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Saturday, March 7, 2020













सरसों का मामा
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ब्रूमरेप
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ओरोब्रांक इजेप्शियन
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सरसों, आक, कुछ अन्य पौधों की जड़ों के पास सफेद रंग के फूलों वाला पौधा नजर आता है। यह शाक रूप में पाया जाता है। अक्सर इसका तना, पत्ते एवं फूल अक्सर सफेद रंग के होते हैं। विभिन्न प्रजातियों में इसका तना एवं फूलों का रंग अलग अलग होता है।
 इस पौधे की करीब 150 प्रजातियां पाई जाती हैं। पूरे ही विश्व में विभिन्न देशों में इसकी प्रजातियां मिलती हैं। यह पौधा कहने को तो छोटा है किंतु फसल पैदावार को कम कर देता है।
ओरोबै्रंकेसी ब्रूमरेप 150 प्रजातियां पाई जाती हैं जिनमें से कुछ बहुत पुराने समय से चली आ रही कुछ प्रजातियां ऊंचाइयों पर भी मिलती हैं।
  कुछ प्रजातियों का उपयोग लोक चिकित्सा में किया जाता है। इन पौधों में क्लोरोफिल नहीं पाया जाता है। ऐसे में परजीवी अधिक होती हैं। इसकी करीब पांच दर्जन प्रजातियां जड़ी-बूटियों के रूप में काम आती हैं। इनके रंगों में परिवर्तन होते रहते हैं जिनमें पीले-भूरे और लाल-बैंगनी से बैंगनी, नीले और नारंगी होते हैं। ये पौधे दूसरे पौधों पर पाए जाते हैं।
परजीवी ब्रूमरेप जिस पौधे पर उगता है वहां अपनी जड़ों के रूप में पाए जाने वाले होस्टोरिया उस पौधे के अंदर ठूंस देता है और उस पौधे का भोजन, पानी एवं खनिज लवण अवशोषित करके जैंीवित रहते हैं। ये किसी पौधे के बीजों के जरिये दूसरे देशों एवं राज्यों में फैल गए हैं।
1753 में जैव वैज्ञानिक लिनियस जीनस ओरोबेंच को बनाया था। इसका नाम ब्रूमरेप रखा गया है। इसके बीज अंकुरित होकर मेजबान पौधे की जड़ या तने पर शुरू होता है। मेजबान पौधों की जड़ों द्वारा उत्पादित एक पदार्थ ब्रूमरेप के बीज का अंकुरण को प्रोत्साहित करता है। नतीजतन, बीज मेजबान पौधे से अति अल्प दूरी पर अंकुरित होते हैं।
सरसों के मामा नामक पौधे के बीज हल्के होते हैं। ब्रूमरेप के बीज हवाओं द्वारा व्यापक रूप से फैलाए जाते हैं और लंबे समय तक जीवित रहते हैं। बीज  कई वर्षों तक निष्क्रिय रहने और उत्तराधिकार में अंकुरण करने में सक्षम हैं।  बीज लंबे समय तक जीवन शक्ति बनाए रखते हैं।
 ब्रूमरेप को जल्दी से एक उपयुक्त मेजबान पौधा  खोजना होगा। 
ओरोब्रांच परिवार के ज्यादातर पौधे उत्तरी गोलार्ध के मूल निवासी हैं। यह पौधो छोटा होता है।  यह अपने पीले/सफेद रंग से पहचाना जाता है।  तनों में पूरी तरह से क्लोरोफिल की कमी होती है, जो पीले, सफेद, या नीले रंग के होते है। फूल स्पाइक होते हैं। बीज मिनट, तन-से-भूरे और उम्र के साथ काले होते हैं। ये पौधे आमतौर पर देर से सर्दियों से देर से वसंत तक फूलते हैं। जब वे फूल नहीं होते हैं, तो पौधों का कोई भी हिस्सा मिट्टी की सतह के ऊपर दिखाई नहीं देता है।
चूंकि उनके पास कोई क्लोरोफिल नहीं है, इसलिए वे पोषक तत्वों के लिए अन्य पौधों पर पूरी तरह से निर्भर हैं। जीवित पौधों की जड़ों से उत्पन्न कुछ यौगिकों द्वारा अंकुरित होने तक, कई वर्षों तक ब्रूमरैप बीज मिट्टी में निष्क्रिय रहते हैं।  एक बार एक मेजबान से जुड़ा होने के बाद, ब्रूम अपने पानी और पोषक तत्वों के मेजबान को लूटता है।
कुछ प्रजातियां केवल एक पौधे की प्रजातियों को परजीवी करने में सक्षम हैं। ये पौधे यूरोप के मूल निवासी हैं, लेकिन व्यापक रूप से कहीं और भी मिलते हैं। ये पौधे टमाटर, बैंगन, आलू, गोभी, कोलीन, बेल मिर्च, सूरजमुखी, अजवाइन, और फलियां आदि पर पाए जाते हैं। अधिक संख्या में पाए जाने पर फसल विफलता का कारण बन सकता है।
 इटली इन पौधों के तनों को इकटठा किया और खाया जाता है। इस पौधे की जड़ एवं पत्ते उपयोगी होते हैं। इन पौधों का उपयोग घावों पर ड्रेसिंग के रूप में किया गया है। यह मैदानी इलाकों पर रेतीली मिट्टी पर बढ़ता है। कुछ देशों में यह सबसे गंभीर खरपतवार रोगजनकों में से एक है। यह  टमाटर, ककड़ी और अन्य द्विबीजपत्री फसलों को नुकसान पहुंचाता है। खरपतवार के रूप यह फसल की उपज में कमी, फसल की गुणवत्ता पर प्रतिकूल प्रभाव डालती है।
  इसका पूरा पौधा खाने योग्य है। इसे कच्चा या पकाकर खाया जाता है। पौधे को राख में उबाला जा सकता है और आलू की तरह छीलकर खाया जा सकता है।  यह खून की कमी, कैंसर, जड़ को घाव और खुले घावों पर ड्रेसिंग के रूप में इस्तेमाल किया गया है। पत्तियों के जलसेक का उपयोग घावों पर धोने के रूप में किया जाता है। सूखे और चूर्ण वाले पौधे को मलाशय में बवासीर के लिए एक विशिष्ट उपचार के रूप में डाला जाता है।
  शेफर्ड का पर्स,नाइटशेड ज़ेन्थियम, ककड़ी के कटे हुए खेतों में खरपतवारों पर बहुतायत में उगता है। यह मूत्राशय और गुर्दे में पत्थरी को हटाता है। यह मूत्र के उत्तेजक के रूप में और आमतौर पर वाइन में काढ़ा दिया जाता था। इसका कड़वा स्वाद और बहुत कसैला था।
 इसके चिकने पतले चोकर वाले तने 30 से 50 सेंटीमीटर तक लंबे होते हैं और अगस्त और सितंबर में इनमें सफेद या सफेद-बैंगनी रंग के छोटे-छोटे गुच्छे निकल आते हैं।
  कुल मिलाकर यह पौधा परजीवी होता है जो फसल पैदावार को कम कर देता है। किसानों को चाहिए कि इसे उखाड़कर फेंक दे। वैसे तो इस पौधें को पशु भी खा लेते हैं और पशुओं के लिए चारे के रूप में काम आता है। किसानों को इस पौधे का समुचित ज्ञान न होने के कारण्ण खेतों में पर्याप्त मात्रा में खड़े हो जाते हें। वे इसे चारा समझकर छोड़ देते हैं और तब तक इन पौधों के बीज बिखर चुके होते हैं। ये पौधे खेत में ही सूख जाते हैं।
**होशियार सिंह, लेखक,कनीना,हरियाणा**

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