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Wednesday, February 26, 2020





दूब
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बरमूडा घास/दूर्वा घास/डाग टूथ ग्रास
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बहामा घास/शैतान की घास/भारतीय दूब
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कौच घास/ग्रामा/वायर घास
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सिनोडोन डेक्टाइलोन
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दूब एक ऐसी घास है जो देशी है। बरमूडा में इसे केकड़ा घास कहा जाता है। हर फसल के साथ उगने वाली एक खरपतवार है। इसके पत्ते गहरे हरे रंग के और छोटे होते हैं। यह एकबीजपत्री पौधा है जिसमें रेशेदार जड़े पाई जाती हैं। यह पोएसी परिवार तथा घास कुल का पौधा होता है।
   लंबे गांठों से निर्मित तनों पर के शीर्ष पर दो से छह स्पाइकों के समूह में फूल आते हैं। इसकी एक गहरी जड़ प्रणाली है। मौसम प्रतिकूल होने पर ऊपरी भाग सूख जाता है किंतु मौसम अनुकूल होते ही पुन: उत्पन्न हो जाती है। घास अपने डंडे और जड़ों के साथ जमीन पर रेंगती है। यह बीज, राइज़ोम के माध्यम से प्रजनन करता है। सर्दियों में, घास निष्क्रिय हो जाती है और भूरी होकर सूख जाती है। 
यह अत्यधिक आक्रामक भी है। इसे शैतान घास का नाम देती है। यह मवेशियों को चराने के लिए इस्तेमाल की जाती है। सूखाकर तथा हरी दोनों रूपों में काम आती है। भारत में, जिसे आमतौर पर दूर्वा के रूप में जाना जाता है। इस घास का उपयोग आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति में किया जाता है। दूर्वा घास पूजा के काम आती है। घरों में विवाह शादी, बच्चे के पैदा होने, हवन आदि करने में इसका उपयोग होता है। दूब घास के कई स्वास्थ्य लाभ होते हैं।
  यह अम्लता का इलाज, प्रतिरक्षा को बढ़ाती है, शरीर से शुगर को नियंत्रित करती है, डिम्बग्रंथि सिंड्रोम को ठीक करती है और मासिक धर्म की समस्याओं को हल करती है। कब्ज का इलाज, मोटापे का इलाज,मसूड़ों से रक्तस्राव को ठीक करने,आंखों के संक्रमण को ठीक करने,नाक से खून बहने से रोकने के काम आती है।
 दूर्वा घास में कई पोषक तत्व होते है जैसे एसिटिक एसिड, एल्कलाइड्स, कार्बोहाइड्रेट, वसा, फेरुलिक एसिड, रेशे, हाइड्रोकार्बन, लिग्निन, मैग्नीशियम, पामिटिक एसिड, पोटेशियम, प्रोटीन, सेलेनियम, सोडियम,  वैनिलिक एसिड, विटामिन सीआदि पाए जाते हैं।

 दूर्वा घास एसिडिटी व पेट के अल्सर, कोलाइटिस और पेट के संक्रमण के लिए भी काफी प्रभावी है। दूर्वा घास के निरंतर उपयोग के साथ, पाचन और आंत्र आंदोलनों में सुधार और कब्ज को कम करने के अलावा पेट की बीमारियों का खतरा कम हो सकता है।घास का उपयोग शरीर की प्रतिरक्षा को बढ़ाने के लिए किया जाता है। यह रक्त शर्करा के स्तर को नियंत्रित करने में सहायक है और थकान को कम करता है। दूर्वा घास मधुमेह से जुड़े विकारों और स्थितियों की रोकथाम में भी फायदेमंद है।  पुरानी मधुमेह के लिए, डोब घास का रस पीने से शर्करा का स्तर नियंत्रित रहता है। सुबह खाली पेट जूस पीना शुगर लेवल को सामान्य करने में अच्छा है।
यह मासिक धर्म की समस्याओं को हल करता है। दूर्वा घास कब्ज को ठीक करती है।
दूर्वा घास मोटापे को नियंत्रित करने के लिए अच्छा है और वजन घटाने में मदद करता है।
दूर्वा घास एक प्राकृतिक रक्त शोधक के रूप में कार्य करती है और रक्त की क्षारीयता को बनाए रखने में भी मदद करती है। यह चोट, नकसीर या मासिक धर्म के अत्यधिक रक्त प्रवाह के कारण खून की कमी में बहुत प्रभावी है। यह लाल रक्त कोशिकाओं के उत्पादन को बढ़ाता है। यह एनीमिया से बचाती है।
 दुर्वा घास मौखिक संबंधित स्वास्थ्य समस्याओं के इलाज में प्रभावी है। डोब घास का सेवन कफ के गठन को कम करता है और मसूड़ों से संबंधित समस्याओं को रोकता है। दूर्वा घास से दांत मजबूत होते हैं। यह दांतों को मजबूत करने और मुंह से दुर्गंध को दूर करने में मदद करता है। यह आंखों के संक्रमण को ठीक करता है और नाक से खून आना बंद हो जाता है।

दूर्वा घास तेजी से बढऩे वाली और सख्त है, जो खेल के मैदानों के लिए लोकप्रिय और उपयोगी है। कई देशों में गोल्फ कोर्स के लिए एक लगातार विकल्प बनाता है।
दूब घास कभी कभी रैश, त्वचा में जलन पैदा कर सकती है। इसकी उत्पत्ति मध्य पूर्व में हुई थी।  पूरी दुनिया में गर्म जलवायु में दूर्वा घास की खेती की जाती है। यह औषधीय गुणों वाली एक घास है और इसका उपयोग बुखार, अल्सर, पेट के संक्रमण और अन्य स्वास्थ्य समस्याओं के उपचार के लिए किया जाता है। यह एंटीवायरल और रोगाणुरोधी है।

भारी और लंबे समय तक मासिक धर्म में घास का रस शहद के साथ मिलाएं। दूब घास का पेस्ट बनाएं और केवल पैरों पर लगाएं। यह तनाव के स्तर को कम करने में मदद करता है। सिरदर्द के लिए इसे माथे पर लगाया जा सकता है। दूब घास और पीसकर काटन और कपड़े की मदद से इसे आंखों पर लगाने आंखों के रोग दूर होते हैं। यह नथुने के रक्तस्राव को रोकने में मदद करता है।
 घास के रस को फिटकरी से मिलाकरएसिडिटी, अल्सर, कोलाइटिस, पेट में संक्रमण को दूर किया जाता है। दूब के रस को पानी मिलाएं और सुबह खाली पेट पीने से पेट की  सूजन, पेट के संक्रमण और एसिडिटी एवं पेट दर्द दूर हो जाते हैं। घास का रस सोंठ के साथ लेने से कुष्ठ (कोढ़), मुंह के छाले, दांतों का दर्द, पित्त की गर्मी तथा हैजे के लिए लाभदायक है। इसका लेप लगाने से खुजली शान्त होती है। यही लेप मस्तक पर लगाने से नकसीर ठीक होती है।
आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति के अनुसार दूब रस में मधुर, तीखी, कषैली, छोटी, चिकनी, प्रकृति में शीतल तथा कफ-पित्त नाशक होती है। यह रक्तस्तम्भन, मूत्रवर्धक है तथा एण्टीसेप्टिक होने के कारण रक्तविकार, रक्तस्राव (खून का बहना), खांसी, उल्टी, दस्त, दाद, पेशाब में जलन, बुखार तथा रक्त प्रदर में गुणकारी है। दूब की तासीर सर्द होती है। सफेद दूब में कामशक्ति घटती है। इसके सेवन से प्यास मिटती है, पेशाब खुलकर आता है, खुजली दूर होती है तथा मुंह के छाले ठीक होते हैं।
दूब का हर रोज सेवन करने से शारीरिक स्फूर्ति बनी रहती है, अधिक मेहनत करने पर थकान महसूस नहीं होती है।
 यह खूनी बवासीर, चोट के बहते खून को रोकने, नाक के खून निकलने को रोकने, मुंह के छाले दूर करने, त्वचा के रोग दूर करने, दाद, खाज-खुजली और फुंसियां ठीक करने, मानसिक रोग दूर करने, सिर दर्द, हिचकी,पेशाब में जलन,अधिक प्यास, पथरी, फोड़ा, आंखों की जलन, आंख की रोशनी बढ़ाने में काम आती है। दूब पशुओं के दूध को बए़ाने में तथा सूखाकर इस घास का उपयोग सूखे के समय भी काम आता है। सभी पशु इसे खाते हैं। पशुओं के पेट साफ करने के लिए भी दूब काम आती है। पशुओं के लिए उत्तम चारा है।
दूब घास का उपयोग प्रतिरक्षा के लिए ,मूत्र पथ संक्रमण के इलाज में दूब घास बहुत ही प्रभावी होती है। हदय के स्वास्थ्य के लिए ,कोलेस्ट्राल स्तर को कम करती है बल्कि आपके हृदय क्रिया को भी बेहतर बनाती है। यह चोट लगने, नाक से खून बहने और मासिक धर्म के दौरान रक्त प्रवाह के कारण रक्त के नुकसान को कम करने में बहुत प्रभावी है। यह लाल रक्त कोशिकाओं के उत्पादन को बढ़ाता है जो बदले में शरीर में हीमोग्लोबिन के स्तर को बढ़ाता है। इस प्रकार आप रक्त को शुद्ध करने के साथ ही एनीमिया से बचाता है। को बढ़ावा देने में मदद करता है। घास की पत्तियों और इससे निकाले गए रस का अधिक मात्रा में सेवन नहीं करना चाहिए। अधिक मात्रा में इसका उपभोग करने पर मुंह में झनझनाहट, दांतों का दर्द, त्वचा में जलन और लाल चकते आदि की समस्या हो सकती है।
**होशियार सिंह, लेखक,कनीना, हरियाणा**





















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