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Friday, February 21, 2020

प्याजी
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पोहली
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एस्फोडेलस टेनुइफोलियस
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प्याज खरपतवार
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प्याजी या पोहली/जंगली प्याजी का वानस्पतिक नाम एस्फोडेलस टेन्यूफोलियस है जो  लिलियासी कुल पौधा होता है जिसे अक्सर लोग प्याजी के रूप में जानते हैं। राजस्थान में इसे प्याज खरपतवार कहते हैं जो राजस्थान के प्रसिद्ध थार रेगिस्तान का औषधीय पौधा है। राजस्थान के थार रेगिस्तान में पाया जाने वाला एक सामान्य शुष्क जलवायु में मिलने वाली खरपतवार है।
जंगली प्याज का रूप प्याजी खेतों का एक सामान्य खरपतवार है। यह रबी फसलों में विशेषरूप से गेहूँ ,सरसों और चने के खेतों में मिलता है। यह विश्व के कई देशों में मिलता है।

    यह एशिया द्वीप का मूल निवासी है। प्याजी में रेशेदार जड़े पाई जाती है। यह द्विबीजपत्री पौधा होता है। कहीं कहीं इसे जंगली प्याज या जंगली पियाज नाम से जानते है। पौधे कठोर, प्याज से मिलती जुलती पत्तियों तथा सफेद या पीले रंग के फूलों के साथ पैदा होता है। इसका तना लंबा तथा वार्षिक होता हैं। इसकी मोटी, मांसल अक्सर पीले रंग की जड़ें होती हैं।
 पत्ती, फल, बीज, फूल, और जड़ सहित पौधे के विभिन्न हिस्सों का उपयोग पारंपरिक औषधियों एवं दवाओं के रूप में किया जाता है। इसे अकेले दवाओं में काम में लाया जाता है या फिर मिश्रण के रूप में बीमारियों का इलाज करने के लिए काम में लेते हैं। एक्जिमा के उपचार के लिए कटे हुए कंद के साथ भुने हुए बीज की राख में मिलाकर रगड़ा जाता है।
प्याजी के बीज में 60 फीसदी तक तेल पाया जाता है जिसमें लिनोलिक अमल पाया जाता है।  यह शिराओं(आरटेरीज) के संकीर्ण होने तथा हृदय के रोगों को ठीक करने के काम में लेते हैं। इसका उपयोग जुकाम और बवासीर के लिए किया जाता है। इसका उपयोग गठिया के दर्द के लिए भी उपयोग किया जाता है। बीजों में मूत्रवर्धक पदार्थ, घाव भरने की क्षमता के रूप में भी उपयोग किया जाता है।

 फोड़ा फुंसी और सूजन वाले हिस्सों पर पौधे का लेप लगाया जाता है। जीनस एस्फोडेलस की 18 प्रजातियों में से केवल पांच प्रजातियां ही पारंपरिक उपयोगों में काम आती हैं। आम तौर यह सोरायसिस, एक्जिमा और गठिया के उपचार के लिए काम में लाया जाता है।  युवा पौधों में जड़ पीले और परिपक्वता पर गहरे भूरे रंग की होती हैं। इसकी जड़े कभी-कभी रस्सी जैसी दिखाई देती हैं। इसके फूल देर दोपहर तक नहीं खुलते हैं।फल, एक 3-वाल्वयुक्त गोलाकार कैप्शूल, बीज तिकोणा, कालापन, बारीक कंकड़ की बनावट जैसा होता है।
इसका पौधा ऊंचाई पर पहाड़ों में भी मिलता है।
यह शुष्क जलवायु, कम वर्षा, हल्की मिट्टी के साथ स्थानों को पसंद करती है। यह लगातार सिंचाई और गहन कृषि, विशेषकर चावल-गेहूं की फसल प्रणाली पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है। यह फसली पौधों से स्पर्धा करती है वहीं पैदावार को दस फीसदी तक घटा देता है वहीं गेहूं आदि के भाव को गिरा देता है।
वास्तव में प्याजी  एक खरपतवार है। यह भारत और पाकिस्तान में गेहूं का एक गंभीर खरपतवार है और भारत में छोले, सरसों,मसूर, अलसी, मटर, आलू, तम्बाकू और कई अन्य सर्दियों के मौसम की फसलों का प्रमुख खरपतवार है।
यह बीज द्वारा प्रजनन करता है। यह प्रजाति सबसे अधिक गंभीर खरपतवार है। एक बार स्थापित होने के बाद, एक खेत में खरपतवार के बीज की मात्रा अक्सर साल-दर-साल बढ़ जाती है। पुराना बीज अंकुरित नहीं होता है।

बीज फैलाव तब होता है जब फलने वाला कैप्सूल तीन भागों में खुलता है, जिनमें से प्रत्येक में दो बीज होते है। भारत में गेहूं के बीज का एक खरपतवार होता है।  मशीनरी या खाद के माध्यम से बीज को एक खेत से दूसरे खेत में भी भेजा जा सकता है।
प्याजी की जड़-सडऩे वाले कवक के लिए एक मेजबान होता है। प्याजी से निकाले तेल के अर्क का उपयोग पेंट, वार्निश और साबुन के निर्माण में किया जा सकता है। इन तेलों में विभिन्न औषधीय और चिकित्सीय गुण भी होते हैं, उदाहरण के लिए, उनकी उच्च लिनोलिक एसिड सामग्री उन्हें धमनी काठिन्य की रोकथाम के लिए उपयोगी बनाती है। बीज मूत्रवर्धक और एंटीसेप्टिक हैं। यह खाद के रूप में भी काम आता है और इसके तेल केक को पशु आहार के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। प्राचीन काल में कभी-कभी भोजन के रूप में उपयोग किया जाता है, और इसका उपयोग चिपकने वाले के उत्पादन में भी किया जा सकता है।
स्थानीय रूप से प्याज/ पियाज़ी और बसरी के नाम से जाना जाता है। एक औषधीय पौधे के रूप में, इसका उपयोग अल्सर और सूजन वाले भागों  को ठीक करने के लिए किया जाता है और बीज का उपयोग मूत्रवर्धक के रूप में किया जाता है। हल्के प्याज भारत-पाक उप-महाद्वीप की रेत मिट्टी का एक कुख्यात खरपतवार है। इसका बीज पशुचारे के रूप में भी काम में लाया जाता है। यह खरपतवार को भी रोकने में मदद करता है।
**होशियार सिंह, लेखक,कनीना,हरियाणा**









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