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Wednesday, February 19, 2020


सत्यानाशी
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आर्जिमोन मेक्सिकाना
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भड़भांड, कुटकुटारा, पीला धतूरा
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कटेली
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सत्यानाशी एक जहरीली खरपतवार होती है। इसे आर्जिमोन मेक्सिकाना नाम से जाना जाता है। यह मेक्सिकों में पाई जाने वाली एक खसखस की प्रजाति मानी जाती है। पूरे ही संसार में कई देशों में फैली हुई है। यह पुराने खेत, सूखे जोहड़, बंजर पड़ी भूमि, सड़क एवं नहर के किनारे मिल जाती है। यह सूखे और खराब मिट्टी के प्रति सहिष्णु है। इस पौधे में चमकीला पीला रस पाया हैं। बेशक इसे औषधीय रूप से प्रयोग किया गया हो किंतु कोई पशु इसे नहीं खाता है।  कुछ जगह होली पर्व पर इसके फूलों की पूजा की जाती है। इसे भारत में कटेली का फूल भी कहा जाता है।
 पौधा झाड़ीनुमा होता है जिसके पूरे ही शरीर पर कांटे पाए जाते हैं। पूरे ही शरीर चितकबरा होता हे। देखने में ही यह विषैला लगता है और इसका नाम भी सत्यानाशी रखा गया है। पत्ते लंबे तथा कांटेदार होते हैं। इा पर चौड़ी पीली पंखुडिय़ों वाले फूल लगते हैं जिनमें मोटी फली लगती है।
बीज की फली खुली होने पर हल्के पीले रस का उत्पन्न करती है। इसके बीज राई पौधे के बीजों से मिलते जुलते हैं। कई बार गलती से सरसों के बीजों में इसे मिला दिया जाता है और परिणाम घातक प्राप्त होता है। भारत में दिल्ली में 1998 में हुआ था। सत्यानाशी के बीज का तेल सरसों में मिला दिया गया था जिसके चलते 30 लोग मारे गए और 3000 बीमार हो गए थे। कई अन्य तेलों में भी इसकी मिलावट कर दी जाती हैं जिनमें सूरजमुखी, तिल प्रमुख हैं। इसका तेल शरीर में सूजन नजर आती है।
पशुओं में फटे प्लेसेंटा (जेर) को निष्कासित करने में, और आम तौर पर विभाजन के बाद शरीर को साफ करने में मदद करने के लिए, गुर्दे के दर्द को दूर करने के लिए प्रयोग में लाया जाता है। बीज को एक रेचक के रूप में लिया जाता है।
मलेरिया का इलाज करने के लिए मेक्सिकाना चाय का उपयोग किया जाता है। पूरे पौधे का उपयोग चाय बनाने के लिए किया जाता है और लक्षणों के गायब होने तक अधिक से अधिक चाय पिया जाता है। मलेरिया के इलाज के लिए किया गया है। 
फूलों को रात भर पानी में भिगोया जाता है और इस पानी से आंखों की सफाई करने से आंखों की रोशनी में सुधार होता है। इन पत्तियों का रस त्वचा की विभिन्न स्थितियों के उपचार में मदद करता है। इसका उपयोग बिच्छू और सांप के काटने के इलाज के लिए भी किया जाता है। जब पौधे को सुखाया जाता है और पीसा जाता है और चाय के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। यह खांसी, अस्थमा में मदद करता है और समग्र श्वसन स्वास्थ्य में सुधार करता है। आंतों में किसी भी कीड़े को खत्म करने,सूखे पाउडर का उपयोग दांतों को ब्रश करने,पीलिया चिकित्सा में भी किया जाता है।
   मेक्सिकाना बीज तेल से बायोडीजल उत्पादन का प्रदर्शन किया गया है। यहभारत में यह सब स्थान पर पैदा होती है। सत्यानाशी के किसी भी अंग को तोडऩे से उसमें पीले रंग का दूध निकलता है। इसके का फ़ल चौकोर, जलते कोयलों पर डालने से भड़भड़ बोलते हैं। उत्तर प्रदेश में इसको  भड़भड़वा भी कहते है।
इसके बीज जहरीले होते हैं। कभी-कभी सरसों में इसे मिला देने से उसके तेल का उपयोग करने वालों की मृत्यु भी हो जाती है। इसके बीज मिली हुई सरसों के तेल के प्रयोग करने वालों को पेट में पानी भरने का एक रोग हो जाता है। पुराने घाव हो या दाद ,खाज, खुजली हो उसे जल्दी ठीक कर देता है। यह बांझपन में भी उपयोगी है।
  सत्यानाशी कफ-पित्त दोष को खत्म करती है। इसके दूध, पत्ते के रस, बीज के तेल से घाव और कुष्ठ रोग में लाभ होता है। इसकी जड़ का लेप करने से सूजन ठीक होती है। सत्यानाशी का प्रयोग कर आप बुखार, नींद न आने की परेशानी, पेशाब से संबंधित विकार, पेट की गड़बड़ी आदि में भी फायदा करता हैं।
  इसका रस लगाने से मोतियाबिंद और रतौंधी में लाभ होता है। सत्यानाशी फूल को पीसकर अथवा सत्यानाशी दूध का लेप करने से सफेद दाग में लाभ, गुलाब जल में मिलाकर आंखों में डालें। इससे आंखों की सूजन, आंखों के लाल होने आदि नेत्र विकारों में फायदा होता है। आंखों में डालने से सभी प्रकार के नेत्र रोगों में लाभ होता है।
सांसों के रोग और खांसी में सत्यानाशी का उपयोग लाभदायक ,गर्म जल या गर्म दूध के साथ सुबह-शाम पिलाने से कफ बाहर निकल जाता है।


दमे की बीमारी में, अस्थमा के इलाज में,दमे में बहुत लाभ होता है।पीले दूध को 10 ग्राम घी के साथ पिलाने से पेट का दर्द ठीक होता है,शाब खुलकर आता है तथा जलोदर रोग में लाभ होता है। गिलोय में पिलाने से पीलिया रोग में सत्यानाशी से लाभ, इसका काढ़ा बनाकर 10-20 मिली मात्रा में पिलाएं। इससे मूत्र विकारों में लाभ,
सुजाक, कुष्ठ रोग और नाक-कान अंगों से खून बहने की समस्या में सत्यानाशी के बीजों के तेल से शरीर पर मालिश करते हैं।  लम्बे समय तक सेवन करने से त्वचा के विकारों में लाभ होता है। इसमें एंटीफंगल के गुण के कारण दाद की समस्या में इसका उपयोग फायदेमंद है। पत्तियों का रस या तेल को दाद वाली जगह पर लगाएं। त्वचा पर दाने और खुजली से राहत दिलाने में मदद करते हैं।
घाव सुखाने के लिए सत्यानाशी का प्रयोग किया जाता है,इसके दूध को घाव पर लगाने से पुराने और बिगड़े हुए घाव ठीक करने, घाव एवं खुजली में लाभकारी, छाले, फोड़े, फुंसी, खुजली, जलन, आदि रोग पर सत्यानाशी का रस लगाने से लाभ होता है।
 रक्तस्राव को रोकने,सोंठ के साथ मिलाकर सेवन से अंगों के दर्द ठीक होते हैं। नपुंसकता दूर करने, शुक्राणुओं की संख्या बढ़ाने का गुण पाया जाता है। मलेरिया के बुखार में आराम पहुंचाती है। सत्यानाशी के पत्ते,फूल,जड़, दूध उपयोगी होते हैं।
सत्यानााशी के बीजों शरीर में ग्रहण नहीं करना चाहिए, किसी तेल में इसका तेल न मिलाए,
  यह प्राकृतिक रूप से मैदानी भागों में, नदी  एवं सड़कों के किनारे पर तथा वन्य क्षेत्रों में पाई जाती है। यह वनस्पति मूलत: मैक्सिको से भारत में आई, लेकिन भारत में अब यह सब जगह खरपतवार के रूप में उत्पन्न होती है। नपुसंकता से लेकर बवासीर तक का इलाज करता है। सत्यनाशी मतलब सर्व नाा करने वाला नहीं अपितु सभी प्रकार के रोगों का नाश करने वाला है। यह पौधा पेट, फेफड़ों और शरीर के अंगों में पानी भरने की समस्या में सत्यनाशी को रामबाण औषधि माना जाता हैं। मुंह के छाले की समस्या मुंह में छाले होने पर सत्यनाशी के कोमल डंठल और पत्तियां चबाते हैं। सत्यनाशी तेल कुष्ठ ग्रसित त्वचा पर लगाने से लाभ, गैस कब्ज में सहायक है। पुरुषों और महिलाओं दोनों की अन्दरूनी बीमारी नपुंसकता, धातुरोग, वीर्य कमजोरी, शुक्राणुओं की गड़बड़ी और निसंतान कलंक दूर करने में सत्यनाशी पौधा एक अचूक प्राचीनकालीन औषधि है। महिलाओं पुरुषों के गुप्त रोगों में सत्यनाशी के फूल रस, पत्तियों का रस 







कच्चे दूध के साथ सेवन करना फायदेमंद है। सत्यनाशी लिबिडो बढ़ाने में सहायक होता है। पशुओं के विभिन्न रोगों में लाभकारी होता है।
**होशियार सिंह, लेखक,कनीना,हरियाणा**

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