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Saturday, February 8, 2020

बेलपत्र
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बिल्व, बेल
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ऐग्ले मार्मेलोस
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पीड़ा निवारक, श्री फल, सदाफल
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बेल धार्मिक एवं औषधीय पौधा है जिसे बिल्व, बेल या बेलपत्र आदि नामों से जाना जाता है। भारत में होने वाला एक फलदार पेड़ है। इसे रोगों को नष्ट करने की क्षमता के कारण बेलपत्र को बिल्व कहा जाता है। फल का गूदा तथा सूखा गूदा (बेलगिरी)दोनों लाभकारी हैं।
 बेल के वृक्ष भारत ही नहीं अपितु कई देशों में में उगते हैं। इसकी खेती अति लाभप्रद साबित हो रही है। किसान उगाकर लाभ कमा रहे हैं।

धार्मिक दृष्टि से भी बेलपत्र अति महत्वपूर्ण होने के कारण इसे शिवालयों के पास लगाया जाता है। हिन्दू धर्म में इसे भगवान शिव का रूप ही माना जाता है व मान्यता है कि इसके मूल में महादेव का वास है तथा इनके तीन पत्तों को जो एक साथ होते हैं जिनको त्रिदेव का रूप मानते हैं। इसके पांच पत्ते भी पाए जाते है। यह एकबीजपत्री पौधा है जिस पर कांटे पाए जाते हैं। गर्मियों में पत्ते गिरकर नए पुष्प आ जाते हैं। बेल के फूल हरे एवं सफेद रंग के होते हैं जिनमें भीनी भीनी गंध आती है।
बेल का फल दो किलो तक होता है। फल पर पीले/हरे रंग का खोल कठोर एवं चिकना होता है। पकने पर हरे से सुनहरे पीले रंग का हो जाता है। फल में मधुर रेशेयुक्त सुगंधित गूदा निकलता है जिसमें अनेकों छोटे, बड़े कई बीज होते हैं। यह दो प्रकार का होता है जिनमें छोटे तथा बड़े आकार के। छोटे फलों को जंगली कहा जाता है। जंगली पौधे में देखने में आता है कि अधिक कांटे होते हैं। बेल को तोडऩे पर कई खंड पाए जाते हैं जिनमें बीज भरे होते हैं।
  बेल का फल-वात नाशक मानते हैं। इसका फल, चूर्ण, पत्तों का रस सभी औषधीय गुण रखते हैं। बेलपत्र को को पुरानी पेचिश, दस्तों और बवासीर में बहुत अधिक लाभकारी मानते हैं। यह पेट एवं आंतों के रोगों में लाभकारी पाया है। यह भूख को बढ़ाता है।
बेल फल का गूदा वाशिंग पाउडर का काम करता है जिससे कपड़े धोए जा सकता है। यह चूने के प्लास्टर में तथा चित्रकार अपने जल रंग मे मिलाते हैं।  इसमें पेक्टिन, शर्करा, टैनिन्स,मार्मेलोसिन नामक एक रसायन पाया जाता है। इसके बीजों में पीले रंग की तीखा तेल रेचक होता है।  बिल्व पत्र में एक हरा-पीला तेल, इगेलिन भी पाए गए हैं। बेलपत्र सिर्फ पूजा मात्र का ही एक साधन नहीं है, बल्कि आपके स्वास्थ्य के लिए भी बेहद लाभकारी है।

 बुखार होने पर बेल की पत्तियों के काढ़े का सेवन करते है। धुमक्खी, भिरड़, ततैया के काटने पर बेलपत्र का रस लगाने से राहत मिलती है। हृदय रोगियों के लिए बेलपत्र का काढ़ा बनाकर पीने से हृदय मजबूत होता है और हार्ट अटैक का खतरा कम होता है। श्वास रोगियों के लिए पत्तियों का रस पीने से लाभ होता है। शरीर में गर्मी बढऩे पर या मुंह में गर्मी के कारण यदि छाले हो जाएं, तो बेल की पत्तियों को मुंह में रखकर चबाने से लाभ मिलता है।
बवासीर, खूनी बवासीर में बेल की जड़ का गूदा पीसकर बराबर मात्रा में मिश्री मिलाकर उसका चूर्ण लेने से लाभ मिलता है। सर्दी, जुकाम और बुखार की समस्याएं अधिक होती हैं। ऐसे में बेलपत्र के रस में शहद मिलाकर पीना चाहिए वहीं ज्वर हो जाने पर इसके पेस्ट की गोलियां बनाकर खाई जाती हैं। पेट या आंतों में कीड़े होना या फिर बच्चे में दस्त लगने की समस्या हो, बेलपत्र का रस पिलाने से काफी लाभ होता है।  इसके हर भाग का इस्तेमाल सेहत बनाने और सौंदर्य निखारने के लिए किया जा सकता है।. फल बेहद कठोर होता है लेकिन अंदर का हिस्सा मुलायम, गूदेदार और बीजों से युक्त होता है। पत्थर की भांति फल कठोर होने के कारण इसे कई बार बेल पत्थर भी कहा जाता है। पुराणों के अनुसार मंदार पर्वत पर माता पार्वती के पसीने की बूंदे गिरने से बेल के पेड़ की उत्पत्ति हुई। यह पेड़ सकारात्मक ऊर्जा उत्पन्न कर आसपास की नकारात्मक ऊर्जा को दूर करता है।
   बेल के फल का जीवनकाल लंबा होता है तथा पेड़ से टूटने के कई दिन बाद भी इसका इस्तेमाल किया जा सकता है। यह कई स्वादिष्ट व्यंजनों में भी प्रमुखता से इस्तेमाल होता है इसके फल में प्रोटीन, बीटा-कैरोटीन, थायमीन, राइबोफ्लेविन और विटामिन सी पाया जाता है। दिल से जुड़ी बीमारियों से बचाव में सहायक है। यह ब्लड शुगर को नियंत्रित करने में सहायक होता है।गैस, कब्ज की समस्या में राहत देता है। कोलस्ट्राल स्तर को नियंत्रित रखने में मददगार साबित होता है। दस्त और डायरिया की समस्या में भी फायदेमंद है।
बेल के रस को दस्त और डायरिया में बहुत फायदेमंद माना गया है। बेल एक ऐसा पेड़ है जिसके हर हिस्से का इस्तेमाल होता है। 

  नियमित रूप से बेल का रस पीने से गैस, कब्ज और अपच की समस्या में आराम मिलता है। चूर्ण आदि औषधीय प्रयोग में बेल का कच्चा फल, मुरब्बे के लिए अधपक्का फल और शर्बत के लिए पका फल काम में लाया जाता है।
   गर्मी एवं पेट के रोगों से मुक्ति प्रदान करने वाला फल है। बेलपत्र का कच्चा फल  रक्त स्तंभक, पक्का फल मधुर और मृदु रेचक तथा पत्तों का रस घाव ठीक करने, वेदना दूर करने, ज्वर नष्ट करने, जुकाम और श्वास रोग मिटाने तथा मूत्र में शर्करा कम करने वाला होता है। इसकी छाल और जड़ घाव, कफ, ज्वर, गर्भाश्य का घाव, नाड़ी अनियमितता, हृदयरोग आदि दूर करने में सहायक होती है।
बिल्वादि चूर्ण, बिल्व तेल, बिल्वादि घृत, बृहद गंगाधर चूण आदि औषधियों में प्रयुक्त होता है। बेल के फलों का अधिक सेवन बवासीर के रोगियों के लिए हानिकारक होता है। इसके अतिरिक्त गूदे में बीज दोहरी झिल्ली के बीच होते हैं, जिसमें लेसदार द्रव होता है। इससे पचने में आसान, भूख बढ़ाने वाला, चुस्ती देने वाला शर्बत है। अजीर्ण में बेल की पत्तियों के रस,काली मिर्च और सेंधा  नमक मिलाकर पिलाने से राहत मिलती है। आँखें दुखने पर पत्तों का रस डालने से दुखती आंखों की पीड़ा, चुभन, शूल ठीक होकर, नेत्र ज्योति बढ़ती है।

    जल जाने पर बिल्व चूर्ण तेल में या बेल का पक्का गूदा साफ करके भी लेपा जा सकता है। पाचन तंत्र में खराब होने पर रोगी को बेलगिरी और आम की गुठली की गिरी बराबर मात्रा में दी जाती है। कब्ज से पेट-सीने में जलन इसका शर्बत लाभप्रद है वहीं चेहरे पर ओज आएगा।
   छाती में जमे कफ दूर करता है। दमा के कफ को निकालता है। यह मूत्र और वीर्य दोष नष्ट होते हैं। ल्युकोरिया में बेलगिरी लाभकारी है वहीं    पीलिया में बेल की कोपल लाभकारी है। मुंह के छाले, रक्त शुद्धि के लिए, सिर दर्द में, पुराना सिर दर्द दूर करने में सहायक है वहीं अन्दरूनी चोट में बेल पत्रों को पीस कर लगाने से लाभ मिलता है।
 बेल के पत्तों से जनसंख्या नियंत्रण , कैंसर और लीवर के लिए भी फायदेमंद है।
गर्मी के मौसम में मिलने वाला बेल गर्मी से राहत देने के साथ ही कई स्वास्थ्य समस्या से भी निजात दिलाता है। अगर आप हर रोज बेल का शरबत पीते हैं तो आप हमेशा निरोग बने रहेंगे।
मधुमेह रोगियों के लिए बेल फल बहुत लाभदायक है। बेल की पत्तियों को पीसकर उसके रस का दिन में दो बार सेवन करने से डायबिटीज की बीमारी में काफी राहत मिलती है। कच्चे फल का गूदा सफेद दाग बीमारी का प्रभावकारी इलाज करता है। इससे एनीमिया, आंख और कान के रोग भी दूर होते हैं। पुराने समय में कच्चे बेल के गूदे को हल्दी और घी में मिलाकर टूटी हुई हड्डी पर लगाते थे। इसमें एंटीआक्सीडेंट्स पा जाते हैं। यह वायरस व फंगल रोधी गुण रखता है वहीं   विटामिन सी का अच्छा स्रोत है। पके हुए फल के रस से दिल की बीमारियां दूर रहती हैं।

यह खून की कमी को दूर करता है। जी मिचलाने में बेल के गूदे को पानी में मथ कर प्रयोग करते हैं। गर्मियों में लू लगने पर बेल के ताजे पत्तों को पीसकर पैरों पर लगाने से लाभ मिलता है। पका हुआ बेल मधुर, रुचिकर, पाचक तथा शीतल फल है। बेलफल बेहद पौष्टिक और कई बीमारियों की अचूक औषधि है।
बेल के फल में नमी, वसा,प्रोटीन, रुक्षांस, कार्बोहाइड्रेट, कैल्शियम, फास्फोरस, आयरन,विटामिन पाए जाते हैं।
पेट विकारों में बेल का फल रामबाण दवा है। वैसे भी अधिकांश रोगों की जड़ उदर विकार ही है। बेल के फल के नियमित सेवन से कब्ज जड़ से समाप्त हो जाती है। कब्ज के रोगियों को इसके शर्बत का नियमित सेवन करना चाहिए। बेल का पका हुआ फल उदर की स्वच्छता के अलावा आंतों को साफ कर उन्हें ताकत देता है।
बेल के पत्ते में वह प्राकृतिक गुण मौजूद होते हैं जो हमारे पेट के लिए बहुत लाभदायक होते हैं इनका रोज़ सेवन करने से हमारे पेट से जुड़ी सभी समस्याएं दूर रहती हैं।  चाहिए। पत्तों को अच्छी तरह धो लेना चाहिए फिर दांतों से चबाना चाहिए ताकि इसका रस अच्छी तरह से निकल आए और अं














त में इसे खा लेना चाहिए।
बेल के पत्तों का सेवन करने के कुछ समय बाद ही दांत अच्छी तरह साफ करने चाहिए क्योंकि बेल के पत्तों में जो औषधीय गुण होते किंतु दांतों को काला करता है।
**होशियार सिंह, लेखक,कनीना,हरियाणा**

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