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Monday, December 16, 2019

जंगली कुल्थी
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 टेफ्रोशिया परपुरी

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 दक्षिण हरियाणा में पुराने पड़े खेतों में स्वयं उगने वाला पौधा जंगली कुल्थी मिलता है जिसे ग्रामीण क्षेत्रों में झोझरू नाम से जाना जाता है।  यह मटर परिवार से संबंध रखता है और इस पर भारी मात्रा में रंगीन फूल तथा फलियां आती है। इसके लाल, पीले, गुलाबी आदि रंगों में मिलते हैं, बंजर पड़ी हुई भूमि पर अपने आप उगाता है और पूरे ही भारत में यह पाया जाता है।
  वैज्ञानिक भाषा में इसे टेफ्रोशिया परपुरी पुर पुरी नाम से जाना जाता है तथा ग्रामीण क्षेत्रों में पशुओं के चारे के लिए इसका प्रयोग किया जाता है। कभी किसान ऊंट पालते थे। ऊंटों के लिए प्रमुख रूप से चारे के रूप में प्रयोग किया जाता है। इन पौधों के उगने से सबसे बड़ा लाभ है खेत में नाइट्रोजन खाद की पूर्ति भी हो जाती है।
 इसके जड़, तना, पत्ती आदि गुणकारी एवं महत्वपूर्ण माने जाते हैं। जहां इसके बीज पेट के कीड़ों को समाप्त करने के लिए काम में लाए जाते है वहीं इसकी जड़  दातुन करने के लिए बुजुर्ग प्रयोग करते रहे हैं। ये जड़े पौष्टिक मानी जाती है। यह कई रोगों में काम आता
है। इस पौधे की सबसे बड़ी विशेषता है कि जिसकी जड़ पौष्टिक मानी जाती है जो जरूर मछलियां के लिए जहर का कार्य करती हैं क्योंकि इसके पत्ते और बीजों में टेफ्रोसीन जहर विषैला होता है। यह पौधा स्तनधारी और सरीसर्प आदि के लिए कोई घातक प्रभाव नहीं  डालता।
 यह कई दवाओं में काम आता है। आयुर्वेद के अनुसार शरीर के कीड़ों से, जहरीले कीटो के काटने से बचाव में तथा बुखार को दूर करने के काम में लाया जाता है। जब कभी किसी व्यक्ति में कोढ़, दमा, फोड़ा फुंसी का रोग हो जाता है वही हृदय,पेट के विकार,सप्लीन और लीवर में कोई खराबी आने पर इसका उपयोग किया जाता है। जिसकी जड़ हृदय दर्द, जी मचलाने आदि काम में लाया जाता है माना जाता है दांतो के दर्द तथा दांतों में गिरने वाला रोग भी रोका जा सकता है । कई प्रकार के कास्मेटिक बनाने में इसके पत्ते भी पशुओं के चारे रूप में काम आते हैं।
 क्योंकि यह बकरी तथा पशुओं के लिए बेहतर पत्तों वाला भोजन साबित होता है। यह हरा खाद बनाने के काम आता है क्योंकि इसमें फलियां पाई जाती है
जिनकी जड़ों में सूक्ष्म जीव निवास करते जो वायुमंडल की नाइट्रोजन की खाद में बदलते हैं। यह पौधा सूख जाते हैं तो धरती में खाद की पूर्ति हो जाती है। यही कारण है की झोझरू किसानों के लिए वरदान माना जाता है
जब कभी पुराने समय में गोबर के उपले बनाए जाते थे जिसके लिए पतवार इसी से बनता था। यह पौधा झाड़ू बनाने की भी काम में लेते हैं जहां झाड़ू नहीं होती इसका उपयोग किया जाता है। झाड़ी के रूप में यह पौधा मिलता है और कई वर्षों तक धर



ती पर जीवित रहता है। इस पौधे की सबसे बड़ी विशेषता है कि यह धरती पर फैल जाता है तथा खाद की पूर्ति करता है। यह पौधा जंगली जीवों के लिए भी आहार का काम करता है तथा छोटे-छोटे जीवधारी इसी में छुप जाते हैं।
 **होशियार सिंह पत्रकार लेखक कनीना हरियाणा**
झोझरू
  (टेफरोसिया पुरपुरिया)
बंजर भूमि कभी भरी होती थी
शरपुंखा(झोझरू)हरी झाड़ी से
ऊंट बड़ चाव से खाता है इसे
उत्साह भरकर जुड़ता गाड़ी से,
                          जहां पानी की कमी मिलती है
                           झोझरू आज भी मिल जाता है
                            भूल गया है इस जड़ी बूटी को
                           दांत दर्द दूर करने काम आता है,
पुराने वक्त से जन प्रयोग करता
जड़ की बढिय़ा दातुन बनाने को
काट पीट किसान घर लाता था
ऊंट को बेहतर चारा खिलाने को,
                                 शिकारी इसका प्रयोग करते आए
                                मछली मारने का जहर बनाने को
                                 तालाब, तालाबों से मारकर लाता
                              होला बनाकर मछली का खाने को,
कीट भी इससे दूर भागते हैं सभी
राजस्थान में मासा नाम से जानते हैं
त्वचा रोग, कोढ़, लिवर, हृदय रोग
खून के रोग, बवासीर में पहचानते हैं,
                                 भूख बढ़ाता, गनोरिया रोग भगाता है
                                  इत्र बनाने के भी यह काम आता है
                                 डायरिया, दमा और मूत्र रोग आते हैं
                                 यह कितने ही रोगों को दूर भगाता है,
भारत ही नहीं कई देशों में मिलता है
हरियाणा के जंगलों में पनपता रहता
कठोर भूमि में भी पनपता बखूबी से
झोझरू को पाड़ आओ लेखक कहता।
                    


***होशियार सिंह, लेखक, कनीना**

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