Powered By Blogger

Thursday, March 19, 2020

वन तुलसी
***********************************
*************************************
**********************************

बन तुलसी
**************************** ***************************** *************************्र

डाग चिली, जंगली मिर्च
**************************** ***************************** *********************
जंगल तुलसी, काला भांगड़ा
**************************** ***************************** ********

क्रोटोन बोनप्लैंडियनम
**************************** ***************************** ****************
जंगली जमालगोटा
*****************************************
*************************************************************************************
बन तुलसी एक तेजी से फैलने वाली खरपतवार है। वार्षिक पौधा तथा गहरे हरे रंग का होता है। यह कुत्ता मिर्च, जंंगली मिर्च या जंगली भंगड़ा आदि नामों से भी जाना जाता है। यह यूफाकरबियसी कुल अर्थात अरंडी कुल में मिलता है।
एक जड़ी बूटी है। ज्यादा तनी हुई, बालों से युक्त। पत्ते गहरे हरे रंग के सरल, अंडाकार होते हैं। र्शीा पर मादा एवं नर फूल अलग अलग पाए जाते हैं। फल तीन कोण वाले कैप्सूल के रूप में पाया जाता है। यह रेलवे लाइनों और सड़कों पर, खुले और परती खेतों में पाया जाता है। यह अपने आप उगता है और त्वरित गति से बढ़ता है। इसकी उत्पत्ति दक्षिण अमेरिका एवं एशिया मानी जाती है।
  यह झाड़ीनुमा पौधा काला भांगड़ा नाम से जाना जाता है। अप्रैल माह में फूल आने लग जाते हैं। यह सामान्यत: सड़क के किनारे, नदी के किनारे, बंजर भूमि, रेलवे ट्रैक के दोनों ओर देखा जा सकता है।इसके पत्ते सरल, गहरे हरे, तने और पत्तियों पर हल्की बालनुमा आकृति पाई, तना कठोर होता है। बन तुलसी के फूल छोटे, सफेद या आड़ूरंग के होते हैं जिनमें फल हरे रंग के पैदा होते हैं।
क्योंकि घरों में उगाए जाने वाले तुलसी के पत्तों और फूलों से यह पौधा मिलता जुलता है।  इसलिए इसे तुलसी नाम दिया है किंतु यह जंगलों में मिलती है इसलिए जंगली नाम से जाना जाता है। यह एक वार्षिक जड़ी बूटी का पौधा है जो मुख्य रूप से एक झाड़ी के रूप में बढ़ता है।
 इसके पत्तों और फूलों को छूने के बाद आंखों को छूने से सूजन हो सकती है। फूलों की 5 पंखुडिय़ां होती हैं। फूल जल्द ही डंठल वाले होते हैं।
  बन तुलसी को ईंधन और डिटर्जेंट दोनों के रूप में उपयोग करते हैं। पहले तने और शाखाओं को ईंधन के रूप में इस्तेमाल किया जाता है और बाद में राख को इकट्ठा करके बर्तन में रख दिया जाता है तत्पश्चात इस राख को गर्म पानी में डाल दिया जाता है और सूती कपड़ों की सफाई के लिए अपमार्जक के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। 
  क्रोटन की कई प्रजातियों में पाए जाने वाले रेजिन  कैंसर चिकित्सा में उपयोगी माना जाता है। पत्ता पेस्ट त्वचा रोगों के लिए लाभकारी है। बन तुलसी दो फीट तक बढ़ती है। फूलों में कई लंबी पुंकेसर निकलते हैं। भारत के पश्चिम बंगाल के मालदा के ग्रामीण इलाकों में तुलसी बहुतायत से उगाई जाती है और इसका उपयोग ईंधन और डिटर्जेंट दोनों के रूप में किया जाता है। पहले तुलसी के तने और शाखाओं का उपयोग ईंधन के रूप में किया जाता है। फिर राख को पांच या छह दिनों के लिए एक बोतल आदि में एकत्र किया जाता है। राख को गर्म पानी में डाला जाता है और सूती कपड़ों की सफाई के लिए कपड़े धोने के रूप में उपयोग किया जाता है।
बन तुलसी के बीजों के तेल का उपयोग अतिरिक्त-साधारण दक्षता के शुद्धिकरण के रूप में किया जाता है। घाव भरने, एंटी फंगल, एंटी ट्यूमर, एंटी ऑक्सीडेंट, मलेरिया का लारवा नट करने के काम आता है।  इस पौधे में आवश्यक फैटी एसिड, लिनोलेनिक और लिनोलेनिक एसिड पाया जाता है। यकृत विकारों, दाद के इलाज सहित त्वचा रोगों, शरीर, श्वास संबंधित रोगोंऔर अस्थमा की सूजन को ठीक करने के लिए किया जाता है। बीज का उपयोग पीलिया, तीव्र कब्ज, आंतरिक फोड़े के उपचार के लिए किया जाता है। 
 यह व्यापक रूप से पारंपरिक चिकित्सा प्रणाली में उपयोग किया जाता है जैसे कि लिवर को बचाने, शरीर में सूजन, दाद और त्वचा रोग के इलाज में काम आती है।
  बन तुलसी उच्च रक्तचाप में, एंटीऑक्सिडेंट, घाव भरने, दाद, सूक्ष्म जीवों को रोकने,
शु















गर के इलाज में, कैंसर एवं ट्यूमर के इलाज में, तीव्र कब्ज। पेट फूलने की ड्राप्सी बीमारी में, आंतरिक फोड़े-फुंसी, जनन संबंधित विकारों में, पेट की बीमारियों में, एंटीसेप्टिक, कीड़े के खिलाफ एवं कई अन्य रोगों के इलाज में काम आती है। हैजा, फोड़े, आंत्र शिकायत, चिकन पाक्सो के उपचार के लिए भी प्रयोग किया जाता है। दस्त, अपच, नेत्र रोग, सर्दी और खांसी, मिर्गी, गैस्ट्रिक विकार, पागलपन, पीलिया, यकृत की शिकायत, स्कर्वी, मोच, मलेरिया, गठिया आदि में भी काम आती है।
  कहने को तो यह जंगली तुलसी है किंतु तुलसी की भांति कई रोगों के इलाज में काम आती है। इसे कुछ जंतु एवं पशु भी चारे के रूप में खा लेते हैं। प
शुओं के रोगों के इलाज में कारगर भूमिका निभाता है।
** होशियार सिंह, लेखक,कनीना,हरियाणा**

No comments: