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Friday, May 15, 2020

कांग्रेस घास
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 गाजर घास/ गाजरी
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पार्थेनियम हिस्टोफोरस
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चटक चांदनी/सफेद फूलों वाली घास
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गांधी बूटी
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कांग्रेस घास बहुत तेजी से बढऩे वाली एक खरपतवार जो विषैली मानी जाती है। वास्तव में यह देखने में गाजर के पत्तों से बहुत मिलती-जुलती होती है इसलिए लोग इसे गाजर घास भी कहते हैं। इसे कई नामों से जाना जाता है। सदा हराभरा रहने वाला एक पौधा होता है जो झाड़ीनुमा होता है।
   याद रहे कांग्रेस घास एक शाक है। लेकिन जिस गति से फैलती है अंदाजा नहीं लगाया जा सकता। बहुत कम बारिश में बहुत तेजी से वृद्धि करता है और एक बार में बहुत भारी मात्रा में इस पर फूल और बीज बनते हैं जो तेजी से बिखर कर खरपतवार का रूप धारण कर लेते हैं।
1956 में पुणे में वैज्ञानिकों ने चेताया था कि इस पर यदि रोकथाम नहीं की गई तो आने वाले समय में एक समस्या बनेगी। यही कारण है कि आज पुराने घर, नहर की पटरी, सड़कों के किनारे, रेल मार्ग की पटरी के आसपास, खाली जगह, बंजर भूमि, जहां भी जगह उपलब्ध हो वहां तथा अतिरिक्त विभिन्न फसलों में यह तेजी से उगती है।
    बहुत हरी भरी होती है। सफेद फूल होते हैं जो कांग्रेस पदाधिकारियों द्वारा पहनी जाने वाली सफेद टोपी जैसे होने के कारण इसलिए इसे कांग्रेस घास नाम दिया गया है। भारी संख्या में इसके परागकण हवा में घूमते हैं, इसके अतिरिक्त पानी हवा तथा दूसरे पदार्थों के साथ बहुत तेजी से फैलते हैं।
एक वर्षीय शार्क पौधा होता है। यह मनुष्य और पशुओं में बहुत समस्या पैदा कर देता है। वास्तव में यह खरपतवार 1950 के आसपास अमेरिका से आयात किए गए गेहूं के साथ आया था और दिनों दिन फैलता ही जा रहा है।
इसे कांग्रेस घास कहने के पीछे यही कारण बताया जा रहा है कि कांग्रेस के शासन के वक्त गेहूं मंगवाए गए थे जिसमें इसके बीज मिलकर आए थे। कुछ लोगों का यह भी कहना है कि जिस प्रकार कांग्रेस के कार्यकर्ता सफेद टोपी लगाते हैं वैसे इसके फूल भी सफेद टोपी जैसे नजर आते हैं।
कांग्रेस घास जिस गति से फैल रही है उसी प्रकार कांग्रेस के कार्यकर्ता भी फैले थे। हकीकत में यह गेहूं से फैली थी जो विदेश से मंगवाए गए थे।
  कांग्रेस घास धीरे-धीरे खरपतवार ही नहीं अभिशाप बनती जा रही है। जब कभी हल्की बूंदाबांदी होती है कि यह बहुत तेजी से फैलने लग जाती है। इंसान ही नहीं पालतू जानवरों में भी नुकसान पहुंचाती है।
  सर्वप्रथम इसे पूना में देखा गया था लेकिन धीरे-धीरे पूरे ही भारत के सभी क्षेत्रों में फैल गई है। स्वास्थ्य के लिए भी खतरा बन गई है। उसके पत्ते जहां गाजर के घर से मिलते हैं वहीं इसके बीज बहुत हल्के होते इसलिए हवा में तेजी से उड़ जाते हैं और आसानी से अंकुरित हो जाते हैं। एक पौधे से कई हजार तक बीज प्राप्त होते जो तेजी से हवा में उड़कर तेजी से फैलते चले जाते हैं।
    यहां तक कि पहाड़ी क्षेत्रों में भी इस कांग्रेस घास को देखा जा सकता है। स्वास्थ्य के लिए बहुत नुकसानदायक है क्योंकि इस पौधे का नाम पार्थेनियम है जिसके पीछे इस पौधे में मिलने वाला पार्थेनम नाम पदार्थ होता है जो एलर्जी का कारण बनता है।
 दमा, खांसी, बुखार, त्वचा के रोग इसी के कारण फैलते हैं। इसे कोई मवेशी भी नहीं खाता। इससे दूर भागते हैं। कांग्रेस घास को मिटाने के/ लिए नष्ट करने के लिए प्रारंभ से ही प्रयास किए गए हैं किंतु फिर भी इस पर काबू नहीं पाया गया है। क्योंकि बहुत से रोगों का कारण बनती है इसलिए इस पर काबू पाया जाना जरूर जरूरी है। यूं तो पशुओं में बहुत तेजी से नुकसान पहुंचाती है। यह भी माना जाता है कि दलहन जाति की फसलों की जड़ों में सूक्ष्म जीव निवास करते हैं।
   उन गांठों को भी खत्म कर देती है। यदि सब्जी वाली फसलों में जैसे मिर्च, टमाटर, बैंगन आदि पौधों के बीच में उग जाती है तो बहुत घातक प्रभाव डालती है। पैदावार घटती चली जाती हैं।
इस पर नियंत्रण बहुत जरूरी है। विभिन्न सरकारों ने इस पर काबू पाने के लिए प्रयास तो किए और कुछ संस्थाएं आगे आई किंतु सफलता बहुत कम मिली।
 इसको या तो हाथों से उखाड़ कर फेंक दिया जाए और फिर हाथों को बहुत अच्छी प्रकार साफ किया जाए तो काबू पाना सरल है। वरना कुछ रासायनिक पदार्थ भी बाजार में उपलब्ध है जिनका छिड़काव करके इस पर काबू पाया जा सकता है।
जैव नियंत्रण बहुत बेहतर विधि है। कुछ जीव कांग्रेस घास को चट कर जाते हैं। मेक्सिको में पाया जाने वाला जायगोग्रामा नामक एक कीट इसको खाता है।
केशिया सरेसिया नामक एक पौधा भी इसको खत्म कर देता है। कांग्रेस घास की विशेषता है कि अपने आसपास दूसरे पौधों को नहीं देती इसलिए ज्यादा घातक प्रभाव डालती है कांग्रेस घास पर अब शोध चल रहे हैं ताकि इसका उपयोग किया जा सके। अभी तक  कैंसर पर चल रहा है कि यदि यह कैंसर के घातक रोग में सहायक सिद्ध होगी तो भविष्य में काम में लिया जा सकेगा। कांग्रेस घास से खाद जरूर बनाया जा रहा है। इसलिए यदि चाहे तो इस घास से खाद बनाकर काम में ले सकते हैं।
   कांग्रेस घास के कुछ दवाओं में काम में लेने के प्रयास किए जा रहे हैं। जिन्हें बुखार, मूत्र मार्ग की समस्याएं, मलेरिया आदि में कुछ दवाई बनाने की सोची जा रही है। इसके अतिरिक्त है एग्जिमा गठिया, हृदय की बीमारियों में भी काम में लेने के प्रयास किए जा रहे हैं लेकिन यदि से गड्ढे में दबा कर खाद बनाना चाहे तो जरूर बन सकता है। हरियाणा में भी इस प्रकार का प्रयोग चल रहा है।        आने वाले समय में यह है कांग्रेस घास  उपयोगी साबित हो सकती है किंतु अब तक यह घास नुकसानदायक ही साबित हुई है। जो शरीर में गंभीर बीमारियां पैदा करती है जिनमें अस्थमा भी एक है।
कांग्रेसी घास देखने में बहुत सुंदर होती है। हरी भरी होती है। फूल भी बहुत लगते हैं इसलिए  इसकी ओर लोग आकर्षित होत हैं लेकिन यह माना जा रहा है कि वैज्ञानिक डॉक्टर एहसास की मृत्यु भी इन्हीं के कारण हुई है। डा एहसास गुलाब पर शोध करते करते इस घास के संपर्क में आए और माना जा रहा है कि उनका देहांत हो गया। कांग्रेस घास के परागण अस्थमा का शिकार बनाते हैं वहीं फेफड़ों में सूजन आता है। त्वचा का कैंसर भी हो जाता है। इसलिए उसके पास नहीं आना चाहिए। इस घास को हटाने के लिए सीधे हाथों  को प्रयोग नहीं करना चाहिए अपितु हाथों पर  दस्ताने जरूर पहनने चाहिए। वरना यह हाथों को नुकसान पहुंचा सकती है।
गाजर घास से कंपोस्ट खाद तैयार किया जा सकता है। जिसके लिए गड्ढा खोदना होता है। गड्ढे में कांग्रेस घास डालकर मिट्टी डाल देते हैं जिस पर पानी छिड़कते हैं। यह कंपोस्ट खाद में बदल जाएगा। कांग्रेस घास को खत्म करने का यह भी एक बेहतर तरीका है कि से जैविक खाद बनाया जाए। इससे बने खाद्य में उर्वरा शक्ति बढ़ाने की शक्ति होती है जिसमें नाइट्रोजन, फास्फोरस कैल्शियम और मैग्नीशियम तत्व पाए जाते हैं जो बीज बोने से पहले काम आ सकता है। कांग्रेस घास पर्यावरण एवं विविधता के लिए खतरनाक है।
**होशियार सिंह, लेखक,कनीना,हरियाणा**

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