बथुआ या बाथू
(चिनोपोडियम एल्बम)
रबी फसल जब बोई जाए
बथुआ खुद उसमें उग जाए
बथुआ खरपतवार कहलाए
किसान उखाड़कर दूर गिराए,
आलगुड, गूजफूट, पिगविवड
बाथू, हरा, कई नाम कहलाए
पशुचारे में यह अति उपयोगी
जन कच्चा और पकाकर खाए,
अति उपयोगी यह एक शाक
पर गर्भवती का गर्भ गिर जाए
हर जन खाए चाव से इसे खाए
परंतु गर्भवती महिला नहीं खाए
मिलते हैं कितने ही विटामिन
कैल्शियम, फास्फोरस, पोटाश
आक्जालिक अमल का हैं स्रोत
ग्रामीण लोगों का भोजन खास,
गुर्दे की पत्थरी को कर देता दूर
सूजन अगर हो तो इसे लगाए
पीलिया रोग को झटपट भगाए
खून की कमी हो तो इसे खाए,
रक्त शुद्धता का यह एक टोनिक
नाइट्रोजन युक्त भूमि पर मिलता
पौधा दस हजार तक बीज देता
बीज भी दवाओं में काम आए,
रायता एवं साग इससे ही बनाते
अनियमित मासिक धर्म करे सही
भाजी व परांठे इससे जन बनाते
बुजुर्गों ने सभी को यह बात कही,
जंगल में उगता पर्याप्त मात्रा में
किसान ने इसका किया विनाश
हरे भरे पत्तों का कहलाता शाक
पशु और जन इसका बनता दास,
पेट की बीमारियों में काम आता
पूर ही विश्व में बथुआ पाया जाता
किसान खेत में निराई करने जाता
ला घर इसके बना सब्जी खााता,
गर्मी और सर्दी के अलग-अलग
बथुआ हर मौसम में अब मिलता
गहरे हरे रंग के पत्तों वाला शाक
चमकीले पत्तों से जग ही महकता।
*****होशियार सिंह, लेखक, कनीना**
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