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Thursday, February 27, 2020

पील
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जाल
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पील/राजस्थान का अंगूर
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पीलू// राजस्थान का मेवा
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साल्वाडोरा ओलेओइड्स
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जाल एक सदाबहार पेड़ है जिसमें बहुत सारी लटकती हुई शाखाएं होती हैं। यह बहुत ऊंचा हो सकता है। अक्सर यह झुरमुट के रूप में गहरी छाया वाला पौधा है। यह द्विबीजपत्री पौधा है जो बहुत धीरे धीरे बढ़ता है। इसमें मूसला जड़े पाई जाती हैं। यह भारत सहित कई देशों में पाया जाता है। मूल स्थान भारत ही है। जंगलों में भारी संख्या में खड़े देखे जा सकते हैं।
रेगिस्तान की तो प्रमुख सौगातों में से एक जाल भी है। यह जाल अति विषम परिस्थितियों को भी सहन कर सकता है। जून जुलाई की भीषण गर्मी में यह पौधे विभिन्न रंगों के फल देने लग जाता है। इसके पीले, सफेद, लाल फल बरबस लोगों को आकर्षित कर लेता है। जाल के पेड़ बेतरतीबी से फैलाव लिए होता है। इस कारण स्थानीय बोलचाल में इस जाल कहा जाता है। जाल पर जीव जंतु आराम से घूमते रहते हैं। तेज गर्मी के साथ जाल के पेड़ पर हरियाली छा जाती है और फल लगना शुरू हो जाते है। चने के आकार के रसदार फल को पील कहलाते है।
इसे पील या पीलू कहते हैं। ये फल अति मधुर स्वाद के होते हैं जिनको लोग चाव से खाते हैं। बुजुर्ग बताते हैं कि कभी जंगल से पील तोड़कर लाने के लिए विशेष दल जाता था और एक बर्तन में पील तोड़कर लाते और चाव से फांके मार मारकर खोते थे। अब न तो पेड़ों पर पील होती हैं और न पील खाने वाले वो लोग बचे हैं।
यदि पील को एक एक करके खाते हैं तो जीभ छिल जाती है। ऐसे में कम से कम दस पील एक साथ फांके मारकर खाई जाती हैं ताकि जीभ को कोई नुकसान न पहुंचे और बेहतर स्वाद भी आए। मीठे चखने वाला फल, जो उत्तरी भारत में खाया जाता है।  पील एक एक करके खाने से मुंह से झुनझुनी और अल्सर पैदा करता है।
पेड़ को दवा और सामग्री के स्रोत के रूप में स्थानीय उपयोग के लिए जंगलों से काटा जाता है। यह छाया के लिए, मिट्टी कटाव तथा पत्तों से खाद बनाने के लिए उगाया जाता है। यह दो प्रकार का होता है। खारी जाल तथा मीठी जाल। एक वक्त था जब जाल के पेड़ के नीचे पशु एवं जंगली जीव आराम करते थे। जंगल में चरवाह अपने पशुओं को जाल के पेड़ के नीचे गर्मी एवं दोपहरी में बैठाकर आराम करता था और शाम को अपने घर पशुओं सहित लौटता था।

  जाल नामक पौधा ऊंचाई पर भी मिलता है वहीं सर्दी को अधिक सहन नहीं कर पाता है।
ये धूप अधिक सहन कर सकते हैं। खारा मिट्टी के अत्यधिक सहिष्णु होता है। पेड़ के पत्ते, टहनी, तना आपस में इतना सघन बनाते हैं कि धूप भी इस पेड़ के अंदर प्रवेश नहीं कर सकती है। फल
मीठे स्वाद का होता है जिसमें ग्लूकोज, फ्रक्टोज और सुक्रोज होता है। यहां तक कि कैल्शियम का का अच्छास्रोत है। फल खाएं जाते हैं जिनके रंगों के अनुसार अलग अलग स्वाद होता है। उबली हुई जड़ की छाल का दवाआ के रूप में काम आती है वहीं बीज का तेल दर्द के उपचार में शीर्ष पर लागू किया जाता है और मरहम बनाने के काम आता है।
पत्तियों का उपयोग खांसी से राहत देने के लिए किया जाता है।
पत्तियों को गर्म किया जाता है और फिर एक कपड़े में बांध दिया जाता है और गठिया से प्रभावित क्षेत्रों पर लगाया जाता है। राहत मिलती है। फल का उपयोग बढ़ी हुए तिल्ली, गठिया, ट्यूमर, गुर्दे और पित्ताशय की पथरी, और बुखार के उपचार में किया जाता है। पेड़ एग्रोफोरेस्टरी के काम आता है। सड़क के किनारे, मिट्टी कटाव को रोकने के लिए, पत्ते उर्वरक के काम आते हैं वहीं ईंट पकाने के काम आते हैं।
पीलू के बीजों में हरी-पीली वसा होती है जिसमें बड़ी मात्रा में अमल होते हैं जो साबुन और मोमबत्तियां बनाने के लिए उपयोग किया जाता है।
बीज के तेल मच्छर मारने के काम आता है।  इसकी जड़ दातुन के रूप में दांतों को साफ करने के लिए टूथब्रश के रूप में उपयोग की जाती है।

हल्के लाल या पीले रंग की लकड़ी कमकठोर होती है। इसका उपयोग भवन निर्माण के उद्देश्यों, कृषि उपकरणों, फारसी पहियों और नावों के लिए किया जाता है। लकड़ी ईंधन के रूप में काम आती है।
यह लंबी लंबी शाखाओं वाला पेड़ है। यह शुष्क इलाकों में बहुत आम पौधा है, लेकिन दुर्लभ हो जाता है जहां वर्षा की स्थिति बेहतर होती है। यह महान मिट्टी की लवणता का सामना कर सकता है। यह अप्रैल के दौरान नए पत्ते पैदा करता है। पत्ते मोटे हरे रंगे के होते हैं। पौधे एक घनी छाया प्रदान करता है। यह अक्सर ऊंट और बकरी आदि के चारे के लिए प्रयोग किया जाता है।
  जाल के छोटे हरे सफेद फूल आते हैं। पक्षी, जीव एवं कीट इसके फल को खाते हैं। पक्षियों द्वारा बीज फैलाया जाता है।  जाल की राख ऊंटों में के रोगों के इलाज के लिए काम आता है। महाभारत में अर्जुन ने अज्ञातवास के समय अपने अस्त्र शस्त्र जिस पेड़ में छुपाए वह कैर, जांटी या जाल ही माना जाता है। जाल की जड़ों का एक काढ़े का उपयोग गोनोरिया में प्रयोग किया जाता जाता है। बुखार के इलाज में भी यह काम आती है। इससे कई प्रकार के टूथपेस्ट बनाए जाते हैं।  अफ्रीका में जाल की पत्ती को एक सब्जी के रूप में खाया जाता है और सास बनाने में उपयोग किया जाता है। इसकी कच्ची टहनियां और पत्तियों को सलाद के रूप में खाया जाता है। पत्तियां स्वाद में कड़वी, सडऩ रोकने वाली, आंतों केो कड़वी, लिवर के के लिए टोनिक, मूत्रवर्धक, कृमिनाशक, ओजोन में उपयोगी और नाक से जुड़ी अन्य परेशानियों, बवासीर, खुजली, सूजन को कम करने और दांतों को मजबूत करने वाली होती हैं। पत्तियां गठिया इलाज में काम आती हैं।पत्तियों के रस का उपयोग स्कर्वी में भी किया जाता है। फल मूत्रवर्धक और पेट के लाभकारी होता है। जहरीले कीटों के काटने पर फलों को प्रयोग करते हैं।
   बीज में कड़वा और तेज स्वाद होता है। उनका उपयोग शुद्धिकारक के रूप में किया जाता है, मूत्रवर्धक और टॉनिक के बीज का तेल गठिया में त्वचा पर लगाया जाता है। जाल का काढ़ा  चूहों में कोलेस्ट्राल को काफी कम कर देता है।
 जाल का महिला प्रजनन प्रणाली और प्रजनन क्षमता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। यह जीवाणुरोधी होती हैं।
पील रेगिस्तान का मेवा नाम से जाना जाता है। यह पौष्टिक होता है इसे खाने से लू नहीं लगती। औषधीय गुण के कारण महिलाएं पीलू को लोग एकत्र कर सुखा कर भी खाते हैं।

राजस्थान में ऐसी मान्यता है कि जिस वर्ष कैर और पील की जोरदार बहार आती है उस वर्ष बारिश एवं फसल बेहतर होते हैं। पील खाने में बहुत ही स्वादिष्ट होते हैं। इन्हें राजस्थान का अंगूर भी कहते हैं। इसकी छाया में जंगली मोर, गीदड़,हिरन, नीलगाय आदि आराम से रहते हैं।


















**होशियार सिंह, लेखक,कनीना,हरियाणा**


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