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Friday, May 22, 2020














हींगोट
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हींगोरा
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हींगोटा
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बालनाइट्स एजिपियाका एल।
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हींगोटा जिसे ग्रामीण क्षेत्र में हींगोरा कहते हैं। एक पेड़ होता है जिसके गहरे हरे रंग के पत्ते होते हैं तथा भारी संख्या में कांटे पाए जाते हैं। इस पौधे को बालानिटासी के सदस्य के रूप में वर्गीकृत किया गया है अफ्रीका का मूल निवासी है जो अब विभिन्न देशों में पाया जाता है।
इस पौधे को रेगिस्तानी तिथि, सोप बेरी ट्री, सोप बेरी बुश, थ्रोन ट्री, इजिप्टियन मैरोबलन, इजिप्टियन बलसम कहा गया है। हरियाणा के  ग्रामीण क्षेत्रों में हींगोरा/हींगोटा कहा जाता है। हर प्रकार के मौसम में जीवित रहता है। राजस्थान और हरियाणा के रेतीले क्षेत्रों में सड़क के किनारे भी भारी मात्रा में मिलता है।
हींगोटा गर्मी,सर्दी एवं हर प्रकार के मौसम में बेहतर ढंग से जीवित रह सकता है। हींगोरा पेड़ की शाखाओं में लंबे, सीधे हरे रंग के कांटे पाए जाते हैं जो शुष्क वातावरण सहन करने को इंगित करता है। गहरे हरे रंग की संयुक्त पत्तियां पाई जाती हैं जिनका आकार बदलता रहता है। पीले-हरे पैच के साथ भूर रंग के छाल होते हैं।
पेड़ पर फूलों के गुच्छे होते हैं जो छोटे डंठल पर पैदा होते हैं। फूलों का रंग हरा-पीले रंग के होते हैं।  गोल, लंबे, फल होता है जिनका रंग हरा होता है जो पक जाने के बाद भूरे या पीले भूरे रंग के होते हैं जो अति कठोर होते हैं। पत्थरनुमा कठोर फलों में एक चिपचिपा पदार्थ भरा होता है।

मिस्र में हींगोला की हजारों वर्षों से की जा रही है। 1813 में डेनिस ने इसे बालानाइट्स नाम दिया।
  इसका पीला, एकल-बीज वाला अति कड़वा फल खाने योग्य है। इस पौधे के विभिन्न भाग उपयोग में लाएं जाते हैं। अकाल के समय पत्तियों को कच्चा या पकाया जाता है जिसमें अजवायन के बीज के साथ उबालकर शर्बत के साथ मिलाकर प्रयोग किया जाता है वहीं फूलों को खाया जा जाता है। यह सूखे समय में भी फल देता है ऐसे में इसे शुभ पौधा माना जाता है। फलों से मादक पदार्थ बनाए जाते हैं।

बीजों से तेल निकालने के बाद बचे हुए केक केक को पशु चारे के रूप में उपयोग किया जाता है जो पशुओं के कई रोगों को दूर कर सकता है। नर्सिंग माताओं द्वारा खाया जाता है और तेल का उपयोग सिरदर्द के लिए और स्तनपान कराने के लिए किया जाता है। मरुस्थलीय संक्रमण का उपचार भी किया जाता है। छाल के काढ़े का उपयोग कुछ देशों में तीर विष के लिए, एक गर्भपात और मारक के रूप में भी किया जाता है।
बीज में गैर-वाष्पशील तेल होता है।  पत्तियां, फल का गूदा, छाल और जड़ों में सैपोनिन्स पाया जाता है।
 लकड़ी का उपयोग फर्नीचर और टिकाऊ वस्तुओं जैसे उपकरण बनाने के लिए किया जाता है वहीं कम धुआं वाला कोयला बनाया जाता है। पेड़ जहां बाड़ का काम करता है वहीं सूखने पर भी बाड़ के रूप में किया जाता है। छाल से रेशे निकलते हैं। शाखाओं से निकलने वाले प्राकृतिक गम को गोंद के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। बीजों का उपयोग गहने और माला बनाने के लिए किया जाता है। टैटू भी बनाए जाते हैं।
  ग्रामीण क्षेत्रों में खांसी का रोग दूर करने के लिए काम में लेते हैं। जब खांसी हो जाती है तो इसके फल से गिरी निकालकर काम में लेते हैं। इसे इंगला या गरा नामों से जाना जाता है। इसका पौधा नींबू जैसे मिलते जुलते पत्तों जैसा होता है किंतु नींबू से बिल्कुल अलग होता है। पौधे विभिन्न प्रकार के विभिन्न रंगों के फूल आते विशेषकर सफेद रंग के फूल पर्याप्त मात्रा में पाए जाते हैं। खांसी में बहुत उपयोगी है क्योंकि बिना नुकसान पहुंचाए कम करती है। फल की गिरी बादाम से बिल्कुल मिलती जुलती होता है किंतु इसके बीज से अनेकों प्रकार की दवाइयां बनाते हैं।
इसकी प्रकृति गरम होती है। इसका फल कड़वा होता है। इसका फल जहां आंखों की समस्या, कुत्ते के काटे के इलाज में काम में लाया जाता है। फोड़ा फुंसी के इलाज में काम में लेते हैं। इसके जड़ तथा इसके बीज को पीसकर फोड़े फुंसी पर लगाने से फोड़े फुंसी में आराम मिलता है। इसके फल को पीसकर आंखों पर काजल की भांति भी लोग लगाते हैं ताकि आंखों के रोगों में राहत मिल सके। इसके बीज को पेन किलर के रूप में काम में लाया जाता है। विशेष रूप से रेगिस्तानी क्षेत्रों में यह पौधा बहुत महत्वपूर्ण पौधा होता है।

हिंगोरा फल कच्चे एवं पक्के दोनों ही रूपों में खाई जाती है। इसका फल मिठाइयां बनाने में, शराब आदि के बनाने में, सूप बनाने में काम मिलाया जाता है। इसके पत्ते जहां सब्जी बनाने के काम में लाए जाते हैं वही फूल भी खाने के काम आते हैं। इसका तेल कुकिंग के काम में आया लाया जाता है। इसका तेल गर्म करने पर धुआं नहीं देता और फैटी एसिड से रहित है। इसके बीच में 50 प्रतिशत तक तेल पाया जाता है। यह जोड़ों के दर्द, पेट के कीड़े ,घाव, मलेरिया, दस्त, बदहजमी, डायरिया, पेट के दर्द, अस्थमा, बुखार आदि में काम में लाया जाता है। इसमें प्रोटीन, लिपिड, कार्बोहाइड्रेट अल्कलॉइड, साबुन जैसे पदार्थ पाए जाते हैं। इसकी जड़े कीटों को दूर भगाती है इसलिए इसकी जड़ मलेरिया दूर करने के काम में लाई जाती है। फल अमाशय के दर्द को तथा पेट फूलना आदि में काम में लाए जाते हैं। इसकी छाल हृदय की जलन पशुओं के पेट से कीड़े दूर करने के लिए भी छाल प्रयोग की जाती है। इसका गोंद लापसी में मिलाकर छाती के दर्द को दूर करता है।
गम इसी से प्राप्त होता है। फल में साबुन जैसा पदार्थ पाया जाता है जो गूंगे आदि को मारने के भी काम में लाया जाता है। इसकी लकड़ी बहू उपयोगी होती है। विभिन्न प्रकार के फर्नीचर आदि बनाने के काम में लाई जाती है। इससे चारकोल भी प्राप्त होता है जो बहुत महत्वपूर्ण पदार्थ है बगैर धमाके जलता है जो अधिक ऊर्जा उत्पन्न करता है। इसका पौधा विभिन्न प्रकार के मिट्टी कटाव को और रोकता है।
** होशियार सिंह लेखक, कनीना, महेंद्रगढ़, हरियाणा**


             हिंगोल, हिंगोटा, हिंगूल
            (बैलेनाइट इजिप्टियाका)

सेनेगल देश में प्रमुखता से
एक  झाड़ी-पेड़  मिलता है
डेजर्ट डेट के नाम से जाने
सर्दियों में फूल खिलता है,

                   हिंगन, हिंगोल, हिग्लिग
                  सोपबेरी, थार्न ट्री, हिगोटा
                    बैलेनाइट, इंगुडी, हिंगोरा
                   अंगारवृक्ष नाम इसका होता,

हरे कांटों से लदा हुआ है
कठोर फल कभी लगते है
हर प्रकार की भूमि में हो
जंगल में खड़े ये सजते हैं,

                         भूरे रंग का छिलका होता
                         छोटे-छोटे पत्ते फिर लगते
                        रस से भरे फल लगते फिर
                       अखरोट जैसे पीले सजते,

पुराने समय का साबुन यह
धोते थे वस्त्र इसके फल से
कितने ही रोगों में काम का
फल झाग देता जब मलते,

                        पेड़ बहुत ही उपयोगी होता
                         त्वक रोगों में फल काम का
                         कुकर खांसी को दूर करता
                         खड़ा लगता पेड़ बे दाम का,

गर्भधारण को दूर करता है
कैंसर में बीज काम आता है
घावों को पत्तों से धोते जन
कामला में भी काम आता है,

                           शुगर रोगों में बहुत उपयोगी
                           पेट दर्द को यह दूर भगाता
                           बुखार व दमा को दूर करता
                            बदहजमी, हैजा इससे डरता,

जीवाणुओं को मार डालता
पेट के कीड़ों को दूर भगाता
जलन पेट की दूर कर देता है
कितने ही रोगों में काम आता,

                            मलेरिया के मच्छरों को मारता
                            खनिज लवणों से यह भरा है
                             पूरे विश्व में ही पाया जाता है
                              गहरे हरे रंग का हरा भरा है,

ग्रामीण जन इसे हिंगोरा कहे
कहीं-कहीं पर खड़ा मिलता
औषधीय पौधा कहलाता है
आंधी बारिश में यह हिलता।

                  


***होशियार सिंह, लेखक, कनीना***

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