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Monday, February 17, 2020

राई
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ब्रासिका निग्रा
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काली सरसों
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राई नामक पौधे को काली सरसों नाम से भी जाना जाता है। यह रबी की एक फसल होती है जो झाड़ीनुमा होती तथा इसका पौधा एक वर्ष तक जीवित रह सकता है। इसका वैज्ञानिक नाम ब्रासिका निग्रा है।  राई की इसके बीजों के लिए की जाती है जो मसाले के रूप में उपयोग की जाती है। यह एशिया की मूल है जो सरसों की छोटी बहन नाम से जानी जाती है। यह द्विबीजपत्री पौधा होता है जिसकी मूसला जड़े पाई जाती हैं और पत्ते बड़े तथा जटिल होते हैं जिना फलक कटा हुआ होता है।
  पीले फूलों वाले इस पौधे पर लंबी फलियां लगती हैं जिनमें काले सरसयों से छोटे बीज पाए जाते हैं। एक फली में अक्सर चार गोल बीज पाए जाते हैं। इसके काले बीजों के कारण इसे निग्रा कहा जाता है। यह पूरे विव में पाया जाता है।
हजारों वर्षों से राई को एक मसाला के रूप में इस्तेमाल किया जाता रहा है।
यह एक मसाला देने वाला पौधा जिसके बीज विभिन्न कार्यों में प्रयोग किए जाते हैं। इसके छोटे काले बीज कठोर होते हैं जो भूरे रंग के भी हो सकते हैं। फूलों में भी सुगंध पाई जाती है वहीं बीजों में भी सुगंध होती है। बीज आमतौर पर भारतीय व्यंजनों में उपयोग किए जाते हैं। इसके बीज को आमतौर पर गर्म तेल में डालकर सब्जी आदि तलने के काम में लेते हैं।

 राई के बीज में एक वसायुक्त तेल होता है जिसमें प्रमुख रूप से ओलिक एसिड होता है जिसे भारत में खाना पकाने के तेल के रूप में अक्सर किया जाता है। इसे राई का तेल कहा जाता है। इसके पत्ते एवं तना एक सब्जी के रूप में की जाती है। राई को विभिन्न रूपों में प्रयोग किया जाता है। जहां भाजी को खाया जाता है वहीं दाल में हरे पत्ते एवं तना डाला जाता है। मक्का की रोटी के साथ सरसों का साग भी खाया जाता है वास्तव में सरसों के साग में राई का पौधा मिलाकर प्रयोग करते हैं। इसे श्वसन संक्रमण के इलाज के लिए, पिसी हुई सरसों को आटे और पानी के साथ मिलाकर छाती या पीठ पर रखा गया और तब तक छोड़ दिया जाता है, मांसपेशियों के दर्द को दूर करने के लिए भी किया जा सकता है।
काली सरसों सफेद, पीली सरसों, गोभी और शलजम से संबंधित होता है। राई के कई फायदे होते है यह एक गुणकारी मसाला है। इसमें भी काफी औषधीय गुण मौजूद होते हैं। इसका लगभग सभी तरह के आचारों को बनाने में प्रयोग किया जाता है। राई कई रोगों को भी भगाती है। बतौर औषधि इसके द्वारा कई रोगों को दूर करने के काम में लेते हैं। सरसों के मुकाबले छोटा दाना है किंतु बहु उपयोगी होता है।
इसके छोटे-छोटे दाने होते हैं ,तासीर गरम होती है। गर्म होने के कारण वात एवं कफ को खत्म करती है। इससे वात एवं कफ की बहुत-सी बीमारियां ठीक हो जाती हैं। पेट के दर्द, शरीर के दर्द को दूर करती है और पेट के कीड़ों को भी खत्म करती है। राई के सेवन से पेट का अफारा भी दूर किया जाता है। ग्रामीण क्षेत्रों में हिचकी एवं सांस की बीमारी में भी यह लाभकारी माना जाता है।राई के सेवन से भूख अच्छी लगती है। यह पाचन-शक्ति को तेज करती है।
काली सरसों के सेवन से पेट में बनने वाली गैस से भी छुटकारा मिलता है वहीं सांस की बीमारी हो, दमा हो, जरा-सा चलने से सास फूलता हो, उसे राई की चाय पिलाई जाती है। बदहजमी में काम आती है। हैज़ा, त्वचा के रोग में भी राई लाभकारी रहती है। मासिक धर्म में अनियमितता आ जाए तथा मिरगी के दौरे पड़ते हों तो राई काम आती है।
यदि पेटदर्द से पीडि़त हों या जुकाम से परेशान, इन सब बीमारियों में राई के लाभप्रद होती है। मिरगी के दौरे पीसी हुई राई रोगी को सुंघाई जाती है इसी से होश आ जाएगा।
 जुकाम हो तो शहद में मिलाकर सुंघाने से लाभ मिलता है।घबराहट के साथ आप बेचैनी और कंपन महसूस तो राई के पेस्ट मलने से आराम मिलता है। अपची,कभी खट्टी डकार आए तो पिसी हुई राई का चूर्ण पानी संग पी लेने से लाभ मिलता है। कान के नीचे की सूजन, जोड़ों के दर्द, कांख में गांठ, सफेद दाग, सिरदर्द आदि में इसका लेप लाभदायक होता है। शरीर का कोई भाग सुन्न  हो तो राई को पीसकर हथेली एवं तलुओं पर मलने से लाभ होता है। पेट में अफारा होने पर राई का लेप नाभि के चारों तरफ, पेशाब की रुकावट होने पर इसका लेप लाभकारी है।
यदि दांतों में दर्द हो तो राई को गरम पानी में मिलाकर कुल्ले करते हैं,फुंसियां, बालों का गिरना आदि स्थितियों में बहुत लाभकारी होता है। पेट में तेज़ दर्द होने पर राई का लेप करने से लाभ होता है।  हैजे के रोगी को जब उल्टियां और दस्त हो रहे हों और बहुत परेशानी हो तो उस समय पेट पर राई का लेप करना लाभदायक सिद्ध होता है।
थोड़े से राई के दानों को भोजन में मिलाने से यह खाने का स्वाद बहुत बढ़ा देती है। यह कढ़ी, दाल आदि के तड़के के काम आती है।हिचकियां या बदहजमी अथवा किसी अन्य कारण से जब हिचकियां आती हैं, तो पानी के साथ चुटकी भर नमक और राई देने से लाभ होता है,स्त्रियों को मासिक धर्म में लाभप्रद है वहीं राई के तेल को गठिये की सूजन एवं दर्द ,लकवे के रोगियों को भी राई के तेल की मालिश की जाती है।
   जुकाम- जुकाम में राई को शहद के साथ मिलाकर चाटने अथवा सूंघने से भी जुकाम में लाभ होता है। जहां राई के अनेक लाभ हैं वहीं राई कुछ हानिकारक भी साबित होती है।रक्तपित्त, रक्तवात, खूनी बवासीर, शरीर में जलन, चक्कर आना, ब्लडप्रेशर बढ़ जाने पर राई का सेवन नुकसानदायक साबित हो सकता है।
गिरते झड़ते बालों में जिनमे डैंड्रफ को दूर करती पेट के रोगों में राई का सेवन पेट का भारीपन, अफारा और पेट-दर्द की शिकायत दूर करता है। जिन व्यक्तियों को कब्ज की शिकायत हमेशा रहती है, कांजी उन्हें पेट साफ करने में मदद करती है। यदि इसका सेवन भोजन के पहले किया जाए तो यह भूख बढ़ाती है और आहार में रुचि पैदा करती है। 
  राई पशु पालकों के लिए बेहतर पदार्थ है। राई रसोई में मिलने वाला मसाला ही नहीं है अपितु पशुओं का अफरा, भूख बढ़ाने तथा पेट के रोग भगाने में भी किया जाता है। राई के पौधे के पत्ते पशुचारा बनाने के काम आता है।









**होशियार सिंह, लेखक,कनीना,हरियाणा**


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