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Monday, January 13, 2020

किसानों का चंदन
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जाटी/खेजड़ी/शमी/सांगरी एक वृक्ष है जो भारत सहित कई देशों में पाया जाता है। राजस्थान से जुड़े थार के मरुस्थल, हरियाणा एवं अन्य स्थानों में पाया जाता है। हरियाणा में तो इसे किसानों का चंदन कहते हैं। यह बहु उपयोगी वृक्ष होता है। दवाओं में भी काम आता है।
जाटी कई नामों से जाना जाता है जिनमें खेजड़ी/ जांट/जांटी/सांगरी/ जंड/कांडी/शमी/सुमरी प्रमुख हैं। इसका व्यापारिक नाम कांडी है। यह वृक्ष विभिन्न देशों में पाया जाता है जहां इसके अलग अलग नाम हैं। बेंथम एवं हुूकर द्वारा दिया गया द्विनाम पद्धति अनुसार इसे प्रोसोपिस सिनेरेरिया नाम से जाना जाता है। खेजड़ी का वृक्ष जेठ की दुपहरी में भी हरा रहता है। ऐसी गर्मी में जब रेगिस्तान में जानवरों के लिए धूप से बचने का कोई सहारा नहीं होता तब यह पेड़ छाया देता है। जब खाने को कुछ नहीं होता है तब इसके पत्ते जिन्हें लोंग/लूंग कहते है, पशुओं का उत्तम चारा होता है। इसका फूल मींझर कहलाता है। इसका फल सांगर/सांगरी कहलाता है जो अति पौष्टिक होता है जिसकी सब्जी बनाई जाती है। यह फल सूखने पर झींझ/खोखा कहलाता है जो सूखा मेवा है। इसे  इकट्ठा करके लंबे समय तक खाते हैं। इसकी लकड़ी मजबूत होती है जो किसान के लिए जलाने और फर्नीचर बनाने के काम आती है। इसकी जड़ से हल एवं फर्नीचर बनाने के काम आती है। अकाल के समय रेगिस्तान के आदमी और जानवरों का यही एक मात्र सहारा है। इस लिए इसे रेगिस्तान का सहारा तथा किसानों काचंदन नाम से जाना जाता है। सन् 1899 में भयंकर अकाल पड़ा था जिसको छपनिया का अकाल कहते हैं, उस समय रेगिस्तान के लोग इस पेड़ के तनों के छिलके खाकर/आटे की भांति पीसकर खाकर जिन्दा रहे थे। वैसे तो सभी पेड़ों के नीचे फसल पैदावार नहीं होती किंतु जाटी के पेड़ के नीचे अनाज की पैदावार ज्यादा होती है।
जांटी का सांस्कृृतिक महत्व भी है। इसकी लकड़ी हवन में काम आती है जिसे समिधा कहते हैं। दशहरे के दिन शमी के वृक्ष की पूजा करने की परंपरा भी है। यही नहीं जब कृष्ण जन्माष्टमी मनाई जाती है तो गुगा/लटजीरा एवं शमी/जांटी की पूजा करके जोहड़ में  विधि विधान से बहाने का रिवाज चला आ रहा है। रावण दहन के बाद घर लौटते समय शमी के पत्ते लूट कर लाने की प्रथा है जो स्वर्ण का प्रतीक मानी जाती है। इसके अनेक औषधीय गुण भी है। पांडव जब 13 वर्षों का अज्ञातवास बीता रहे थे तो 13वें वर्ष राजा विराट के यहां अज्ञातवास बीताने के लिए अर्जुन ने अपना गांडीव धनुष जाटी के पेड़ में छुपाए जाने के उल्लेख मिलते हैं। इसी प्रकार लंका विजय से पूर्व भगवान राम द्वारा शमी के वृक्ष की पूजा का उल्लेख मिलता है। शमी या खेजड़ी के वृक्ष की लकड़ी यज्ञ की समिधा के लिए पवित्र मानी जाती है। वसन्त ऋतु में समिधा के लिए शमी की लकड़ी का प्रावधान किया गया है। शनिवारके दिन शमी की समिधा का विशेष महत्व बताया गया है। यह जाटी राजस्थान में खेजड़ी नाम से जाना जाता है जिसे 1983 में इसे राजस्थान राज्य का राज्य वृक्ष घोषित किया गया था। जो इसके महत्व को इंगित करता है।
 इस पौधे पर कांटे पाए जाते हैं। पत्तों का आकार बहुत छोटा होता है किंतु पेड़ पर हरे रंग के फल लगते हैं, पीले रंग के फूल आते हैं। तत्पश्चात हरे रंग के फल बनते हैं
यह फल धीरे-धीरे पक जाते हैं तो झींझ बन जाती है जिनमें स्वाद मीठा हो जाता है। उसका फल बहुत अधिक प्रोटीन युक्त है। इसलिए यह बहुत लाभकारी है। इसके पत्तों में जहां प्रोटीन नाइट्रोजन पाया जाता है। इसलिए धरती पर गिरने से नाइट्रोजन की पूर्ति करता है। यही कारण है कि स्पीड के नीचे फसल ज्यादा पैदावार देती है। इसके फलों को काटकर सूखा लिया जाता है और लंबे समय तक विभिन्न सब्जियों में डालकर जायकेदार सब्जियां बनाई जाती हैं। इसकी सब्जी बड़े-बड़े होटलों में भी काम में लाई जाती है जो बहुत महंगे दामों पर बिकती है।
यह पौधा कोशिकाओं एवं उत्तकों में विशेष प्रभाव डालता है। इसके फूल चीनी में मिलाकर गर्भवती महिलाओं को खिलाया जाता है ताकि गर्भपात न हो। इस पौधे की राख को त्वचा पर रगड़ कर बालों को हटाया जाता है। जाटी का तना बहुत महत्वपूर्ण काम आता है। दमा, अस्थमा, दस्त बिच्छु काटे का इलाज, बवासीर, दिमाग को शांत करने के काम आता है। इसके पत्तों की धुआं आंखों के लिए नुकसान कर सकती है।
यह पौधा नाइड्रोजन अधिक छोड़ता है तथा इसकी जड़ भी गहराई तक जाती है दूसरे पौधों के लिए लाभकारी साबित होता है। इस पौधे को मिट्टी कटाव के लिए तथा भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़ाने के लिए भी उगाया जाता
है। इससे गम प्राप्त होता है जिसके पत्तों तथा तने के छिलकों से रंग प्राप्त होता है। इसमें पोटेशियम तत्व की अधिक मात्रा पाई जाती है जिसकी लकड़ी घरों के बनाने में तथा विभिन्न टूल बनाने के काम में लाई जाती है। यहां तक कि है जलाने के काम में लाई जाती है। किसान कभी विवाह शादी में इसी का उपयोग करते थे। इसके बीज एक ही फल में कई कई पाए जाते हैं जो एक साल तक धरती पर पड़े रहते हैं फिर से उग जाते हैं। यह कम पानी में भी उगता है और लंबे समय तक खड़ा रहता है। यहां तक की भेड़ बकरी, गाय, भैंस आदि पालने वाले इस पर बहुत अधिक निर्भर करते हैं। पशुओं को चारे के रूप में जहां पत्ते फल खिलाए जाते हैं वही यह उन जीवों के लिए छाया भी प्रदान करता है।
जाटी का पौधा बहुत से रोगों का इलाज भी काम में लाया जाता है। पशुओं के रोगों को दूर करने के काम में भी लाया जाता है। इसकी 44 विभिन्न प्रजातियां पाई जाती हैं। 18 फीसदी प्रोटीन पाया जाता है वही 2 फीसदी तेल 21 फीसदी फाइबर पाए जाते हैं। उसके बीज में पाए जाने वाला तेल ओलिक एसिड होता है जिसमें लीनोलिक एसिड भी पाया जाता है। इसके पत्तों में जहां कैल्शियम फास्फोरस, पोटाशियम अधिक पाया जाता है वही स्वास्थ्य के लिए इसका बहुत महत्व है। मानव के लिए विभिन्न प्रकार की सब्जियां इसके फलों से बनती यहां तक कि ग्रामीण क्षेत्रों में बनने वाली कढ़ी और खाटा का साग बहुत स्वादिष्ट बनता है। जहां तक की इसके फलों का अचार भी बनाया जाता है।
जाटी के फलों में सूक्ष्म जीवों को रोकनेकी भी क्षमता











पाई जाती है वही एंटीऑक्सीडेंट और शुगर के इलाज में उपयोगी है।
**होशियार सिंह, लेखक, कनीना, महेंद्रगढ़ हरियाणा ***

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