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Saturday, February 29, 2020

पूरे विश्व में प्रसिद्ध है खाटू श्याम मेला, खाटू का
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भारत के हरियाणा की सीमा से लगते राजस्थान में रिंगस से करीब 15 किमी दूर खाटूश्याम धाम पौराणिक इतिहास को समेटे हुए है। यूं तो इस धाम पर वर्ष भर भारी भीड़ चलती है किंतु दो बार तो कई लाख भक्त पहुंचते हैं। फाल्गुन शुक्ल एकादशी को जो मेला लगता है उसमें अपार जनसैलाब उमड़ता है। यहां कई दिनों पूर्व ही भक्तजन आकर ध्वज चढ़ाने लग जाते
है। राजस्थान, उत्तर प्रदेश और हरियाणा के अलावा पंजाब के बेशुमार भक्तजन पदयात्रा करके इस धाम पर पहुंचते हैं। प्रथम मार्च को यह मेला लगने जा रहा है। पदयात्रियों का जाना शुरू हो गया है। प्रथम मार्च तक भक्तजन पदयात्रा पर चलते रहेंगे।
रास्ता -
भारत में हरियाणा के जिला महेंद्रगढ़ के प्राचीन कस्बा कनीना से हजारों की संख्या में झंडा लेकर श्री खाटू श्याम की ओर रवाना होते हैं। विभिन्न जिलों और राज्यों के भक्तजन निजामपुर सडुक मार्ग को काटने वाले रेलवे ट्रैक के साथ-साथ चलकर जाते हैं रास्ते में अनेक पड़ाव एवं ठहराव होते हैं। यह रास्ता निम्र स्टेशनों एवं पड़ावों से होकर गुजरता है-

 कनीना से रास्ता यूं होकर गुजरता है। कनीना-मोहनपुर-सुंदराह-झीगावन-बेवल-अटा ली-सिहमा-खासपुर-नारनौल- निजामपुर-डाबला- जीलो-मावंडा-नीम का थाना-भागेगा-कांवट-कछेरा-श्रीमाधोपुर-रिंगस- खाटूश्याम।
ठहराव-
यूं तो देश ही तीज त्योहारों का देश है यहां समय समय पर प्रसिद्ध मेले लगते हैं लेकिन राजस्थान में खाटूश्याम धाम पर मेला अति दर्शनीय है। राजस्थान के भरने वाले प्रसिद्ध मेले के श्रद्धालुओं के लिए गांव-गांव में ठहरने के लिए शिविर लगाये जाते हैं। श्याम बाबा को पहुंचने वाले श्रद्धालुओं व भक्तों को यहां ठहराकर प्रबन्धक विभोर हो जाते हैं। वहीं भक्तों की अच्छी सेवा की जाती है। किसी भी भक्त को रास्ते में कोई परेशानी नहीं आती है। वैसे भी भारी संख्या में भक्त विशेषकर महिलाएं अधिक जाती हैं। रास्ते में नहाने, खाने एवं दवाओं को शिविरों में भी बेहतर प्रबंध होता है।
तैयारी

खाटूश्याम जाने  के लिए एक डंडे पर सवा मीटर का कपड़ा जो खाटू ध्वज के नाम से जाना जाता है को पूजा अर्चना करने के बाद धारण किया जाता है और रास्ते में किसी कपड़े आदि या साफ जगह पर ही रखा जाता है। सुबह सवेरे खाटू की पूजा करके ही ध्वज को लेकर आगे बढऩा चाहिए। सफाई के साथ-साथ मन एवं वचन से पूरे रास्ते शुद्धता का ख्याल रखना चाहिए। जहां कांवर के कठोर नियम होते हैं वहीं खाटूश्याम के नियम लचीले होते हैं। साबुन, तेल, ब्रश आदि की जा सकती है। क्योंकि अधिकांश रास्ता ट्रैक के साथ-साथ होकर गुजरता है। ऐसे में भक्तों को ट्रेन का ध्यान रखना जरूरी है। ट्रैक पर भूलकर भी न चले। कानों में संगीत की लीड लगाकर जानलेवा साबित हो रहा है ऐसे में भक्तों को विशेष ध्यान देना चाहिए और संगीत की लीड लगाकर नहीं चलना चाहिए।
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प्रसिद्ध है जैतपुर का श्याम मंदिर


जो भक्त भारत में राजस्थान में करीब 200 किमी दूर खाटू श्याम धाम पर नहीं जा सकते हैं उनके लिए जैतपुर का धाम विख्यात है। भारत के हरियाणा के जिला महेंद्रगढ़ से सटे हुडिय़ा-जैतपुर यहां से 25 किमी दूर राजस्थान में स्थित है जहां पदयात्री निशान लेकर जा रहे हैं। प्रति वर्ष यहां पर कई हजार निशान अर्पित किए जाते हैं और खाटू श्याम भक्त पैदल चलकर जाते हैं। कनीना, अटेली, नारनौल तथा महेंद्रगढ़ के अलावा आस पास के भक्त जो एक ही दिन में अपना निशान खाटू को अर्पित करना चाहते हैं और अधिक दूर चलने में असमर्थ हैं उनके लिए यह खाटू श्याम मंदिर जाना जाता है।
   जैतपुर में फाल्गुन एकादशी को खाटू श्याम मेला लगता है जिसमें अपार भीड़ जुटेगी। जैतपुर में श्याम बाबा के शृंगार के लिए शृंगार समिति बनाई हुई है जो प्रतिदिन दिल्ली से आए फूलों से श्याम बाबा का शृंगार करती है। कलकत्ता तथा अलवर के शृंगारकर्ता प्रतिदिन ताजा फूलों से बाबा का शृंगार करते हैं। करीब 300 वर्ष पुराने इस श्याम मंदिर का वर्तमान में जीर्णोंद्धार करवाया गया है जिसमें राधा मंदिर, निशान रखने का स्थान, परिक्रमा का स्थान,  एवं बड़े हालों का निर्माण कराया गया है। श्याम बाबा की आरती तथा भंडारा चलता है।
    भक्त अपने घर से खाटू श्याम का निशान लेकर पदयात्रा करता हुआ कनीना से भोजावास तथा राताकलां से जैतपुर पहुंचता है। अपने निशान को बाबा पर अर्पित करके संतुष्ट हो जाता है। भक्तों ने बताया कि इस धाम तक आसानी से पहुंचा जा सकता है। फाल्गुन एकादशी को यहां विशाल मेला लगता है जिसमें भक्त यहां आकर मन्नत मांगते हैं। माना जाता है कि उनकी मन्नतें पूर्ण हो जाती हैं।
      महेंद्रगढ़ के कनीना से  25 किमी के इस सफर में वे मोहनपुर, भोजावास, रातां से होकर प्रतापुर एवं जैतपुर पहुंचते हैं। इस पदयात्रा में उनके साथ जल एवं खाने पीने का सामान वाहन में साथ साथ चलता है। डीजे पर थिरकते पैर एवं रंग गुलाल में भीगे भक्त खुशी खुशी जैतपुर के लिए रवाना हो रहे हैं। भारी संख्या में भक्त आपने साथ अमर ज्योति लेकर जा रहे हैं। यह ज्योति भी जैतपुर धाम पर अर्पित की जाती है।
भक्तों का कहना-
खाटू श्याम में लगने वाले फाल्गुन एकादशी के मेले के दृष्टिगत कनीना से समाजसेवियों के समूह रवाना हो रहे है। प्रतिदिन हजारों भक्तजन जा रहे हैं। यूं तो खाटू श्याम मेले के दृष्टिगत ध्वज लेकर पदयात्रा पर एक के बाद एक समूह रवाना होते है तथा उनके लिए जगह जगह शिविर स्थापित किए जाते हैं।
  इस संबंध नेमी सिंह का कहना है कि वे विगत छह वर्षों से खाटू श्याम जाकर ध्वज अर्पित करते हुए आया है। उनकी कोई मनोकामना नहीं है। अपितु उनके दिल में श्रद्धा एवं भक्ति भरी है जिसके चलते व्यस्त समय में से समय निकालकर खाटू जाता हूं। उन्होंने कहा खाटू के प्रति भक्ति के चलते यह दूरी कष्टदायी नहीं लगती है।
  रोहित कुमार पांच वर्षों से खाटू श्याम का भक्त हैं। श्याम को मन में संजोकर लंबी दूरी को पार कर जाते हैं। उनके अनुसार उन्हें थकान तो होती है परंतु रास्ते में लोगों की भक्तों के प्रति भक्ति प्रसन्न रखती है और सफर आसानी से पूरा हो जाता है।
कांवर की अपेक्षा ध्वज में कम नियमों का पालन करना होता है वहीं दूरी भी कम है।
   हेमंत कुमार गाहड़ा निवासी का कहना है कि वे छह वर्षों से खाटू श्याम जा रहे हैं और उन्हें मन को प्रसन्नता एवं भक्ति भाव इसी यात्रा से प्राप्त होता है। जब कभी खाटू मेला पास आता है तो वे मेले में जाने की तैयारी में जुट जाते हैं। पदयात्रा विशेषकर रेलवे ट्रैक के साथ साथ चल पाना थोड़ा कठिन है किंतु मन में भक्तिभाव रखते हुए यह सफर सामान्य महसूस होने लग जाता है। श्याम बाबा के दर्शन करके सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं।
   विनोद कुमार का कहना है कि वे विगत दो वर्षों से श्याम बाबा के यहां जा रहे हैं। उनकी सभी इच्छाएं श्याम बाबा के जाने पर खत्म हो जाती हैं। उन्हें खाटू जाना बेहद प्रसन्नतापूर्ण लगता है। उनका कहना है कि अपार भक्तों को मीलों का सफर तय करता देख उनका सफर आसानी से पूर्ण हो जाता है।
खाटू श्याम में जहां भक्तों के लिए हर प्रकार की खाने पीने, रहने तथा स्नान आदि की सुविधा उपलब्ध कराई गई है वहीं फास्ट फूड की ओर सभी कैंप चल रहे हैं। रिंगस से खाटू धाम तक करीब 17 किमी में जहां भक्तों की सबसे अधिक संख्या देखने को मिल रही है वहीं पेट के बल जाकर खाटू श्याम के दर्शन करने वाले भी भारी संख्या में हैं। छोटे बच्चे एवं महिलाओं की संख्या भी अधिक है जिनके हाथों में खाटू का निशान है।

   खाटू श्याम में सभी भक्तों की जुबान पर बस श्याम का नाम है। डीजे पर, नृत्य करते हुए सभी खाटू धाम की ओर बढ़ते ही जा रहे हैं। खाटू श्याम के दर्शन करके वे अपने को धन्य समझ रहे हैं। खाटू में नजारा देखकर ऐसा लगता है कि भक्तों में अपार आस्था है।
 विभिन्न गांवों एवं शहरों से दल के रूप में भक्त खाटू की ओर चले जा रहे हैं जहां से रेलवे ट्रैक के साथ साथ भारी भीड़ भक्तों की चली जाती है। हाथों में डंडे पर खाटू का निशान लेकर मुख से जयकारे लगाते हुए बस आगे की ओर बढ़ते हैं। मुख्य धाम खाटू मंदिर को सजाया जाता है तथा भक्तों को आने जाने के लिए पुलिस प्रबंध किए जाते है। रिंगस से खाटू तक 17 किमी मार्ग पर भारी संख्या में भक्त बिना चप्पल जूतों के साथ तो कुछ पेट के बल चले जाते हैं। 17 किमी दूरी में डाली गई कार्पेट भक्तों के चलने के लिए आरामदायक बनी हुई है वहीं भक्त विभिन्न प्रकार के बड़े छोटे निशान लेकर दौड़े चले जाते हैं। महिलाओं की संख्या बहुत अधिक होती है। 

यूं तो देश ही तीज त्योहारों का देश है यहां समय समय पर प्रसिद्ध मेले लगते हैं लेकिन राजस्थान में खाटूश्याम धाम पर मेला अति दर्शनीय है। राजस्थान के भरने वाले प्रसिद्ध मेले के श्रद्धालुओं के लिए गांव-गांव में ठहरने के लिए शिविर लगाये जाते हैं। श्याम बाबा को पहुंचने वाले श्रद्धालुओं व भक्तों को यहां ठहराकर प्रबन्धक विभोर हो जाते हैं। वहीं भक्तों की अच्छी सेवा की जाती है।
    राजस्थान में रिंगस से 17 किलोमीटर दूर लगभग 400 धर्मशालाओं एवं श्याम मन्दिर से सुशोभित पवित्र धाम ''खाटू श्याम जीÓÓ है। देश के ही नहीं अपितु विश्व भर में प्रसिद्ध फाल्गुन एकादशी का मेला लगता है जिसमें लगभग 10 लाख व्यक्ति श्रद्धा के साथ आते हैं और पवित्र कुण्ड में स्नान करते हैं।
    देशी घी के चूरमे का भोजन तथा भजन कीर्तन के लिए प्रसिद्ध इस मेले में जयपुर से नन्दू तथा जयशंकर चौधरी, लखबीर सिंह लक्खा, टाटा नगर से आकर श्याम गुणगान करते हैं। ठाकुर बाहुल्य ग्राम में लगने वाले इस मेले में 36 बिरादरियों के लोग एवं श्रद्धालु दर्शनार्थ आते हैैं। श्रद्धालु एवं भक्तगण अपने स्थान से सवा मीटर कपड़ा बांस पर टांगकर पैदल चलकर आते हैं। माना जाता है कि भक्तगणों की मन्नतें पूरी हो जाती हैं।
    खाटू श्याम जी मन्दिर में श्याम बाबा के शीश की पूजा अनेक प्रसिद्ध राजनेता करने आते हैं। श्याम बगीची में पैदा हुए फूलों व फलों को श्याम बाबा पर चढ़ाया जाता है। हर माह की एकादशी को यहां छोटे छोटे मेले लगते हैं किन्तु दशहरे पर शुक्ल एकादशी को श्याम बाबा का जन्म दिन श्रद्धापूर्वक मनाया जाता है जिसमें लाखों व्यक्ति भाग लेते हैं।
    श्याम बाबा का वास्तविक नाम बबरीक था तथा महाभारत में भीम का पौत्र घाटोत्कच का पुत्र था। बबरीक को श्याम बाबा के नाम से पूजे जाने के पीछे एक किंवदंती प्रचलित है।
    जब कौरवों और पांडवों का युद्ध चल रहा था तो बबरीक मात्र तीन बाण लेकर युद्ध में आया। जब श्रीकृष्ण की नजरें उन पर पड़ी तो उनका परिचय तथा युद्ध में आने का कारण पूछा। बबरीक ने अपना नाम घटोत्कच पुत्र 'बबरीकÓ बताया और कहा मैं युद्ध के लिए आया हूं। जब श्रीकृष्ण ने हॅसकर कहा कि तुम तीन बाणों से क्या युद्ध करोगे तो बबरीक ने कहा- 'मैं तीन बाणों से तीन लोक बेंध सकता हूंÓ। कृष्ण ने उनकी परीक्षा हेतु सामने खड़े विशाल पीपल के सभी पत्ते एक ही बाण से छेदने के लिए कहा।
    बबरीक ने एक बाण धनुष पर चढ़ाया और, पीपल के सभी पत्ते छेद डाले। जब श्रीकृष्ण को उनकी बहादूरी पर विश्वास हो गया तो पूछा कि आप किस सेना का साथ देंगे? बबरीक ने कहा- जो सेना हारती नजर आयेगी, उसका साथ दंूगा। श्रीकृष्ण सोच में पड़ गये गए और सोचा कि अब युद्ध जीतना असंभव हो गया है। श्रीकृष्ण ने तब एक चाल चली और शीश दान में मांगा। बबरीक ने हाथ जोड़कर एक विनती की कि उन्हें पूरा युद्ध दिखाया जाये।
    तत्पश्चात शीश को ऊंचे पर्वत पर रख युद्ध का हाल देखने दिया। जब पांडव युद्ध जीत गए तो पांडवों में घमण्ड़ को गया और आपस में कहने लगे कि युद्ध मेरे कारण जीता गया। तब श्रीकृष्ण ने उनके आपसी झगड़े का निपटारा शीश से करवाने का फैसला किया। शीश ने युद्ध में जीत का कारण श्रीकृष्ण का सुदर्शन चक्र तथा द्रौपदी का कालरूप बताया।
    बबरीक के सच्चे न्याय को सुन श्रीकृष्ण ने उन्हें कलयुग में श्याम बाबा नाम से पूजे जाने का वरदान दिया। इसके बाद शीश नदी में बहा दिया जो चलकर खाटू पवित्र धाम में रुका। तभी से खाटू श्याम स्थल पर श्याम मन्दिर बनाकर पूजा आरम्भ की। मन्दिर में रखा शीश स्वयं उत्पन्न हुआ माना जाता है।
 























**होशियार सिंह, लेखक,कनीना,हरियाणा,भारत**


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