Powered By Blogger

Sunday, May 17, 2020













कासनी
********************
**********************
************************
चिकोरी
****************************
*************************
************************
चिकोरियम इंटाइबस
**************************
*******************
*************************
चिकोरी, नीली डेजी, ब्लू डैन्डेलियन, ब्लू नाविक, ब्लू वीड, बंक, कॉफीवेड, कॉर्नफ्लावर, हेंडीबेह, हॉर्सविड, रैग्ड सैगर्स, सक्सेरी, वाइल्ड बैचलर
*********************************************
********************************************
 कासनी को अंग्रेजी में चिकोरी कहा जाता है। वास्तव में कासनी ग्रामीण क्षेत्रों में पशु चारे के रूप में बहुत प्रसिद्ध है। इसका वानस्पतिक नाम चिकोरियम इंटाइबस है।
यह नीले रंग के फूल वाला एक शाक होता है। वास्तव में यह जड़ी-बूटी के रूप में भी काम में लाई जाती है और स्वास्थ्य संबंधित लाभ देती हैं। चिकोरी को लोग पशु चारे के लिए खेतों में बहुत अधिक उगाते हैं और मवेशियों को चराकर उनका दूध बढ़ाने एवं पशु का पेट भरने के काम में लेते हैं।
   चिकोरी दवाइयां बनाने में उपयोगी है। भारत में अधिक उगाया जाता है किंतु यह यूरोपियन देशों का पौधा है। कई सालों तक यह पौधा चल सकता है अर्थत एक बार उगाने पर दे तीन वर्ष तक चल सकता है।
 कासनी के पत्ते गोल होते हैं जिनका स्वाद कुछ कड़वा स्वाद होता है। हल्के रंग के फल लगते हैं। जड़े भूरे रंग की होती है। यह गर्म प्रकृति का पौधा है।
इस पौधे की जड़ में अनेकों पोषक तत्व पाए जाते हैं। चिकोरी में प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, वसा रुक्षांस, मैग्नीज, विटामिन बी6, पोटैशियम, विटामिन-सी, फास्फोरस आदि पाए जाते हैं।
    यह स्वास्थ्य को सुधारना है क्योंकि इसमें रुक्षासं पाए जाते जो आंतों को साफ सुथरा रखते हैं। इसकी काफी बनाकर पीने से रक्त में शुगर की मात्रा घट जाती है। शरीर में जलन को बचाने के लिए प्रयोग की जाती है। सबसे बड़ी विशेषता है कि इसकी काफी में किसी प्रकार का विषैला पदार्थ नहीं होता है। यद्यपि कासनी लाभप्रद है और प्रयोग की जा सकती लेकिन कुछ लोगों में एलर्जी का कारण भी बनती। इसी प्रकार कॉफी पीने से कुछ लोगों में उल्टा प्रभाव भी पड़ सकता है।
 
कासनी का उपयोग सिरदर्द, मसूड़ों के दर्द, पीलिया, लीवर की बीमारी, मूत्र से संबंधित बीमारियां, हृदय रोग में लाभप्रद है वही आंखों की बीमारी,जोड़ों के दर्द को दूर करने के काम आती है।
कासनी को कई नामां से जाना जाता है जिनमें चिकोरी, नीली डेजी, ब्लू डैन्डेलियन, ब्लू नाविक, ब्लू वीड, बंक, कॉफीवेड, कॉर्नफ्लावर, हेंडीबेह, हॉर्सविड, रैग्ड सैगर्स, सक्सेरी, वाइल्ड बैचलर के बटन और वाइल्ड एंडिव प्रमुख हैं।  कासनी की जड़ में अर्क इनुलिन पाया जाता है जे कई रोगों के इलाज एवं स्वास्थ्य लाभ के लिए प्रयोग किया जाता है।
चिकोरी को पशुओं के लिए एक चारे की के रूप में उगाया जाता है। यह यूरोपियन देशों का मूल पौधा है। यह जंगली पौधे के रूप में पाया जाता है किंतु अब इसे उगाने के काम में लिया जाने लगा है। इस पौधे की जड़ों को भूनकर उपयोग किया जाता है। इसे काफी में मिलाकर रिकोरे नाम से बेचा जाता है। 1930 के दशक में  प्रयोग हुआ वहीं द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान इसका व्यापक रूप से उपयोग किया गया है।
   यह चारे के रूप में सबसे अधिक प्रयोग की जाती है। यह जुगाली करने वालों के लिए अत्यधिक सुपाच्य होती है और इसमें फाइबर की मात्रा कम होती है। चिकोरी की जड़ें उनके प्रोटीन और वसा की मात्रा के कारण घोड़ों के लिए  प्रयोग की जाती है। चिकोरी में टैनिन की कम मात्रा होती है। पशुधन के विकास में यह सहायक होता है।
कासनी में कार्बोहाइड्रेट, शर्करा, प्रोटीन, विटामिन, बीटा कैरोटीन, थायेमीन, राइबोफ्लेविन, नियासीन, पैंटोथेनिक अमल,विटामिन बी 6,फोलेट, विटामिन सी,विटामिन ई,कैल्शियम, लोहा, मैग्रेशियम, मैंगनीज, फासफोरस, पोटैशियम, सोडियम आदि पाये जाते हैं।  मूत्र मार्ग से संबंधित समस्याओं में पत्तियों से तैयार रस बहुत सहायक होता है। कासनी लिवर की बीमारियों को समाप्त करने में उपयोगी होता है।
**होशियार सिंह, लेखक,कनीना,हरियाणा**

No comments: