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Tuesday, February 11, 2020

साइकस
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साइकस सर्किनालिस
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सागो-पाम
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साइकस जीनस प्रकार है और परिवार साइकैडेसी परिवार में साइकस एकमात्र जीनस होता है जिसकी सैकड़ों प्रजातियां पाई जाति हैं। विवाह शादी में गमलों में लगे ये पौधे अति शोभित होते हंै। इसकी एक और प्रजाति साइकस उल्टा है। साइकस पेड़ों का एक बहुत पुराना पेड़ है। ये दुनिया भर में पाए जाते हैं।
 भारत में 9 प्रजातियां साइकस की पाई जाती हैं।
साइकस के जीवाश्म भी मिले हैं। पौधे द्वैध हैं जिसमें मादा पौधों पर बीज शंकु नहीं बनाने और नर पौधे पर पराग शंकु या स्ट्रोबिलस पाए जाते हैं। यह अनावृत बीजी पौधा होता है जिसके बीज खोल या फल से नहीं ढके होते हैं।यह खजूर से मिलता जुलता पौधा नजर आता है किंतु 
खजूर आवृत्तबीजी पौधा है जबकि साइकस अनावृत्तबीजी पौधा है।
  साइकस में पत्तियां दो प्रकार की होती हैं जिनमें पत्तेदार एवं पपड़ीदार पत्तियां प्रमुख हैं। पत्ते स्थायी नहीं होते हैं और पत्तियां गिर जाती हैं।
पौधे को विकसित होने में कई साल लगते हैं। यौन प्रजनन 10 साल के बाद होता है जो तने के आधार पर उत्पन्न होने वाली बल्बों द्वारा होता है।
ये पौधे विलुप्त होनी की कगार पर होते हैं।
साइकास रेवोलुस्टा (राजा साबूदाना, जापानी सागो पाम) जिम्नोस्पर्म की एक प्रजाति है।  यह साबूदाना के उत्पादन के लिए इस्तेमाल की जाने वाली कई प्रजातियों में से एक है साथ ही एक सजावटी पौधे भी है।
जब पौधे एक प्रजनन आयु के होते हैं तब वे 1 मीटर व्यास के पंख के आकार के रोसेट में विकसित होते हैं। ये शैवाल
से सहजीवन करके नाइट्रोजन स्थिरीकरण भी करते हैं।
साइकस रेवोलुस्टा का प्रसार या तो बीज द्वारा होता है। यह सबसे अधिक व्यापक रूप से खेती की जाने वाली साइकैड्स में से एक है।  यह रेतीले, अच्छी तरह से सूखा मिट्टी में सबसे अच्छा बढ़ता है। यदि अधिक जल जल दिया जाए तो यह सड़ सकता है। ऐसे में इसकी जड़ों से जल निकासी की जरूरत होती है। यह पूर्ण सूर्य या बाहरी छाया में अच्छी तरह से बढ़ता है लेकिन घर के अंदर उगने पर उज्ज्वल प्रकाश की आवश्यकता होती है।
इसके तने के अंदर खाद्य स्टार्च होता है जिसका उपयोग साबूदाना बनाने के लिए किया जाता है। बडी ही सावधानी से साबूदाना निकाला जाता है जिसकी विशेष देखभाल की आवश्यकता होती है। साबूदाना का उपयोग कई उद्देश्यों के लिए किया जाता है। यही नहीं अपितु साइकल के तने, जड़ और बीजों से पीथ को काटकर, पीथ को मोटे आटे में पीसकर और फिर इसे ध्यान से और बार-बार धोने से विषाक्त पदार्थों को बाहर निकाला जाता है। स्टार्च अवशेषों को तब सुखाया और पकाया जाता है, ताड़ के साबूदाना / साबुदाना के समान स्टार्च का उत्पादन होता है। साइकैड के बीज में जहर होता है और इसे नहीं खाना चाहिए। उल्टा में स्टेरॉयड और टैनिन, शर्करा, वाष्पशील यौगिक पाए जाते हैं।

साइकाड सागो मानव एवं पशुओं के लिए बेहद जहरीला होता है। पालतू जानवर इसे खा ले तो उल्टी, दस्त, कमजोरी, दौरे, और यकृत की विफलता हो सकती है, जिसमें सिरोसिस और जलोदर शामिल हैं। पालतू जानवरों को चोट लग सकती है, नाक में खून , मल में खून, जोड़ों में रक्त हो सकता है।
पौधे के सभी भाग विषाक्त हैं। इनका जहरीलापन पशुओं में पक्षाघात का कारण बनता है। साइकस को नग्र बीजों वाला पौधा कहा जाता है। ये वो पौधे होते हैं जिनके बीज फूलों में पनपने और फलों में बंद होने की बजाए छोटी टहनियों या शंकुओं में नग्र अवस्था में होते हैं।  साइकस का बड़ा तना लोगों का ध्यान खींचता है। वर्ष में एक बार इस पर नई पत्तियां आती हैं। इसमें गोबर की खाद डाली जाती है। इसका तना काले रंग का होता है। साइकस के पौधे की कीमत उसकी उम्र के साथ बढ़ती है। सबसे बड़ा अण्डाणु तथा शुक्राणु साइकस का होता है जो कि एक जिम्नोस्पर्म है।
   साइकस के तनों से मण्ड  निकालकर खाने वाला साबूदाना का निर्माण किया जाता है।

साइकस के बीज द्वीप के जनजातियों द्वारा खाए जाते हैं। साइकस की पत्तियों से रस्सी तथा झाड़ू बनायी जाती है। साइकस को सागो-पाम कहा जाता है। साइकस ताड़ जैसे मरुदभिद पौधा है, जिसमें तना लम्बा, मोटा तथा अशाखित होता है। शैवाल युक्त साइकस की जड़ को कोरेलॉयड जड़ कहते हैं। साइकस  को जीवित जीवाश्म कहा जाता है।
साइकस का संबंध अनावृतबीज वनस्पति जगत से हैं जो एक अत्यंत पुराना वर्ग है। यह टेरिडोफाइटा से अधिक जटिल और विकसित है। इस वर्ग की प्रत्येक जाति या प्रजाति में बीज नग्न रहते हैं, अर्थात् उनके ऊपर कोई आवरण नहीं रहता।  इस वर्ग के अनेक पौधे पृथ्वी के गर्भ में दबे या जीवाष्म के रूपों में पाए जाते हैं जिनसे ज्ञात होता है कि ऐसे पौधे बहुत पुराने हैं। इनमें से अनेक प्रकार के तो लुप्त हो गए और कई प्रकार के अब भी घने और बड़े जंगल बनाते हैं। चीड़, देवदार आदि बड़े वृक्ष अनावृतबीज वर्ग के ही सदस्य हैं।
इस वर्ग के पौधे बड़े वृक्ष या साइकस जैसे छोटे, या ताड़ के ऐसे अथवा झाड़ी की तरह के होते हैं। इस गण के पौधे शुरू में फर्न समझे गए थे।  बीज एक प्रकार के प्याले के आकार की प्यालिका से घिरा रहता था। इस प्यालिका के बाहर भी उसी प्रकार के समुंड रोम, जैसे तने और पत्तियों के डंठल पर उगते थे, पाए जाते थे। परागकण में दो हवा भरे, फूले, बैलून जैसे आकार के होते हैं। बीज की फल से तुलना की जाती है। ये गोल आकार के होते हैं और अंदर कई बीजांड  लगे होते हैं। पत्तियां प्रजनन वाले अंगों को घेरे रहती हैं।
साइकस भारत, चीन, जापान, ऑस्ट्रेलिया और अफ्रीका में स्वत तथा वाटिकाओं में उगता है। इनमें एक ही तना होता है। पत्ती लगभग एक मीटर लंबी होती है। इस पौधे से एक विशेष प्रकार की जड़, निकलती है। इस जड़ के भीतर एक गोलाई में हरे, नीले शैवाल निवास करते हैं। तने मोटे होते हैं, परंतु कड़े नहीं होते। इन तनों के वल्कुट के अंदर से साबूदाना बनाने वाला पदार्थ निकाला जाता है, जिससे साबूदाना बनाया जाता है। पत्तियों के आकार और अंदर की बनावट से पता चलता है कि ये जल को संचित रखने में सहायक हैं।
 
साइकस में दो प्रकार की पत्तियां पाई जाती हैं। एक पत्ती के रूप की और दूसरी छोटे पतले कागज के टुकड़े जैसे शल्क पत्र जैसी होती है। पाइनस में यह अलग प्रकार की पत्तियां अलग शाखा पर निकलती हैं।
प्रजनन मुख्यत बीज द्वारा होता है। यह एक विशेष प्रकार के अंग में, जिसे कोन या शंकु कहते हैं बनता है। कोन दो प्रकार के होते हैं, नर और मादा। नर कोन में पराग बनते हैं, जो हवा द्वारा उड़कर मादा कोन के बीजांड तक पहुंचते है, जहाँ गर्भाधान होता है। दोनों लिंगी कोन अलग अलग पौधों में पाए जाते हैं जैसे पाइनस में। पाइनस में तो बौने प्ररोह पर ही यह प्रजनन अंग निकलते हैं।
साइकस का अस्तित्व इस पृथ्वी पर लगभग 18 करोड़ साल पहले से है। यह बहुत आकर्षक, सदाबहार और बहुवर्षीय वृक्ष है, जिसकी चटख हरे रंग की पत्तियां, इसके तने के अगले हिस्से पर बेहद खूबसूरती से छितरी हुई दिखायी देती हैं। साइकस की ऊंचाई 2 से 5 मीटर तक होती है; क्योंकि इसकी वृद्धि दर बहुत धीमी होती है। इसका उपयोग सजावटी पौधों के रूप में किया जाता है।  साइकस दो लिंगी वृक्ष होता है। ये दोनों अलग अलग होते हैं। इनमें अंतर इनके प्रजनन काल से ही दिखायी देने लगता है, वैसे ये दोनों एक जैसे लगते हैं। दोनो में जड़, तना और पत्ती एक जैसी ही होती हैं। इनमें दूसरे पौधों की तरह पुष्प नहीं पाये जाते। साइकस का तना छोटा, बेलनाकार, मोटा और गहरे भूरे रंग का होता है। वैसे तो साइकस में शाखाएं नहीं होतीं लेकिन कभी-कभी परिपक्व होने पर दिखायी देती हैं। तने के ऊपर पत्तियों के गिरने के बाद उनके आधार स्पष्ट दिखायी देते हैं जिससे इसके शीर्ष भाग पर हमेशा पत्तियों का एक खूबसूरत ताज बना रहता है।
जापान में प्राचीनकाल से लोग साइकस के पौधों के तने के आंतरिक भाग को सुखाकर इससे शराब बनाया करते थे। इसके बीज असम के जनजातीय लोगों के भोजन का जरूरी हिस्सा हैं। इसकी पत्तियों के रस से पेट की बीमारियों और चर्म रोगों का इलाज किया जाता है। साइकस के वृक्षों को सजावटी वृक्षों के रूप में उगाया जाता है। इसके बीजों को भूनकर पकाया और खाया जाता है। इसकी पत्तियों को कई देशों में सब्जी के रूप में इस्तेमाल किया जाता है और पत्तियों से गुलदस्ते भी तैयार किये जाते हैं। पत्तियों व छालों के रेशों से रस्सियां बनायी जाती हैं। साइकस की कुछ प्रजातियों की पत्तियों पर पाये जाने रेशों से तकिये बनाये जाते हैं।
**होशियार  सिंह,लेखक,कनीना,हरियाणा**










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