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Thursday, March 12, 2020



पलपोटा
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फिजलिस पेरुवियाना
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केप गूजबेरी
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गोल्डनबेरी
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पिंजरे में प्यार/पोहा बेरी/पृथ्वी चेरी
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चिरपोटी/पटपोटनी
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जंगल में मिलने वाला पलपोटा/गूजबेरी आंवला, टमाटर आदि स्वाद में मिलता है। फल को बाहृ दलपुंज गुब्बारे की भांति फुलाए रखता है। पकने पर स्वयं टहनी से गिर जाता है। कभी इसे बड़े चाव से खाया जाता था जो अब कम हो गए हैं। यह पीड़ाहर औषधीय पौधा होता है। पकने पर फल पीला पड़ जाता है। इसलिए इसे गोल्डनबेरी नाम से भी जाना जाता है।
   पलपोटा कम ऊर्जा देने वाला एक पौधे का फल है जिसमें कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, वसा, विटामिन-ए, भायमिन, विटामिन बी-2, नियासीन, विटामिन सी,कैल्शियम,लोहा,
फास्फोरस आदि तत्व पाए जाते हैं। यह स्वास्थ्य की दृष्टि से अति उत्तम फल है। यह कभी  भारत के ग्रामीण क्षेत्रों मेें बड़े ही चाव से खाया जाता था किंतु अब इसका महत्व कम हो गया है। ग्रामीण क्षेत्रों में यह फल जंगल में भी पाया जाता है। पलपोटा एक छोटा सा पौधा है। इसके फलों के ऊपर एक पतला सा आवरण होता है। कहीं-कहीं इसे मकोय भी कहा जाता है। इसे चिरपोटीपटपोटनी भी कहते हैं। इसके फलों को खाया जाता है। रसभरी औषधीय गुणो से परिपूर्ण है।
वैसे तो केप गुसबेरी का पौधा किसानों के लिये सिरदर्द माना जाता है। जब यह खरपतवार की तरह उगता है तो फसलों के लिये मुश्किल पैदा कर देता है।

पलपोटा/पलपोटन एक नाइटशेड परिवार सोलानासी कुल का पौधा है जिसमें बैंगन, टमाटर, आलू, नाइटशेड,अवगंधा, मिर्च आदि पौधे आते है जिसका मूल पेरू देश है। पौधे और उसके फल को आमतौर पर केप गोसेबेरी, गोल्डनबेरी और फिजेलिस कहा जाता है।
   इसकी प्राचीन समय से खेती की जाती रही है। पलपोटा/ पेरुवियाना एक आर्थिक रूप से उपयोगी फसल है। यह टमाटर, बैंगन, आलू और नाइटशेड आदि पौधों से संबंधित कुल का है। यह द्विबीजपत्री पौधा, मूसला जड़, पत्ते बड़े, पौधा शाकनुमा होता है। इसे पशु खूब खाते हैं। यह एक वार्षिक है। यह पौधा बहुत फैलता है जो सर्द ऋतु में देखने को मिलता है। शाखाओं और मखमली, दिल के आकार की पत्तियों के साथ फैलता है। फूल पीले-भूरे रंग के होते हैं। फूल गिरने के बाद, कैलिक्स फैलता है। अंतत: फल को पूरी तरह से घेर लेता है।
फल एक चौड़ी, चिकनी बेरी है जो एक पीले छोटे टमाटर जैसे होते हैं। अपने कैलेक्स से निकालकर नारंगी रंग में बदल जाता है और मीठा बन जाता है। कई बार इसके फल को अंगूर समझ बैठते हैं। स्वाद अंगूर या टमाटर जैसा होता है।
जब तक फल पूरी तरह से विकसित नहीं हो जाता, तब तक कैलीक्स संक्रामक होता है; सबसे पहले, यह सामान्य आकार का होता है और तब तक बढ़ता रहता है जब तक कि यह बढ़ते हुए फल के चारों ओर एक सुरक्षा कवच न बना ले। यह फल कई देशों में खाया और बेचा जाता है। अब तो यह विव के कई देशों में पाया जाता है।
 19 वीं शताब्दी में इसे केप गूजबेरी नाम दिया गया। यह ऊंचाई वाले स्थानों पर भी पाया जाता है। यह ठंढ से क्षतिग्रस्त हो सकता है। पौधे आसानी से बीजों से उगाए जाते हैं। एक फल में भारी मात्रा में बीज बनते हैं। पलपोटन का फल, फूल, पत्ती, तना, मूल पेट के रोगों के लिए लाभकारी है। इसकी पत्तियों का काढ़ा पीने से पाचन अच्छा होता है साथ ही भूख भी बढ़ती है। यह लीवर को उत्तेजित कर पित्त रस अधिक निकालता है। इसकी पत्तियों का काढ़ा शरीर के भीतर की सूजन को दूर करता है।

सूजन के ऊपर इसका पेस्ट लगाने से सूजन दूर होती है। रसभरी की पत्तियों में कैल्शियम, फास्फोरस, लोहा, विटामिन-ए, विटामिन-सी पाये जाते हैं। इसके अलावा कैरोटीन नामक तत्व भी पाया जाता है जो एंटीआक्सीडेंट का काम करता है। बाबासीर में इसकी पत्तियों का काढ़ा पीने से लाभ होता है। संधिवात में पत्तियों का लेप तथा पत्तियों के रस का काढ़ा पीने से लाभ होता है।        

 पलपोटन खांसी, हिचकी, श्वांस रोग में इसके फल का चूर्ण लाभकारी है। रसभरी का रस भी बाजार में मिलता है जो पेट के लिए उपयोगी है। सफेद दाग में पत्तियों का लेप लाभकारी है। यह डायबेटीज मे कारगर है। लीवर की सूजन कम करने में अत्यंत उपयोगी।
 यह गठिया के लिए बहुत लाभदायक हैं।

रसभरी मधुमेह  के लिए तो बहुत अच्छा फल हैं इसके सेवन से मधुमेह  नियंत्रित रखता है। इसमें  कैंसर से लडऩे के गुण तथा कालेस्ट्राल को  नियंत्रित रखता है। आंखों की बीमारियों को ठीक करता हैं। चूंकि इसमें  विटामिन ए पाया जाता हैं जो हमारे शरीर एवं आंखों को भी ठीक रखता हैं।
  पलपोटा उच्च रक्तचाप को कम करता है तथा दिल की बीमारियों से निजात दिलाता है। पलपोटा एक आर्थिक रूप से उपयोगी फसल है। कई देशों में इसकी खेती की जाती है।
केप गोजबेरी को फलों पर आधारित सास, पिस, पुडिंग, चटनी, जैम और आइसक्रीम में बनाया जाता है। इसे कच्चा खाया जाता है। रसभरी एक खरपतवार है तथा ग्रामीण क्षेत्रों में पर्याप्त मात्रा में उगता है किंतु है लीवर और किडनी के लिए बहुत लाभप्रद होने के साथ साथ जोड़ों के दर्द में लाभप्रद है। वही हमारी तंत्रिका तंत्र को स्वस्थ बनाता है। यह आलूबुखारा, अंगूर,  खुमानी आदि फलों से मिलता जुलता है। यह सोलनेसी कुल का पौधा है जिसके किसी भी फल को कच्चा नहीं खाया जाता। यह जंगलों में अपने आप उग जाता है और पशुओं के पेट दर्द तथा विभिन्न रोगों में काम आता है।
यह वजन कम करता है तथा कैंसर के लिए लाभप्रद है। पाचन तंत्र को स्वस्थ रखता है वही गठिया के इलाज में काम आता है। यह फल याददाश्त को सुधारते हैं वहीं रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है। पेट के दर्द, ऐठन, मचली आदि में लाभप्रद है वहीं इसका जूस शरीर में ई-कोलाई जैसे सूक्ष्मजीवों को बढऩे से रोकता है। त्वचा को सुंदर बनाता है, बालों के लिए लाभकारी है। इसमें तांबा, जस्त, मैंगनीज, सेलिनियम, सोडियम आदि तत्व भी पाए जाते हैं। उसके पके हुए फलों को खाना लाभप्रद होता है। इसकी पत्तियों की चाय ब्लड शुगर को कम करती है।

 यह पौधा आसपास सड़कों के किनारे एवं खेतों के किनारे उगा देखा जा सकता है। देखने में टमाटर जैसा लगता है। यह हड्डियों के लिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि हड्डियों को स्वस्थ बनाता है। रसभरी पीलिया रोग में लाभपर्द है क्योंकि इसमें लोहा पाया जाता है। यह खांसी जुकाम को दूर करता है वही नींद लाने में भी कारगर होता है। यदि एलर्जी है तो नुकसानकारी होता है।
 ं रसभरी के लाभ है वहीं कुछ नुकसान भी कर सकता है। कच्चे फल जहरीला भी हो सकते हैं वहीं जंगली रसभरी को खाना भी हानिकारक हो सकते हैं। यह एलर्जी भी कर सकता है।
स्तनपान करने वाली और गर्भवती को यह नहीं खाना चाहिए।














  **होशियार सिंह, लेखक,कनीना, हरियाणा**

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