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Saturday, December 14, 2019

झुंडा
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सक्रम
बंगालेंस  

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खेती की भूख ने किसानों के खेतों में उगने वाले झुंडा को समाप्त कर दिया है। कभी झोपड़ पट्टी में छांव का आनन्द लिया जाता था वहीं बारिश में इन झोपडिय़ों की छटा ही निराली थी। झुंडा के मूंज, पानी, तुली, सरकंडा आदि भाग होते हैं।
  किसी जमाने में किसान के खेतों के चारों ओर बहुतायत में पाए जाने वाले झुंडा आज लुप्त होने की कगार पर जा पहुंचा है। किसानों को आवारा पशुओं से कभी ये झुंडा बचाता था और उनकी तुली से सरकी बनाई जाती थीं वो आज देखने को भी नहीं मिल रही हैं। झुंडा से जो झोपड़ पट्टी बनाई जाती थी वो बारिश में किसान को अपार खुशी देती थी। कभी किसानों के घर प्राय कच्ची मिट्टी के बने होते थे और इन कच्चे घरों में झुंडा का अहं रोल होता था। झुंडा का वैज्ञानिक नाम सक्रम बंगालेंस है।
   किसान के लिए झुंडा खेत की मेंढ़ पर लगाए जाते थे जो किसान की खड़ी फसल को आवारा जंतुओं से बचाते थे वहीं किसान इन झुंडों से प्राप्त होने वाली कच्ची तुली से विभिन्न खिलौने बनाकर अपने बच्चों का मन बहलाता था। जब झुंडा पककर तैयार हो जाता था तो उसकी तुली पर पाया जाने वाला धागा जिसे मूंज कहते हैं, से चारपाई को भरने के काम में लिया जाता था। झुंडा सूख जाता था तो उससे झोपड़ी बनाई जाती थी। झुंडा का प्रयोग मृतक व्यक्ति के लिए भी किया जाता था और आज भी किया जा रहा है। अब झुंडा से बनी झोपड़ी किसी शाही व्यक्ति के घर पर या फिर बड़े होटल में देखने को मिल रही हैं जहां शाही लोग आकर बड़ी अदब से भोजन ग्रहण करते हैं।
    झुंडों की तुली बाजार में बिकती थी जिससे कुछ जाति विशेष के लोग खरीदकर उससे सरकी बनाकर बेचते थे। ईंट भ_ा पर रहने वाले लोग इन सरकी को खरीदकर गुजर बसर करते थे। झुंडा से विभिन्न प्रकार की झोपड़ी बनाई जाती थी। किसी जमाने में ये झोपड़ी देखने लायक होती थी। रईस व्यक्ति भी सुंदर झोपड़ी बनवाते थे। आज किसान उन झोपडिय़ों को भूल चुका है। इसके पीछे धन की अधिकता एवं पक्के मकानों की बाढ़ आना अहं माना जाता है।
  आज का किसान कम सहनशील होने के कारण मेंढ पर दो किसानों को लड़ते देखा जा सकता है। मेंढ़ को लेकर ही उस पर उगने वाले झुंडों को उजाड़ दिया गया है। ये झुंडे अनेक जीवों की शरणस्थली होत थे। तीतर, बटेर एवं सरीसृप इन झुंडों का उपयोग करते थे। झुंडे समाप्त क्या हुए आवारा एवं जंगली जीव बेवजह मारे गए। किसान ने खेत से इन झुंडों को उखाड़ फेंका है जिसके पीछे माना जा रहा है कि जोतने वाली जमीन बढ़ाई जाना है। ये झुंडा जगह अधिक घेरते हैं। किसान ने इनको उखाड़ फेंका है जिसके चलते आवारा जंतुओं के घर समाप्त हो गए हैं।
        झुंडा बहुत कीमती पौधा होता है। आवारा जंतुओं को शरण देता है वहीं अनेकों बेल उनमें ही उगकर गुजर बसर करती हैं। झुंडा के पत्ते अति कोमल होने के कारण बया पक्षी उसके पत्तों का उपयोग करके अपना सुंदर घर बनाता था। अब ये बया पक्षी अपना घर बनाने में असफल हो जाते हैं जिसके चलते ये पक्षी भी अन्यत्र पलायन कर रहे हैं। झुडा से भारी मात्रा में सूखा ईंधन भी प्राप्त होता है। कुछ लोग झुंडा काटकर उसके अंदर सूखे हुए डंठल का उपयोग ईंधन के रूप में काम में लेते हैं। जब बारिश होती है तो ग्वालें इस झुंडा के अंदर पाए जाने वाले सूखे डंठल से आग जलाकर अपने को गर्म करते हैं।
   आज किसान ने अपने हाथों से इस झुंडा को समाप्त कर दिया है। किसानों का कहना है कि पेट भरने के लिए अधिक जमीन की जरूरत होती है। ये झुंडा बहुत अधिक फैल जाते हैं और अधिक जगह घेरकर जमीन को कम कर देते हैं। ऐसे में झुंडा को उखाड़ फेंका है। झुडा जब हरी होता है तो कुछ पशु भी इसे खाकर अपना पेट भरते हैं।
   झुंडा की पान्नी बहुत लाभकारी होती है जिसमें औषधीय गुण पाए जाते हैं। जिन पशुओं की जेर नहीं गिरती है उनकी जेर झुंडे की पानी से गिराई जा सकती है। यह पीलिया रोग में भी कारगर है। इस पौधे को झुंडा, पानी, मूंज, सरकंडा, हाथी घास आदि नामों से जाना जाता है।

  झुंडा की तुली से विभिन्न प्रकार के खिलौने बनाए जाते थे जो अब देखने को नहीं मिल रहे है। उन्होंने कहा कि आने वाले समय में किसान के खेतों में कोई झुंडा नहीं देखने को मिलेगा।
 कनीना के वनस्पति शास्त्री एचएस यादव कहते हैं कि झुंडा जहां कुछ रोगों में भी काम आता था और पर्यावरण के लिए लाभकारी होता था वो आज किसान ने अपने हाथों से उखाड़ दिया है। आने वाले समय में बच्चे झुंडा को पुस्तकों में ही पढऩे को मजबूर होंगे। अनेकों उपयोग झुंडा के होते थे वो झुंडा अब देखने को दूर दराज ही मिलता है। उनका कहना है कि अनेकों जीवों जैसे तीतर, बटेर, शशक, सांप, गोह एवं विभिन्न प्रकार के पक्षियों को सहारा देने वाला झुंडे का संरक्षण किया जाए आवारा जंतुओं की शरणस्थली बरकरार रहेगी वरना झुंडों में रहने वाले जीव भी लुप्त हो जाएंगे। झुंडा कम होने के कारण अब बया पक्षी के लिए भी अपना घर बना पाना कठिन हो गया है। बया पक्षी इस पत्ते के बारिक धागे से बया अपना घोसला बनाकर जीवन यापन करता है। अब झुंडा समाप्त होने की कगार पर होने के कारण बया को बाजरा, ज्वार, मक्का, गन्ना आदि को तलाशना पड़ रहा है। बया पक्षी को बचाने के लिए झुंडा का संरक्षण भी जरूरी बन गया है।
  **होशियार सिंह, लेखक,कनीना,हरियाणा**





  झुंडा
                                                          सक्रम बंगालेंस

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