ब्रह्मदंडी
(ट्राइकोलेपिस ग्लेबरिमा)
दुर्लभ जड़ी बूटी एक
रह गई बहुुत ही कम
ब्रह्मडंडी कहलाती है
धूप छांव में रहती सम,
किसी बंजर जमीन पर
मिल जाए आज खड़ी
देखकर इस पौधे को
समझो आई शुभ घड़ी,
मानव ने अपने हाथों
कितनी बूटियां खो दी
देखकर जन के करतूत
धरती माता भी रो दी,
हो सके बचा लो इन्हें
फिर वक्त नहीं आएगा
खुद पैरों में मार कटारी
बहुत समय पछताएगा,
ब्रह्मदंडी बड़ी है कड़वी
दवाओं में काम आए
पैर जारी जब हो जाए
यह बूटी उसे दूर भगाए,
शांतिदायक दवा बनती
जान फूंक दे इंसानों में
पी ले अगर रस अगर
स्फूर्ति आए जवानों में,
शरीर कमजोर जब हो
इसका ही प्रयोग करते
नपुंसकता को दूर करे
नपुंसकता से क्यों डरते,
गिली सूखी काम आए
ढूंढ लो कहीं मिल जाए
ला प्रयोग करना सीखो
जहां कहीं भी मिल जाए।
*****होशियार सिंह, लेखक, कनीना**
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