झलझाई
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सोलेनम जैंथोकार्पम ****************************
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कंटकारी/झलझाई/भटकटैया
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सर्टांश नाइटशेड, पीले फलवाला नाइटशेड
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पीली बेरीवाला नाइटशेड,थाई ग्रीन एगप्लांट
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धारीदार एग प्लांट/कंटेल
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फसर फसाई का टिंडरा
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झलझाई जिसे सोलेनम जैंथोकार्पम वानस्पतिक नाम से जाना जाता है। किसी सर्टांश नाइटशेड, पीले फलवाला नाइटशेड, पीली बेरीवाला नाइटशेड,थाई ग्रीन एगप्लांट, हाई धारीदार एग प्लांट/कंटेली/कंटकारी/भटकटैया आदि नामों से जाना जाता है।
यह भूमि पर फैलने वाला पौधा है जिसे सामान्य भाषा में कंटकारी/झलझाई/भटकटैया आदि नामों से जाना जाता है। बैंगन कुल का यह पौधा पूर्ण रूप से कांटों से भरा होता है। इसकी टहनियों पर भारी संख्या में कांटे होते हैं और पीले फल लगते हैं। ये फल जब कच्चे होते हैं तो रंग हरा होता है किंतु पक जाने पर पीले रंग का हो जाता है।
यह बहुत कम पानी में भी अच्छी प्रकार विकसित हो जाता है। जहां इसे लोग जहरीला मानते हैं। यह शाक रूप में मिलता लेकिन कभी-कभी यह झाड़ी और यदा-कदा पेड़ भी बन जाता है। इसके फल रंग बदलते रहते हैं। प्रारंभ में यह फल धारीदार, हरे रंग के होते हैं। इस पर बैंगनी फूल आते हैं जो गुच्छे के रूप में निकलते हैं। फल अंडाकार या गोल होते हैं। यह पौधा औषधीय गुणों से भरा हुआ है लेकिन धीरे-धीरे समाप्त होता जा रहा है।
कई वर्षों तक चलने वाला एक पौधा है जिसे कुछ लोग कटेरी/कंटेली नामों से भी जाना जाता है। आयुर्वेद में यह बहुत बहुत उपयोगी पौधा है। इसकी जड़, फल एवं पत्ते आदि औषधीय गुणों से परिपूर्ण है। दशमूल तथा लघु पंचमूल औषधियों में रूह डाला जाता है।
यह पौधा ज्वरनाशी, पसीना लाने वाला, कफ एवं वातनाशी रूप में पाया जाता है। दर्द के स्थान पर बीजों का लेप करने से दर्द से दूर हो जाता है। इस पौधे का काढा गठिया, सुजाक रोग में लाभकारी होता है वही जड़ का काढ़ा दमा,कफ, बुखार, हिचकी में उपयोगी है। जब बुखार और पेट में पथरी हो जाती है तो जड़ों का काढा पीने से आराम मिलता है।
छोटे बच्चों में जहां बुखार हो जाता है तो फलों का चूर्ण शहद के साथ देने से लाभ होता है। फूल एवं कलियों का अर्क दर्द नकसीरी, आंखों में पानी आने में उपयोगी है। फलों का काढ़ा गले में सूजन,छाती दर्द आदि में भी लाभदायक है। बीजों का चूर्ण बनाकर श्वास रोग, यकृत रोग में काम में लाया जाता है। पूरा पौधा सूखाकर राख बनाकर शहद में मिलाकर दमा के रोगियों को दी जाती है ताकि उन्हें राहत मिल जाती है।
अनेक गुणों से परिपूर्ण यह एक औषधि है जिसमें इसमें पोटेशियम नाइट्रेट, फैटी एसिड तथा कई अन्य एसिड पाए जाते हैं। स्वास्थ संबंधी अनेक समस्याओं में यह लाभप्रद है। यदि जनन क्षमता, शुक्राणुओं की वृद्धि में बहुत लाभकारी है। गंजापन को दूर करता है किंतु इस पौधे का उपयोग बगैर किसी अच्छे वैद्य की सलाह के नहीं लेना चाहिए।
यह पौधा मूत्रवर्धक होता है। इसको बवासीर पेशाब में दर्द जैसे रोगों में लाभकारी माना जाता है। गर्म तासीर का होता है तथा पशुओं के लिए भी उतना ही महत्वपूर्ण है जितना इंसानों के लिए लाभकारी है। यह मिर्गी जैसे रोग में ,लीवर में गर्भावस्था में, बाल झडऩे की समस्या, ब्लड ाूगर कम करने, मिर्गी दौरे का दूर करने, सुजाक, दांत दर्द आदि में काम में लाया जाता है। अधिक मात्रा प्रयोग कर लिया जाए स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव डालता है इसलिए इसका उपयोग बगैर वैद्य के नहीं करना चाहिए। बुजुर्ग इसे फोड़ा फंसी के इलाज में काम लेते थे।
कंटेली बहुत उपयोगी शाक धरती पर फैली अवस्था में मिलती है। कंटकारी/भटकटैया/ येलो बेरीड नाइट्सशेड नाम से जाना जाता है। इसका वैज्ञानिक नाम सोलेनम
जेंथोकार्पम होता है।
यह बहु वर्षीय पौधा होता है जिसके लंबे लंबे कांटे पाए जाते हैं। पौधे पर धारीदार हरे,पीले, लाल फल लगते हैं। वहीं विभिन्न रंगों के फूल जिनमें नीली पंखुडिय़ा होती तथा पुंकेसर पीले रंग के मिलते हैं। इसके फल जहां हरे रंग के होते किंतु पक जाने पर पीले हो जाते हैं। जिनमें लेई भरी होती है तथा भारी संख्या में बीज पाए जाते हैं। बीज बहुत छोटे तथा चिकने होते हैं।
भारत के सूखे क्षेत्र में बहुत अधिक पाया जाता है। कंटकारी नाम से प्रसिद्ध पौधा ग्रामीण क्षेत्रों में बहुत प्रसिद्ध है, जो सड़क, रेलवे ट्रैक, परती भूमि में भारी मात्रा में मिलता है।
यह बैंगन कुल का पौधा है जिसे सोलेनम जैंथोकार्पम नाम से जाना जाता है। इसके पूरे ही भाग पर बड़े बड़े शूल पाए जाते हैं जिसके चलते इसे छू पाना कठिन हो जाता है। पत्तियां भी खंडित अवस्था में पाई जाती है। फल कचरी या बेर जैसे होते हैं जिन पर सफेद रंग की धारियां पाई जाती है। यह पौधा बहुत अधिक लाभकारी है तथा विभिन्न दवाओं में काम आता है।
इस पौधे को ग्रामीण लोग फसर फसाई का टिंडरा नाम से जानते हैं। यह पौधा दशमूल नामक औषधि में काम में लाया जाता है। यह पसीना लाने वाला, ज्वर हारने वाला, कफ, वात नाशक तथा विभिन्न शारीरिक परेशानियों को दूर करने वाला होता है।
दंत की वेदना में इसका धुआं दिया जाता है। यह कफ नाशक और रक्तशोधक, शुक्र शोधक, हृदय रोग नाशी,वात,पित एवं कफ नाशी रूप में पाया जाता है।
इस पौधे को कांटो के कारण कंटीली नाम से भी जाना जाता है परंतु औषधीय गुणों से भरपूर पौधा होता है। सिर के बाल गिर रहे हो उस समय, सिर में रूसी पाई जाए, जुकाम, दांत दर्द, खांसी अस्थमा, उल्टी, पेट दर्द, मुत्र संबंधी विकार गुर्दे की बीमारी, बवासीर आदि रोगों में काम आता है। वही गले की सूजन, पेट के विभिन्न रोगों में बहुत काम आता हैं। इसे कंटीली नाम से भी जानते हैं किंतु यह धरती पर फैली होती है। यह बड़ी कंटेली तथा छोटी कटेली दो रूपों में मिलती है। दिसंबर जनवरी में जाकर ये पौधे सूख जाते हैं।
इस पौधे से टीबी की दवाइयां, जुकाम, पेट की जलन, पेट के रोग, आंखों के दर्द दूर किया जाता है वही बुखार में रामबाण है। सांस रोग, दमा आदि में महत्वपूर्ण है। मासिक धर्म, अधिक नींद आना, नाक के रोग, पुराना घाव, मिर्गी, त्वचा के रोग, बच्चों के रोग, मूत्र रोगों को दूर करने के काम आता है।
कंटेली नपुंसकता को दूर करने, कान के कीड़े, जिगर के रोग, पथरी आदि में विशेष लाभकारी है। इसलिए यह पौधा ग्रामीण क्षेत्रों में उपहार माना जाता है। कंटेली का काढ़ा पीने से
खांसी, जोड़ों के दर्द दूर हो जाते हैं। इस पौधे में प्रोटीन, पोटेशियम, कैल्शियम, मैग्नीशियम, फास्फोरस आदि तत्व पाए जाते हैं। यह रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है। दमा रोग में महत्वपूर्ण है। इसको गुणों को देखते हुए इसे महत्वपूर्ण जड़ीबूटियों एवं अमूल्य जड़ी बूटी नाम से जाना जाता है।
यह पौधा आसपास सूखे स्थानों, बंजर भूमि में पर्याप्त मात्रा में मिल जाता है। इस पौधे को घर के आस-पास लोग नहीं उगने देते क्योंकि इस पर बहुत अधिक कांटे होते हैं जिसको लोग उखाड़ कर फेंक देते हैं किंतु यह बहुत लाभप्रद होता है।
**होशियार सिंह, लेखक, कनीना, महेंद्रगढ़ हरियाणा**
कटेली
(सोलानम जेंथोकारपस)
पूरे भारत में पाया जाए
श्री लंका में उगाया जाए
कभी एग प्लांट कहलाए
करी के रूप में काम आए,
बंजर खेतों में उग जाता है
पत्ते पर मिलते भारी शूल
हरे, पीले फल लगते कभी
काम आता जड़, पत्ते, मूल,
कई दवाएं इसकी बनती
गर्भवती को करे नुकसान
थाई एग प्लांट कहलाता
आयुर्वेद की होती है शान,
कंटकारी भी नाम इसका है
बदहजमी में भी काम आए
फोड़ा फुंसी शरीर पर हो तो
फल तोड़कर उस पर लगाए,
पत्थरी, हृदय रोगों में उपयोगी
बवासीर, सेक्स हार्मोन बढ़ाए
जड़ खांंसी, दमा में काम आती
पैरों के दर्द को भी दूर भगाए,
कीट काटे तो भी काम आए
खून के रोगों को भी करती दूर
बुखार में भी अति उपयोगी
शरीर की फैट को करती दूर,
दांत दर्द हो या गला परेशानी
छाती के दर्द को कर देता दूर
किसानों के लिए खरपतवार
करे कई रोगों का घमंड चूर।
***होशियार सिंह, लेखक, कनीना***
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सोलेनम जैंथोकार्पम ****************************
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कंटकारी/झलझाई/भटकटैया
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सर्टांश नाइटशेड, पीले फलवाला नाइटशेड
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पीली बेरीवाला नाइटशेड,थाई ग्रीन एगप्लांट
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धारीदार एग प्लांट/कंटेल
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फसर फसाई का टिंडरा
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झलझाई जिसे सोलेनम जैंथोकार्पम वानस्पतिक नाम से जाना जाता है। किसी सर्टांश नाइटशेड, पीले फलवाला नाइटशेड, पीली बेरीवाला नाइटशेड,थाई ग्रीन एगप्लांट, हाई धारीदार एग प्लांट/कंटेली/कंटकारी/भटकटैया आदि नामों से जाना जाता है।
यह भूमि पर फैलने वाला पौधा है जिसे सामान्य भाषा में कंटकारी/झलझाई/भटकटैया आदि नामों से जाना जाता है। बैंगन कुल का यह पौधा पूर्ण रूप से कांटों से भरा होता है। इसकी टहनियों पर भारी संख्या में कांटे होते हैं और पीले फल लगते हैं। ये फल जब कच्चे होते हैं तो रंग हरा होता है किंतु पक जाने पर पीले रंग का हो जाता है।
यह बहुत कम पानी में भी अच्छी प्रकार विकसित हो जाता है। जहां इसे लोग जहरीला मानते हैं। यह शाक रूप में मिलता लेकिन कभी-कभी यह झाड़ी और यदा-कदा पेड़ भी बन जाता है। इसके फल रंग बदलते रहते हैं। प्रारंभ में यह फल धारीदार, हरे रंग के होते हैं। इस पर बैंगनी फूल आते हैं जो गुच्छे के रूप में निकलते हैं। फल अंडाकार या गोल होते हैं। यह पौधा औषधीय गुणों से भरा हुआ है लेकिन धीरे-धीरे समाप्त होता जा रहा है।
कई वर्षों तक चलने वाला एक पौधा है जिसे कुछ लोग कटेरी/कंटेली नामों से भी जाना जाता है। आयुर्वेद में यह बहुत बहुत उपयोगी पौधा है। इसकी जड़, फल एवं पत्ते आदि औषधीय गुणों से परिपूर्ण है। दशमूल तथा लघु पंचमूल औषधियों में रूह डाला जाता है।
यह पौधा ज्वरनाशी, पसीना लाने वाला, कफ एवं वातनाशी रूप में पाया जाता है। दर्द के स्थान पर बीजों का लेप करने से दर्द से दूर हो जाता है। इस पौधे का काढा गठिया, सुजाक रोग में लाभकारी होता है वही जड़ का काढ़ा दमा,कफ, बुखार, हिचकी में उपयोगी है। जब बुखार और पेट में पथरी हो जाती है तो जड़ों का काढा पीने से आराम मिलता है।
छोटे बच्चों में जहां बुखार हो जाता है तो फलों का चूर्ण शहद के साथ देने से लाभ होता है। फूल एवं कलियों का अर्क दर्द नकसीरी, आंखों में पानी आने में उपयोगी है। फलों का काढ़ा गले में सूजन,छाती दर्द आदि में भी लाभदायक है। बीजों का चूर्ण बनाकर श्वास रोग, यकृत रोग में काम में लाया जाता है। पूरा पौधा सूखाकर राख बनाकर शहद में मिलाकर दमा के रोगियों को दी जाती है ताकि उन्हें राहत मिल जाती है।
अनेक गुणों से परिपूर्ण यह एक औषधि है जिसमें इसमें पोटेशियम नाइट्रेट, फैटी एसिड तथा कई अन्य एसिड पाए जाते हैं। स्वास्थ संबंधी अनेक समस्याओं में यह लाभप्रद है। यदि जनन क्षमता, शुक्राणुओं की वृद्धि में बहुत लाभकारी है। गंजापन को दूर करता है किंतु इस पौधे का उपयोग बगैर किसी अच्छे वैद्य की सलाह के नहीं लेना चाहिए।
यह पौधा मूत्रवर्धक होता है। इसको बवासीर पेशाब में दर्द जैसे रोगों में लाभकारी माना जाता है। गर्म तासीर का होता है तथा पशुओं के लिए भी उतना ही महत्वपूर्ण है जितना इंसानों के लिए लाभकारी है। यह मिर्गी जैसे रोग में ,लीवर में गर्भावस्था में, बाल झडऩे की समस्या, ब्लड ाूगर कम करने, मिर्गी दौरे का दूर करने, सुजाक, दांत दर्द आदि में काम में लाया जाता है। अधिक मात्रा प्रयोग कर लिया जाए स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव डालता है इसलिए इसका उपयोग बगैर वैद्य के नहीं करना चाहिए। बुजुर्ग इसे फोड़ा फंसी के इलाज में काम लेते थे।
कंटेली बहुत उपयोगी शाक धरती पर फैली अवस्था में मिलती है। कंटकारी/भटकटैया/ येलो बेरीड नाइट्सशेड नाम से जाना जाता है। इसका वैज्ञानिक नाम सोलेनम
जेंथोकार्पम होता है।
यह बहु वर्षीय पौधा होता है जिसके लंबे लंबे कांटे पाए जाते हैं। पौधे पर धारीदार हरे,पीले, लाल फल लगते हैं। वहीं विभिन्न रंगों के फूल जिनमें नीली पंखुडिय़ा होती तथा पुंकेसर पीले रंग के मिलते हैं। इसके फल जहां हरे रंग के होते किंतु पक जाने पर पीले हो जाते हैं। जिनमें लेई भरी होती है तथा भारी संख्या में बीज पाए जाते हैं। बीज बहुत छोटे तथा चिकने होते हैं।
भारत के सूखे क्षेत्र में बहुत अधिक पाया जाता है। कंटकारी नाम से प्रसिद्ध पौधा ग्रामीण क्षेत्रों में बहुत प्रसिद्ध है, जो सड़क, रेलवे ट्रैक, परती भूमि में भारी मात्रा में मिलता है।
यह बैंगन कुल का पौधा है जिसे सोलेनम जैंथोकार्पम नाम से जाना जाता है। इसके पूरे ही भाग पर बड़े बड़े शूल पाए जाते हैं जिसके चलते इसे छू पाना कठिन हो जाता है। पत्तियां भी खंडित अवस्था में पाई जाती है। फल कचरी या बेर जैसे होते हैं जिन पर सफेद रंग की धारियां पाई जाती है। यह पौधा बहुत अधिक लाभकारी है तथा विभिन्न दवाओं में काम आता है।
इस पौधे को ग्रामीण लोग फसर फसाई का टिंडरा नाम से जानते हैं। यह पौधा दशमूल नामक औषधि में काम में लाया जाता है। यह पसीना लाने वाला, ज्वर हारने वाला, कफ, वात नाशक तथा विभिन्न शारीरिक परेशानियों को दूर करने वाला होता है।
दंत की वेदना में इसका धुआं दिया जाता है। यह कफ नाशक और रक्तशोधक, शुक्र शोधक, हृदय रोग नाशी,वात,पित एवं कफ नाशी रूप में पाया जाता है।
इस पौधे को कांटो के कारण कंटीली नाम से भी जाना जाता है परंतु औषधीय गुणों से भरपूर पौधा होता है। सिर के बाल गिर रहे हो उस समय, सिर में रूसी पाई जाए, जुकाम, दांत दर्द, खांसी अस्थमा, उल्टी, पेट दर्द, मुत्र संबंधी विकार गुर्दे की बीमारी, बवासीर आदि रोगों में काम आता है। वही गले की सूजन, पेट के विभिन्न रोगों में बहुत काम आता हैं। इसे कंटीली नाम से भी जानते हैं किंतु यह धरती पर फैली होती है। यह बड़ी कंटेली तथा छोटी कटेली दो रूपों में मिलती है। दिसंबर जनवरी में जाकर ये पौधे सूख जाते हैं।
इस पौधे से टीबी की दवाइयां, जुकाम, पेट की जलन, पेट के रोग, आंखों के दर्द दूर किया जाता है वही बुखार में रामबाण है। सांस रोग, दमा आदि में महत्वपूर्ण है। मासिक धर्म, अधिक नींद आना, नाक के रोग, पुराना घाव, मिर्गी, त्वचा के रोग, बच्चों के रोग, मूत्र रोगों को दूर करने के काम आता है।
कंटेली नपुंसकता को दूर करने, कान के कीड़े, जिगर के रोग, पथरी आदि में विशेष लाभकारी है। इसलिए यह पौधा ग्रामीण क्षेत्रों में उपहार माना जाता है। कंटेली का काढ़ा पीने से
खांसी, जोड़ों के दर्द दूर हो जाते हैं। इस पौधे में प्रोटीन, पोटेशियम, कैल्शियम, मैग्नीशियम, फास्फोरस आदि तत्व पाए जाते हैं। यह रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है। दमा रोग में महत्वपूर्ण है। इसको गुणों को देखते हुए इसे महत्वपूर्ण जड़ीबूटियों एवं अमूल्य जड़ी बूटी नाम से जाना जाता है।
यह पौधा आसपास सूखे स्थानों, बंजर भूमि में पर्याप्त मात्रा में मिल जाता है। इस पौधे को घर के आस-पास लोग नहीं उगने देते क्योंकि इस पर बहुत अधिक कांटे होते हैं जिसको लोग उखाड़ कर फेंक देते हैं किंतु यह बहुत लाभप्रद होता है।
**होशियार सिंह, लेखक, कनीना, महेंद्रगढ़ हरियाणा**
कटेली
(सोलानम जेंथोकारपस)
पूरे भारत में पाया जाए
श्री लंका में उगाया जाए
कभी एग प्लांट कहलाए
करी के रूप में काम आए,
बंजर खेतों में उग जाता है
पत्ते पर मिलते भारी शूल
हरे, पीले फल लगते कभी
काम आता जड़, पत्ते, मूल,
कई दवाएं इसकी बनती
गर्भवती को करे नुकसान
थाई एग प्लांट कहलाता
आयुर्वेद की होती है शान,
कंटकारी भी नाम इसका है
बदहजमी में भी काम आए
फोड़ा फुंसी शरीर पर हो तो
फल तोड़कर उस पर लगाए,
पत्थरी, हृदय रोगों में उपयोगी
बवासीर, सेक्स हार्मोन बढ़ाए
जड़ खांंसी, दमा में काम आती
पैरों के दर्द को भी दूर भगाए,
कीट काटे तो भी काम आए
खून के रोगों को भी करती दूर
बुखार में भी अति उपयोगी
शरीर की फैट को करती दूर,
दांत दर्द हो या गला परेशानी
छाती के दर्द को कर देता दूर
किसानों के लिए खरपतवार
करे कई रोगों का घमंड चूर।
***होशियार सिंह, लेखक, कनीना***
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