गोखरू
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गोक्षुर
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गोखरू
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गोक्षुर
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पेडालियम मुरेक्स
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गोखरू
एक शाक के रूप में असिंचित भूमि पर पर्याप्त मात्रा में मिलता है। यह दो
रूपों में पाया जाता है बड़ा गोखरू तथा छोटा गोखरू। छोटा गोखरू गांवो में
भाखरी, भाखड़ी नामों से जाना जाता है। यह पशुओं विशेषक ऊंट को खिलाने के
काम आता है किंतु जब पक जाता है तो फल पर कांटे आ जाते है।
वहीं
बड़ा गोखरू अति उपयोगी माना जाता है किंतु छोटा गोखरू भी किसी प्रकार से
बड़े गोखरू से कम नहीं है। गोखरू का वैज्ञानिक रूट्रायबलर ट्रिब्यूलस
टेरेस्ट्रिस नाम से जाना जाता है। गोक्षुर नाम से भी जाना जाता है। यह धरा
पर फैलता है तथा पीले रंग के फूल आते हैं। इसके फल कांटे युक्त होते हैं।
यदि इसके फलों को देखा जाए तो चने से कुछ बड़े होते हैं। गोखरू का स्वभाव
शीतल, मधुर, वात नाशक माना जाता है। कहीं-कहीं तो इसको गरीब लोग भी पीसकर आटे के रूप में खाते हैं।
यह
बहुत उपयोगी पदार्थ है। यह वीर्य वर्धक तथा विभिन्न प्रकार के रोगों में
लाभकारी है। नपुंसकता को दूर करता है। प्रमेह विकार, गुर्दे के विकार,
असमारी, सुजाक, मूत्र विकार संबंधी बीमारियों में भी काम आता है। आयुर्वेद
में दशमूल नामक औषधियों में यह भी एक प्रमुख रूप से डाला जाता है। गोखरू
अर्थात गुडख़ुल जंगलों में पाई जाने वाली वनस्पति है। यह शारीरिक कमजोरी,
इनफर्टिलिटी, एग्जिमा, यौन समस्याएं ठीक करने, सीने में दर्द कम करने आदि
के अतिरिक्त कई शारीरिक बीमारियों में काम आता है। प्राय यह जीवाणु रोधी,
एंटीऑक्सीडेंट एंटी इन्फ्लेमेटरी पदार्थ होता है।
यह कब्ज, उच्च रक्तचाप, उच्च कॉल स्ट्रोल बांझपन, पाचन मुद्दे, एनीमिया,
कैंसर, खांसी आदि में भी इसका उपयोग होता है जिसके प्राय ग्रामीण क्षेत्रों
में लड्डू बनाए जाते दिन गोखरू के लड्डू कहते हैं। जो अति पौष्टिक माने
जाते हैं। जिन युवा वर्ग में शारीरिक कमजोरी होती है उन्हें भी ये प्राय
खिलाए जाते हैं।
गोखरू या गोक्षुर का नाम लेते ही दिलो-दिमाग में लड्डू की याद आ जाती है। ऐसे लड्डू के शरीर में शक्तिवर्धक होते हैं। सर्दी के दिनों में ग्रामीण क्षेत्रों में विशेष रूप से खाए जाते हैं। शरीर से कमजोर व्यक्ति को देखकर अक्सर कहते हैं कि इन्हें तो गोखरू के लड्डू खिलाए जाने चाहिए। प्राय ग्रामीण क्षेत्रों में गोखरू दो रूपों में पाया जाता है।
दो प्रकार के गोखरू जिन्हें छोटा गोखरू और बड़ा गोखरू नाम से जाना जाता है। किसी पंसारी आदि की दुकान पर जाए तो छोटा गोखरू मांगने पर ग्रामीण क्षेत्रों में बंजर भूमि पर मिलने वाली भाखरी/भाखड़ी/ भाकरी आदि नामों से जानी जैाने वाली शाक के बीज लेंगे। इसके छोटे-छोटे पत्ते धरती पर फैली हुई, पीले रंग के फूल वाली बहुत अधिक कांटे वाली क्रिपर को को छोटा गोखरू नाम से जाना जाता है।
इसके बीज कटीले होते हैं और चने के आकार होते हैं लेकिन इनमें भी वही गुण पाए जाते हैं जो बड़े गोखरू में पाए जाते हैं। यह शीतल, मधुर, कफ, वात आदि की नाशक होती है। गरीब जन इसका आटा बनाकर खाते हैं वहीं गरीब तबके के लोग इन के पत्तों से विभिन्न प्रकार के साग बनाते हैं जिनमें खाटा का साग प्रमुख है। पुरुष शक्ति वर्धक, पुष्टि वर्धक गुणों से परिपूर्ण है। नपुंसकता, शुगर आदि को दूर करने के लिए भी इसका उपयोग किया जाता है। वास्तव में इसका नाम ट्राईबुलस टेरेस्ट्रिस है जो एक वनस्पति है। इसके कांटेदार फल लगते हैं।
दशमूल नामक औषधि में प्रमुख रूप से काम में लाई जाती है। इसका मूल तथा फल चिकित्सा में काम में लाए जाते हैं। विशेष रूप से जनन संबंधी बीमारियों से इसका अधिक उपयोग किया जाता है।
इससे मिलता-जुलता बड़ा गोखरू जो ग्रामीण क्षेत्रों में बहुत प्रसिद्ध है। वास्तव में पेडालियम मुरेक्स नाम से जाना जाता है। इसे पंसारी की दुकान पर बड़ा गोखरू नाम से जाना जाता हैं। वास्तव में जहां छोटा गोखरू पशुओं के चारे में सर्वोत्तम माना जाता है, ऊंट भी बड़े चाव से खाते हैं वहीं पैरों में कांटो के रूप में सबसे ज्यादा दुखदाई साबित होते हैं।
बड़े गोखरू आकार में बड़े होते हैं। इसके यदि पत्ते को पानी में डुबोकर निकाला जाए तो एक विशेष प्रकार की राल छोड़ता है इसलिए भी यह ज्यादा पुष्टिवर्धक माना जाता है। बड़ा गोखरू भी अति औषधीय होता है। उसके भी फल बहुत काम में लाए जाते हैं।
वास्तव में गोखरू स्वास्थ्य के लिए बहुत लाभप्रद होते हैं। छोटा गोखरू के फूल तना,पत्ते, जड़ आदि सभी काम में लाए जाते हैं। यह पुरुषों में हार्मोन बढ़ाने के काम आता है वही त्वचा पर खुजली और एक्जिमा की बीमारी के इलाज में भी काम आता है। दिल से जुड़ी बीमारियों में कोलेस्ट्रॉल घटाने, ब्लड शुगर घटाने में काम आता है वही गुर्दे की पथरी को खत्म करने में काम आता है।
यदि पेशाब नली में कोई समस्या है तो उस समय भी उपयोगी होता है। गोखरू के पाउडर को पानी के साथ पीते हैं वही अर्क को पीते हैं।
गोखरू त्वचा के पर लगाया जाता है इसके का काढ़ा बनाकर भी काम में लाया जाता है ताकि त्वचा रोग दूर कर सके। ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य वर्धक पौष्टिक लड्डू बनाने के काम में गोखरू का काम में लाया जाता है।
गोखरू की तासीर गर्म होती है इसलिए सर्दी में प्रयोग करना बहुत लाभप्रद होता है। गर्मियों में यह ज्यादा काम नहीं लेते। यह शरीर को फुर्तीला बनाता है वही गठिया के इलाज में भी का में लाया जाता है। गोखरू का पाउडर, सूखा अदरक और पानी को बराबर मात्रा में लेने से इसका असर दिखाई देने लग जाता है।
गोखरू में कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, वसा, विटामिन-सी, कैल्शियम पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है। गुर्दे की पथरी, महिलाओं में बेहतर स्वास्थ्य मानसिक विकार दूर करने, शरीर का निर्माण करने में गोखरू बहुत उपयोगी है वही डिप्रेशन, क्रोध में भी काम में लाया जाता है। बवासीर रोग में भी लाभप्रद है।
गोखरू की कुछ हानियां भी है। गर्भवती महिलाओं को नहीं लेना चाहिए वही जिन व्यक्तियों में एलर्जी करता है उन्हें भी प्रयोग नहीं करना चाहिए जो बीमार चल रहे हैं उन्हें नहीं प्रयोग करना चाहिए। जिनका बीपी हाई तथा बच्चों को नहीं देना चाहिए वहीं यह लगातार लेने से शुगर घटाता है इसलिए इसका प्रयोग शुगर पेशेंट को सोच समझ कर करना चाहिए। इसके गुणों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। ऐसे में यह ग्रामीण क्षेत्रों में एक उपहार है।
गोखरू
(पेडालियम मुरेक्स)
कई देशों में पाया जाए
गहरे रंग का एक शाक
दवाओं में बहु उपयोगी
आयुर्वेद में जमाता धाक,
पत्ते पकाकर सब्जी बने
अच्छी सब्जी का है स्रोत
गुर्दे की पत्थरी दूर करता
कमजोरी में जलाता जोत,
वियाग्रा का काम करता है
पेट की अल्सर करता दूर
भूख को बढ़ाता है झटपट
खांसी को कर देता है चूर,
मूत्र के रोगों को हटा देता
त्वचा के विकार करता दूर
दमा, डायरिया, ल्युकोरिया
हृदय रोग कर दे चकनाचूर,
शरीर दर्द में होता उपयोगी
खून को करता है यह साफ
माहवारी को बढ़ाता है यह
कोढ़ शरीर का कर दे साफ,
शरीर दर्द में बड़ा उपयोगी
पत्ते भी बहु उपयोगी होते
शरीर की गर्मी को दूर करे
गर्मी से जब जन खूब रोते,
बवासीर को दूर भगाता है
पत्तों में है पोटाशियम,जस्त
फल में बेरियम पाया जाता
खाए जन तो हो जाए मस्त,
जंगलों में खड़ा मिलता यह
भाखड़ी से गुण मिलते खूब
पत्ते पानी में लार छोड़ते हैं
बनाकर पी लो इसका सूप।
**होशियार सिंह, लेखक, कनीना, हरियाणा, भारत**
भाखड़ी
(ट्रिबुलस टेरेस्ट्रिस)
अल्प जल में भी पनपता
गोक्षुर, गोखरू कहलाता
दशमूल में है एक औषधि
कठोर भूमि में मिल जाता
पीले फूल आते हैं इस पर
चने जैसे फिर लगते फल
किसानों के पैरों में लगते हैं
जब वो चलाते खेत में हल,
भाखड़ी, भाखरी, भाखड़ा
कहते इसी को गांवों में जन
आयुर्वेद में है छोटा गोखरू
अनमोल फल कीमती धन,
भेड़ बकरी अगर खा ले तो
रोग होने का भय बन जाए
शीतल, मधुर, पुष्ट, दीपन
खाए इसे जन रोग भगाए,
गरीब लोग आटा बनाकर
खाते हैं गोखरू का आटा
मूत्रविरेचक, पुष्टीवर्धक है
सैकड़ों रोगों को कहे टाटा,
वीर्यक्षीणता में है रामबाण
नपुंसकता को कर देता दूर
महिलाओं के रोग मिटाता
वायु और कफ को करे चूर,
ग्रामीण लोग इसे फाड़कर
बनाते हें सुंदर ऊंट का चारा
सैकड़ों रोगों को मिटा देता
बहु औषधीय गोक्षुर हमारा,
किसानों के लिए खरपतवार
सूखे तो बिखरे कांटे हजार
7 वर्ष तक बीज उग सकता
कर लो कर लो इससे प्यार।
**होशियार सिंह, लेखक, कनीना**
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