जाल
(सालवडोरा ओकलियोडस)
जंगल व वनों में मिलता
सदाबहार पीलू या जाल
कई देशों में मिलता यह
नहीं करे कोई देखभाल,
छोटे-छोटे फूल लगते हैं
पीले,सफेद, लाल फल
लकड़ी नहीं है इमारती
मिट्टी कटाव का है हल,
पशु प्रयोग करते हैं छांव
महाभारत में वर्णन मिले
दवा में काम आते फल
वसा, प्रोटीन इसमें मिले,
कैल्शियम मिले फल में
तेल गठिया में काम आए
जड़ की बनती टूथ ब्रुश
छाल से घावों को हटाए,
फल इसके मधुर होते हैं
जन-जन इनको खाते हैं
लंबी-लंबी शाखाएं मिले
छाबड़ी इनकी बनाते हैं,
ऋषि मुनि तप करते आए
जाल जीवों के काम आए
पक्षी बैठकर करे कलरव
आंधी बारिश से ये बचाए,
शाखाएं कहलाती लोदक
होली पर्व पर काम आए
जब बच्चे करे शैतानी तो
शिक्षक इससे राह दिखाए,
इसके पत्ते ईंट पकाते हैं
ईंट भट्ठों में ये काम आए
हरे पत्ते बड़े काम के होते
पशु खाकर खुश हो जाएं।
***होशियार सिंह, लेखक, कनीना**
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