खीप या खींप
(लेप्टाडेनिया पाइरोटेक्निका)
पुराने वक्त में खेतों में
मिलता था पौधा खीप
पशु खाते, रस्सी बुनते
चेचक में लेते थे लीप,
खुरसने से मिलता था
पत्ते अल्प नजर आते
झाड़ी बनकर जंगल में
ये सरीसृप को लुभाते,
जंगल में गुब्बारा चाहे
खीप कपड़े पर मलते
पीछे से जब फूंक लगे
हवा में गुब्बारे निकलते,
पशु रोग जब हो जाते
काट पीट इसे चराते थे
कितने ही पशु रोगों को
इस पौधे से ही हटाते थे,
वन में मिट्टी कटाव को
खीप बखूबी से रोकते थे
अनोखा उपहार वनों का
रक्तस्राव को ये रोकते थे,
आंख का लोशन बनता
चेचक रोगों में मलते थे
गुर्दे के रोग,पत्थरी,खांसी
कितने रोग ही टलते थे,
पेट दर्द, गठिया, गर्भपात
बांझपन, यौन रोग हटाए
सिरदर्द, पशु पेट घटाए
सब्जी बनाकर इसे खाए,
दंत रोगों में खीप काम का
कंटेनर इसके ही बनते हैं
पशुचारे के काम में आता
घर, छप्पर इसके बनते हैं,
कितने खीप रोग दूर करे
कितने ही काम का होता
देसी दवाएं घर पर बनाते
कितने के घाव यह धोता।
***होशियार सिंह, लेखक, कनीना***
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