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Wednesday, May 20, 2020

लेहसुआ
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लसोड़ा/लेहसुआ
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कार्डिया मायक्सा
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सुगंधित मंजक/गोंदा/गुंदा/इंडियन चेरी
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बर्ड लाइम ट्री/लसोरा/लसोड़ा/बूच
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 लसोड़ा जिसे ग्रामीण क्षेत्रों में लेहसुआ नाम से जाना जाता है। इसका मूल इंडोमाल्या इकोज़ोन, ऑस्ट्रेलिया माना जाता है। इसके अनेकों नाम हैं जिनमें सुगंधित मंजक, ग्लू बेरी, पिंक पर्ल, बर्ड लाइम ट्री, इंडियन चेरी, बूच , लसोरा/ लसोड़ा  लसुरा आदि प्रमुख है।
  लसोड़ा पोषक तत्वों और औषधीय गुणों से भरपूर होता है।  इसके फल सुपारी जैसे होते हैं। फल हरे रंग के होते हैं पकने पर लाल एवं पीले रंग के हो जाते हैं। लेहसुआ की सब्जी और आचार भी बनाया जाता है। पके हुए फल मीठे होते हैं तथा इसके अंदर गोंद की तरह चिकना और मीठा रस होता है। इसके पेड़ की चार जातियां पाई है पर मुख्य दो हैं जिन्हें लमेड़ा और लसोड़ा कहते हैं। इसका वानस्पतिक नाम कॉर्डिया मायक्शा है। इसकी लकड़ी चिकनी व मजबूत होती है।
  लेहसुआ एक छोटे से मध्यम आकार के पर्णपाती पेड़ है।  तने की छाल भूरे रंग की, चिकनी एवं झुर्रीदार होती है। फूल छोटे तने वाले, उभयलिंगी, सफेद रंग के होते हैं जो केवल रात में खुलते हैं। फल में गूदा चिपचिपा हो जाता है।
   लेहसुआ विश्व में विभिन्न देशों में मिलता है। यह गर्म एवं शुष्क क्षेत्रों का एक पेड़ है। यह कई प्रकार के वनों में पाया जाता है। लेहसुआ के पेड़ की छाल को पानी में उबालकर छानकर पिलाने से खराब गला भी ठीक हो जाता था। इसके पेड़ की छाल का काढ़ा और कपूर में मिलाकर सूजन पर मालिश के काम आता है। इसके बीज को  दाद खाज और खुजली में प्रयोग होता है।
  लेहसुआ एक मध्यम आकार का 40 से 50 फीट ऊंचा, टेढ़ा-मेढ़ा, टहनियां चमकदार एवं पतली,पेड़ की छाल भूरे या भूरे रंग की खुरदरी होती है, जिसमें झुर्रियां पाई जाती हैं। पत्तियां सरल,  चौड़ी, मोटे तौर पर अंडे जैसी होती हैं। फूल नियमित, उभयलिंगी, सफेद, पांच पंखुडिय़ों का होता हैं। इसे साधारण भाषा में गोंदी और
निसोरा भी कहते हैं।
  लेहसुआ में प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, वसा, आहारी रेशे, आयरन, फास्फोरस , कैल्शियम,  पानी, जिंक लोहा, मैंगनीज, क्रोमियम, तांबा,आक्सालिक एसिड मौजूद होते हैं। कुछ लोग लेहसुआ के फलों को सुखाकर चूर्ण बनाते है और मैदा, बेसन और घी के साथ मिलाकर लडडू बनाते हैं। लेहसुआ की छाल का काढ़ा पीने से महिलाओं को माहवारी की समस्याओं में राहत मिलती है।  इसके पत्तों को पान की तरह चबाते तथा मुंह में छाले होने पर चबाया जाता है। बच्चे इसके पत्ते चाव से खाते हैं। इसकी लकड़ी इमारती उपयोग की होती है।
     लेहसुआ की छाल को पानी में उबालकर गरारे करने से गले की आवाज खुल जाती है।  इसकी लकड़ी इमारती काम के लिए और बन्दूक के कुंदे में काम आती है। कच्चे फलों को चुना जाता है और सब्जी के चारे के रूप में भी उपयोग किया जाता है। पत्तियों से भी अच्छे चारे की प्राप्ति होती है। बीज गिरी में औषधीय गुण होते हैं।
पेड़ के विभिन्न भागों का आंतरिक रूप से और बाह्य रूप से औषधीय उद्देश्य के लिए उपयोग किया जाता है। इसका पेड़ अपच, बुखार, दाद, अल्सर, गर्भाशय / योनि की सूजन, सिरदर्द, मूत्र मार्ग के रोग, फेफड़े और तिल्ली के रोगों के उपचार में किया जाता है। पत्तियों, फल, छाल, और बीजों में मधुमेह रोधी, जलन रोधी, रोग प्रतिरोधक गुण पाया जाता है।
लेहसुआ में मीठे स्वाद के साथ फलों से चिपचिपा सफेद पदार्थ निकाला जाता है जो गोंद के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। फल ताजे, सूखे और अचार खाए जाते हैं। पके हुए फल ताजा खाए जाते हैं जबकि अपंग फलों को चुना जा सकता है। फल अल्सर विरोधी प्रभाव दिखाते हैं।ये सूखी खांसी, श्वास रोग, इन्फ्लूएंजा, और जलती हुई जुलाब में उपयोगी होते हैं। छाल में टैनिक एसिड, अल्सर और फोड़े को ठीक करने का गुण पाया जाता है। फलों को चिड़चिड़ापन प्रभाव का दूर करने के काम आता है।
    फल एक गोलाकार, एक चेरी के आकार का होता है। यह पकने पर पीला होता है और गूदा लगभग पारदर्शी, सख्त और चिपचिपा होता है।   फलों में चीनी, गोंद, ओलिक एसिड आदि मिलते हैं। छाल में टैनिन,गैलिक एसिड और ग्लूकोज आदि भी मौजूद होता है। पेड़ की छाल और फलों का उपयोग विभिन्न प्रकार के रोगों के उपचार में किया जाता है। छाल विशेष रूप से त्वचा रोगों में उपयोगी है। इसकी छाल पित्त दोष को शांत करने, बालों के लिए अच्छा, कृमियों को नष्ट करने, अपच भोजन को पचाने में सहायता करते हैं। विष का नाश करने वाली होती है। पेड़ की छाल के काढ़े रक्त की विकार,घाव चेचक ,कृमि संक्रमण के कारण शूल को नष्ट करने, त्वचा के रोग, अल्सर को नष्ट करने के काम आता है।
फल पित्त दोष को शांत करने, बुखार, खांसी,कमि संक्रमण,रक्त विकार,अस्थमा,प्यास और पित्त दोष दूर करने के काम आता है।फल औषधीय गुणों से भरपूर होते हैं। यह मूत्रवर्धक, सूजन या जलन से राहत, खांसी के इलाज के लिए किया जाता है। पेड़ के फल खाने योग्य, पतले और पचने में भारी होते हैं। वे पेट दर्द, रक्त के विकार, पुरुष तत्व की कमजोरी और यौन विकारों में दिए जाते हैं। दोनों होते हैं। छाल में गैलिक एसिड, बी-सिटोस्टेरॉल होता है, और पित्त और कफ को कम करता है। नारियल के दूध के साथ छाल का रस गंभीर शूल से छुटकारा दिलाता है। यह पेचिश, अपच और बुखार में उपयोगी पाया जाता है।
**होशियार सिंह, लेखक,कनीना,हरियाणा**


              लेसुआ
हरा भरा छतरीनुमा
एक पेड़ यहां खड़ा
टेढ़ामेढ़ा खरेरा तन



वर्षा आंधी में अड़ा
                    50 सालों में पकता
                    लेसुआ वो कहलाए
                   गेदुड़ी, पनीगेरी जैसे
                  नाम इसी के कहलाए,

कोर्डिया मेक्सा यह है
पूरे विश्व में जाना जाए
कई रंगों के फल लगते
सब्जी में ये काम आए,

                          अचार बने लेसुआ का
                          विटामिनों से है भरपूर
                         बाल झड़े बार बार और
                         गंजेपन को कर देता दूर,

इमारती लकड़ी बनती है
छाल व जड़ काम आते
खासी जुकाम रोग लगे
काढ़े रोग को दूर भगाते,

                                   ग्रामीण लोग परिचित हैं
                                   तोड़ कर ला सब्जी बनाए
                                  गर्मी पड़े तो ये फल पके
                                   मधुर मधुर स्वाद लुभाए,

ध्यान रहे इसमें अवगुण
कैंसर को बढ़ावा देता
है
सोच समझ करे प्रयोग
लेखक यह
ता  है
**होशियार सिंह, लेखक, कनीना

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