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Tuesday, February 25, 2020

मकड़ा घास
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डेकटाइलोटेनियम इजपटीयम
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क्राउ फुट घास/डक घास
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बीच वायर घास, कोस्ट बटन घास, कंघी फ्रिंज घास,डरबन क्राउ फुट, इजिप्टियन फिंगर घास मिस्री घास, फिंगर कांबिंग घास, फोर-फिंगर घास
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मकड़ा घास एकबीजपत्री पौधा है जिसकी जड़े झकड़ा(रेशेदार) प्रकार की पाई जाती हैं। यह घास के रूप में जाना जाता है जिसका परिवार पोएसी नाम से जाना जाता है। इसे क्राउ फुट घास/डक घास आदि नामों से जाना जाता है। ग्रामीण क्षेत्रों में इसे मकड़ा घास नाम से जाना जाता है। इसका वानस्पतिक नाम डेकटाइलोटेनियम इजपटीयम है। यह घास कुल का पौधा है।
 यह क्राउ फुट घास अफ्रीका में पोएसी परिवार का एक सदस्य है। यह ज्यादातर नम स्थानों पर चिकनी मिट्टी में बढ़ता है। यह घास के रूप में बहुत प्रसिद्ध है। पशु इसे बड़े चाव से खाते हैं। इसे
एक खरपतवार के रूप में जाना जाता है।
मकरा का तना भूमि पर रेंगते हुए फैलता है और चटाई की तरह संरचना बनती है। जड़ें निचली गांठों में होती हैं। फूल तने के ऊपरी सिरे पर उगते हैं जिनमे कई कटीली संरचनाएं विकसित होती हैं। यह कई बार स्वस्तिक चिह्न जैसा आकार बनाता है। यह कौवा के पद चिह्नों की तरह प्रतीत होती है। इसी कारण इसका अंग्रेजी नाम क्रो फीट है। एक पौधा कई हजार तक बीज पैदा कर सकता है।

  अफ्रीका में पारंपरिक भोजन और अत्यधिक पोषक माना जाता है। इसे बड़े चाव से खाया जाता है। इसे लोग कच्चा या पकाकर खाते हैं। यह एक अत्यंत बहुमुखी अनाज है और इसे पकाया जा सकता है। इसे अगर आटा में मिलाकर खाया जाता है। अनाज के साथ पिसकर खाते हैं। यह एक पौष्टिक खाद्य पदार्थ है। 
इसका तना पतला होता है तथा फूल तथा बीज एक लंबे डंठल पर लगते हैं। यह वार्षिक पौधा होता है जिसके तने में अनेक गांठें पाई जाती है। यह करीब 2 फीट की ऊंचाई तक बढ़ सकता है। यह खुले स्थानों और बंजर भूमि का एक बहुत ही सामान्य खरपतवार है। पत्तियां प्राय घास की तरह लंबी, चौड़ी होती हैं। इस पर चौड़े फूल आते हैं। बीज सिर एक कौवा के पैर जैसा दिखता है, इसलिए आम नाम क्राउ फुट ग्रास। यह अफ्रीका का मूल निवासी है लेकिन दुनिया भर में पाया जाता है।
ताजे पौधों का रस बुखार में काम आता है वहीं पौधे का काढ़ा छोटे चेचक में दिया जाता है। अफ्रीका में एक अकाल भोजन के रूप में काम में लेते है। यह अन्न के पोषण में सुधार के काम आता है वहीं जिस भूमि पर पाया जाता है वहां अपरदन नहीं होता है। यह एक आक्रामक घास की प्रजाति मानी जाती है।

   इसका बीज भूरे रंग का होता है। इसके पौधे को घास के रूप में काम में लेते हैं। पशुओं को चराने से दूध की मात्रा  बढ़ जाती है। इसके बीज अति पौष्टिक होते हैं जिनमें कार्बोहाइड्रेट के अलावा प्रोटीन एवं विटामिन भी पाए जाते हैं। अनेकों खनिज लवण पाए जाते हैं। इसे अन्न में मिलाकर आटा बनाकर रोटी के रूप में खाया जाता है वहीं रातभर पानी में भिगोकर इसके बीजों में काला नमक मिलाकर चाव से खाया जाता है। यह उत्तम सलाद का काम करता है।
  पशुचारे के अतिरिक्त पशुओं का दूध बढ़ाने के लिए बेहतर पदार्थ होता है। इसको सूखाकर फोडर बनाया जाता है। इसे बारिश के मौसम में सूखे चारे के रूप में काम में लेते हैं।
  यह विभिन्न स्थानों जैसे कि खेती योग्य भूमि, बगीचे और सड़क के किनारे, जहां आमतौर पर अतिरिक्त पानी एकत्र होता है एक सामान्य खरपतवार के रूप में पाया जाता है। यह रेतीले दोमट मिट्टी में बलुआ मिट्टी के लिए अच्छी तरह से अनुकूल है। यह नमक सहिष्णु पौधा है। यह लंबे समय तक बाढ़ के साथ खड़ा नहीं होता है।  यह गीले मौसम के दौरान जल्दी से विकसित हो सकता है।
  मकड़ा घास घाव और अल्सर, आंत, पित्त और मूत्र संबंधी रोगों में काम आता है। इसमें
आक्सालिक एसिड और आक्सालेट, ग्लूटामिक रासायनिक पदार्थ पाए जाते हैं। यह स्वाद में
कसैला, कड़वा टानिक, कृमि नाशक होता है।
पूरे पौधे का उपयोग काढ़े के रूप में किया जाता है। मटर के बीज के साथ मिश्रित कर प्रसव को तेज करने के लिए उपयोग किया जाता है। पत्तियों का काढ़ा पेचिश के उपचार के लिए प्रयोग किया जाता है।










**होशियार सिंह, लेखक,कनीना,हरियाणा**

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