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Saturday, February 15, 2020

कैर
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करीर
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कैरड़ा/करील/कैरिया
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कैरड़ा/शमी
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कैपरिस डेसिडुआ
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कैर झाड़ीनुमा पेड़ होता है। यह अधिक ऊंचा नहीं होता। यह अक्सर सूखे क्षेत्रों में पाया जाता है। यह भारत ही नहीं अपितु कई देशों में पाया जाता है। सूखे एवं मरुस्थल में मुख्य रूप से प्राकृतिक रूप में मिलता है। इसमें दो बार फल लगते हैं। पेड़ पर पीले/लाल रंग के फूल आते हैं जिनसे फल बनते हैं। इसके हरे फलों का सब्जी और आचार बनाने में किया जाता है।राजस्थान में पर्याप्त मात्रा में मिलता है।
इसके सब्जी और आचार अत्यन्त स्वादिष्ट होते हैं। पके लाल रंग के फल पीचू कहलाते हैं जो खाने के काम आते हैं। हरे फल जिसे टींट कहते हैं ,को सूखाकर उनका उपयोग देाी सब्जियां बनाने के काम में लेते हैं जिनमें कढ़ी प्रमुख है। सूखे हुए टींट के चूर्ण को काले नमक के साथ लेने पर तत्काल पेट दर्द में आराम पहुंचाता है।
महाभारत में करीर का वर्णन आता है। अर्जुन ने अज्ञातवास दौरान अपने गांडीव को शमी पेड़ में छुपाया था जिसे कुछ जांटी मानते हैं तो कुछ कैर का पौधा मानते हैं। राजस्थान में कैर कैर का बड़ा महत्व है वहीं इस पर अनेकों कहावतें लागू की गई हैं।

   रेगिस्तान और कम पानी वाले क्षेत्रों में पाए जाने वाला कैर छोटे आकार झाड़ीनुमा पेड़ होता है। इसके कांटे होते हैं। यह पौधा पूर्णरूप से हरा होता है जिस पर या तो पत्ते होते ही नहीं होते हैं तो बहुत बारीक। पत्ते का काम तना करता है। पेट की विभिन्न बीमारियों में अति कारगर है।मरुस्थल में अधिक मात्रा में पाया जाता है। पुराने जंगलों/ खेत की मेड़/ तालाबों के किनारे/ रेतीली जगह पर भी कैर के पौधे पाए जाते हैं। कैर  को कई नामों से जाना जाता है।
   विदेशों में
कैर के फल की बहुत मांग है। इस पौधे के गर्मियों पीले/लाल फूल खिलते हैं जिन पर कठोर हरे रंग के फल लगते हैं जिन्हें टींट कहते हैं। जब टींट पक जाते हैं तो इन्हें पिचू नाम से जाना जाता है। जब से फूल कली के रूप में होता है तभी से इनकी सब्जी बनाई जाती है।
भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में दुकानों पर भी टींट मिल जाते हैं। सब्जी के रूप में बेचे जाते हैं। इसमें विटामिन, खनिज लवण भारी मात्रा में पाए जाते हैं। मधुमेह रोगियों के लिए बहुत लाभप्रद होते हैं वही वजन घटाने वालों में भी कारगर होते हैं। इनमें एंटीआक्सीडेंट पाया जाता है। पेट की बीमारियों के लिए तो रामबाण दवा होती है।

जब कैर पर कलियां(फूल से पहले की अवस्था होती है) आती हैं तो उन्हें बाडिय़ा कहते हैं। इन्हें छाछ में भिगोकर सब्जी/भाजी बनाने के काम में लेते हैं। पुराने समय से ही कैर की लकड़ी दूध मथने के लिए काम में लाई जाती रही है।
कैर में बहुत अधिक सरीसृप  निवास करते हैं। इसके फल कड़वे होते हैं ऐसे में

मट्ठे,छाछ,लस्सी में भिगोकर कई दिनों तक रखा जाता तत्पश्चात उन्हें अचार बनाने विभिन्न प्रकार के सब्जियों में डालने के काम में लेते हैं वही सूखाकर वर्ष भर विभिन्न सब्जियों में जायकेदार बनाने के लिए काम में लिया जाता है।
पर एक ऐसा पौधा है। कई वर्षों तक जीवित रहता है। ग्रामीण क्षेत्रों के लोग कैर के फल बेचकर अपनी आजीविका भी कमा लेते हैं। अनेकों पदार्थ बनाए जाते हैं। कैर के फल का चूर्ण भी पेट की औषधियों के रूप में काम मिलाया जाता है। कैर के फलों से अचार बनाया जाता है जिसे वर्ष भर काम में लेते हैं।

 कैर का पौधा द्विबीजपत्री पौधा होता है जो बहुत विषम परिस्थितियों को भी सह सकता है। इसका पूरा तना ही हरा होता है और पत्तों का कार्य करता है। इस पेड़ का फैलाव धरती के आसपास अधिक होने के कारण बहुत से जीवों की शरण स्थली बना होता है। इस पौधे पर सर्दी गर्मी का कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ता। जस की तस हालात बनी रहती है। वहीं वर्ष में दो बार फल लगते हैं। फल लगते उससे पहले भारी मात्रा में फूल लगते हैं जो दूर तक दिखाई देते हैं। उन फूलों को ही कई जीव खाते हैं।
 वहीं फूलों की सब्जी भी बनाकर ग्रामीण लोग चाव से खाते हैं। तत्पश्चात पौधे पर फल लगते हैं तो भारी मात्रा में फल लगते हैं जो दूर तक दिखाई देते हैं। लोग फलों को इकट्ठा कर लेते हैं। अचार, चटनी, सब्जी आदि बनाने के काम आती है। हर प्रकार की सब्जी में डालने के काम में लेते हैं। कढ़ी एवं खाटा का साग विशेष स्वादिष्ट बन जाता है। इसके फल डालने से जायका बदल जाता है। उसका फल पेट के रोगों के लिए रामबाण माना जाता है।

जहां विभिन्न प्रकार की बीमारियों में इसका उपयोग किया जा सकता है वहीं चेहरे पर रंगत लाने के लिए भी इसके चूर्ण को प्रयोग किया जाता है। एंटी आक्सीडेंट पाए जाते हैं इसलिए कैंसर के काम में में भी लाया जाता है। इस पौधे में रुक्षांस मिलता है इसलिए आंतों के लिए लाभप्रद है। यह पौधा ग्रामीण क्षेत्रों में भी शुभ माना जाता है। यही कारण है कि लकड़ी को आंगन में गाड़ दिया जाता है और उससे मथनी द्वारा दूध को मथा जाता है। लंबे अरसे तक एक ही जगह खड़ा दिखाई दे सकता है।
  जंगल में भारी मात्रा में देखे जा सकते हैं। इसकी लकड़ी पर धारियां पाई जाती है तथा पीले रंग का शल्क जमा होता है। जब नया पौधा बनता है तो भारी मात्रा में नई केोपले आती हैं। यह पेट दर्द, दस्त, बुखार, अपची में काम आता है। वहीं पशुओं के पेट की बीमारियां भी इसके द्वारा दूर की जा सकती है। कैर के अचार को दूरदराज तक भेजा जा सकता है। विदेशों में भी कैर के फल की बहुत मांग होती है। जहां सब्जी बनाई जाती है।
 कैर प्राचीन समय से ही बहुत प्रसिद्ध है। रेगिस्तान या बणी में पाया जाता है। यह पौधा विभिन्न रोगों में काम में लाया जाता है। इसके फल सुखाकर लंबे समय तक विभिन्न सब्जियों में डाले जाते हैं। यह पौधा कांटेदार पौधा होता है इसलिए इसको बहुत कम जीव ही खा पाते हैं। जब इसके फल लाल बन जाते हैं तो पीचू  किस नाम से जाने जाते हैं जो बहुत मीठे हो जाते हैं। ऐसे में ग्रामीण लोग बड़े चाव से तोड़ कर खाते हैं। इनके फल में भारी संख्या में काले रंग के बीज पाए जाते हैं। यदि ये बीज डाल दिए जाए तो फिर से अंकुरित हो जाते हैं। यह
पशु रोगों में भी काम आता है।
  कैर के फल को टेंटी नाम से भी जाना जाता है। फल छोटे आकार के गोल होते हैं जिन में कैल्शियम, लोहा, विटामिन, कार्बोहाइड्रेट अधिक पाए जाते हैं। यह एंटीऑक्सीडेंट का गुण रखता है।  यह मधुमेह के रोगियों के लिए, कब्ज में बहुत लाभकारी है। कैर की छाल के चूर्ण से पेट साफ रहता है वहीं कब्ज नहीं रहती है। कफ और खांसी में भी लाभ मिलता है। जहां पेट संबंधी समस्याएं ,
दूर होती है वहीं जोड़ों के दर्द, दांत दर्द, खांसी, बुखार, बदहजमी, एसिडिटी में भी लाभप्रद है। पशुओं के लिए भी उतना ही लाभकारी होता है।

**होशियार सिंह,लेखक,कनीना,हरियाणा**













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