गंदे पानी को बहने से रोका जाए।




जिला में अब कोरोना पॉजिटिव की कुल संख्या 24752
-कोई नया केस नहीं आया
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कनीना । सिविल सर्जन डा.अशोक कुमार ने बताया कि जिला में आज कोई भी नया कोरोना वायरस संक्रमित केस नहीं आया। अब जिला में कोरोना पॉजिटिव की कुल संख्या 24752 है। उन्होंने बताया कि अभी तक जिले में कुल 24585 कोरोना संक्रमित मरीज ठीक हो चुके हैं। अब तक जिला में 164 कोरोना संक्रमित मरीजों की मृत्यु हो चुकी है। कोरोना के 3 केस अभी भी एक्टिव हैं। जिले में 22 मार्च तक 249743 नागरिकों की स्क्रीनिंग की गई है। इनमें से 115143 मरीजों में सामान्य बीमारी पाई गई है। उन्होंने बताया कि कोविड-19 के लिए अब तक जिले से 547271 सैंपल भेजे गए हैं। इनमें से 1236 सैंपल की रिपोर्ट आनी शेष है।





चने के हरे पेड़ भी बिकने लगे
-होला,चटनी आदि बनाते हैं लोग
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 कनीना। किसान जौ एवं चने की खेती करना भूलते जा रहे हैं। गर्मियों के मौसम में जौ की रोटी, राबड़ी तथा धानी आदि बनाकर प्राकृतिक ठंडक प्राप्त करते थे। अब तो चने के हरे पेड़ भी हर सब्जी की दुकान पर बिक रहे हैं।
  एक वक्त था जब कनीना क्षेत्र में हजारों एकड़  में जौ एवं चने की खेती की जाती थी। अब वो जौ कहीं दूसरे राज्यों से ही मंगवाएं जा रहे हैं। चने की पैदावार ही नहीं होने से किसानों ने इसकी खेती छोड़ दी है। अब इक्का दुक्का किसान ही अपने खेत में उगाता है।  
  किसान अजीत कुमार, सूबे सिंह एवं राजेंद्र सिंह ने बताया कि एक जमाना था जब हर घर में जौ एवं चने की खेती की जाती थी जिसे पूरी गर्मी आनंद से रोटी एवं अन्य रूपों में प्रयोग किया जाता था। अब जमाना लद गया है। जौ की खेती करना किसान भूल रहे हैं। जौ-चने की रोटी खाने के लिए या फिर धानी एवं भुगड़ा बनवाने के लिए दूसरे क्षेत्रों से जौ खरीदकर लाते हैं। कनीना क्षेत्र में करीब चार हेक्टेयर भू भाग पर जौ उगाई गई है।
हरे चने भी बिकने लगे---
 चने की खेती न होने से चने के रहे पेड़ भी बिकने लग गए हैं। चने के पेड़ों पर लगी टाट से हरे चने निकाल कर जहां हरी सब्जियां बनाते हैं वही चटनी आदि के काम में भी लेते हैं। यही कारण है कि हरे चनों की मांग बढ़ती जा रही है और कुछ व्यक्ति विशेष तो हरे चनों से अपनी रोटी रोजी कमा रहे हैं। कुछ लोग तो गाडिय़ां भर कर चने लाते हैं और उन्हें बेचते हैं। मिली जानकारी अनुसार नांगल चौधरी तथा राजस्थान क्षेत्रों से भारी मात्रा में हरे चने लाए जा रहे हैं और यह पौधे युक्त चने बाजार में बेचे जा रहे हैं। जिनकी भारी मांग है। इन चनों को खरीदने वालों की भी कोई कमी नहीं है।
 फोटो कैप्शन 3: हरे चनों जो बिकते हैं।



समाज में आ रही बुराईयों को समाप्त करने के लिये श्रीगौड़ सभा आयोजित करेगी जागरूकता कार्यक्रम
-मंगलवार को आयोजित बैठक में लिया निर्णय
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कनीना। कनीना के एक निजी अस्पताल प्रांगण में मंगलवार को श्रीगौड़ सभा कनीना की बैठक हुई। जिसकी अध्यक्षता कंवरसैन वशिष्ठ ने की। बैठक में विभिन्न गांवों से आये समाज के प्रतिष्ठित व्यक्तियों ने समाज के हितों को ऊपर उठाने, दबे कुचले को सहायता प्रदान करने, समाज में आ रही विकृतियों को दूर करने को लेकर गहनता से विचार विमर्श किया। उसके बाद सर्व सम्मति से डा रविंद्र कौशिक को प्रधान, सुनील कुमार को सचिव व सुरेश शर्मा को कोषाध्यक्ष नियुक्त किया गया। संस्था का मुख्य उद्देश्य संस्कृति व सभ्यता का प्रचार, शैक्षिक विकास, दहेज प्रथा पर अंकुश, पर्यावरण संरक्ष्ज्ञण सहित विभिन्न क्षेत्र में कार्य करना है। इंद्रलाल शर्मा पाथेड़ा, राजकुमार भारद्वाज,  राधेश्याम शर्मा, सुरेश वशिष्ठ, आनंद शर्मा, देवेंद्र शर्मा, संदीप कुमार, धर्मबीर शर्मा, अजय कुमार, आनंद ने विचार व्यक्त किये। प्रधान डॉ. रविंद्र कौशिक ने कहा कि समाज में सामाजिक बुराईयों को लेकर सदैव विकृति पनप रही हैं जिससे ब्राह्मण समाज की प्रतिष्ठा धूमिल हो रही है। समाज उत्थान का कार्य करते हुये श्रीगौड़ सभा समाज में जागरूकता कार्यक्रमों का आयोजन करेगी।  
फोटो कैप्शन 02:कनीना- श्रीगौड़ सभा कनीना की बैठक में विचार व्यक्त करते पदाधिकारी।


नगर आयुक्त ने किया कनीना का औचक निरीक्षण
-चेलावास में बन रहे फायर ब्रिगेड और अनाज मंडी का भी किया दौरा
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 कनीना। नगर आयुक्त जेके आभीर ने कनीना क्षेत्र का औचक निरीक्षण किया तथा कनीना नगर पालिका कार्यालय में पहुंचे। इस मौके पर कनीना पालिका प्रधानसतीश जेलदार ने उन्हें बुक्का देकर सम्मानित किया वही इस मौके पर उन्होंने नगरपालिका कार्यालय में विभिन्न कर्मियों से विकास कार्यों पर चर्चा की तथा सफाई व्यवस्था को सराहा। इस मौके पर पार्षद कमल ने उनसे निवेदन किया कि कनीना क्षेत्र के विकास कार्यों के लिए कुछ ग्रांट प्रदान की जाए ताकि विकास कार्य चल सके।  श्री आभीर ने कहा कि जल्द ही ग्रांट स्वीकृत हो जाएगी तत्पश्चात कनीना के विकास कार्य को चार चांद लगाए जा सकेंगे। नगर आयुक्त ने तत्पश्चात चेलावास में बन रहे फायर ब्रिगेड तथा अनाज मंडी का दौरा किया और प्रसन्नता व्यक्त की। उन्होंने विभिन्न अधिकारियों को निर्देश दिए और काम में तेजी लाने की अपील की। इस अवसर पर उन्होंने कई अन्य मुद्दों पर भी नगर पालिका प्रधान सतीश जेलदार से चर्चा की। इस अवसर पर विभिन्न पदाधिकारी मौजूद थे।
फोटो कैप्शन 04: नगर आयुक्त जेके आभीर को बुक्का प्रदान करते हुए नगर पालिका प्रधान सतीश जैलदार एवं अन्य।




अहीर रेजिमेंट के लिए मांग जोर पकडऩे लगी
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कनीना। अहीर रेजिमेंट बनाने की मांग दिन प्रतिदिन जोर पकड़ रही है। इस क्रम में बहुजन समाज पार्टी के नेता समाजसेवी ठाकुर अतरलाल एडवोकेट ने अहीर रेजिमेंट की मांग के समर्थन में केन्द्र सरकार को पत्र लिखा है।
    प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तथा रक्षामंत्री राजनाथ सिंह को लिखे पत्र में अतरलाल ने अहीर रेजिमेंट गठन करने की मांग को जायज बताते हुए सरकार से तत्काल इस दिशा में ठोस कदम उठाने की मांग की है। उन्होंने कहा कि यह 36 बिरादरी की मांग है। केन्द्र सरकार अहीर रेजीमेंट की मांग की उपेक्षा कर युवाओं के हितों पर कुठाराघात कर रही है। उन्होंने कहा कि अहीर  रेजिमेंट बनाने से सभी समाज, जाति तथा वर्गों के युवाओं को लाभ मिलेगा। उन्होंने कहा कि हम न्याय, समानता तथा लोकतंत्र के समर्थक हैं। इसलिए सरकार से पुरजोर मांग करते हैं कि अहीर रेजिमेंट बनाने की तत्काल घोषणा की जाए। उन्होंने कहा कि हम सब ने संकल्प ले लिया है और कमर कस ली है कि जब तक अहीर रेजिमेंट बनाने की घोषणा केन्द्र सरकार नहीं करती तब तक हमारा संघर्ष और आंदोलन जारी रहेगा। उन्होंने पत्र में सरकार को आगाह करते हुए कहा कि सरकार ने यदि अहीर  रेजिमेंट  गठन करने में देरी की तो आंदोलन देशव्यापी फैल जाएगा और शांति बिगडऩे की जिम्मेवारी सरकार की होगी।


गलती से डाली गई धनराशि वापिस कर दिया इमानदारी का संदेश
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कनीना। बीइंग ह्यूमन सेवा मंडल सामाजिक संस्था जो कि पिछले लगभग साढ़े तीन साल से विभिन्न सामाजिक क्षेत्रों में कार्यरत है जिसका संचालन युवा समाजसेवी नवीन कौशिक इसराना कर रहे हैं। बीते दो दिन पहले कनीना खंड के गांव मोहनपुर नांगल के मोनू जो कि मिर्जापुर थाने में कार्यरत है ने अपने घर शादी के लिए अपने पिता के खाते में पैसे डालने की बजाय बीइंग ह्यूमन सेवा मंडल संस्था के खाते में एक लाख साठ हजार रुपए गलती से डलवा दिए। संस्था अध्यक्ष नवीन कौशिक ने जब पता लगाया तो ये पैसे मोनू पुत्र महावीर प्रसाद जो की उत्तर प्रदेश पुलिस में मिर्जापुर थाने में तैनात ,है ने गलती से संस्था के अकाउंट में डाल दिए जो संस्था अध्यक्ष ने सकुशल मोनू के परिवार को लौटा दिए हैं। नवीन कौशिक ने बताया कि ऐसे अगर किसी और भाई के साथ भी हो सकता है लेकिन हमें हमेशा ईमानदारी का ही परिचय देना चाहिए। हम संस्था के माध्यम से भी लोगों से अपील करते हैं कि हमेशा ईमानदारी और साहस का परिचय देना चाहिए इस अवसर पर पंकज, संदीप, प्रीतम, नीरज आदि युवा मौजूद रहे।
फोटो कैप्शन 01: राशि का चेक वापस लौटाते हुए नवीन कौशिक।



आयुष विभाग ने खेड़ी तलवाना में विद्यार्थियों को वितरित किए काढ़े व आयुर्वेदिक औषधियां
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कनीना। आयुष हेल्थ एंड वैलनेस सेंटर खेड़ी तलवाना के तत्वावधान में मंगलवार को पोषण पखवाड़ा अभियान के अंतर्गत निशुल्क आयुष कैंप आयोजित किया गया। उक्त जानकारी देते हुए केंद्र के एएमओ डा. रमेश ने बताया कि गर्मियों के मौसम में हमें खाने की विशेष सावधानियां रखनी चाहिए तथा खाने के साथ-साथ पानी भी भरपूर मात्रा में पीना चाहिए। शरीर में जो शरीर को नुकसान पहुंचाने वाले तत्व हैं उन से परहेज करना चाहिए।
इस दौरान विद्यार्थियों व ग्रामीणों को दैनिक जीवन में उपयोग होने वाली काढ़े व आयुर्वेदिक औषधियां आयुष विभाग की तरफ से निशुल्क उपलब्ध कराई गई। इस अवसर पर वरिष्ठ प्रवक्ता नरेश कुमार कौशिक, केंद्र के कर्मचारी कपिल तंवर, सरिता देवी आशा वर्कर, लाली, पूनम, सुमन, शशि बाला, सुनहरी देवी सहित अन्य लोग मौजूद रहे।
फोटो कैप्शन 02:निशुल्क काढ़े व आयुर्वेदिक औषधियां वितरीत करते हुए कर्मचारी व अन्य।


अहीर रेजिमेंट के लिए मांग जोर पकडऩे लगी
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कनीना। अहीर रेजिमेंट बनाने की मांग दिन प्रतिदिन जोर पकड़ रही है। इस क्रम में बहुजन समाज पार्टी के नेता समाजसेवी ठाकुर अतरलाल एडवोकेट ने अहीर रेजिमेंट की मांग के समर्थन में केन्द्र सरकार को पत्र लिखा है।
    प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तथा रक्षामंत्री राजनाथ सिंह को लिखे पत्र में अतरलाल ने अहीर रेजिमेंट गठन करने की मांग को जायज बताते हुए सरकार से तत्काल इस दिशा में ठोस कदम उठाने की मांग की है। उन्होंने कहा कि यह 36 बिरादरी की मांग है। केन्द्र सरकार अहीर रेजीमेंट की मांग की उपेक्षा कर युवाओं के हितों पर कुठाराघात कर रही है। उन्होंने कहा कि अहीर  रेजिमेंट बनाने से सभी समाज, जाति तथा वर्गों के युवाओं को लाभ मिलेगा। उन्होंने कहा कि हम न्याय, समानता तथा लोकतंत्र के समर्थक हैं। इसलिए सरकार से पुरजोर मांग करते हैं कि अहीर रेजिमेंट बनाने की तत्काल घोषणा की जाए। उन्होंने कहा कि हम सब ने संकल्प ले लिया है और कमर कस ली है कि जब तक अहीर रेजिमेंट बनाने की घोषणा केन्द्र सरकार नहीं करती तब तक हमारा संघर्ष और आंदोलन जारी रहेगा। उन्होंने पत्र में सरकार को आगाह करते हुए कहा कि सरकार ने यदि अहीर  रेजिमेंट  गठन करने में देरी की तो आंदोलन देशव्यापी फैल जाएगा और शांति बिगडऩे की जिम्मेवारी सरकार की होगी।

Monday, March 21, 2022

झड़बेरी
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जंगली बेरी
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जिजिफस नुमुलेरिया
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झड़बेरी को जंगली बेर भी कहा जाता है। ग्रामीण क्षेत्रों में झाड़बेर भी कहा जाता है।  इसे महज झाड़ी तक भी कहते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में यह पौधा ग्रामीण क्षेत्रों में सिर चढ़कर बोलता है जिस का वैज्ञानिक नाम जिजिफस नुमुलेरिया है। वास्तव में यह एक झाड़ी के रूप में पाया जाता है जो रेगिस्तानी क्षेत्रों में विशेषकर भारत के पश्चिमी भागों, पाकिस्तान अफगानिस्तान आदि में पाया जाता है।
यह पौधा 5 मीटर के करीब बढ़ता है। उनकी अनेकों शाखाएं चलती है तथा भारी मात्रा में कांटे होते हैं। कांटे भी
तीखे होते हैं जो पत्ते के साथ पाए जाते हैं।  पत्ते लगभग गोल होते हैं। वास्तव में बेरी  जिसे जीजिूफस जूजूबा नाम से जाना जाता है। वैसे तो ग्रामीण क्षेत्रों में इस पौधे के झाड़ी कहते हैं तथा वास्तव में फल को बेरी कहते हैं।
बेरी का मतलब है और रसीले फल। ये फल इस पर लगते हैं जो प्राय हरे रंग के होते हैं। तत्पश्चात पीले और बाद में ग
हरे लाल रंग के होते हैं। ये आकार में छोटे होने के कारण जंगली बेरी नाम से जाना जाता है। वास्तव में सड़क के किनारे बंजर पड़ी हुई भूमि में भी पाए जाते हैं।  वैसे तो बेर के तीन रूप होते हैं जिनमें बड़े आकार के जिसे बागोंवाला, मध्यम आकार के जिन्हें  पचेरी बेर कहा जाता तथा छोटे आकार के बेर झाड़ी बेर कहते हैं। ग्रामीण लोग बड़े ही चाव से बेर खाते हैं। यह पौधा अक्सर पर्पल रंग का होता है इसकी जड़े कुछ लाल रंग की तथा गहराई तक जाती है। पत्ते प्राय गोल आकार के होते हैं तथा पत्ते गहरे हरे रंग के मिलते हैं। इन पत्तों को पाला कहा जाता है।
 झड़बेरी पर तीखे कांटे होते हैं उनके छोटे-छोटे पीले फूल ल
गते हैं जिनमें नर तथा मादा दोनों भाग पाए जाते हैं। तत्पश्चात उनके फल लगते हैं। अक्सर बेर सर्दियों में दिखाई देते हैं तथा गर्मी आने पर पक कर तैयार हो जाते हैंञ
 झाड़ी बहुत प्रसिद्ध पौधा है वास्तव में  पुराने समय से बुजुर्ग खेतों से इसे काट कर इकट्ठा करके चिंदी बनाते थे जिसको पशुओं के लिए लाकर सुखाया जाता था। चिंदी को सूखा कर पत्तों से सूखा चारा बनाया जाता है। वहीं बाड़ अपने बाड़ों की सुरक्षा के काम में लाई जाती हैं। अब न तो झड़बेरी के पौधे अधिक संख्या में देखने को मिल रहे हैं। इनके हरे पत्तों को बकरी भेड़तथा अन्य कुछ जी बड़े ही चाव से खाते हैं।
यह पौधा अनेकों रूप में काम में लाया जाता है वह इसके फल बेरी के नाम बेर के नाम से जाने जाते हैं जिन्हें सूखाकर अक्षर छुहारा नाम से जाना जाता है। जिसे लोग बड़े ही चाव से खाते हैं। वास्तव में इसके पत्ते सूखे तथा हरे चारे के रूप में काम में लाये जाते हैं। इसी प्रकार फल भी इसके मधुर जिनमें अमल होता है। पक जाने पर खाने योग्य होते हैं जो सुखाकर तथा मिठाई बनाकर खाए जाते हैं। अनेकों कीट, गिलहरी चूहा आदि फलों की ओर आकर्षित होते हैं किंतु उनके फल आसानी से तोडऩा कठिन है क्योंकि कांटे सुरक्षा के लिए पाए जाते हैं।
ग्रामीण क्षेत्रों के लोग का विषय इनकी जड़ों से को गर्म पानी में उबालकर ठंडा करके फोड़े फुंसी चर्म रोग में काम में लेते आए हैं। वहीं विभिन्न प्रकार की बीमारियों में भी यह कारगर पाई जाती है।
 बेरी का पौधा ग्रामीण क्षेत्रों में जहां बाड़ के काम में लाया जाता है वही अनेकों प्रकार के पशु चारे के रूप में बेहतर चारा प्
रदान करता है। इसे व्हिट एंड अर्न नाम से भी जाना जाता है।
 इस पौधे पर फल मार्च से जून के बीच भारी मात्रा में लगते हैं परंतु यह ज्यादा प्रसिद्ध नहीं है क्योंकि बेर का आकार छोटा होता है ।यह पौधा अनेकों औषधियों के रूप में भी प्रयोग करते हैं।
 इस पौधे के पत्ते सर्दी के समय अपची,मसूड़ों में सूजन तथा टोनिक के रूप में काम में लाया जाता है। बेर पूरे विश्व में खाये जाते हैं। लोग इसे सुखाकर फलों को सुखाकर प्रयोग करते हैं।  पत्तों को गांव में लोग पाला नाम से जानते हैं जो पशुओं के लिए बहुत उपयोगी तथा सुखा और हरा चारा बनाते हैं।
इसके पत्तों से रस निकाला जाता है जो जैविक गतिविधियों में काम में लाया जाता है ।पौधे में 53 विभिन्न प्रकार के रासायनिक पदार्थ पाए जाते हैं जो विभिन्न उद्देश्य के लिए प्रयोग किए जाते हैं।

 झड़बेरी के फल सूक्ष्म जीवों का विनाश करने, एंटी ऑक्सीडेंट आदि के उद्देश्य के लिए काम में लाए जाते हैं। कुल मिलाकर के ग्रामीण क्षेत्रों का बेहतरीन पौधा होता था किंतु किसानों ने हल चलाकर तथा आधुनिक कृषि पद्धति के चलते इसे समाप्त कर दिया है। ग्रामीण क्षेत्रों में यह बाड़ के रूप में देखने को मिलते थे जहां इस पौधे की बाड़ लगाई जाती थी और  पशु पालते थे। अब न तो झड़बेरी मिलती और न वो पशु बाड़े जहां बाड़ लगाई जाती है।











Sunday, March 20, 2022

                                                                     दाढ़ी घास
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खरगोश पैर घास
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पोलीपोगोन मोंसपलियेंसिस
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 दाढ़ीघास या खरगोश पैर घास एक घास कुल का पौधा है। इसका वैज्ञानिक नाम पोलीपोगोन मोंसपलियेंसिस है। यह घास सीधी बढ़ती है जो 20 से 80 सेंटीमीटर तक बढ़ जाती है।  अक्सर इस घास को गर्मियों के मौसम में देखा जा सकता है। यह पशु चारे के रूप में काम में लाई जाती है। इसकी कुछ किस्में सीधी खड़ी होती है जबकि कुछ धरती पर फैल जाती हैं। इसका फूलना (इनफ्लोरेंसेंस) खरगोश के पैर जैसी होता है। इसलिए से खरगोश घास भी कहते हैं। इसके फूलने में कभी-कभी ऐसा लगता है जैसे दाढ़ी के बाल हो इसलिए इसे दाढ़ी घास भी कहते हैं।
 इस का फूलना दूर से नजर आता है। यह घास करीब ऐ वर्ष तक चलती है तत्पश्चात समाप्त हो जाती है। ग्रामीण क्षेत्रों में लोग इसे उखाड़ कर पशुओं को चारे के रूप में काम में लेते हैं। इसकी उत्पत्ति यूरोप से मानी गई है। यह खरपतवार के रूप में जानी जाती है। इस का फूलना गहरा हरा नरम, बाल जैसा नजर आता है। कई बार भागों में बटा होता है।
  







रैबिट घास कई बार बहुत अधिक फैल जाती है। किसान इसको उखाड़ कर या तो फेंक देते हैं या पशुचारे के रूप में काम में लेते हैं। लेकिन यह घास मिट्टी कटाव को रोकने में कारगर साबित होती है। इसमें सेलुलोज पाया जाता है जो पशुओं के लिए बहुत जरूरी होता है।




Saturday, March 19, 2022

                                   मेथा
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जंगली मेथी
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ट्राइफोलियम इंडिकम
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 ट्रिगोनेला फोयनम ग्रियकम जिसे अकसर  मेथी कहते हैं वो वैसे तो हर जगह मिली है जो बहुत प्रसिद्ध औषधीय फलीदार पौधा है किंतु इसी से मिलता-जुलता जंगलों में अपने आप उगने वाला, खेत किसान के खेतों में स्ववयं उगने वाला मेथी जैसा ही मेथी का भाई मेथा मिलता है। वास्तव में में यह अति औषधीय गुण वाला पौधा है क्योंकि उस पर फलियां लगती है इसलिए यह फलीदार पौधों की श्रेणी में आता है जो ट्राइफोलियम इंडिकम नाम से जाना जाता है। गर्मियों में भारत के विभिन्न भागों में खुद पैदा होता है वास्तव में यह मटर कुल का पौधा होने से वायुमंडल के नाइट्रोजन को अवशोषित कर नाइट्रोजन के यौगिकों बदल देता है जो खाद का काम करता है इसलिए किसानों के लिए एक वरदान साबित होता है। 30 से 45 मिलीमीटर और अधिकतम 1 साल तक चलने वाला भारी संख्या में पीले रंग के फूल और फलियों से लदा हुआ यह पौधा वास्तव में शरीर की अनेकों समस्याओं एवं बीमारियों को दूर करने वाला होता है। यह वात रोग हिचकी,अतिसार आदि में बहुत कारगर  है वही बल एवं पुष्टिवधक है क्योंकि इसमें तीन पत्ते होते हैं इसलिए इसका नाम ट्राइबोलियम पड़ा हैं ।फूल पीले रंग के फलियां दबी हुई तथा आगे से तीखी होती है जिसमें पीले भूरे रंग के बीज पाए जाते हैं। जो गुण मेथी में होते हैं उससे अधिक गुण जंगली मेथी में पाए जाते हैं। ग्रामीण लोग इसे जंगली मेथी कहते हैं। वास्तव में इसका स्वाद मेथी की बजाय अधिक कसैला होता है जहां मेथी दाना खाने में बहुत अधिक प्रयोग होता है वहीं बीज पाउडर सर्दियों में खाना पकाने में, दवाई, साबुन, शैंपू आदि बनाने में काम में लाए जाते हैं। विशेषकर मधुमेह रोगी, उच्च कोलेस्ट्रॉल को घटाने में, मासिक धर्म में ऐंठन को दूर करने में काम में लेते हैं। यहां तक की बालों की समस्याएं गिरना झडऩा रोकता है। जंगली मेथी का पानी सेवन करने से बालों में सुधार आता है उसकी रुसी दूर हो जाती है। मेथी का पानी शरीर से हानिकारक पदार्थों को बाहर निकालने में मदद करता है और पाचन समस्या को दूर करता है। शरीर में लोगों के कब्ज आदि होती है उसे भी दूर कर सकता है। रक्त शर्करा कम करने में मधुमेह रोगियों के काम आती है। इंसुलिन जो अग्नाशय में पैदा होती है, अग्नाशय एक पाचन अंग है, उसमें इंसुलिन बढ़ाने में मदद करता है जो शर्करा का पाचन करता है।  शरीर से जहां रक्त विकार दूर होते हैं हृदय की समस्या हल होती है। खराब कोलेस्ट्रॉल घट जाता है, ऐसे में जंगली मेथी बहुत रामबाण औषधि साबित होती है।
किसान इस मेथा को पशु की बीमारियों को दूर करने यहां तक कि चारे के रूप में भी प्रयोग करते हैं। जहां कुछ जगह इसे वनमेथी नाम से जाना जाता है।
मेथा को चंद्रशूर नाम से भी जाना जाता है।   यदि किसानों को पैदावार बढ़ानी है और पशु पशुचारा प्राप्त करना है तो मेथा खेतों में उगने दे तत्पश्चात खेतों से उखाड़ कर पशुओं के चारे के रूप में प्रयोग करें। विशेषकर बकरी, गाय, भेड़ आदि जंगल में घूमते फिरते इसको बड़े चाव से खाती है। देखने में मेथी और मेथी में कुछ समानताएं मिलती है महज पत्तों का रंग एवं चौड़ाई आदि से ही मेथी और मेथा का अंतर का पता लगाया जा सकता है। जहां मेथी आकार में बड़ी होती है मेथा इतना बड़ा नहीं होता और धरती पर फैल जाता है।

डा होशियार सिंह यादव






Friday, March 18, 2022

                                         होलीहाक
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एल्सिया रोजिया
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हालीहाक जिसे अल्सिया रोजिया कहते हैं।  बिनौले का पौधा और हालीहाक का पौधा एक ही कुल के पौधे होते हैं तथा दोनों के फूलों में समानताएं मिलती हैं। घरों में उगाया जाने वाला भिंडी का पौधा भी इसी कुल का पौधा होता है। इस पौधे की एशिया और यूरोप से उत्पत्ति हुई है। इसकी करीब 80 प्रजातियां पाई जाती है। यह एक वर्ष से कई वर्षों तक जीवित रह सकता है। इस पौधे की सबसे बड़ी विशेषता है कि इसमें कोई शाखा नहीं होती, सीधा एक ही तना होता है। इसके तने पर बाल जैसी संरचनाएं पाई जाती है जबकि फूल अलग-अलग रंगों के मिलते हैं जिनमें गुलाबी, सफेद, पर्पल, पीला आदि प्रमुख होते हैं। गर्मी आने पर इस पौधे पर भारी मात्रा में गुलाब जैसे फूल लगते हैं। इसके फल में अलग-अलग भाग पाए जाते और 15 भाग तक मिलते हैं जो बीजों को संचित करते हैं।
 हॉलीहॉक सजावटी पौधा है जो बीज से आसानी से उत्पन्न किया जा सकता है। यह पौधा छोटे-छोटे पक्षियों, भंवरों, तितली, हमिंग बर्ड(छोटा काले रंग का पक्षी) आदि को आकर्षित करता है। इसका तना जलाने के काम आता है जबकि की जड़ दवाएं बनाने के काम आती है। इसके फूल से प्राकृतिक होली खेली जा सकती है।  वास्तव में होली पर रासायनिक रंगों को छोड़कर इसके फूलों से प्राकृतिक रंग तैयार कर होली खेल सकते हैं।  किंतु आजकल रासायनिक रंगों से लोग होली खेलकर आनंद लेते हैं जबकि फूलों के रंगों से होली खेली जाए तो ज्यादा बेहतर हो। यह पौधा करीब 8 फीट तक बढ़ता है।
 पौधे पर अनेकों फूल एक साथ लगते हैं। अपने रंग के कारण दूर से दिखाई देते हैं। अक्सर इस पौधे का उपयोग गरारे करने के काम आता है जब मसूढों में कोई दर्द होता है। कई बार बच्चे बिस्तर पर पेशाब करते हैं उस समय भी यह पौधा काम आता है। शरीर में जलन आदि को रोकने के लिए भी इसका उपयोग किया जाता है, घरों में पूजा अर्चना, सजावट के लिए भी इसको प्रयोग में लाया जाता है। बाग बगीचे या गमले में यह पौधा अलग छवि में नजर आता है। इस पौधे को देखकर गुलाब की याद आ जाती है।
 हालीहाक आयुर्वेदिक चाय बनाने के काम में लाया जाता है जो सांस की बीमारी तथा पाचन तंत्र में खराबी को दूर करने के लिए काम में लाया जाता है। अक्षर की फोटो देख कर मन प्रसन्न हो जाता है जो गुलाब से मिलता-जुलता होता है इसलिए इसे रोजिया नाम से भी जाना जाता है। फोड़े फुंसी आदि के समय भी हालीहाक प्रयोग किया जाता है। किंतु इस पौधे का उपयोग गर्भवती तथा दूध पिलाने वाली महिलाओं को नहीं करना चाहिए। अभी तक इस पर शोध चल रहे हैं ऐसे में कुछ और शोध आने की संभावनाएं जताई जा रही हैं।
 इस पौधे की सबसे बड़ी विशेषता है कि यह सीधा बढ़ता है और अनेकों फूल लगे दिखाई देते हैं। भिंडी, बिनौला आदि जिस कुल से संबंध रखते हैं उसी










कुल से पौधा संबंध रखता है इसी से मिलता-जुलता चाइनीज रोज का पौधा होता है। याद रहे चाइनीज रोज को हिबिस्किस रोजा साइनेनसिस कहा जाता है जबकि हालीहाक को एल्शिया रोजिया वैज्ञानिक नाम से जाना जाता है।