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Sunday, March 22, 2020

मरवा








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मरुआ
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मरजोरम
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ओरिगानम मेजोराना
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मरुवक, गधंपत्र, खटपत्र
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स्वीट या गार्डन मारजोरम
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 मरवा नाम से जाना जाने वाला तुलसी प्रजाति का पौधा बहुत प्रसिद्ध पदाधिकारियों में खेतों में आसपास घर के पाया जाता है यह नुकीली मोटी नरम पत्तियों वाला पौधा है जिसमें तेज महक आती है तुलसी की भांति इस पर मंजरी निकलती है जिसमें छोटे-छोटे फूल लगते हैं। 
 यह शरीर से कीड़े नष्ट करने के लिए विरोधी आदि में काम आता है माना जाता है कि जिस घर में मरुआ लगा हुआ है वहां डेंगू और मलेरिया होने का खतरा नहीं होता क्योंकि मच्छर एवं कीट इससे दूर भागते हैं। बारिश के दिनों में बहुत उपयोगी होता है जितनी महक में होगी कितनी दूरी तक कीड़े एवं मच्छर आदि नहीं आएंगे। इससे कई प्रकार की औषधियां तैयार की जाती है।
मरुआ बारहमासी जड़ी बूटी है। इसे पॉट मरजोरम भी कहा जाता है। मरुआ कुछ बड़ी, नुकीली, मोटी, नरम और चिकनी होती हैं जिनमें से तेज गंध आती है। यह मंदिरों में देवताओं पर चढ़ाए जाते हैं। इसका पेड़ दो-तीन फुट ऊंचा होता है। इस पौधे की पत्तियां, फल, फूल, जड़ आदि काम में लेते हैं।
तुलसी के भांति मंजरी निकलती है जिसमें छोटे सफेद फूल लगते हैं। फूलों के झड़ जाने पर बीजो से भरे हुए बीजकोशों अनेक बीज निकलते हैं। ये बीज पानी में डालने पर फूल जाते हैं।
यह पौधा बीजों से उगता है किंतु टहनी से भी लग जाती है। ये दो प्रकार का होता है, काला और सफेद। काला मरुआ देवताओं पर चढ़ाने के काम आता है। सफेद मरुआ औषधियों में काम आता है।
यह चरपरा, कड़ुआ, रूखा और रुचिकर तथा तीखा, गरम, हलका, पित्तवर्धक, कफ और वात का नाशक, विष, कृमि और कुष्ट रोग नाशक माना गया है।  
 मरुआ के ताजे और सूखे पत्तों दोनों के भाप आसवन द्वारा निकाला जाता है जिसे मरुआ तेल नाम से जाना जाता है। इसके तेल में कई रासायनिक पदार्थ पाए जाते हैं।
 मरुआ का तेल जुकाम, बुखार, सूजन, मांसपेशियों की अधिकता, दांतों में दर्द और सिरदर्द से संबंधित दर्द को कम करता है।
मरुआ तेल सभी प्रकार की ऐंठन संबंधित समस्याओं को ठीक करने में सहायक है। यह श्वसन प्रणाली, आंतों, और अंगों में मांसपेशियों की ऐंठन में कुशलता से ऐंठन से राहत देता है।
मरुआ तेल एक कामोद्दीपक के रूप में कार्य करता है और यौन इच्छाओं को दबाने या नियंत्रित करने में मदद करता है।
तेल के एंटीसेप्टिक गुण इसे बाहरी और आंतरिक दोनों घावों को ठीक करता हैं। यह एंटीसेप्टिक लोशन और क्रीम में एक घटक के रूप में काम करता है। यह मवाद बनने और टेटनस के के घावों से बचाता है।
मरुआ लाभकारी पौधा है जो गठिया रोग मासिक धर्म, पेट दर्द, सिर दर्द, सूजन, जोड़ों का दर्द, मस्तक पीड़ा, पेचिश आदि में काम आता है। मरुआ का जड़ तना पत्ती फूल फूल पौधे का चूर्ण जड़ का चूर्ण आदि भी काम में लाए जाते हैं। मरुआ सामान्य सर्दी, इन्फ्लूएंजा, खसरा और चेचक के संक्रमण को ठीक करने में प्रभावी हो सकता है। तेल जीवाणुओं को मारता है। इसका तेल मस्तिष्क के कामकाज के लिए बहुत अच्छा है। यह गुण आपको सिरदर्द से भी छुटकारा दिलाता है।
 तेल का शरीर पर गर्म प्रभाव पड़ता है और यह रक्त प्रवाह को बढ़ाने के लिए परिसंचरण में सुधार करता है। यह गठिया और गठिया के दर्द से राहत देने के साथ-साथ खांसी और अतिरिक्त कफ से छुटकारा पाने में मदद करती है।
  इसका तेल पसीने को बढ़ावा देता है और शरीर से विषाक्त पदार्थों, सोडियम, लवण और अतिरिक्त पानी को हटाने में सहायता करके आपको स्वस्थ रखता है। यह भी बुखार को कम करने में मदद करता है और वजन कम करने में मदद करता है। 
   इसका तेल पेट में गैस्ट्रिक जूस, एसिड, और पित्त जैसे पाचक रस के स्राव को उत्तेजित करके पाचन को बढ़ावा देता है। इसका तेल गैस की समस्या से निपटने में सक्षम हो सकता है। यह मदद अपच, मतली, उल्टी, पेट में दर्द, सीने में दर्द, उच्च रक्तचाप, और अत्यधिक पेट फूलने जैसी कई समस्याओं से छुटकारा दिलाती है।
मूत्रत्याग को बढ़ावा देता है। पेट की बीमारियों में लाभकारी है। बढ़ा हुआ पेशाब रक्तचाप को भी कम करता है, गुर्दे को साफ करता है।

महिलाओं की मासिक धर्म में मदद करता है और उन्हें नियमित बनाता है। यह असामयिक या समय से पहले रजोनिवृत्ति को रोकने में मदद कर सकता है।  मधुमेह रोगियों के लिए मरुआ का तेल बेहतर होता है।
गले में बलगम और कफ के जमाव से राहत देता है। यह पुरानी खांसी में विशेष रूप से प्रभावी है। यह कवक के विकास को रोकता है। ऐसे में यह त्वचा रोगों और पेचिश रोगों में मदद करता है। घावों को भरने, तनाव दूर करने,तंत्रिका विकारों से से बचाता है।
यह दिल के दौरे, उच्च रक्तचाप के इलाज में भी काम भी आता है। यह तेल अस्थमा, तनाव, अनिद्रा, मांसपेशियों और जोड़ों में दर्द और थकान को दूर करने में मदद करता है। गर्दन के दर्द को दूर करने, सांस संबंधित समस्याओं में कारगर है।
  मरुआ की खेती इसकी सुगंधित पत्तियों के लिए की जाती है। इसका उपयोग मसाला सूप, सॉस और हर्बल चाय के लिए किया जाता है। इसके फूल, पत्तियों और तेल से दवा बनाते हैं।
मरुआ की पत्तियों या फूलों से बनी चाय का उपयोग बहती नाक और जुकाम के लिए शिशुओं और बच्चों में, सूखी और चिड़चिड़ाहट वाली खांसी, नाक और गले और कान के दर्द के लिए किया जाता है।
मार्जोरम चाय का उपयोग विभिन्न पाचन समस्याओं के लिए भी किया जाता है, जिसमें खराब भूख, यकृत रोग, पित्त पथरी, आंतों की गैस और पेट में ऐंठन शामिल हैं। महिलाएं रजोनिवृत्ति के लक्षणों से राहत के लिए, मासिक धर्म से संबंधित मिजाज के उपचार, मासिक धर्म शुरू करने और स्तन के दूध के प्रवाह को बढ़ावा देने के लिए मरुआ चाय का उपयोग किया जाता है।
अन्य उपयोगों में डायबिटीज, नींद की समस्या, मांसपेशियों में ऐंठन, सिरदर्द, मोच, घाव और पीठ दर्द के उपचार शामिल हैं।
मरुआ तेल का उपयोग खांसी, पित्ताशय की शिकायत, पेट में ऐंठन और पाचन विकार, अवसाद, चक्कर आना, माइग्रेन, तंत्रिका सिरदर्द, तंत्रिका दर्द, पक्षाघात, खांसी, बहती नाक के लिए किया जाता है।
मरुआ एक पाक मसाला है। तेल का उपयोग खाद्य पदार्थों और पेय पदार्थों में स्वाद सामग्री के रूप में किया जाता है। तेल का उपयोग साबुन और सौंदर्य प्रसाधनों में सुगंध के रूप में किया जाता है।
   अगर लंबे समय तक इस्तेमाल किया जाए तो मरुआ कैंसर का कारण बन सकता है। ताजा मरुआ लगाने से आंख या त्वचा में जलन हो सकती है।
गर्भावस्था और स्तनपान के समय या फिर स्तनपान की अवधि में मरुआ उपयोग न करें। इसके अतिरिक्त कुछ अन्य विकार भी पैदा कर सकता है। दवा ले रहे हो तो उस वक्त नहीं लेना चाहिए।
**होशियार सिंह, लेखक,कनीना,महेंद्रगढ़,हरियाणा**

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