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Sunday, February 16, 2020


खूबकला
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सीसिमब्रियम इरियो
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लंदन राकेट
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खाकसी, खाकसीर, जंगली सरसों, बनारसी राई
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खूबकला जिसे लंदन राकेट के रूप में जाना जाता है। यह एक शाक है जो खेतों में भारी मात्रा में सर्दियों के मौसम में खड़ा देखा जा सकता है। किसान इसे पशुचारे के रूप में जमकर उपयोग करते हैं। परिवार सरसों कुल का यह एक पौधा है। यह वार्षिक पौधा है जिसका तना अति कोमल होता है जिस पर पीले पंखुडिय़ों के साथ छोटे फूल लगे होते हैं।
  इसके दो प्रकार की पत्तियां पाई जात हैं। तने पर नीचे की पत्तियां चौड़ी और कटी फटी होती है जबकि ऊपरी पत्तियां आकार में लंबी एवं तीखी होती हैं। फल एक फलीनुमा लंबा बारीक बेलनाकार होती है जो पकने पर हरा रहता है। छोटी फली फूलों के ऊपर जाती है। जब सूखे फल में छोटे लाल/काले आयताकार बीज होते हैं। इसे लंदन राकेट नाम दिया गया है।
  यह एक खरपतवार होता है जो सरसों  एवं गेहूं की खेती के आस पास भारी मात्रा में खड़ा देखा जा सकता है। विभिन्न देशों में यह पौधा पाया जाता है जो खरपतवार के रूप में जाना जाता है।
इस पौधे की पत्तियां, बीज और फूल खाने योग्य होते हैं और चाव से खाए जाते हैं।  लंदन राकेट का उपयोग मध्य पूर्व में खांसी और छाती की भीड़ के इलाज के लिए किया जाता है, गठिया से राहत देने के लिए, यकृत और प्लीहा को विषरहित करने के लिए और सूजन और स्वच्छ घावों को कम करने के लिए किया जाता है। लंदन राकेट के पत्ते का उपयोग तंबाकू के रूप में भी कुछ जगह किया जाता है।  इसकी फली का सूप बनाया जाता है तथा विभिन्न प्रकार के भोजन में डाला जाता है।

   यह पौधा लगभग हर प्रकार की मिट्टी में सफलतापूर्वक उगाया जा सकता है।  इसेसाग के रूप में उपयोग किया जाता है।  जब कभी अकाल पड़ता है ताक इसे भोजन के रूप में खाया जाता है।
बीज कच्चा या पका हुआ इंफक्षन दूर करने के लिए खाया जा सकता है। इसे सुखाया भी जा सकता है, पाउडर में मिलाया जा सकता है और फिर पानी के साथ मिलकर पेय बनाने के काम आता है।
  खूबकलां के बीज उत्तेजक होते हैं जो अस्थमा के उपचार में किया जाता है। पत्तियों के जलसेक का उपयोग गले और छाती के चक्कर के उपचार में किया जाता है।
 यह पौधा सड़क, दीवारें और बेकार जगह पर पाया जाता है। खूबकला एक आयुर्वेदिक औषधि है जिसका विभिन्न रोगों से मुक्ति पाने में विशेष योगदान है। देखने में यह सरसों के बीज के समान होती है परन्तु आकर में सरसों के बीज से काफी बारीक होती है। खूबकला को अनेक नामों से जाना जाता है जैसे- खाकसी, खाकसीर, जंगली सरसों, बनारसी राई इत्यादि। इसका एक अंग्रेजी नाम लन्दन राकेट भी है। सरसों जैसे ही दिखने वाले यह बीज स्वाद में कुछ तीखापन लिए होते हैं। इनकी तासीर गर्म होती है।
खूबकला एक औषधि भी है। आयुर्वेद के क्षेत्र में खूबकला या खाकसी की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। चेचक, खसरा, मोतीझरा, ज्वर, खांसी, बवासीर, ज़ुकाम इत्यादि रोगों में खूबकला का प्रयोग विशेष रूप से किया जाता रहा है। भारतवर्ष में आज भी इस आयुर्वेदिक औषधि का उपयोग घरेलू उपचार के रूप में किया जाता है और परिणामस्वरूप इसको बहुत कारगर पाया गया है। कितने ही रोगी इसके सेवन से लाभान्वित होते रहे हैं।

  खूबकला मोतीझरा, मियादी बुखार या टायफाइड जैसे रोगों में इसका विशेष रूप से प्रयोग किया जाता है। मुनक्क़ा के बीज निकाल कर उस पर खूबकला लपेटकर गर्म तवे पर सेंक कर रोगी को रोज़ खिलाने से आराम मिलता है। यदि लंबे समय से ज्वर न जा रहा हो या बार-बार लौट कर आ रहा हो तो उसके लिये भी ये उपाय लाभकारी है। इसके अतिरिक्त पानी अथवा दूध में पका कर पिलाने से भी लाभ मिलता है।
  चेचक या खसरा रोगों का इलाज भी खूबकला से किया जाता है। खूबकला के बीज का काढ़ा बना कर रोगी को पिलाया जाता है।  इसके बीज को रोगी के बिस्तर पर बिखेर देने से इस रोग के रोगाणुओं को फैलने से बचाया जा सकता है और रोगी को आराम भी मिलता है।
   दमा, खांसी अथवा सामान्य बुखार में भी खूबकला से लाभ मिलता है। यह कफ की समस्या को दूर कर रोगी को आराम पहुंचाता है। खूबकला लेकर मनक्का, मकोय, सौंफ और उन्नाब के साथ पानी में मिला कर देर तक पका कर पीने से जुकाम व कफ में आराम मिलता है।

  यह कफ के कारण उत्पन्न होने वाली सभी समस्याओं को दूर करता है वहीं खूबकला को दूध में पका कर पीने से कमजोरी दूर होती है। यह
बवासीर के उपचार में भी इसका विशेष योगदान है। हैजा के इलाज में गुलाब जल के साथ इसका सेवन करने से लाभ मिलता है और दस्त की स्थिति में कासनी की पत्तियों के साथ इसके बीज का सेवन किया जाता है।
   शिशु सूखिया जैसे रोगों का शिकार हो जाते इसको कुपोषण भी कहा जाता है। ऐसे में बच्चों का शारीरिक विकास रुक जाता है और शरीर अत्यंत दुर्बल व सूखने लगता है। इस रोग से मुक्ति पाने के लिए खूबकला एक औषधि के रूप में काम में लाया जाता है। खूबकला का प्रयोग लेप के रूप में भी किया जाता है। यदि शरीर के किसी हिस्से पर सूजन या दर्द हो तो इसके बीज का लेप लगाया जाता है।

खूबकला के न केवल बीज अपितु इस औषधि के पत्तों का भी विभिन्न रोगों के उपचार में प्रयोग किया जाता है। इसके पत्तों में प्रोटीन,केल्शियम व फास्फोरस, रुक्षांस व कार्बोहाइड्रेट भी पाए जाते हैं। इसके पत्तों का प्रयोग सलाद के रूप में भी किया जाता है।खूबकला की तासीर गर्म होने के कारण गर्भवती महिलाओं को इसका प्रयोग नहीं करना चाहिये।
ख़ूबकला नमी वाले स्थान पर देखा जा सकता हैं। खूबकला एक ऐसी आयुर्वेदिक औषधि है जिसका विभिन्न रोगों से मुक्ति पाने में विशेष योगदान है, देखने में यह सरसों के बीज के समान होती है परन्तु आकर में सरसों के बीज से काफी बारीक क्रीम रंग के दाने होते है ।
चेचक, खसरा, मोतीझरा, ज्वर, खांसी, बवासीर, ज़ुकाम इत्यादि रोगों में खूबकला का प्रयोग विशेष रूप से किया जाता रहा है ।
भारतवर्ष में आज भी इस आयुर्वेदिक औषधि का उपयोग घरेलू उपचार के रूप में किया जाता है और परिणामस्वरूप इसको बहुत कारगर पाया गया है।
गंभीर सुरक्षा चिंताओं के बावजूद, लोग इसका इस्तेमाल मूत्र विकार, कफ से राहत पाने के लिए, पलीहा में सूजन को दूर करने के लिए, लिवर को विारहित करने के लिए करते हैं। इसके गरारे कर मुख साफ करने के लिए प्रयोग किया जाता है। डायरिया के इलाज के लिए इसे फायदेमंद माना जाता है।
छोटी माता में इसके बीजों का काढ़ा देने की सलाह दी जाती है। यह कैंसर से लडऩे में मदद करता है। यह हृदय वाहिकाओं और मांसपेशियों के सक्रिय रखने में योगदान देते हैं।

इसमें मौजूद विटामिन-सी रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है। इसके नियमित सेवन से सर्दी, खांसी और दूसरे इंफेक्शन होने का खतरा कम हो जाता है। वायु मार्ग से थूक के स्राव को बढ़ावा देता है, खांसी को दबाता है,सामान्य स्वास्थ्य को सुधारता है,बुखार को कम करता है, त्वचा की लालिमा और दर्द में उपयोगी, जीवाणु को नष्ट और उनकी वृद्धि या प्रजनन की क्षमता को दबाता है, यौन इच्छा को बढ़ाता है,दिल को स्वस्थ रखता है।
ज्यादातर सभी लोगों के लिए खूबकला का कुछ समय के लिए सीमित मात्रा में सेवन करना सुरक्षित है। इसके फूलों का सेवन हानिकारक हो सकता है।
 खूबकला और एंटीबायोटिक दवाओं को कभी साथ में न ले। इससे उल्टी, डायरिया, सिर दर्द और हृदय की धड़कन में बदलाव आता है। यह पौधा पशुओं के रोगों में भी उतना ही कारगर है जितना इंसान के रोगों में कारगर होता है। पशुपालक इसका उपयोग दूध बढ़ाने में लेते हैं।










**होशियार सिंह, लेखक,कनीना,हरियाणा**

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