Powered By Blogger

Saturday, April 25, 2020


एनीज
**************************** ***************************** **

************************
एनीसीड
**********************
******************* *
पिंपीनेला एनिसम
******************
********************

चक्रपुष्प
****************
*******************

पिंपिनेला एक जड़ी बूटी है। जड़ और पौधे के कुछ हिस्से जो जमीन के ऊपर उगते हैं, दवा के रूप में उपयोग किए जाते हैं। इसे पुष्पचक्र/ चक्रपुष्प आदि नामों से जाना जाता है। यह एक मोटी सौंफ के दाने होते हैं।
यहश्वसन पथ के संक्रमण, मूत्र पथ के संक्रमण ,
मूत्राशय और गुर्दे की पथरी, और एडिमा के लिए पिंपिनेला लेते हैं। पिंपिनेला का उपयोग पाचन में मदद करने के लिए भी किया जाता है। इसे कच्चा भी खाते हैं।
 खराब मुंह और गले के लिए सीधे प्रभावित क्षेत्र पर पिंपिनेला लगाया जाता है। खराब घावों के उपचार के लिए इसे नहाने के पानी में मिलाते हैं।
पिंपिनेला की जड़ के कुछ निर्माताओं ने कुछ अन्य जड़ी
बूटियों को गुप्त रूप से जोड़कर उनके उत्पाद महत्वपूर्ण बनाया है।
 पत्तों में मीठा अनीस स्वाद होता है, वे चबाने के लिए बहुत ताजा होते हैं और सलाद, पुडिंग, सूप, स्टोव आदि जैसे लगते हैं।
सुगंधित बीज को कच्चा खाया जाता है या कच्चे या पके हुए खाद्य पदार्थों जैसे सूप, पीजा, ब्रेड और केक में स्वाद के लिए इस्तेमाल किया जाता है। इसके उपयोग से भोजन पचाने की शरीर की क्षमता में सुधार होता है। बीज के पकने पर पूरे पौधे को काटकर बीज को काटा जाता है। फिर पौधों को एक सप्ताह के लिए गर्म, शुष्क स्थिति में रखा जाता है और फिर बीज निकालने के लिए थ्रेशर प्रयोग किया जाता है।
बीज से एक आवश्यक तेल का उपयोग मिठाई, आइसक्रीम, च्युइंग गम, अचार आदि में भोजन के स्वाद के रूप में किया जाता है। इसका उपयोग अक्सर अल्कोहल वाले पेय में किया जाता है। पत्तियों और बीजों को पीसकर प्रयोग किया जाता है। 

कुछ पदार्थ भी इससे बनाए जाते हैं वहीं इसका तेल निकालकर प्रयोग किया जाता है जिसमें भी औषधीय गुण होते हैं। यह पूरे पाचन तंत्र के लिए एक विशेष रूप से उपयोगी टॉनिक है जो पेट के रोगों को दूर करती है।
 बीज उपयोग किया जाने वाला भाग है। इसके तेल में एनेथोल पाया जाता है। यह स्तन-दूध उत्पादन के लिए जड़ी बूटी के उपयोग किया जाता है।
  इसमें मिलने वाले आवश्यक तेल का उपयोग बगैर सलाह के नहीं करना चाहिए। इसका बीज अस्थमा, काली खांसी, खांसी और पेक्टोरल के साथ-साथ पाचन संबंधी विकारों जैसे कि हवा, अपच के उपचार में आंतरिक रूप से किया जाता है।
 बाह्य रूप से इसका उपयोग जूं, खुजली के संक्रमण के इलाज में काम लेते हैं। बीज स्तनों में सूजन या दूध के प्रवाह को प्रोत्साहित करने के लिए लगाया जा सकता है। बीज से एक आवश्यक तेल प्राप्त किया जाता है, जिसका उपयोग इत्र, दांत के पेस्ट, औषधीय रूप से और भोजन के स्वाद के रूप में किया जाता है।
पके हुए बीज से प्राप्त एक आवश्यक तेल का उपयोग वाणिज्यिक में, मसाला, मास्किंग एजेंट और इत्र के रूप में किया जाता है। पीसे हुए बीज को दंतमंजन और माउथवॉश के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। यह पौधा कीटों को दूर भगाता है। यह चूहों को आकर्षित करता है।
 इसे एनीज़ पिंपीनेला अनिसम कहा जाता है जिसे अनीसेड भी कहा जाता है। यह एशिया का  एक फूल वाला पौधा है। यह स्टार ऐनीज़, सौंफ़, से मिलता है किंतु उनमें और एनीज में अंतर होता है। यह व्यापक रूप से खेती की जाती है और भोजन और मादक पेय का स्वाद लेने के लिए उपयोग किया जाता है।
   एनीस एक शाकाहारी वार्षिक पौधा है। पौधे के आधार पर पत्तियां सरल होती हैं। तने के ऊपर की पत्तियां पंखनुमा होती हैं। फूल या तो सफेद या पीले होते हैं।  फल एक आयताकार होता है जिसे ऐनीज़ेड कहा जाता है। पहली बार मिस्र इसके औषधीय महत्व के लिए खेती की गई थी।
ये सूखा मिट्टी में सबसे अच्छे होते हैं।ये बीज से पैदा होते हैं। क्योंकि पौधों में मूसला जड़ पाई जाती हैं। व्यंजनों में लंबे समय से स्वाद व्यंजन, पेय और कैंडीज का उपयोग किया जाता है। 
 एनीज में नमी,प्रोटीन, वसायुक्त तेल,आवश्यक तेल,स्टार्च,रूक्षांस पाए जाते हैं। 
अनीस मीठा और बहुत सुगंधित है, जो इसके विशिष्ट स्वाद से अलग है। बीज का उपयोग चाय, कन्फेक्शनरी,चॉकलेट में किया जाता है। केक भी बनाए जाते हैं।
 ऐनीज़ का मुख्य उपयोग पेट फूलना कम करने के लिए किया जाता है। यह मूत्र को उकसाता है, दूध की प्रचुरता को बढ़ाता है और शारीरिक वासना को बढ़ाता है। महिलाओं में ल्यूकोरिया के काम आता है। इसका इस्तेमाल नींद की कमी के इलाज के रूप में किया जाता था, सांसों को तरोताजा करने के लिए, बीजों का उपयोग भूख उत्तेजक, मूत्रवर्धक के रूप में किया ग























या है।  इसका इस्तेमाल शिकार और मछली पकडऩे दोनों के लिए किया जाता है। मछली को आकर्षित करने के लिए इसे मछली पकडऩे के लिए लगाया जाता है।
भारत में ग्रामीण क्षेत्रों में भी होने लगी है खेती---
*******************************
************************
*****************
किसान कृषि में बदलाव करने लगे हैं और परंपरागत खेती की बजाय अब सब्जी एवं औषधीय पौधे उगाने लगे हैं। भारत के राज्य हरियाणा के जिला महेंद्रगढ़ में जहां रेतीली जमीन है वहां भी इसकी खेती शुरू कर दी है। महेंद्रगढ़ के सुनील कुमार सीहमा अपने 2 एकड़ में पुष्प चक्कर (जिसे मोटी सौंफ) कहते हैं तथा डेढ़ एकड़ में ऊंट कटारा उगाए हैं जो कि दोनों ही पौधे औषधीय है। इन्हें कोई आवारा जंतु तथा पालतू जंतु भी नहीं खाते। ऊंट कटारा रेगिस्तान में अधिक उगता है और कांटे वाला पौधा है जो अनेक औषधियों में काम आता है। सुनील कुमार ने बताया कि उनके खेत में 15 क्विंटल ऊंट कटारा होने की संभावना है जबकि
 5 क्विंटल चक्कर पुष्प होने की संभावना है। वर्तमान में फसल पैदावार लेने जा रहे हैं। उन्होंने बताया कि बाजार में इसके भाव अच्छे है। एक 1 एकड़ में जहां सरसों 7 क्विंटल के करीब हो जाती है जो 30 हजार रुपये के करीब बिकती है वही ऊंट कटारा से करीब 1.40 लाख रुपये मिलने की उम्मीद है। उन्होंने विगत वर्ष केसर उगायी थी जिसमें भारी नुकसान हुआ।
 उन्होंने बताया कि बरेली से बीज लेकर आए थे और वही बेचा जाना है। बीज प्रदाता उन्हें खरीद कर ले जाएंगे। इन पौधों की देखरेख की अधिक जरूरत नहीं होती महज 3 बार पानी दिया है। सुनील कुमार सिहमा के मोबाइल 9899820583 है जिनसे बीज एवं अन्य सहायता के लिए संपर्क किया जा सकता है।
इन पौधों से खेत में बेहतर दर्जे का खाद भी पैदा होता है। ऐसे में उन्होंने कहा कि वे जिले में शायद पहले किसान होंगे जिन्होंने इस प्रकार की खेती की है। ये पौधे आयुष विभाग के तहत आते है  और आस पास मंडियां नहीं हैं। 

Hoshiar Singh Writer Kanina Haryana



Friday, April 24, 2020

ऊंट कटारा


******************************
***********************************
*************************************** 
इकाइनोट्स इकिनेटस  
*********************
**************************
******************************* 
ग्रामीण ब्रह्मदंडी या ऊंट कंटक 
***********************************
***********************************  
  ऊंट कटारा नामक पौधा जिसे ग्रामीण लोग ब्रह्मदंडी या ऊंट कंटक आदि नामों से जानते हैं वास्तव में एक बहु औषधीय पौधा है जिसे इकाइनोट्स इकिनेटस नाम से जाना जाता है। भारत, पाकिस्तान श्रीलंका और दूसरे देशों में पाया जाता है जिसके लंबे-लंबे कांटे होते हैं और इसे झाड़ी के रूप में देखा जा सकता है। इसके तने पर सफेद बालनुमा आकृतियां मिलती है।
 पत्ते बहुत लंबे होते हैं। फूलों का गुच्छा कांटेदार होता है। इसके पूरे ही शरीर पर बड़े बड़े कांटे पाए जाते हैं। दिसंबर से लेकर जनवरी तक इस पर भारी मात्रा में बड़े-बड़े फूल आते हैं जो बाद में खत्म हो जाते हैं। यह पौधा रेगिस्तानी क्षेत्रों में अधिक पनपता है।
 इसे ऊंट
कटारा जिसे मिल्क थिसल,कैमल्स थिसल आदि नामों से जाना जाता है जो रेगिस्तानी क्षेत्रों में और मैदानी क्षेत्रों में ही बहुत अधिक मात्रा में पाया जाता है। सूरजमुखी से मिलता जुलता यह पौधा सूरजमुखी को कुल से संबंध रखता है।
 दिल्ली में ड्रॉप्सी नामक रोग फैलाने वाले सत्यानाशी के पौधे जैसी ही इसकी पत्तियां कांटेदार होती है। इसके डोडे लगते हैं जिन पर कांटे होते हैं। नीले और बैंगनी रंग के फूल गुच्छों के रूप में आते हैं। यह द्वि-बीजपत्री पौधा है। 

   ऊंट कटारा/ऊंट कटेरा चरपरा, कड़वा कफ- वात नाशक, पुरुष तत्ववर्धक तथा मधुमेह नाशक, , हृदय रोग और विषों को शान्त करने वाला है । इसके बीज शीतल पुरुष तत्व वर्धक और मधुर है । इसकी जड़ें कामोद्दीपक है ।
 इंसान ही नहीं अपितु पशुओं के लिए अति गुणकारी औषधि है जिसका जनन संबंधित हर प्रकार की बीमारी में प्रयोग होता है। यह वनस्पति यकृत को उत्तेजना देने वाली और क्षुधा-वर्धक है । आंखों की तकलीफ, जीर्ण ज्वर, जोड़ों के दर्द और दिमाग की बीमारियों में भी यह लाभदायक है द्य यह शुक्राणु हीनता की समस्या का सबसे प्रभावशाली समाधान है। यह पुरुष तत्व वर्धक एवं जोश-वर्धक है। इससे नपुंसकता दूर होती है । इसकी जड़ कामोद्दीपक पौष्टिक और मूत्र निस्सारक होती है।यह गठिया को भी ठीक करती है।
 

आयुर्वेद में
ऊंट कटारा को बल देने वाला, शुगर रोग नाशक, पुष्टि कारक, दर्द निवारक, प्रमेह नाशक, काम शक्तिवर्धक औषधि के रूप में प्रयोग किया जाता है।
ऊंट कटेरा जंगलों में भारी मात्रा में तथा बंजर भूमि पर भारी मात्रा में देखने को मिल सकता है। जिसके ऊपर गोल फल लगते हैं। यह घरेलू जानवरों की बीमारी में विशेष रूप से प्रयोग किया जाता है क्योंकि इस पौधे को ऊंट बहुत चाव से खाते हैं इसलिए इसे
ऊंट कटारा नाम से जाना जाता है। रेत और बंजर खेतों में बहुतायत में मिलता है। इसकी जड़ और छाल बहुत सी दवाओं में काम में लाया जाता है।ऊंट कटारा कड़वे स्वाद का होता है किंतु यह वात नाशक रोग निवारक, हृदय रोग और विष को नष्ट करने वाला होता है। इसके बीज शीतलकारी होते हैं और मधुरकारी होते हैं। इसकी जड़े गर्भ श्रावक होती हैं। जड़े कामोद्दीपक होती है। यूनानी मतानुसार यकृत को शक्ति, उत्तेजना देता है। पुरुष तत्व वर्धक है।
आंखों की तकलीफ को दूर करता है। बुखार, जोड़ों के दर्द, मस्तक की बीमारी को दूर करता है। शुक्राणुहीनता की समस्या को समाधान में यह बेहतर है। माना जाता है इसकी जड़ शुक्र में, प्रमेह में काम आती है। यही नहीं इसकी जड़ गठिया रोग, मंदाग्नि, खासी, शीघ्रपतन, जननांग दोष दूर करने के काम आती है। शरीर की कमजोरी मिट जाती है, वहीं सर्पदंश, बिच्छू के कांटे में भी इसकी जड़ काम में लाई जाती है।
 यदि किसी स्त्री को प्रसव में कष्ट हो रहा हो तो इसकी जड़ को पानी में घिसकर पिला देने से बहुत लाभ होता है और तुरंत प्रसव हो जाता है। इस पौधे से गर्भ निवारक, गर्भपात आदि में भी काम में लेते हैं।
ऊंट कटारा एक ऐसा पौधा है जो हर किसी को दीवाना बना देता है। इसका विभिन्न दवाओं में चमत्कारिक प्रभाव पाया जाता है। ऊंट कटरा
अधिक प्यास लगने पर, खांसी, पाचन शक्ति विकार में, सुजाक रोग में, त्वचा रोग विकारों में, यौन रोगों में, अधिक पसीना आने में, बुखार आदि को दूर करने में काम में लाया जाता है।
 इसकी जड़, पत्ते, फल सभी औषधीय गुणों से भरपूर है। इसे मिल्क थिसल नाम से जाना जाता है। कितनी ही दवाइयां इस पौधे से बनती है। बाजार में इसका पाउडर भी मिलता है।
यह पौधा राजस्थान में अत्यधिक पनपता है। ऊंट कटरा कई शारीरिक दोषों को दूर करता है। इसकी जड़ की छाल को पान में रखकर खाया जाता है ताकि खांसी दूर हो सके। ग्रामीण क्षेत्रों में पुराने समय से इसकी जड़ के लेप को इंद्रियों पर लगा कर सहवास को बढ़ाते आए है। पाचन शक्ति बढ़ाने में बहुत अधिक योगदान है। पेट की मंदाग्रि को दूर करने में भी इसका अहम योगदान है। यह दुनिया की सबसे शक्तिशाली और सेक्स पावर बढ़ाने वाली औषधि है।






 कमजोर आदमी को भी मर्द बनाने वाली जंगली जड़ी बूटी है। कहने कोई ऊंट कटरा है लेकिन है औषधीय गुणों से परिपूर्ण एक झाड़ी है। 

भारत में ग्रामीण क्षेत्रों में भी होने लगी है खेती---
*******************************
************************
*****************
किसान कृषि में बदलाव करने लगे हैं और परंपरागत खेती की बजाय अब सब्जी एवं औषधीय पौधे उगाने लगे हैं। भारत के राज्य हरियाणा के जिला महेंद्रगढ़ में जहां रेतीली जमीन है वहां भी इसकी खेती शुरू कर दी है। महेंद्रगढ़ के सुनील कुमार सीहमा अपने 2 एकड़ में पुष्प चक्कर (जिसे मोटी सौंफ) कहते हैं तथा डेढ़ एकड़ में ऊंट कटारा उगाए हैं जो कि दोनों ही पौधे औषधीय है। इन्हें कोई आवारा जंतु तथा पालतू जंतु भी नहीं खाते। ऊंट कटारा रेगिस्तान में अधिक उगता है और कांटे वाला पौधा है जो अनेक औषधियों में काम आता है। सुनील कुमार ने बताया कि उनके खेत में 15 क्विंटल ऊंट कटारा होने की संभावना है जबकि
 5 क्विंटल चक्कर पुष्प होने की संभावना है। वर्तमान में फसल पैदावार लेने जा रहे हैं। उन्होंने बताया कि बाजार में इसके भाव अच्छे है। एक 1 एकड़ में जहां सरसों 7 क्विंटल के करीब हो जाती है जो 30 हजार रुपये के करीब बिकती है वही ऊंट कटारा से करीब 1.40 लाख रुपये मिलने की उम्मीद है। उन्होंने विगत वर्ष केसर उगायी थी जिसमें भारी नुकसान हुआ।
 उन्होंने बताया कि बरेली से बीज लेकर आए थे और वही बेचा जाना है। बीज प्रदाता उन्हें खरीद कर ले जाएंगे। इन पौधों की देखरेख की अधिक जरूरत नहीं होती महज 3 बार पानी दिया है।
इन पौधों से खेत में बेहतर दर्जे का खाद भी पैदा होता है। ऐसे में उन्होंने कहा कि वे जिले में शायद पहले किसान होंगे जिन्होंने इस प्रकार की खेती की है। ये पौधे आयुष विभाग के तहत आते है  और आस पास मंडियां नहीं हैं। 

 **होशियार सिंह, लेखक, कनीना, महेंद्रगढ़







हरियाणा**

Tuesday, April 21, 2020

कोरोना से बचने के लिए उपयोगी पौधे
*******************************
*****************************
****************************

महामारी
जब किसी रोग का प्रकोप सामान्य की अपेक्षा अधिक होता हो तो महामारी करते हैं। महामारी किसी एक स्थान, क्षेत्र, जनसंख्या पर प्रभाव नहीं बल्कि कई देशों एवं महाद्वीपों में फैलती है तभी से महामारी कहा जाता है।
 इतिहास
यदि विगत इतिहास पर नजर डालें तो अनेकों बार महामारी फैली हैं। 1915 से 1926 तक इंसेफेलाइटिस नामक बीमारी फैली जिसका  प्रभाव मानव के तंत्रिका तंत्र पर पड़ा। तत्पश्चात 1918 से 1920 स्पेनिश फ्लू ने दुनिया भर को चपेट में लिया, यह प्रथम विश्व युद्ध के कारण फैला था। इस बीमारी में भारत के सैनिक भी प्रभावित हुए थे जो विश्व युद्ध में शामिल हुए थे। हैजा महामारी का प्रभाव 1961 से 1973 तक चला।
हैजा 5 साल की समय अवधि में एशिया के कुछ हिस्सों में फैला। कोलकाता में खराब जल संचय प्रणाली ने इस शहर को भारत की महामारी का केंद्र माना गया था। 1968 से 1969 तक फ्लू बीमारी जिसे इन्फ्लूएंजा नाम से जाना गया। यह बीमारी कई देशों में फैली। 1974 में चेचक की बीमारी फैली जिसने विश्व के चेचक के 60 प्रतिशत मामले भारत में देखे गए किंतु डब्ल्यूएचओ की सहायता से 1977 में चेचक मुक्त कर दिया।
1994 में सूरत में प्लेग फैला। लोग शहर को छोड़कर के लोग दूसरे देशों में चले गए। इसमें खुली नालिया, सीवरेज की गलत व्यवस्था मानी गई थी। 2002 से 2004 तक सार्स नामक रोग फैला वहीं 2006 में डेंगू और चिकनगुनिया फैला। 2009 में गुजरात में हेपेटाइटिस फैला। 2014-15 में उड़ीसा में पीलिया का प्रकोप हुआ। 2014-15 में स्वाइन फ्लू का प्रकोप चला। 2017 में इंसेफेलाइटिस का प्रकोप चला तो 2018 में निपाह वायरस तथा 2019 में अब कोरोनावायरस आया। इस प्रकार महामारी बार बार आई हैं और लोगों की जिंदगी को लील गई हैं। यह माना जा रहा है जल्द ही कोरोना की वैक्सीन तैयार होगी और लोगों को बचाया जा सकेगा।

कोरोनावायरस-
 कोविड-19 एक नए किस्म का विषाणु है जो माना जा रहा है चीन के वुहान शहर में 2019 दिसंबर के मध्य में शुरू हुआ। यह रोग उन लोगों में देखने को मिला जो मछली एवं समुद्री जीव जंतु बेचते हैं एवं व्यापार करते हैं। यह भी पता लगा है कि यह चमगादड़ आदि से इंसान में पहुंचा। चीनी वैज्ञानिकों ने 2019 में इस वायरस  की पहचान की जिसे 2019 एनसीओवी नाम से जाना जाता है। यह सार्स से मिलता-जुलता एक विषाणु है।
20 जनवरी 2020 को चीन ने नावेल कोरोनावायरस के कारण फैलने वाली निमोनिया महामारी को रोकने के लिए पर प्रभावी प्रयास करने का आग्रह किया। 14 मार्च 2020 तक दुनिया में 58100 मौतें हो चुकी 9 फरवरी तक परीक्षण के बाद 88000 मामलों का खुलासा हुआ था। 20 मार्च 2020 तक दुनिया के करीब 160 देशों में फैल गया। अंतर्राष्ट्रीय चिंता का विषय बन गया और इसे महामारी का रूप दिया गया।
  दिनोंदिन इसकी चपेट में हजारों लोग आते जा रहे हैं और यह एक बहुत बुरी बीमारी बन चुकी है। करीब डेढ़ लाख व्यक्ति पूरे संसार के मारे जा चुके हैं जबकि 22 लाख लोगों से भी अधिक में इस वायरस की पुष्टि हो चुकी है। हर देश में हाहाकार मचा है। भारी संख्या में लोग मर रहे हैं। लोगों के पास आने से अधिक फैलता है।
 नामकरण

 कोरोना वायरस का नाम विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कोविड-19 दिया जो आज पूरे विश्व में तबाही का मंजर बन चुका है। पूरा ही विश्व इसकी चपेट में आ चुका है। आए दिन इसकी चपेट में आने से नए संक्रमित रोगी मिल रहे हैं।
लक्षण--
इस बीमारी के शुरुआत में निमोनिया जैसी लक्षण सामने आए जिसका कारण सार्स कोरोनावायरस पाया गया। शुरुआत में हल्की सर्दी, जुकाम, बुखार के लक्षण प्रकट होते हैं और यह रोग बिना किसी इलाज के कारण तेजी से बढ़ रहा है। 6 लोगों में से एक में गंभीर सांस लेने की तकलीफ पाई जाती है।
श्रेणियां-
वैसे तो इस रोग के लक्षण कई बार दिखाई देते हैं तो कई बार नहीं दिखाई देते किंतु प्रोफेसर विल्सन ने इसकी चार श्रेणियां बनाई है। चारों श्रेणियां लक्षणों पर आधारित है। तीसरी श्रेणी के लक्षण होने पर इसे पॉजिटिव माना जाता है उन्हें अस्पताल में रखा जाता है और चौथी श्रेणी के लोग गंभीर बीमार होते हैं। जरूरी नहीें सभी लोग इससे पीडि़त हो क्योंकि शरीर का प्रतिरक्षी तंत्र जितना मजबूत होता है यह रोग नहीं लग सकता।
फैलने के कारण-
 अक्सर माना जाता है कि इस रोग को फैलने में हवा प्रमुख कारण बनती है किंतु यह रोगाणु हवा में नहीं फैलता अपितु खांसी के की बूंदे रोगी व्यक्ति से हवा में फैलती है। यदि रोगी व्यक्ति छींकता है या खांसता है तो 3 फीट दूरी अर्थात एक मीटर दूरी तक इस की बूंदे जाकर गिरती है।
यह ऐसा और वायरस है जो कमजोर माना जाता है किंतु यह विभिन्न वस्तुओं पर कुछ समय से लंबे समय तक जीवित रहता है। जिसके कारण इंसान संक्रमित हो जाता है।

बीमारी से बचाव-
 बीमारी से बचने का एकमात्र तरीका सोशल डिस्टेंस बनाकर रखना, हाथों को बार-बार साबुन से धोना, जिन वस्तुओं को छुए उनको सेनिटाइज करें, हाथों को धोए, मुंह पर मास्क लगाकर ही कुछ हद तक रोग से बचा जा सकता है। बचाव ही इसका एकमात्र उपाय है। अभी तक इसकी कोई दवा नहीं बनी है। यह एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक पहुंच जाता है। इसके कई लक्षण हो सकते हैं जैसे खांसी, सांस की तकलीफ किंतु लक्षण एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में अलग-अलग होते हैं। बुजुर्ग व्यक्ति अधिक प्रभावित होते हैं। इस रोग के अभी तक वैक्सीन नहीं बनी है। माना जा रहा है जल्द ही वैक्सीन तैयार हो जाएगी और इस रोग से बचा जा सकेगा।
कोरोना वायरस
*****************
****************************
कोविड-19
*********************
वायरस
वायरस को विषाणु नाम से जाना जाता है। 1888 में मेयर वैज्ञानिक ने खोजा था जो जब तक सजीव कोशिका से बाहर होता है निर्जीव कहलाता है और जब सजीव कोशिका में प्रवेश करता है तो तेजी से संतान पैदा करता है। यह सजीव तथा निर्जीव दोनों के गुण रखता है। कोरोना विषाणु एक नया वायरस है जिससे लाखों लोग मृत्यु के कगार पर जा चुके हैं।  इससे बचने के लिए अनेकों आयुर्वेदिक उपाय बताए गए हैं। यद्यपि रोग होने पर अभी तक कोई दवा इसके लिए नहीं बनी है।
बचाव-
गुनगुना पानी-
 वायरस के प्रभाव से बचने के लिए सबसे जरूरी है कि नियमित तौर पर गुनगुना पीना पिएं। पानी धरा पर तीन चौथाई है जिसका सूत्र एचटूओ है। इसमें हाइड्रोजन एवं आक्सीजन क्रमश: दो एवं एक भाग मिलकर बनता है। पीने योग्य धरती पर एक फीसदी से भी कम है।
पानी प्रतिदिन वैसे तो सभी पीते हैं किंतु गर्म पानी से गरारे करने चाहिए तथा प्रतिदिन गर्म पानी पीने से इस विषाणु से बचा जा सकता है।

रोग प्रतिरोधक क्षमता-
 इस रोग से बचने का सबसे बेहतरीन उपाय है शरीर में रोग रोधक क्षमता होनी चाहिए। आमतौर पर व्यक्तियों में रोग लगता है जिनमें रोग रोधक क्षमता कम होती है। रोग रोधक क्षमता पैदा करने के लिए आंवला, एलोवेरा, गिलोय, नींबू/संतरा आदि कारगर माने जाते हैं। रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए तुलसी, लोंग, अजवायन कारगर बताई गई है। तुलसी को चाय में या पानी में तुलसी का रस डालकर पिया जा सकता है।गर्म दूध -
गर्म दूध विशेषकर हल्दी मिलाकर पीने से रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। इसलिए प्रतिदिन एक गिलास दूध में चौथाई चम्मच हल्दी डालकर पीना आयुर्वेद के जानकार बेहतरीन मानते हैं। इसके अलावा कुछ बने हुए काढ़ा बाजार में भी मिलते हैं। जिनसे भी रोग रोधक क्षमता बढ़ाई जा सकती है।
यह भी माना जाता है कि वातावरण साफ-सुथरा होगा तो इस रोग के रोगाणु नहीं पलेंगे। आस पास साफ सुथरा रखने के लिए और नीम की पत्तियां, गूगल राल और कपूर जलाकर धुआं की जा सकती है। जो इन रोगाणुओं को के अतिरिक्त अनेकों रोगाणुओं को भी मारती है।
इसके अलावा घर में शुद्धता के लिए गूगल,  इलायची, तुलसी, लोंग, गाय का घी और खांड आदि को भी जलाया जा सकता है।
इम्यून सिस्टम अर्थात रोग रोगरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए नियमित रूप से तुलसी, काली मिर्च, लौंग, अदरक का रस शहद में लेने से बहुत लाभ होता है। जो व्यक्ति चाय के शौकीन हैं उनको नियमित रूप से तुलसी, काली मिर्च, दालचीनी अदरक, अजवाइन आदि से बनी दो -तीन चाय प्रतिदिन प्रयोग करने करनी चाहिए जो काढ़ा का काम करती है।
  स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा जारी की गई निर्देशों का पालन भी जरूर करना चाहिए ताकि कोरोना से बचा जा सके ।आमतौर पर आयुष मंत्रालय द्वारा समय-समय पर अनेक उपाय बताए जाते हैं। आमतौर पर घर से बाहर नहीं निकलना चाहिए, घर से बाहर निकलते हैं तो मुंह पर मास्क, हाथों में दस्ताने होनी चाहिए।  फिजिकल डिस्टेंस बनाई जानी चाहिए। आयुष मंत्रालय ने शरीर में इम्यूनिटी बढ़ाने के उपाय बताते हुए
च्यवनप्राश का उपयोग करने, तुलसी, दालचीनी, सौंठ, मुनक्का से बना काढ़ा पीने, नींबू संतरा आदि प्रयोग करने पर बल दिया है। वही मुंह में एक चम्मच तिल या नारियल का तेल डालकर थोड़ी देर के लिए रखे और बाद में थूक दे, पीना नहीं है। यह विधि यदि मुंह में किसी प्रकार के रोगाणु चले जाए तो उनसे छुटकारा दिलाती है।
सूखी खांसी गले में खराश आए तो पोदीना का या अजवायन का प्रयोग करने चाहिए। लौंग पाउडर को शहद में मिलाकर भी लिया जा सकता है। काली मिर्च और लौंग शरीर के लिए बेहद लाभप्रद है।
आइए अब देखें यह पदार्थ क्या होते हैं। आंवला एक पौधे का फल है जो बहुत अधिक औषधीय माना जाता है। हर प्रकार से लाभप्रद होता है इसमें आंवले में बहुत अधिक औषधीय गुणों के कारण यह बहुत अधिक प्रसिद्ध है। आंवला को फाइलेंथस एंब्लिका नाम से जाना जाता है।
यह फल होता है। इसका प्रयोग किसी भी रूप में जरूर करना चाहिए। इसका रस अचार, मुरब्बा जैम आदि अनेक पदार्थ बने होते हैं।
एलोवेरा- इसे घृतकुमारी या ग्वारपाठा कहते हैं। यदि एक बहु औषधीय पौधा है जो

सुंदरता बढ़ाने के अतिरिक्त इसका इसका अनेक रूपों में प्रयोग करते हैं। एलोवेरा को गुणों का खजाना नाम दिया गया है।
गिलोय इसे टीनोस्पोरा कोर्डीफोलिया नाम से जाना जाता है। यह एक बेल है जो पानी के अभाव में भी जीवित रह सकती है। कई वर्षों तक जीवित रहती है। बड़े पत्तों वाले इस पौधे में रोग रोधक क्षमता के गुण बहुत अधिक पाए जाते हैं। घरों में नीम पर उगाई जा सकती है। इसका काढ़ा रोग रोधक क्षमता बढ़ाता है।
नींबू जिसे लेमन कहते हैं। यह सिट्रस लिमोना नाम से जाना जाता है। इसमें विटामिन सी बहुत अधिक पाई जाती है। यह भी बहु औषधीय पौधा है। वास्तव में नींबू का फल बहुत कारगर औषधीय पौधा है। विभिन्न रूप में प्रयोग किया जाता है तथा सेहत के लिए बहुत बेहतरीन फल है।
  तुलसी घरों की शोभा बढ़ाता है जिसे ओसिमम टेनुईफोलियम/सेंक्टम नाम से जाना जाता है। इसके पत्ते बेहद लाभप्रद होते हैं। इसको नियमित रूप से प्रयोग करना हर प्रकार से लाभप्रद माना जाता है।
हल्दी जिसे टरमेरिक नाम से जाना जाता है। लेकिन हल्दी एक पौधे की जड़े में मिलती है। वास्तव में इसे करकम्मा लोंगा नाम से जाना जाता है। यह बेहद औषधीय गुणों से परिपूर्ण है। यह धार्मिक पौधा भी माना जाता है। इस पौधे की जड़ की गांठों में हल्दी मिलती है। दूध में डालकर सेवन किया जाता है।
पुदीना - इसे मेंथा नाम से जाना जाता है इसका वैज्ञानिक नाम मेंथा स्पाईकाटा है। अति औषधीय पौधा इसके पत्ते विशेष रूप से कारगर होते हैं। जिनको गर्मियों में बहुत प्रयोग किया जाता है।

दालचीनी- इसे सिन्नामोमम वैरम नाम से जाना जाता है। इस पौधे की छाल औषधियों के रूप में काम में लाई जाती है। प्राय चाय में डालकर काढ़ा बनाया जाता है।
मुनक्का- इसे रेजिन नाम से जाना जाता है। यह एक पौधे का फल है कच्चा ही खाया जाता है। मुनक्का वास्तव में अंगूर जैसा एक फल है जिसको सुखाकर काम में लेते हैं तथा विभिन्न औषधियों के रूप में यह काम आता है।
अदरक तथा सौंठ- अदरक जिंजर नाम से जाना जाता है। सूखी हुई अदरक को सौंठ नाम से जाना जाता है। इसे जिंजीबर ऑफिसिनेल नाम से जाना जाता है। यह बहुत सी बीमारियों में लाभप्रद है। इसे प्राय पौधे की जड़ कहते हैं।

ईलाइची -
इसे इलिटेरिया कार्डेमम कहते हैं। यह पौधे का फल है जिसमें बीज भी पाए जाते हैं। बहु उपयोगी फल एवं बीज हैं। शरीर के लिए बहुत लाभकारी होता है।






















लौंग-यह कोटे की शक्ल की होती है। इसका वैज्ञानिक नाम साइजीजियम एरोमेटिकम नाम से जाना जाता है। यह वास्तव में पौधे की कलियां-फूल होती है। देखने में कील कांटे जैसा लगता है लेकिन वह उपयोगी पौधा है। दवाओं के रूप में काम में लाया जाता है। वास्तव में कली-पुष्प सूखने पर पुष्प काली नाम दिया गया है। काली मिर्च इसे ब्लैक पिपर कहते हैं। वास्तव में इसका वैज्ञानिक नाम पाइपर निग्रम है। काली मिर्च पौधे पर लगने वाला एक फल है जो जो व्रत आदि में भी काम में लाया जाता है।
नारियल वास्तव में एक पौधे का कठोर फल होता है। जिसका बीज नारियल कहलाता है। उसका वैज्ञानिक नाम कोकोस नुसीफेरा है। यह इसका तेल बहु उपयोगी होता है जिससे विषाणु हटाने के लिए गरारे किए जा सकते हैं।
तिल जिसे सेसेम नाम से जाना जाता है। वास्तव में यह व्रत आदि में काम में लेते हैं तथा तिल पौधे का बीज है। इसका वैज्ञानिक नामसेसेम इंडीकम है। इसका तेल मुंह में डालकर गरारे किए जा सकते हैं।
अजवाइन यदि बहु उपयोगी पौधा है। वास्तव में इसका वैज्ञानिक नाम ट्रेकीस्पर्मम एम्मी है। यह वास्तव में बिसफस वीड नाम से जाना जाता है जो शरीर के लिए बहुत लाभकारी है ।यह पौधे का एक बीज होता है।
गूगल एक पौधे से प्राप्त होता है जिसको कौमीफोरा विघटाई नाम से जाना जाता है।
गूगल पौधे से  रेजिन प्राप्त होता है जिसे गूगल गम कहते हैं। यह उपयोगी पदार्थ है। यह वास्तव में गूगल पौधे की राल होती है। 
 नीम नीम आज़ाडीरिकता इंडिका कहते हैं। बहु क्योंकि पौधा है जिसके पत्ते औषधियों में काम आते हैं। घरों में भी काम में लाया जाता है।

 **होशियार सिंह, लेखक,कनीना, जिला महेंद्रगढ़, हरियाणा**