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Saturday, December 28, 2019

थोर
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थुअर/थूयर  
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यूफोरबिया रॉयलीना
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रेगिस्तान में मिलने वाला पौधा
थोर है। यह सूखे क्षेत्रों में जहां जल की कमी होती वहां पाया जाता है। इसका तना गुद्देदार तथा हरे रंग का होता है। भारी संख्या में कांटे पूरे ही तने पर पाए जाते हैं।
 इस पर पत्ते कभी कभार छोटे तथा मोटे उत्पन्न होते हैं जो समाप्त हो जाते हैं। यह पौधा भारत सहित कई देशों में पाया जाता है। प्राय 1000 से 1500 फुट ऊंचाई पर थोर पौधा पाया जाता है। इस पर फूल तथा फल भी लगते हैं। मार्च से जुलाई तक फूल तथा अक्टूबर तक बीज बनते हैं।
 इस पौधे की सबसे बड़ी विशेषता है कि यह कैक्टस जैसा लगता है किंतु कैक्टस से भिन्न प्रकार का होता है। जब पौधे पर फूल आते हैं तो पत्ते नहीं दिखाई देते। यह पौधा यूफोरबिया कुल से संबंधित होता है जिसका वैज्ञानिक नाम यूफोरबिया रॉयलीना है। यदि इसकी की टहनियों को तोड़ा जाता है तो सफेद रंग का दूध निकलता है।
 थोर के फल लाल रंग के होते तथा स्वाद में मीठे होते हैं। इसलिए कुछ लोग इनको खाने के लिए भी प्रयोग करते हैं। इसके फल से लाल पदार्थ निकलता है जो कई कामों से में उपयोग में लाया जाता है। इसे मुनीरकली, थोर आदि नामों से जाना जाता है।
थोर देखने में तो कांटेदार होता है तथा प्राय बाड़ के स्थान पर लगाया जाता है ताकि जीव जंतु खेतों में प्रवेश न कर सके। कायिक प्रजनन विधि से जनन होता है। लेकिन यह पौधा स्नायु रोग, गैस का रक्त दोष आदि में उपयोगी है वहीं इसके फल खांसी, सूखी खांसी आदि में अति लाभकारी है।    

 इसके पत्ते कुष्ठ रोग, उदर रोग में काम आते हैं। इसके इसके तने में मिलने वाला दूध उदर रोग और मस्से के रोग को दूर करता है।
थोर को नेपाल में दवाओं में काम में लाया जाता है। इसके रस में शिलाजीत जैसे गुण देखने को मिलते हैं।
खेजड़ी देने वाले राजस्थान में जहां थोर बहुत अधिक मात्रा में पाया जाता है।
थूअर जहां आंखों के रोगों, कान के दर्द, बहरापन, दांत के दर्द, दांतों में सूजन, कान में कीड़े, दस्त आदि के इलाज में काम में लाया जाता है वही बवासीर, सूजन, घाव, त्वचा के मस्से, चर्म रोग बीमारियों में भी काम में लाए जाते हैं। यदि पेट में अधिक पानी भर जाए, घाव बन जाए तो उस समय भी इस पौधे का उपयोग किया जाता है।
यह पौधा पथरी, मोटापा, बुखार, जहर आदि को दोष दूर करने के लिए भी काम में लाया जाता है। शुक्र संबंधी रोगों में भी इसका उपयोग किया जाता है। यह पौधा मैदानी क्षेत्रों में भी अपने आप पैदा हो जाता है। रंग की दृष्टि से लाल व हरा दोनों प्रकार का होता है। खाज खुजली, गंजापन, हकलाना स्तनों में दूध की कमी, दामा आदि के इलाज में भी काम में लाया जाता है। रतौंधी, सर्प विष, कील मुंहासे, स्तनों के आकार में वृद्धि, पित्त बढऩे, पलीहा बढऩे पर इलाज के काम आता है।
इस पौधे को कहीं भी उगाया जा सकता है। इसे पानी की अधिक जरूरत नहीं होती। एग्जिमा अगर हो जाए तो भी यह काम में लाया जाता है। सरसों के तेल में बना इसका काजल आंखों के लिए उत्तम होता है। फोड़ा होने, सूजन होने पर भी इसका उपयोग किया जाता है। इसका दूध यदि आंख आदि में गिर जाए तो घातक प्रभाव डालता है। यहां तक की आंखों की रोशनी भी जा सकती है।
थोर गुर्दे संबंधी बीमारियों में, निमोनिया, कब्ज आदि में भी काम में लाया जाता है। लीवर बढऩे पर भी काम में लाया जाता है। थोर के दूध में हल्दी पाउडर मिलाकर मस्सों को दूर किया जा सकता है। कम भूख लगने पर भी इसका उपयोग किया जाता है। कुछ लोग तो थोर के पत्ते की सब्जी बनाकर भी खा लेते हैं। इसकी ऊंचाई सामान्य होती है। यदि शरीर का कोई भाग जल जाए या खांसी के साथ कफ आए तो इसके दूध का उपयोग किया जाता है। टीबी, पेचिश तथा अतिसार में भी उपयोग किया जाता है। यह पौधा देखने में कांटेदार है किंतु कई रोगों में रामबाण है।






** होशियार सिंह, लेखक,कनीना,हरियाणा**

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