कचरी
(कुकुमिस पुबिसेंस)
किसानों के खेतों में खुद
उगकर फैलती ही जाए
कई रंगों में फल मिले
कचरी फल वो कहलाए,
ताजा कचरी तरबूजे जैसी
खीरा की प्रकार कहलाए
हरी और पीली रंग में हो
खट्टी मिट्ठी कचरी कहलाए,
पूरे विश्व में मिले यह फल
पकी और सूखी काम आए
राजस्थान का बेहतर फल
जन-जन में पहचान बनाए,
ग्रामीण किसान खेतों से तोड़
अपने घर में लेकर आते हैं
विभिन्न प्रकार से प्रयोग करे
चटनी एवं सब्जी खूब बनाएं,
जब पककर गिरे इसे सुखाते
पाउडर पीसकर फिर बनाते
कितने रोगों में रामबाण पदार्थ
फोड़ फुंसी हो तो इसे लगाते,
उत्तेजक टानिक कचरी होती
विभिन्न नामों से जग में जाने
राजस्थान में कई पकवान बने
कचरी की चटनी को जग माने,
कचरी सूखा पाउडर बना ले
वो कचरी का पाउडर कहलाए
जब भी घर में सब्जी बनाए तो
कचरी पाउडर स्वाद को बढ़ाए,
पेट रोगों में औषधि कहलाती
खाने का जग में स्वाद बढ़ाती
सूखे को भी सहन कर लेती है
कचरी की नहीं खेती की जाती,
आमचूर का विकल्प बेहतर है
पकने पर सलाद के काम आए
प्रोटीन व खनिजों से भरी हुई है
बच्चे और बूढ़ों के मन को भाए,
टमाटर की जगह काम में लेते
गरीब जनों की बेहतर है सब्जी
होटलों में अब यह जा पहुंची
तोड़ डालती है पेट की कब्जी,
प्रकृति का अनमोल उपहार यह
मारवाड़ी व्यंजनों में होती मशहूर
शरीर में ठंडक देने वाली होती
शरीर की गर्मी को कर देती दूर,
बड़े काम की जंगली कचरी है
पक जाए तो ले आओ इसे घर
खूब मजे से पकाकर खाते रहो
नहीं अब किसी रोग का है डर।।
***होशियार सिंह, लेखक, कनीना***
(कुकुमिस पुबिसेंस)
किसानों के खेतों में खुद
उगकर फैलती ही जाए
कई रंगों में फल मिले
कचरी फल वो कहलाए,
ताजा कचरी तरबूजे जैसी
खीरा की प्रकार कहलाए
हरी और पीली रंग में हो
खट्टी मिट्ठी कचरी कहलाए,
पूरे विश्व में मिले यह फल
पकी और सूखी काम आए
राजस्थान का बेहतर फल
जन-जन में पहचान बनाए,
ग्रामीण किसान खेतों से तोड़
अपने घर में लेकर आते हैं
विभिन्न प्रकार से प्रयोग करे
चटनी एवं सब्जी खूब बनाएं,
जब पककर गिरे इसे सुखाते
पाउडर पीसकर फिर बनाते
कितने रोगों में रामबाण पदार्थ
फोड़ फुंसी हो तो इसे लगाते,
उत्तेजक टानिक कचरी होती
विभिन्न नामों से जग में जाने
राजस्थान में कई पकवान बने
कचरी की चटनी को जग माने,
कचरी सूखा पाउडर बना ले
वो कचरी का पाउडर कहलाए
जब भी घर में सब्जी बनाए तो
कचरी पाउडर स्वाद को बढ़ाए,
पेट रोगों में औषधि कहलाती
खाने का जग में स्वाद बढ़ाती
सूखे को भी सहन कर लेती है
कचरी की नहीं खेती की जाती,
आमचूर का विकल्प बेहतर है
पकने पर सलाद के काम आए
प्रोटीन व खनिजों से भरी हुई है
बच्चे और बूढ़ों के मन को भाए,
टमाटर की जगह काम में लेते
गरीब जनों की बेहतर है सब्जी
होटलों में अब यह जा पहुंची
तोड़ डालती है पेट की कब्जी,
प्रकृति का अनमोल उपहार यह
मारवाड़ी व्यंजनों में होती मशहूर
शरीर में ठंडक देने वाली होती
शरीर की गर्मी को कर देती दूर,
बड़े काम की जंगली कचरी है
पक जाए तो ले आओ इसे घर
खूब मजे से पकाकर खाते रहो
नहीं अब किसी रोग का है डर।।
***होशियार सिंह, लेखक, कनीना***
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