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Saturday, May 23, 2020


















 अर्जुन
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       (टेरमिनालिया अर्जुना)
भारत देश की समृद्ध भूमि
भरी हुई है जड़ी  बूटियों से
प्रयोग करते आए ऋषि मुनि
रोग भगाते थे आहुतियों से,
                         जहां पांडव का नाम अर्जुन
                        एक पेड़  भी  अर्जुन कहाता
                        भारतवर्ष में बहुत मिलता है
                       कई रोगों में खुशहाली लाता,
छाल गिरती रहती हर साल
ब्रुस जैसे लगते इस पर फूल
हरे खुरदरे लगते फिर फल
पहचानने में मत करना भूल,
                           इसके पत्तों पर पलता माथ
                           टसर बनाता काम आता है
                           हृदय रोगों में आता है काम
                          बुखार को यह दूर भगाता है,
घाव हो या हो फोड़ा, फुंसी
दर्द निवारक का यह है रूप
कई प्रकार के अमल मिलते
अचार बनाओ या फिर सूप,
                           त्वचा रोगों को दूर भगाता है
                           पेशाब नली  रोगों से  बचाए
                          सेक्स रोगों में यह रामबाण
                          मासिक धर्म में यह हंसाए,
पार्क, बगीचा हो या विरान
मिल जाए खड़ा अर्जुन वहां
औषधीय पौधा यह होता है
ढूंढ लो इसको मिलता जहां,
                        काष्ठकीय तना इसका होता
                       हरा भरा गर्मी में यह मिलता
                      गर्मी में मिलते बहुत से फूल
                      


वर्षा, आंधी में खूब हिलता।।
*****होशियार सिंह, लेखक, कनीना***

अर्जुन
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टर्मिनेलिया अर्जुन
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अर्जुन वृक्ष भारत का एक औषधीय वृक्ष है। इसे घवल ,कहुआ तथा सादड़ी नाम से भी जाना जाता है। यह वृक्ष एक बड़ा सदाबहार पेड़ है। करीब 60 फीट ऊंचा होता है तथा बिहार, मध्य प्रदेश में काफी पाया जाता है।
 इसकी छाल पेड़ से उतार लेने पर फिर पैदा हो जाती है। औषधियों में छाल का ही प्रयोग होता है।  एक वृक्ष में छाल तीन साल के चक्र में मिलती हैं। छाल गुलाबी रंग की होती है। यह वर्ष में एक बार स्वयं निकलकर नीचे गिर पड़ती है। स्वाद कसैला, तीखा होता है।
पत्ते अमरुद के पत्तों जैसे होते हैं या कहीं-कहीं नुकीले होते हैं। किनारे सरल तथा कहीं-कहीं सूक्ष्म दांतों वाले होते हैं। वे बसंत में नए आते हैं। फल वसंत में ही आते हैं जिनमें हल्की सी सुगंध भी होती है। फल लंबे अण्डाकार एवं धारियों वाले होते हैं जिन पर गर्मियों में फल लगते हैं तथा शीतकाल में पकते हैं। फल कच्ची अवस्था में हरे-पीले तथा पकने पर भूरे-लाल रंग के हो जाते हैं। फलों की गंध अरुचिकर व स्वाद कसैला होता है। फल ही अर्जुन का बीज है। अर्जुन वृक्ष का गोंद भूरा व पारदर्शक होता है।

अर्जुन जाति के कम से कम एक दर्जन प्रकार के वृक्ष पाए जाते हैं। अर्जुन की छाल को सुखाकर सूखे शीतल स्थान में चूर्ण रूप में बंद रखा जाता है।
अर्जुन एक औषधि है। हृदयरोग संबंधी सभी लक्षणों में विशेषकर क्रिया विकार जन्य तथा यांत्रिक गड़बड़ी के कारण उत्पन्न हुए विकारों में प्रयोग करते हैं।
अर्जुन की छाल में पाए जानेवाले मुख्य घटक हैं- बीटा साइटोस्टेराल, अर्जुनिक अम्ल तथा फ्रीडेलीन। अर्जुन की छाल में पाए जाने वाले अन्य घटक इस प्रकार टैनिन्स, लवण,सोडियम, मैग्नीशियम व अल्युमीनियम प्रमुख है। इस कैल्शियम सोडियम पक्ष की प्रचुरता के कारण ही यह हृदय की मांस पेशियों में सूक्ष्म स्तर पर कार्य कर पाता है।
अर्जुन से हृदय की पेशियों को बल मिलता है, स्पन्दन ठीक व सबल होता है तथा उसकी प्रति मिनट गति भी कम हो जाती है।  हृदय सशक्त होता है। यह खून में थक्का नहीं बनने देता।

अर्जुन के फलों को जहां लोग अचार, चटनी आदि बनाकर भी प्रयोग करते हैं वहीं इसकी छाल को चाय में डालकर भी लोग पीते हैं। अर्जुन में प्रमुख रूप से इसकी छाल काम में लाई जाती है। यदि हड्डी टूट जाए तो अर्जुन की छाल का पाउडर दूध के संग प्रयोग किया जाता है। जल जाए तो अर्जुन की छाल को पीसकर लगाया जाता है। दिल की बीमारियों में छाल को पीसकर दूध के साथ एक चम्मच पीना बहुत लाभकारी होता है। मुंह में छाले हो जाए तो अर्जुन की छाल को पीसकर नारियल के तेल में मिलाकर लगाया जाता है। यदि पेशाब धातु आ रही है तो अर्जुन काम में लाया जाता है। शरीर में अतिरिक्त ताकत देने के लिए इसे दूध, गुड़, चीनी के साथ प्रयोग करना चाहिए। पुरानी खांसी है तो अर्जुन छाल का सेवन करना लाभप्रद माना गया है। पेट दर्द के लिए छाल काम में लाई जाती है।
अगर पीलिया रोग हो तो छाल का प्रयोग करना चाहिए वही दांत दर्द में भी आराम देती है। अर्जुन की छाल शीतल हृदय को हितकारी, रुधिर विकार, कफ को नष्ट करने वाली होती है। सफेद बालों पर मेहंदी में मिलाकर अर्जुन की छाल को लगाने से बाल काले हो जाते हैं। बढ़ा हुआ कालस्ट्राल कम जाता है।
अर्जुन की छाल मोटापे को कम करती  है वही पेशाब की रुकावट को दूर करती है। छाल से सूजन ठीक होती है वही चोट लगने पर, मासिक धर्म में कान दर्द में, दांतो के लिए भी लाभप्रद है।  अर्जुन की छाल तासीर ठंडी होती है इसलिए गर्मियों में प्रयोग करना लाभप्रद है। जहां यह लाभप्रद है वहीं मधुमेह और बीपी की दवा प्रयोग कर रहे हैं उन्हें यह प्रयोग नहीं करनी चाहिए।
गर्भावस्था के समय इसका उपयोग नहीं करना चाहिए।
**होशियार सिंह, लेखक,कनीना,हरियाणा**

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